ZEE जानकारी: JNU में लेफ्ट छात्रों द्वारा हिंसा का 38 साल पुराना इतिहास
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ZEE जानकारी: JNU में लेफ्ट छात्रों द्वारा हिंसा का 38 साल पुराना इतिहास

1980 में लेफ्ट से जुड़े छात्रों ने यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर पर हमला किया और प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया था .

ZEE जानकारी: JNU में लेफ्ट छात्रों द्वारा हिंसा का 38 साल पुराना इतिहास

JNU में होने वाली हिंसा को लेकर हमारा शुरु से ये मानना रहा है कि मुठ्ठी भर छात्रों ने इस यूनिवर्सिटी को बदनाम किया है. पढ़ाई और रिसर्च के लिए बनी यूनिवर्सिटी को गुंडागर्दी का प्रैक्टिस ग्राउंड बना दिया है. यहां कुछ ऐसे चेहरे हैं जो आपको हर विरोध-प्रदर्शन में, हिस्सा लेते हुए दिख जाएंगे और इनमें से कुछ चेहरे मीडिया के साथ बदतमीजी के लिए भी कुख्यात हो चुके हैं.

15 नवंबर 2019 को जब JNU में बढ़ी हुई फीस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे थे... और Zee News की टीम उस प्रदर्शन की कवरेज के लिए JNU के Administrative Block (एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक) पहुंची थी. वहां मौजूद प्रदर्शनकारी छात्रों ने Zee News की महिला पत्रकारों के साथ बदसलूकी की, उन्हें अपशब्द कहे और कैमरा टीम के साथ भी हाथापाई करने की कोशिश की थी. दिल्ली पुलिस ने आज जिन 9 छात्रों की पहचान की है... जो कैंपस में 5 जनवरी को नकाब के पीछे छिपकर हिंसा कर रहे थे, तो उनमें से 2 छात्रों ने उस दिन भी Zee News की टीम से बदसलूकी की थी.

 इस भीड़ में मौजूद 2 छात्रों में से एक हैं पंकज मिश्रा School of Social Science के छात्र है. ये 15 नवंबर के वीडियो में पत्रकारों से किस लहजे में बात कर रहे हैं - ये देखिए.  दूसरी स्टूडेंट हैं डोलन समांता - दिल्ली पुलिस ने JNU में मारपीट करने वाले जिन नकाबपोश लोगों की पहचान की हैं उसमें डोलन की भी पहचान हुई है. डोलन जेएनयू में सोशल साइंस की स्टूडेंट हैं और इन्होंने Zee News के कैमरामैन को अपने साथियों के साथ मिलकर घेरा, उससे बदतमीजी की, हाथापाई की और जबरन फुटेज डिलीट करने के लिए कहा.

आज भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी JNU हिंसा मामले में एक बयान दिया है . उनका भी मानना है कि आज लेफ्ट की राजनीति बेनकाब हो गई है..और ये भी साबित हो गया है कि कुछ छात्र अपनी राजनीति के लिए बाकी छात्रों को पढ़ने नहीं दे रहे. आज JNU के छात्रों का प्रदर्शन दिल्ली की सड़कों से होता हुआ एक बार फिर JNU कैंपस में लौट आया . JNU कैंपस में आज छात्रों ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया . एक तरफ वो छात्र थे..जो JNU में हुई हिंसा का विरोध कर रहे थे तो दूसरी तरफ वो छात्र थे. जो पढ़ाई-लिखाई को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे थे लेकिन JNU की ये दो विरोधाभासी तस्वीरें आज की नहीं हैं..बल्कि इनका JNU के 50 वर्ष पुराने इतिहास से लंबा रिश्ता रहा है.

आज हमने, JNU से जुड़े कुछ पूर्व अधिकारियों, छात्रों, शिक्षकों और कुछ एतिहासिक तथ्यों की मदद से ये समझने की कोशिश की है कि क्या JNU के DNA में ही हिंसा और राजनीति छिपी है . हमे अपने अध्ययन के दौरान जो जवाब मिला वो जवाब अब हम आपके सामने रखना चाहते हैं . JNU का इतिहास बताता है कि इस विश्व-विद्यालय में हिंसा और राजनीति की ये घटनाएं सिर्फ आज की बात नहीं है..बल्कि इसकी शुरुआत JNU की स्थापना के साथ ही हो गई थी .

