वीर सावरकर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है. आज़ादी के आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों ने भी उनका विरोध किया और सावरकर के बारे में लगातार दुष्प्रचार किया गया.
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क्या जो इतिहास हम पढ़ते आ रहे हैं, उसमें मिलावट की गई है? क्या अंग्रेजों के ज़माने में भी एक टुकड़े-टुकड़े गैंग हुआ करता था, जो देश के क्रांतिकारियों में भेदभाव करता था. दरअसल, आज़ादी के लिए लड़ने वाले कुछ लोग अंग्रेजों के प्रिय क्रांतिकारी थे, जबकि कुछ से उन्हें नफरत थी. नेहरू और गांधी उनके प्रिय क्रांतिकारी थे जबकि सावकर से उन्हें घृणा थी, इसीलिए नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को महान क्रांतिकारी बताया गया, जबकि सावरकर का सच छिपाया गया. वीर सावरकर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है. आज़ादी के आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों ने भी उनका विरोध किया और सावरकर के बारे में लगातार दुष्प्रचार किया गया. ऐसा करके उन्हें इतिहास में वो स्थान नहीं दिया गया, जिसके वो हकदार थे. सावरकर ने देश की आज़ादी के लिए विदेशी ताकतों को इकट्ठा किया. उन्होंने ही देश को वर्ष 1857 में हुई स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के बारे में बताया था और अंग्रेज उनकी गतिविधियों से इतना डरते थे कि उन्हें Dangerous Criminal यानी खतरनाक अपराधी कहते थे. लेकिन आज सावरकर को ही भारत रत्न देने की मांग पर सवाल उठाया जा रहा है.
आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा देश है. जिसने राष्ट्रवाद के इतने बड़े नायक को ही भुला दिया. इसकी वजह है पक्षपातपूर्ण तरीके से लिखे गए इतिहास के अध्याय. जिसे दरबारी लेखकों और डिजाइनर पत्रकारों ने किसी खास सोच से प्रभावित होकर लिखा. ये इतिहास सिर्फ एक सीमित विचारधारा को ध्यान में रख कर रचा गया था और जब इतिहास के साथ खिलवाड़ करके राजनीति होती है तब सावरकर जैसे महापुरुषों के साथ अन्याय होता है. इसीलिए अब बहस हो रही है कि ऐसे इतिहास में सुधार किया जाना चाहिए. ताकि गलतियों को दूर करके उसे पूरी तरह से संतुलित बनाया जा सके और देश में हर विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति इतिहास से अपना जुड़ाव महसूस करे.
आज हम सावरकर से जुड़े कुछ नए सवाल उठाएंगे और ऐसी भ्रामक बातों का जवाब भी देंगे जो पिछले 72 वर्षों से संचार के अलग-अलग माध्यमों से आपके पास पहुंच रही हैं. कुछ राजनीतिक दल अब वोट के लिए सावरकर को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. डिजाइनर मीडिया ने आज तक आपको राष्ट्रवाद के नायक का सच नहीं बताया होगा क्योंकि अखबार से लेकर कोर्स की किताबों तक हर जगह आपको एकतरफा इतिहास दिखाया गया है. ऐसा करके देश के लिए सावरकर के बौद्धिक और राष्ट्रीय योगदान की बात नहीं की गई. उसे छिपाकर रखने की कोशिश की गई है. आज का विश्लेषण सावरकर के खिलाफ काम कर रही उसी विचारधारा पर चोट करेगा.
आश्चर्य की बात ये है कि आज देश के कुछ नेता वीर सावरकर के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान की मांग के खिलाफ एजेंडा चला रहे हैं. जो लोग दिन भर Air Conditioned कमरों में रहते हैं और एक दिन के लिए भी कड़ी धूप में खड़े नहीं रह सकते. वो लोग 10 साल तक कालापानी की सज़ा झेलने वाले वीर सावरकर के व्यक्तित्व और वीरता पर सवाल उठाते हैं. ऐसे लोगों को हम इतिहास के कटु सत्यों की जानकारी देना चाहते हैं. आज देश को कालापानी में कैद विद्रोहियों की स्थिति और भारत की जेलों में बंद जवाहरलाल नेहरू जैसे राजनीतिक कैदी की स्थिति पर भी गौर करना चाहिए.
