zee jaankari: क्या शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को PFI से मिली मदद?
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zee jaankari: क्या शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को PFI से मिली मदद?

ED ने पिछले महीने 29 जनवरी को परवेज़ अहमद को पूछताछ के लिए बुलाया था और सूत्रों के मुताबिक इसी पूछताछ के दौरान ये खुलासा हुआ कि परवेज़ अहमद, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के साथ लगातार बातचीत कर रहा था.

zee jaankari: क्या शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को PFI से मिली मदद?

पिछले हफ्ते हमने आपको दिखाया था कि कैसे Popular Front of India यानी PFI नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में हो रही हिंसा की Funding कर रहा है. हमारे उस विश्लेषण का आधार Enforcement Directorate यानी ED की एक रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन विरोध प्रदर्शनों को कई संगठनों के द्वारा Funding की जा रही है. ED की रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा के पीछे PFI यानी Popular Front of India का हाथ था. अब इससे जुड़ा एक और नया खुलासा हुआ है. ED के मुताबिक PFI का दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष परवेज़ अहमद आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के साथ संपर्क में था. और इन दोनों लोगों के बीच फोन और Whatsapp के ज़रिए बातचीत भी हो रही थी.

ED का तो ये भी दावा है कि दिल्ली में PFI का चीफ परवेज़ अहमद कांग्रेस के नेताओं के साथ भी लगातार संपर्क में था, इनमें कांग्रेस नेता उदित राज का नाम भी सामने आ रहा है. हालांकि ये परवेज़ अहमद ने ये भी कहा है कि वो संजय सिंह और उदित राज से तीन से चार महीने पहले मिले थे और वो उन्हें सिर्फ अपनी राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी दे रहे थे.

ED ने पिछले महीने 29 जनवरी को परवेज़ अहमद को पूछताछ के लिए बुलाया था और सूत्रों के मुताबिक इसी पूछताछ के दौरान ये खुलासा हुआ कि परवेज़ अहमद, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के साथ लगातार बातचीत कर रहा था. सूत्रों का कहना है कि PFI इस Funding के ज़रिए ना सिर्फ विरोध-प्रदर्शन के लिए लोगों को इकट्ठा कर रहा था बल्कि PFI की Funding के ज़रिए ही प्रदर्शनकारियों के खाने-पीने का इंतज़ाम भी किया जा रहा था.

ED की जांच में पता चला है कि पिछले कुछ महीनों में PFI ने करीब 120 करोड़ रुपये अलग-अलग तरीकों से जुटाये. इनमें से आधा पैसा कैश के ज़रिए जुटाया गया था. और इस कैश में से 67 प्रतिशत पैसा बैंकों में जमा करा दिया गया, जबकि बाकी के 33 प्रतिशत कैश को PFI के National Headquarter यानी शाहीन बाग़ के G-78 वाले पते पर रखा गया था.

हिंसा फैलाने के लिए जमा किए गए Cash को शाहीन बाग़ में रखना और परवेज़ अहमद का अलग अलग पार्टियों के नेताओं के साथ संपर्क में रहना, इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि कहीं ना कहीं शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को भी PFI से मदद मिल रही है. हालांकि हमेशा की तरह PFI ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है.

मेरे पास इस समय ED की जांच से जुड़े कुछ पेपर्स हैं. इन पेपर्स में भी कुछ महत्वपूर्ण बातों का जिक्र है. ED द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में परवेज़ अहमद ने क्या कहा ये मैं आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूं.

यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि क्यों PFI को देश तोड़ने वाले संगठनों में गिना जाता है. National Investigation Agency यानी NIA के मुताबिक...1992 में अयोध्या का विवादास्पद ढांचा टूटने के बाद 1993 में केरल में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट का गठन हुआ था, जिसका नाम वर्ष 2006 में PFI यानी Popular Front of India हो गया. पहली बार ये संगठन 2010 में तब चर्चा में आया था, जब इस पर केरल में एक प्रोफेसर का हाथ काटने का आरोप लगा.

PFI पर केरल में जबरदस्ती धर्मांतरण के बाद निकाह कराने के भी आरोप हैं. आरोप है कि इस संगठन को सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों से फंड मिलता है. NIA के मुताबिक PFI के संबंध प्रतिबंधित संगठन SIMI से भी हैं. पिछले साल PFI पर झारखंड सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. आरोप था कि इसके संबंध आतंकवादी संगठन ISIS से हैं.

पिछले हफ्ते अपनी जांच में हमें ये भी पता चला था कि शाहीन बाग़ में PFI और उससे जुड़े संगठनों के 5 दफ्तर हैं. पिछली 27 तारीख को जब हमने शाहीन बाग़ में उन दफ्तरों तक पहुंचने की कोशिश की तो हमें रोक दिया गया था. पहले आप ये देखिए कि उस दिन कैसे मुझे शाहीन बाग़ में PFI के दफ्तरों तक जाने से रोका गया और फिर हम आपको बताएंगे कि ED के इस नए खुलासा का मतलब क्या है.

दिल्ली चुनाव में अब 36 घंटे से भी कम का समय बचा है. ऐसे में PFI के साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्तों का ये खुलासा दिल्ली चुनाव के समीकरण बदल सकता है. हालांकि संजय सिंह और उदित राज दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि ये सब दिल्ली चुनाव को देखते हुए किया जा रहा है.

यानी दिल्ली की राजनीति अब एक बार फिर तेज़ी से बदल रही है पहले शाहीन बाग फिर गोलीकांड और अब नेताओं के PFI से रिश्तों की बात ने ये इशारा कर दिया है कि ये चुनाव किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होने जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में आज इस बात का जिक्र किया था कि कैसे धारा 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर के नेताओं ने इस फैसले के खिलाफ धमकियां दी थी.

महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि उनकी पार्टी ने 1947 में भारत के साथ जाने का फैसला करके गलती की थी. जबकि National Confrence के नेताओं ने यहां तक कह दिया था कि इस फैसले से कश्मीर की आजादी का मार्ग प्रशस्त हो गया है. लेकिन अब इन्हीं नेताओं से जुड़ी एक बहुत बड़ी खबर आ रही है.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर Public Safety Act यानी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लगा दिया इस कानून की मदद से उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को अगले 3 महीनों तक बिना मुकदमा चलाए जेल में रखा जा सकता है. इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को पिछले 6 महीने से हिरासत में रखा गया है . और अब इन्हें कुछ और महीने जेल में गुज़ारने होंगे.

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