ऐसा माना जाता है कि JNU की स्थापना का विचार सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मन में आया था और उन्ही की पहल पर 1969 में JNU की स्थापना की गई थी लेकिन धीरे धीरे ये यूनिवर्सिटी वामपंथ का केंद्र बन गई . धीरे-धीरे वामपंथी विचारधारा पूरे देश में Outdated हो गई.. लेकिन फिरभी JNU में इसकी जड़ें मजबूत होती रहीं और आज स्थिति ये है कि वामपंथी पार्टियां भले ही सत्ता में ना हो लेकिन JNU में उन्हीं की अघोषित सरकार चलती है.

 JNU में लेफ्ट के छात्रों द्वारा हिंसा का इतिहास 38 वर्ष पुराना है. 1980 में लेफ्ट से जुड़े छात्रों ने यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर पर हमला किया और प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया था . इसके बाद उसी वर्ष नवंबर महीने में JNU को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इतनी हिंसा के बावजूद उस वक्त भी JNU के संचालन पर हर साल 2 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जाते थे . लेकिन कुछ छात्रों को तब भी Tax Payers के पैसे की कद्र नहीं थी और आज भी नहीं है.

1983 में भी वामपंथियों की हिंसक राजनीति की वजह से JNU को पूरे एक साल के लिए बंद करना पड़ा था. इस वर्ष भी तत्कालीन वाइस चांसलर के घर पर हमला किया गया था और उस वक्त की रिपोर्ट्स के मुताबिक तोड़फोड़ करने वाले गुंडों ने उनकी 35 वर्षों की जमापूंजी भी लूट ली थी.

उस वक्त की कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया था कि वामपंथी विचारधारा से जुड़े JNU के कुछ शिक्षकों ने भी हिंसा भड़काने में मदद की थी . इसके बाद JNU कैंपस में लंबे समय के लिए CRPF की तैनाती कर दी गई थी . यानी जो छात्र आज पुलिस की कार्रवाई का विरोध करते हैं. उनके Seniors द्वारा की गई हिंसा की वजह से कैंपस में पैरा मिलिट्री फोर्स को तैनात करना पड़ा था. आज हमने वर्ष 1972 से 2005 तक JNU में रहे..JNU के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर कपिल कपूर से बात की. कपिल कपूर ने हमें बताया कि JNU की स्थापना का उद्धेश्य CIVIL Service के लिए छात्रों को तैयार करना था लेकिन JNU में वामपंथियों के वरचस्व की वजह से ये यूनिवर्सिटी हमेशा विवादों के केंद्र में ही रही.

कपिल कूपर के मुताबिक 1983 से 1996 के बीच JNU काफी हद तक शांत रहा..लेकिन 1996 के दौरान JNU में एक बार फिर उग्र प्रदर्शन शुरू हो गए . JNU को करीब से समझने वालों के मुताबिक शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का झुकाव भी वामपंथ की तरफ था..और लेफ्ट पार्टियों ने कई वर्षों तक कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाई थी . इसलिए केंद्र सरकार चाहकर भी...JNU में लेफ्ट द्वारा की जाने वाली हिंसाओं को काबू में नहीं कर सकी..और धीरे धीरे ये यूनिवर्सिटी वामपंथी विचारधारा का केंद्र और वामपंथी छात्रों का Training Ground बन गई .

वर्ष 2000 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी तब.. एक बार फिर विवादों में आ गई...जब यहां कारगिल युद्ध के बाद एक मुशायरे का आयोजन किया गया . इस मुशायरे में कारगिल युद्ध के दौरान भारत द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना की गई थी .

