ZEE जानकारी: संघ का इतिहास पढ़ाए जाने से किसे है दिक्कत?
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ZEE जानकारी: संघ का इतिहास पढ़ाए जाने से किसे है दिक्कत?

नागपुर विश्व विद्यालय ने B.A. यानी Graduation में इतिहास के विषय में संघ के इतिहास को पढ़ाने का फैसला किया है . अब कांग्रेस और विपक्ष के कुछ नेताओं को विश्व विद्यालय का ये फैसला भी पसंद नहीं आ रहा है 

ZEE जानकारी: संघ का इतिहास पढ़ाए जाने से किसे है दिक्कत?

हमारे देश के कुछ राजनेताओं को इतिहास का ज्ञान नहीं है . लेकिन वो इतिहास पर बयान देने में हमेशा आगे रहते हैं . किसी भी विषय पर बिना प्रमाणों के साथ बात करना आज हमारे देश के राजनेताओं की आदत बन चुकी है . 

नागपुर विश्व विद्यालय ने B.A. यानी Graduation में इतिहास के विषय में संघ के इतिहास को पढ़ाने का फैसला किया है . अब कांग्रेस और विपक्ष के कुछ नेताओं को विश्व विद्यालय का ये फैसला भी पसंद नहीं आ रहा है . इन नेताओँ ने RSS के इतिहास पर ही सवाल खड़े कर दिए . लंबे समय तक देश में कांग्रेस की सरकार रही . इसलिए कांग्रेस के द्वारा मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने अपने हिसाब से इतिहास को तोड़ा मरोड़ा . आज हम इतिहास के आईने पर पड़ी धूल को साफ करेंगे . ताकी पूरे देश को सही इतिहास की जानकारी मिल सके . 

नागपुर विश्वविद्यालय के B.A. यानी Graduation के Second Year के पाठ्यक्रम में RSS के इतिहास को पढ़ाया जाएगा . इस अध्याय का शीर्षक है... राष्ट्र निर्माण में स्वयं सेवक संघ की भूमिका . 

कांग्रेस और विपक्ष के कुछ राजनीतिक दलों ने नागपुर विश्वविद्यालय के इस फैसले का विरोध किया है . विपक्ष का कहना है कि संघ का राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान नहीं है . संघ ने आज़ादी की लड़ाई भी नहीं लड़ी और वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा भी नहीं लिया था . 

आपने देखा होगा... संघ पर अक्सर ये आरोप लगता है कि भारत छोड़ो आंदोलन में संघ ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया . इन आरोपों का सच क्या है ? ये जानने के लिए आज हमने कई किताबों का अध्ययन किया है . हम आपको प्रामाणिक किताबों की मदद से ये बताएंगे कि 1942 में क्या हुआ था ? लेकिन सबसे पहले आप ये जान लीजिए कि इस विवाद पर नागपुर विश्वविद्यालय का पक्ष क्या है ? 

नागपुर विश्वविद्यालय का कहना है कि MA यानी Post Graduation में वर्ष 2002 से ही संघ का इतिहास पढ़ाया जा रहा है . जब 2002 में कोई विवाद नहीं हुआ तो अब Graduation में संघ के इतिहास को शामिल करने पर विवाद क्यों हो रहा है ? Note करने वाली बात ये भी है कि वर्ष 2002 में महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी . लेकिन तब विरोध क्यों नहीं किया गया ? 

विश्वविद्यालय का ये भी कहना है कि इतिहास में राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों का इतिहास पढ़ाया जाता है . इसके तहत कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग का भी इतिहास पढ़ाया जाता है फिर संघ का इतिहास पढ़ाए जाने पर विवाद क्यों हो रहा है ? 

इतिहास की किताबों में उन लोगों को शामिल किया जाता है जिन्होंने इतिहास बनाया हो . इस बात में किसी को शक नहीं हो सकता है कि संघ ने इतिहास का निर्माण किया है . 

