ZEE जानकारी: क्या है मोदी सरकार की राम मंदिर पर 'नीति' ?
हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी की राम नीति क्या है.
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अब हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राम नीति को Decode करेंगे. कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 95 मिनट के इंटरव्यू में देश के सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की . लेकिन आज सुबह हर अखबार ने प्रधानमंत्री के राम मंदिर वाले बयान को ही Headline बनाया. ऐसा इसलिए हुआ.. क्योंकि राम मंदिर का मुद्दा.. भारत की नब्ज़ है. ये मुद्दा देश के 107 करोड़ हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए प्रधानमंत्री के बयान की व्याख्या अलग अलग तरीके से की जा रही है.
आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी की राम नीति क्या है, लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर बन सकता है या नहीं और राम मंदिर के निर्माण के रास्ते में कौन कौन से स्पीड ब्रेकर हैं ? सबसे पहले आप देखिए कि राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इंटरव्यू में क्या कहा है.
राम मंदिर के मुद्दे पर अपने जवाब के आखिर में नरेंद्र मोदी ने ये कहा है कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार की ज़िम्मेदारी शुरू होती है. और हम पूरी तरह प्रयास करने के लिए तैयार हैं .
अगर इस बयान के संकेतों को समझा जाए तो इसका एक मतलब ये भी है कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम नहीं है .
प्रधानमंत्री से ये सवाल पूछा गया था कि अगर ट्रिपल तलाक पर अध्यादेश लाया जा सकता है तो राम मंदिर पर क्यों नहीं ? इसका जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ट्रिपल तलाक पर अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लाया गया है . इस जवाब का मतलब भी करीब-करीब यही है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार के पास अध्यादेश लाने या कानून बनाने का विकल्प खुला हुआ है .
प्रधानमंत्री के इस बयान से ये सवाल भी उठता है कि क्या बीजेपी नेतृत्व को अयोध्या विवाद में हिंदू आस्था की जीत को लेकर कोई शक है ? और अगर सुप्रीम कोर्ट में फैसला हिंदुओं की आस्था के खिलाफ आया तो क्या सरकार राम मंदिर के निर्माण के लिए कानून बनाएगी ? सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है ?
पिछले वर्ष सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को कानून बनाकर पलट दिया था . सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को SC/ST ((Prevention of Atrocities)) Act में संशोधन किया था और इससे जुड़े मामलों में आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी . लेकिन सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया .
अगर अनुसूचित जाति-जनजाति के मुद्दों को ध्यान में रखकर सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है तो क्या हिंदुओं की आस्था के मुद्दे को ध्यान में रखकर सरकार सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को पलट सकती है ? प्रधानमंत्री के बयान से ऐसे तमाम सवाल पैदा होते हैं .
अध्यादेश के सवाल पर बयान देकर.... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने Core Voter को ये संदेश दिया है कि अगर राम मंदिर का निर्माण करना है कि तो बीजेपी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत देना होगा . साथ ही राज्यसभा में भी पूर्ण बहुमत ज़रूरी होगा . क्योंकि अगर फैसला, हिंदू आस्था के पक्ष में नहीं आता है तो कानून का निर्माण ही एकमात्र रास्ता होगा और इसके लिए संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत ज़रूरी है .
इस मामले में RSS के रुख ((Stand)) से भी कई बातें साफ होती हैं .
Tweet में लिखा है कि प्रधानमंत्री का बयान मंदिर निर्माण की दिशा में सकारात्मक कदम लगता है . ये बीजेपी के पालमपुर अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुरूप है.
अब हमें यहां ये देखना होगा कि राम मंदिर पर बीजेपी का पालमपुर प्रस्ताव क्या था ?
बीजेपी ने वर्ष 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में एक प्रस्ताव पारित किया था . जिसमें लिखा था कि 'बीजेपी, श्री राम जन्मभूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए हिन्दुओं को सौंपने की मांग का समर्थन करती है . अयोध्या विवाद को दो समुदायों के बीच आपसी बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए . आपसी बातचीत से समाधान ना हो तो सक्षम क़ानून बनाया जाना चाहिए.
यहां एक बात आपको Note करनी चाहिए . बीजेपी 1989 में भी कानून के ज़रिए राम मंदिर के निर्माण का संकल्प कर चुकी है .
यानी RSS ने प्रधानमंत्री को राम मंदिर पर बीजेपी के ऐतिहासिक संकल्प की याद दिलायी है . और ये कहकर प्रधानमंत्री का समर्थन भी किया है कि उनका बयान मंदिर निर्माण की दिशा में सकारात्मक कदम है .
अगर नियमित सुनवाई हो तो भी 2019 के चुनाव से पहले राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने की गुंजाइश बहुत कम है . इसीलिए न्याय प्रक्रिया के पूरे होने से पहले अध्यादेश नहीं लाने के प्रधानमंत्री के बयान का मतलब ये भी है कि 2019 के चुनाव से पहले मंदिर निर्माण की कोई सूरत नहीं है .
यहां ये भी समझना होगा कि अगर केंद्र सरकार राम मंदिर पर Bill ले भी आए तो भी उसको Pass करवा पाना बहुत मुश्किल है . पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने ट्रिपल तलाक को खत्म करने वाला Bill लोकसभा से तो Pass करवा लिया लेकिन राज्यसभा में आज भी ये Bill अटका हुआ है . क्योंकि राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है .
कल RSS ने अपने Tweet में सह सर-कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के बयान का ज़िक्र किया है . दत्तात्रेय होसबले का कहना है कि
इस सरकार के कार्यकाल में, सरकार वह वादा पूर्ण करें, ऐसी भारत की जनता की अपेक्षा है
लेकिन वास्तविकता ये है कि राज्यसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से बीजेपी कानून बनाकर राम मंदिर का निर्माण नहीं कर सकती.
आम तौर पर कई लोगों को लगता है कि सरकार अध्यादेश लाकर राम मंदिर का निर्माण करवा सकती है . लेकिन राम मंदिर पर अध्यादेश लाना दो वजहों से मुश्किल है .
पहली बात... अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है . ऐसा करने से न्यायपालिका और सरकार के बीच सीधे टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी . जो लोकतंत्र के हित में नहीं है .
दूसरी बात... ये है कि अध्यादेश... एक अस्थाई कानून है . जब संसद का सत्र नहीं होता है, तो सरकार कोई अहम फैसला लेने के लिए अध्यादेश जारी करती है . इस अध्यादेश की वैधानिकता अगले सत्र के शुरू होने के 6 हफ्ते तक ही रहती है . इसलिए अगले सत्र में अध्यादेश को Bill के रूप में पेश करके, संसद से Pass करवाना पड़ता है . संविधान ये भी कहता है कि 6 महीने के अंदर, कम से कम एक बार संसद का सत्र बुलाना अनिवार्य है . इसलिए किसी अध्यादेश की वैधानिकता की अधिकतम सीमा बढ़कर 6 महीने और 6 हफ्ते हो जाती है .
यानी... राम मंदिर के मामले में अध्यादेश लाने पर भी सरकार को अगले सत्र में Bill लाना ही पड़ेगा . और एक बार फिर राज्यसभा में बहुमत नहीं होने से सरकार को पीछे हटना होगा .
अब 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले संवैधानिक दायरे में रहते हुए राम मंदिर के निर्माण का एक ही तरीका है . वो ये है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अदालत से बाहर समझौता हो जाए . ये बहुत ही क्रांतिकारी तरीका है . लेकिन हमारे देश में अब तक इस मुद्दे पर हिंदू और मुसमलानों के बीच कोई सहमति नहीं हो पाई है