इस दौरान कारगिल के युद्ध में हिस्सा ले चुके दो सैनिक भी दर्शकों में शामिल थे..और उन्होंने इसका विरोध किया..आरोपों के मुताबिक वामपंथी छात्रों ने इन सैनिकों की भी पिटाई कर दी थी .2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के JNU दौरे का विरोध हुआ..और ये विरोध भी हिंसा में बदल गया .JNU के वामपंथी छात्रों पर एक गंभीर आरोप वर्ष 2010 में भी लगा था...तब दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने 76 CRPF जवानों की हत्या कर दी थी . आरोपों के मुताबिक जिस वक्त पूरा देश गम में डूबा था..तब JNUके कुछ वामपंथी छात्र कैंपस में इस कत्ले-आमा का जश्न मना रहे थे .

2013 में JNU में महिषासुर दिवस मनाया गया और तब कुछ छात्रों पर देवी दुर्गा के अपमान का आरोप भी लगा . फरवरी 2016 में ज़ी न्यूज़ ने ही पूरे देश को दिखाया कि कैसे JNU में देश के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगाए जा रहे थे . आरोपों के मुताबिक टुकड़े टुकड़े गैंग की अगवाई छात्रनेता कन्यैहा कुमार कर रहे थे . और दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में उन पर देशद्रोह की धारा के तहत मामला भी दर्ज किया गया था .

Zee News ने तब से लेकर अब तक...हर बार...देशद्रोही विचारधारा को Expose किया है . 2016 के बाद से हम लगातार JNU और देश के दूसरे हिस्सों से उठने वाली देशद्रोही विचारधारा का विरोध करते रहे हैं . इसका नतीजा ये हुआ कि JNU के वामपंथी छात्रों ने Zee News को अपना दुश्मन नंबर 1 मान लिया . लेकिन हमने इन छात्रों के विरोध को हमेशा एक Medal की तरह समझा और इनके हर एक विरोध ने हमें ये यकीन दिलाया कि हम सही रास्ते पर हैं .लेकिन मीडिया के एक हिस्से ने कन्हैया कुमार जैसे छात्र नेताओं को Star बना दिया . लेकिन फिर भी जनता ने उन्हें नकार दिया . कन्हैया कुमाक एंड टीम ने आरोप लगाए कि उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है..लेकिन फिर भी कन्हैया कुमार ने बिहार की बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ा और वो 4 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए .

इस बीच दिल्ली पुलिस कन्यैहा कुमार को गिरफ्तार करना चाहती थी..लेकिन दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया . यानी जिन वामपंथी छात्रों पर हिंसा, और देशद्रोह जैसे आरोप लगते रहे हैं..उन्हें बचाने का काम हमारे ही देश की अलग अलग विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियां करती रही हैं .लेफ्ट भले ही राजनीति में हाशिए पर हो..लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए लेफ्ट के ये छात्र हमेशा..वोट पाने का जरिया रहे हैं और यही वजह है कि कांग्रेस समेत कई पार्टियां लेफ्ट की हिंसा को Right यानी सही मानती रही हैं .

कपिल कूपर के मुताबिक 1983 से 1996 के बीच JNU काफी हद तक शांत रहा..लेकिन 1996 के दौरान JNU में एक बार फिर उग्र प्रदर्शन शुरू हो गए . JNU को करीब से समझने वालों के मुताबिक शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का झुकाव भी वामपंथ की तरफ था..और लेफ्ट पार्टियों ने कई वर्षों तक कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चलाई थी . इसलिए केंद्र सरकार चाहकर भी...JNU में लेफ्ट द्वारा की जाने वाली हिंसाओं को काबू में नहीं कर सकी..और धीरे धीरे ये यूनिवर्सिटी वामपंथी विचारधारा का केंद्र और वामपंथी छात्रों का Training Ground बन गई .

वर्ष 2000 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी तब.. एक बार फिर विवादों में आ गई...जब यहां कारगिल युद्ध के बाद एक मुशायरे का आयोजन किया गया . इस मुशायरे में कारगिल युद्ध के दौरान भारत द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना की गई थी .इस दौरान कारगिल के युद्ध में हिस्सा ले चुके दो सैनिक भी दर्शकों में शामिल थे..और उन्होंने इसका विरोध किया..आरोपों के मुताबिक वामपंथी छात्रों ने इन सैनिकों की भी पिटाई कर दी थी .