संघ आज दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है . आज पूरे देश में संघ के 50 लाख से ज्यादा सक्रिय सदस्य है . पूरे देश में संघ की 40 से 50 हज़ार शाखाएं लगती हैं . संघ के 100 से भी ज्यादा सहयोगी संगठन हैं . संघ देश के आदिवासी इलाकों में 27 हजार विद्यालय चलाता है . इन विद्यालयों में 8 लाख से ज्यादा आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं . भारत के अलावा 39 देशों में संघ की शाखाएं लगती हैं . 

संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन Doctor केशव राम बलिराम हेडगेवार ने की थी . 

वर्ष 1952 में संघ की राजनीतिक इकाई के रूप में जनसंघ की स्थापना हुई . 

जनसंघ का लक्ष्य, देश को कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प देना था .

लेकिन जनसंघ अपने लक्ष्य में नाकाम रहा . जनसंघ के ही नेताओं ने 1980 में बीजेपी की स्थापना की . 

बीजेपी ने वर्ष 1996 में पहली बार केंद्र में सरकार बनाई थी . 

वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार देश को कांग्रेस का एक सशक्त विकल्प मिला . अटल बिहारी वाजपेयी युवा अवस्था में ही संघ से जुड़ गए थे . 

आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो संघ के प्रचारक रह चुके हैं . ये संघ और उसके नेताओं की ही ताकत है जिसकी वजह से लगातार दूसरी बार बीजेपी ने केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है . 

इसका मतलब है कि आधुनिक भारत के इतिहास पर संघ की बहुत गहरी छाप है . संघ का इतिहास पढ़ाए जाने पर विपक्ष के नेताओं का सबसे बड़ा सवाल ये है कि संघ ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था .

सबसे पहले इस बात पर विचार करना होगा कि भारत छोड़ो आंदोलन का देश की आज़ादी में क्या और कितना योगदान था ? 

ये जानने के लिए आज हमने भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जीवनी India Wins Freedom की मदद ली है . 

India Wins Freedom के हिंदी अनुवाद... आज़ादी की कहानी के पेज नंबर 85 पर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने लिखा है कि बाद में गांधी जी ने खुद भी भारत छोड़ो आंदोलन की पूरी योजना को एक भूल माना था . और इसके लिए अनशन भी किया था .

बहुत सारे लोगों ये जानकर आश्चर्य हो रहा होगा . इसलिए हम आपको मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की किताब का वो अंश आपको पढ़कर सुनाना चाहते हैं . मौलाना आज़ाद के किताब का उल्लेख इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त मौलाना आज़ाद ही कांग्रेस के अध्यक्ष थे . मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अपनी जीवनी में लिखते हैं... 

फरवरी में हमने समाचार पत्रों में पढ़ा कि गांधी जी ने वाइसराय को पत्र लिखा है कि कि वे आत्म शुद्धि के लिए उपवास करेंगे . मेरा विश्वास था कि गांधी जी को यह कदम उठाने में दो मुख्य कारणों से प्रेरणा मिली है . जैसे कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि उन्हें आशा ना थी कि सरकार अचानक कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लेगी . उन्हें यह भी आशा थी कि उन्हें अपने विचारों के अनुसार अहिंसात्मक आधार पर इस आंदोलन को चलाने के लिए कुछ समय मिल जाएगा. उन्होंने उन सभी का उत्तरदायित्व स्वीकार किया जो कुछ घटित हुआ और प्राय: जैसाकि वो किया करते थे, उन्होंने अपनी भूल सुधारने के लिए उपवास की योजना बनाई थी . अन्य किसी भी आधार पर इस उपवास में मुझे कोई औचित्य नहीं दिखाई पड़ा . 

सच ये है कि मौलाना आज़ाद बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ये फैसला नहीं कर पा रहे थे कि भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया जाए या नहीं ? 

अपनी जीवनी में आंदोलन को लेकर महात्मा गांधी से मतभेदों को उन्होंने खुलकर सबके सामने रखा है . 

बात बिलकुल स्पष्ट है मौलाना आज़ाद के मुताबिक जब खुद महात्मा गांधी ही भारत छोड़ो आंदोलन की योजना को भूल मानते थे . तब इस बात पर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है कि संघ, भारत छोड़ो आंदोलन में क्यों शामिल नहीं हुआ ? 