आपने अक्सर देश की अलग-अलग जेलों में कुछ खास कैदियों को मिलने वाली फाइव स्टार सुविधाओं की बात सुनी होगी. लेकिन आज आपको बताएंगे कि कैसे आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे कुछ नेताओं के साथ भी ऐसा ही व्यवहार होता था. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर लिखी गई एक किताब... Jawaharlal Nehru, a Biography में उनकी जेल यात्रा के बारे में विस्तार से बताया गया है. इस किताब के पेज नंबर 72 पर लिखा गया है, इसके मुताबिक पंडित जवाहरलाल नेहरू Class A राजनीतिक कैदी थे. इसका मतलब है कि राजनीतिक कैदियों में उनका स्थान सर्वोच्च था. पंडित नेहरू को अलग Cell में बंद करके रखा जाता था, जिसमें अलग बाथरूम की सुविधा भी थी. उन्हें अपना काम करवाने के लिए एक नौकर भी मिलता था, जो इसी जेल में बंद कोई सामान्य कैदी होता था. जेल में रखे जाने के दौरान पंडित नेहरू को पढ़ने, किताब लिखने, सोच विचार करने और घर से पत्र पाने की भी इजाजत थी. कई बार पंडित नेहरू उनसे मिलने आए जेल में बंद दूसरे कैदियों को लेक्चर भी दिया करते थे. लेखक ने ये भी लिखा है कि कई बार नेहरू ये भी सोचते थे कि इस तरह लगातार वर्षों तक जेल में बंद रहना उचित है भी या नहीं.
इस बारे में और जानकारी के लिए आप भी ये किताब... Jawaharlal Nehru, a Biography को पढ़ सकते हैं. इससे आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सच्चे नायकों के बारे में आपकी जानकारी बढ़ेगी. अब आपको आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे दूसरे राजनीतिक कैदी महात्मा गांधी के बारे में जानना चाहिए. महात्मा गांधी के अलग-अलग लेख और पत्र को मिलाकर एक किताब लिखी गई है जिसका नाम है Collected works of Mahatma Gandhi... इसके Volume 23 में पेज 158 पर क्या लिखा गया है ये जानिए... वर्ष 1922 में महात्मा गांधी पुणे की येरवदा जेल में बंद थे. यहां उनसे खाने के बारे में सवाल पूछा गया. तो गांधी जी ने कहा कि उनको बकरी का दूध और ब्रेड खाने के लिए दिया जाता था. आपको पता होगा कि राष्ट्रपिता को बकरी का दूध बहुत पसंद था. और इसके साथ उन्हें खाने के अलावा हर दिन दो संतरे भी दिए जाते थे. 14 अप्रैल 1922 को गांधी जी ने अपने सहयोगी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने बताया था कि उन्हें येरवदा जेल में अलग कोठरी में रखा गया है. उनके लिए बाथरूम की भी अच्छी व्यवस्था की गई है और काम करने के लिए अलग कमरा भी दिया गया है. यहां उन्हें 2 नए गर्म कंबल, सोने के लिए गद्दा, 2 चादरें और तकिया भी दिया गया.
आपने जवाहरलाल नेहरू के साथ जेल में हो रहे अच्छे व्यवहार के बारे में समझा और जाना. अब आपको ऐसा लग रहा होगा कि ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेज ऐसा ही अच्छा व्यवहार करते होंगे. लेकिन सच्चाई इससे एकदम अलग है. आज आपको ये भी जानना चाहिए कि दूसरे राजनीतिक कैदियों और सावरकर की सज़ा में क्या अंतर था. क्योंकि वीर सावरकर को जो सजा दी गई वो सुनकर भी आपको बहुत दुख होगा और आप सोचेंगे कि किसी के साथ ऐसा व्यवहार कैसे किया जा सकता है. जब अंग्रेज़ों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना विद्रोह तेज़ किया तो ब्रिटिश सरकार ने भी यातना देने के नए-नए तरीके ढूंढ लिए थे. भारत की आज़ादी के लिए जंग लड़ने वाले बहादुर बेटों को अंडमान-निकोबार की Cellular Jail में तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थीं. जिसे काला पानी कहा जाता था. जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेड़ियों से बांधा जाता था. उनसे कोल्हू से तेल निकालने का काम करवाया जाता था.