2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के JNU दौरे का विरोध हुआ..और ये विरोध भी हिंसा में बदल गया . JNU के वामपंथी छात्रों पर एक गंभीर आरोप वर्ष 2010 में भी लगा था...तब दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने 76 CRPF जवानों की हत्या कर दी थी . आरोपों के मुताबिक जिस वक्त पूरा देश गम में डूबा था..तब JNU के कुछ वामपंथी छात्र कैंपस में इस कत्ले-आमा का जश्न मना रहे थे .

2013 में JNU में महिषासुर दिवस मनाया गया और तब कुछ छात्रों पर देवी दुर्गा के अपमान का आरोप भी लगा . फरवरी 2016 में ज़ी न्यूज़ ने ही पूरे देश को दिखाया कि कैसे JNU में देश के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगाए जा रहे थे . आरोपों के मुताबिक टुकड़े टुकड़े गैंग की अगवाई छात्रनेता कन्यैहा कुमार कर रहे थे . और दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में उन पर देशद्रोह की धारा के तहत मामला भी दर्ज किया गया था .

Zee News ने तब से लेकर अब तक...हर बार...देशद्रोही विचारधारा को Expose किया है . 2016 के बाद से हम लगातार JNU और देश के दूसरे हिस्सों से उठने वाली देशद्रोही विचारधारा का विरोध करते रहे हैं . इसका नतीजा ये हुआ कि JNU के वामपंथी छात्रों ने Zee News को अपना दुश्मन नंबर 1 मान लिया . लेकिन हमने इन छात्रों के विरोध को हमेशा एक Medal की तरह समझा और इनके हर एक विरोध ने हमें ये यकीन दिलाया कि हम सही रास्ते पर हैं .

लेकिन मीडिया के एक हिस्से ने कन्हैया कुमार जैसे छात्र नेताओं को Star बना दिया . लेकिन फिर भी जनता ने उन्हें नकार दिया . कन्हैया कुमाक एंड टीम ने आरोप लगाए कि उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है..लेकिन फिर भी कन्हैया कुमार ने बिहार की बेगुसराय सीट से चुनाव लड़ा और वो 4 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए .

इस बीच दिल्ली पुलिस कन्हैया कुमार को गिरफ्तार करना चाहती थी..लेकिन दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया . यानी जिन वामपंथी छात्रों पर हिंसा, और देशद्रोह जैसे आरोप लगते रहे हैं..उन्हें बचाने का काम हमारे ही देश की अलग अलग विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियां करती रही हैं .लेफ्ट भले ही राजनीति में हाशिए पर हो..लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए लेफ्ट के ये छात्र हमेशा..वोट पाने का जरिया रहे हैं और यही वजह है कि कांग्रेस समेत कई पार्टियां लेफ्ट की हिंसा को राइट यानी सही मानती रही हैं. 

यहां आपको JNU से जुड़ी एक दिलचस्प घटना के बारे में भी जानना चाहिए . ये घटना 1977 की है . तब JNU की चांसलर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं....लेकिन लेफ्ट के छात्र लगातार उनका विरोध कर रहे थे..लेफ्ट की मांग थी कि इंदिरा गांधी को JNU का चांसलर नहीं होना चाहिए . उस वक्त JNU के छात्र संघ के अध्यक्ष थे..सीताराम येचुरी... जो आज वामपंथी पार्टी CPI (M) के बड़े नेता हैं .

उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंदिरा गांधी के विरोध में छात्र आंदोलन...उनके आवास तक पहुंच गया और आखिरकार इंदिरा गांधी को JNU के चांसलर पद से इस्तीफा देना पड़ा . ये जो तस्वीर आप देख रहे हैं ये 5 सितंबर 1977 की है. तब इंदिरा गांधी को अपने घर से बाहर आना पड़ा और इस दौरान एक Memorandum पेश किया गया...जिसे पढ़ते हुए सीताराम येचुरी ने बताया था कि क्यों इंदिरा गांधी को चांसलर का पद छोड़ देना चाहिए .आप सोचिए ये वो दौर था...जब कुछ महीनों पहले तक देश में इमरजेंसी लगी हुई थी..इंदिरा गांधी का विरोध करने वाले ज्यादातर नेताओं को जेल में डाल दिया गया था..लेकिन तब भी लेफ्ट लगातार मजबूत होता रहा..और लेफ्ट के छात्रों की मांग पर इंदिरा गांधी को भी घुटने टेकने पड़े .