वास्तव में हमारे देश के नेता राजनीतिक बयान देने में हमेशा आगे रहते हैं . लेकिन वो कभी इतिहास का अध्ययन नहीं करते हैं . इसीलिए आज हमने पूरे देश के लिए और खास तौर पर भारत के राजनेताओं के लिए इतिहास का ये सच आपके सामने रखा . 

RSS ने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने से इनकार क्यों किया ? इस पर संघ से जुड़े विद्वानों और इतिहासकारों का कहना है कि संघ का काम हिंदू समाज को शक्तिशाली बनाना था . अगर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया जाता तो मुस्लिम लीग की शक्ति बहुत बढ़ जाती और हिंदुओँ की आवाज़ उठाने वाला कोई बड़ा संगठन नहीं रहता . संघ से जुड़े कुछ इतिहासकारों का ये भी कहना है कि संघ ने आधिकारिक रूप से भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने से इनकार किया . लेकिन उसने अपने स्वयंसेवको को निजी तौर पर आंदोलन में शामिल होने की छूट दी थी .

कांग्रेस और संघ के रिश्तों के इतिहास को देखकर भी, ये समझ में आता है कि कांग्रेस के पुराने बड़े नेताओं जैसे... पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के संघ के साथ मतभेद ज़रूर थे . लेकिन उन्होंने कभी संघ के साथ अछूतों जैसा व्यवहार नहीं किया . लेकिन आज गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी संघ के बहुत बड़े विरोधी हैं . 

लेकिन राहुल गांधी के परनाना पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मतभेद होने के बावजूद RSS की प्रशंसा की थी . 

वर्ष 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया . तब RSS के स्वयं सेवकों ने सीमा पर रसद पहुंचाने में मदद की थी . पंडित जवाहर लाल नेहरू ने RSS के योगदान को देखते हुए वर्ष 1963 में 26 जनवरी की परेड में RSS को शामिल होने का निमंत्रण दिया था. 

RSS ने इस परेड में हिस्सा लिया था. जिसकी तस्वीरें भी हम आपको दिखा रहे हैं.  तब पंडित नेहरू ने कहा था कि - 'मेरी पार्टी का संघ के साथ वैचारिक मतभेद हो सकता है लेकिन जब देश संकट में हो तो हम सबको एकजुट होकर काम करना चाहिए ' 

भारत और चीन के युद्ध के सिर्फ 3 वर्ष बाद, भारत पर एक बार फिर संकट की घड़ी आई थी . तब पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला कर दिया था. 

उस वक्त देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे . और उन्होंने वर्ष 1965 के युद्ध में दिल्ली के ट्रैफिक की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी RSS को दी थी . शास्त्री जी ने ऐसा इसलिए किया था ताकि इस काम से मुक्त होने वाले जवानों को युद्ध से जुड़े कार्यों में लगाया जा सके . 

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रति देश का हर कांग्रेसी कार्यकर्ता श्रद्धा रखता है . इंदिरा गांधी भी RSS के निमंत्रण पर Vivekanand Rock Memorial के उद्धाटन के कार्यक्रम में शामिल हुई थीं . तब RSS के वरिष्ठ नेता एकनाथ रानाडे ने इंदिरा गांधी को निमंत्रण दिया था. और उन्होंने ये निमंत्रण स्वीकार किया था. 

वर्ष 1967 में बिहार में भयंकर अकाल पड़ा . RSS के स्वयं सेवकों ने भी अकाल पीड़ितों की मदद की थी . RSS की कर्तव्य निष्ठा और सेवा की भावना को देखकर समाजवादी विचारक लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि 

संघ के स्वयंसेवको की देशभक्ति किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं है . अगर जनसंघ फासीवादी है तो मैं भी फासीवादी हूं . 

लेकिन आज सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी संघ की राष्ट्रवाद की विचारधारा से बहुत ज्यादा नफरत करती है . कांग्रेस के नेता गांधी परिवार और परिवारवाद के विरोध में एक शब्द नहीं बोलते हैं . लेकिन संघ परिवार के राष्ट्रवाद को वो देश के लिए खतरा बताते हैं .