वर्ष 1911 में वीर सावरकर को काला पानी की सजा दी गई थी और अंडमान द्वीप ले जाकर उन्हें भयंकर यातनाएं दी गईं. इस बारे में आपको ज्यादा जानकारी देने के लिए हमने गहन अध्ययन किया है. कई किताबों को पढ़ा है. सावरकर पर एक किताब लिखी गई है जिसका नाम है 'Savarkar: Echoes from a forgotten past'. इसके लेखक हैं इतिहासकार विक्रम संपत. इस किताब के पेज नंबर 279 पर विस्तार से बताया गया है कि Cellular Jail में कैदियों के साथ किस तरह से थर्ड डिग्री टॉर्चर किया जाता था. यानी राजनीतिक कैदियों के साथ 5 स्टार व्यवहार होता था. लेकिन वीर सावरकर जैसे कैदियों को बहुत कष्ट दिया जाता था. अब आप खुद ही सोच लीजिए कि सावरकर पर अंग्रेजों से मिले होने का आरोप कितना निराधार है.
हमारा मानना है कि आप जब भी अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें. तो काला-पानी को कभी ना भूलें. क्योंकि, ये वो जेल है जो आज़ादी के 72 वर्षों के बाद भी अंग्रेजों की बर्बर सोच का सबसे बड़ा सबूत है. ये एक दुखद सत्य है, कि बदलते वक्त के साथ-साथ हमने ‘सज़ा-ए-कालापानी’ के इतिहास को भुला दिया है. अंडमान-निकोबार की Cellular Jail में देश के हज़ारों बेटों ने काला पानी की सजा काटी. और अंग्रेज़ों द्वारा बरसाए गए कोड़ों के दर्द को सहन किया. वो वीर क्रांतिकारी ज़ंजीरों में भी जकड़े गए और उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े भी किए गए. लेकिन उनके आज़ाद विचारों को कोई क़ैद नहीं कर पाया.
वर्ष 2017 में ZEE NEWS की टीम ने Cellular Jail जाकर एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की थी. हो सकता है आज से पहले तक आपने सज़ा-ए-काला-पानी का नाम सिर्फ सुना होगा. इसलिए आज आपको इस राष्ट्रीय स्मारक को देखना चाहिए. जिनकी दीवारों पर आज भी शहीदों की निशानियां मौजूद हैं.
सावरकर की वीरता को कम दिखाने के लिए विरोधियों का एक और Propaganda है. अंग्रेज सरकार को लिखा गया माफीनामा. दुष्प्रचार किया जाता है कि वीर सावरकर ने अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी. लेकिन ये सावरकर की रणनीति का सिर्फ एक पक्ष है. सच्चाई ये है कि सावरकर जेल से बाहर रहकर देश की सेवा करना चाहते थे. वो ये मानते थे कि मातृभूमि की सेवा करने के लिए उन्हें काल कोठरी से आज़ाद होना होगा. सिर्फ माफी मांगने को आधार बनाकर सावरकर का नकारात्मक मूल्यांकन करना, उनके साथ अन्याय करने जैसा है.