यानी लेफ्ट हमेशा से अपनी राजनीति बचाए रखने के लिए साम..दाम.. दंड.. भेद का सहारा लेता रहा है . और आज भी यही हो रहा है .इस वक्त देश में 993 Universities हैं जिनमें करीब 75 लाख छात्र पढ़ते हैं . जबकि JNU में सिर्फ 8 हज़ार बच्चे पढ़ते हैं . ये देश की अलग अलग Universities में पढ़ने वाले छात्रों का शून्य दशमलव एक एक (0.11) प्रतिशत है . और इन आठ हज़ार छात्रों में से भी सिर्फ मुट्ठी भर छात्र ही..अपना राजनीतिक हित साधने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं . वर्ष 2014 से 2018 के बीच में JNU के 15 प्रतिशत छात्रों पर एक विदेशी रिसर्च स्कॉलर ने रिसर्च किया ..इस शोध में पता लगा कि JNU में 50 प्रतिशत से ज्यादा छात्र अपने आपको किसी ना किसी विचारधारा के कट्टर समर्थक के तौर पर देखते हैं .

इसी सर्वे के दौरान JNU में बंटने वाले 70 हज़ार Pamphletes यानी पर्चों का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि इन पर्चों में Against..यानी विरोध शब्द का इस्तेमाल 55 हज़ार 298 बार किया  गया था..जबकि संघर्ष शब्द का इस्तेमाल 35 हज़ार 582 बार किया गया . विरोध और संघर्ष किसी भी लोकतंत्र की ताकत बन सकते हैं..लेकिन जब इनमें हिंसा और अज्ञानता की मिलावट कर दी जाती है तो ये मिलावट पूरे देश के लिए खतरनाक साबित होती है .

एक और सर्वे के मुताबिक JNU में पिछले 45 वर्षों में ज्यादातर वक्त लेफ्ट का ही कब्ज़ा रहा है . वर्ष 1991 और 2000 के चुनावों को छोड़ दिया जाए...तो कभी किसी और विचारधारा वाली पार्टी को JNU छात्र संघ का अध्यक्ष पद नहीं मिला है . विचारधाराओं का समर्थन बुरी बात नहीं है और एक आजाद और लोकतांत्रिक देश में सबको अपनी विचारधारा चुनने की आजादी है..लेकिन जिस विचारधारा का DNA हिंसा से निर्मित होता है...उससे सिर्फ एक University को नहीं बल्कि पूरे देश को भी खतरा पैदा हो सकता है .

और आखिर में हम यहां एक बात और कहना चाहते हैं . आज दिल्ली पुलिस द्वारा किया गया खुलासा...दीपिका पादुकोण जैसे फिल्मी सितारों को भी जवाब है . दीपिका पादुकोणे..बिना सोचे समझे..JNU के उन छात्रों के साथ जाकर खड़ी हो गईं जिनका नाम आज JNU हिंसा में आ रहा है . अब आप सोचिए कि आज अभिनेत्री दीपिका पादुकोण क्या कहेंगी?

मंगलवार को दीपिका... JNU कैंपस में गईं थीं. और उस समय वो जिन छात्र नेताओं के साथ खड़ी थीं उनमें JNU छात्र संघ की अध्यक्षा आइशी घोष भी थी . और आज उन्हीं आईशी घोष का नाम JNU की हिंसा में आ रहा है . यहां समझने वाली बात ये है कि ये सब उस दुष्प्रचार का नतीजा है....जिसके शिकार हमारे देश के बड़े बड़े सिलेब्रिटी हो जाते है . और दीपिका पादुकोणे के साथ भी ऐसा ही हुआ...इसलिए आज आपको इस दुष्प्रचार से बचना सीखना होगा 

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