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी कुछ सभाओं में संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था . इस बयान पर मानहानि के मुकदमे दायर किए गए . इसी से जुड़े एक मामले में राहुल गांधी फिलहाल 50 हजार के मुचलके पर जमानत पर बाहर चल रहे हैं . 

अगर RSS के इतिहास पर रिसर्च किया जाए तो ये पता चलता है कि वर्ष 1947 से पहले जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ के भारत में विलय में संघ की मदद ली गई थी . पाकिस्तान के कई विचारक, वरिष्ठ पत्रकार और विद्वान इसी वजह से RSS से नफ़रत करते हैं . 

आज हम आपको पाकिस्तान की National Defense University के Counter-Terrorism विषय के Assistant Professor खुर्रम इकबाल की लिखी एक किताब के कुछ अंश दिखाना चाहते हैं . इस किताब का नाम है 'The Making of Pakistani Human Bombs' 

इस किताब में पाकिस्तान के प्रोफेसर खुर्रम इकबाल ने RSS की इस बात के लिए आलोचना की है कि उसके स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ में लोगों को पाकिस्तान के खिलाफ भड़काया . इस किताब के Page Number 33 पर लिखा है कि 

जब महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का भारत में विलय करने का फैसला किया . तब कश्मीर में सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ . महाराजा हरि सिंह को लगा कि मुसलमान उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं . हरि सिंह हैदराबाद और जूनागढ़ के विलय में RSS की भूमिका को जानते थे . महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान समर्थक विद्रोह को कुचलने के लिए ऐसे संगठनों की मदद लेने का फैसला किया .

सितंबर 1947 में हैदाराबाद और जूनागढ़ ने पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी . लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया . इसके बाद भारत सरकार ने RSS के कार्यकर्ताओं और भारतीय सैनिकों के साथ पाकिस्तान का समर्थन करने वालों को पीछे करके दोनों राज्यों को भारत में विलय के लिए मजबूर कर दिया . 

अब सवाल ये है कि वो RSS जिसने कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासत के विलय में भारत सरकार और भारतीय सेना की मदद की . तो उस पर देश की एकता और अखंडता को तोड़ने के आरोप क्यों लगते हैं ? और सबसे बड़ी बात RSS के इस योगदान के बारे में देश को क्यों नहीं बताया जाना चाहिए . 

इस मौके पर आज एक बात समझना बहुत ज़रूरी है . कांग्रेस पार्टी हमेशा... भारत छोड़ो आंदोलन को देश को आज़ादी दिलाने वाले आंदोलन के दौर पर Brand करती है . सच क्या है ? ये आज हमने पूरे देश को बताया . लेकिन कभी आपने सोचा कि कांग्रेस पार्टी और उसके द्वारा मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने इस झूठ को आजादी के बाद क्यों आगे बढ़ाया . 

इसकी वजह बहुत साफ है... कांग्रेस आज़ादी दिलाने वाली पार्टी है... इससे कांग्रेस को सीधे-सीधे राजनीतिक फायदा होता है . जबकि आज़ादी की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस और उनकी आज़ाद हिंद फौज के योगदान को हमेशा कम करके दिखाने की कोशिश की जाती है . 

आज़ादी की लड़ाई में भारत के सैनिकों का योगदान बहुत बड़ा था . कड़वा सच यही है कि सिर्फ अहिंसा के डर से अंग्रेज़ों ने भारत नहीं छोड़ा था . अंग्रेज़ इतने क्रूर थे कि उन्हें आदर्शों और अहिंसा की भाषा समझ में नहीं आती थी . फरवरी 1946 में Royal Indian Navy के 20 हज़ार भारतीय जवानों ने विद्रोह कर दिया . इस परिस्थिति को देखकर अंग्रेज़ बहुत घबरा गए थे . उन्हें 1857 का खूनखराबा याद आ रहा था . यही वजह है कि उन्होंने भारत को छोड़ने का फैसला किया . आज हम एक बार फिर पूरे देश को आज़ादी की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के योगदान की याद दिलाना चाहते हैं . 

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