आजादी की लड़ाई में कई बार महापुरुषों ने अपना लक्ष्य पाने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई. इसमें कुछ मौके ऐसे भी आए जब ऐसा लगा मानो हमारे जननायक अंग्रेजों के साथ खड़े हैं. लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट थी. महात्मा गांधी ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों का साथ दिया था क्योंकि तब अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को ये भरोसा दिलाया था कि अगर भारत के लोग प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ देंगे तो वो भारत को आज़ाद करने पर विचार करेंगे. इसके लिए अंग्रेज़ों ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं से ये अपील की थी कि भारत के लोगों को अंग्रेज़ों की सेना में भर्ती करवाया जाए. महात्मा गांधी ने खुद ये जिम्मेदारी ली थी. उन्होंने भारत के लोगों को अंग्रेज़ों की सेना में भर्ती होने के लिए अपील की थी.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसी दौरान भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड को एक पत्र लिखा था. इस पत्र की कुछ लाइनें हम आज पूरे देश को सुनाना चाहते हैं. महात्मा गांधी ने लिखा था कि युद्ध के दौरान अगर मेरा बस चले तो मैं भारत के हर सक्षम निवासी को ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा में बलिदान कर दूं. हमें ये मानना चाहिए कि अगर हम ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा कर पाए तो उस सेवा के माध्यम से ही हमने स्वराज पा लिया. इसलिए मेरी नजर में ये साफ है कि हमें अपने हर व्यक्ति को ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा में लगा देना चाहिए. पत्र के आखिर में महात्मा गांधी ने लिखा... मैं ऐसा लिख रहा हूं- क्योंकि मैं ब्रिटिश राष्ट्र से प्यार करता हूं और मैं हर भारतीय में अंग्रेजों के प्रति वफादारी पैदा करना चाहता हूं.
इन शब्दों को देख और सुनकर आप भी समझ गए होंगे कि ये महात्मा गांधी के असली विचार नहीं हो सकते हैं. ऐसा करके उन्होंने शायद ब्रिटिश साम्राज्य को अपनी तरफ से निश्चिंत करने की एक कोशिश की होगी. गांधी जी ने अंग्रेजों को दिए गए सावरकर के माफीनामे पर क्या कहा आज ये भी आपको जानना चाहिए. महात्मा गांधी ने कहा था कि... 'उन्होंने ((सावरकर ने)) स्थिति का लाभ उठाते हुए क्षमादान की मांग की थी, जो उस दौरान देश के अधिकांश क्रांतिकारियों और राजनीतिक कैदियों को मिल भी गई थी'. 'सावरकर जेल के बाहर रहकर देश की आजादी के लिए जो कर सकते थे वो जेल के अंदर रहकर नहीं कर पाते'. राष्ट्रपिता की इन बातों से वीर सावरकर के खिलाफ एजेंडा चलाने वाले लोगों का भ्रम दूर हो जाना चाहिए. क्योंकि सावरकर अंग्रेजों के सामने झुके नहीं थे बल्कि देश की सेवा करने के लिए जेल से बाहर आना चाहते थे.
वीर सावरकर से जुडे इतिहास को हमेशा गलत तरह से पेश किया गया खासतौर से राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या को लेकर. महात्मा गांधी की हत्या में शामिल होने के आरोप में वीर सावरकर को गिरफ्तार किया गया था और उन पर मुकदमा चला. वर्ष 1948 में कोर्ट ने महात्मा गांधी की हत्या के आरोप से उन्हें बरी कर दिया. मुकदमे की सुनवाई के दौरान नाथूराम गोडसे ने भी कोर्ट को बताया कि जब उसने गांधी जी का विरोध किया तो सावरकर ने उसकी आलोचना की थी. लेकिन कानून के दस्तावेज़ में दर्ज इन तथ्यों को आज भी राजनीतिक एजेंडा चलाकर गलत तरह से फैलाया जा रहा है.
अब आप ये समझिए कि कैसे कांग्रेस का चरित्र शुरू से ही लिंचिंग वाला रहा है. जिस तरह से इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के दंगों में कांग्रेस नेताओं पर भीड़ को भड़काने और सिखों की लिंचिंग के आरोप हैं. ठीक उसी तरह गांधी जी की हत्या के बाद भी कांग्रेस के नेता जीप में बैठकर बाकायदा घोषणा करते थे कि अगर किसी ने भी वीर सावरकर के परिवार को शरण दी तो उसके घर के जला दिया जाएगा. इतना ही नहीं उस समय वीर सावरकर के भाई पर हमला भी हुआ था जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी. यानी कांग्रेस का राजनीतिक लिचिंग का चरित्र वर्ष 1948 से ही जारी है और इसका शिकार वो नायक हुए हैं जो कांग्रेस से अलग विचार रखते हैं.