11 अक्टूबर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दो दिनों के लिए भारत आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच होने वाली अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए..तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम को चुना गया है.
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अब हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत दर्शन वाली कूटनीति का विश्लेषण करेंगे. 11 अक्टूबर को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दो दिनों के लिए भारत आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच होने वाली अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए..तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम को चुना गया है. महाबलीपुरम को इस शिखर वार्ता के लिए क्यों चुना गया है ये हम आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले शी जिनपिंग की इस यात्रा के कूटनीतिक महत्व को समझ लीजिए. जिनपिंग दो दिनों की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 4 बार बैठकें करेंगे .
इन बैठकों में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हो सकती है . अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद से पाकिस्तान दुनिया में कश्मीर को लेकर भ्रम फैला रहा है . ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...चीन के राष्ट्रपति के सामने भारत का पक्ष मजबूती से रख सकते हैं . भारत और चीन के बीच 3 हज़ार 488 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है . सीमा के कुछ इलाकों को लेकर भारत औऱ चीन के बीच विवाद भी है .
इन बैठकों में सीमा विवाद पर बात होने की संभावना है. प्रधानमंत्री मोदी.. चीन के राष्ट्रपति के सामने Cross Border Terrorism का मुद्दा भी उठा सकते हैं . आतंकवाद के मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चिंताओं से शी जिनपिंग को अवगत करा सकते हैं . यानि इन बैठकों में भारत आतंकवाद पर अपना पक्ष मजबूती के साथ रखेगा .
भारत और चीन के बीच वर्ष 2018-19 में 6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यापार हुआ था . भारत और चीन के बीच व्यापार में काफी असंतुलन है . चीन हमें ज्यादा सामान बेचता है . वहीं हम चीन को बहुत कम सामान बेच पाते हैं . इस असंतुलन को ही व्यापार घाटा कहते हैं . इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी व्यापार घाटे के मुद्दे को उठा सकते हैं .
ताकि भारत की अर्थव्यवस्था को फायदा हो सके . वर्ष 2020 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों को 70 साल पूरे हो जाएंगे . इसलिए इस मुलाकात को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. आजकल चीन के बुरे दिन चल रहे हैं. शी जिनपिंग कई मोर्चों पर घिरे हुए हैं. हॉन्ग कॉन्ग में कई महीनों से अलग-अलग मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं .
हॉन्ग-कॉन्ग चीन का एक ऐसा क्षेत्र है . जिसे विशेष अधिकार मिले हुए हैं . हॉन्ग कॉन्ग के लोग चीन की दमनकारी नीतियों से परेशान हैं . और वो ज्यादा अधिकारों की मांग कर रहे हैं . इससे चीन की अंतर्राष्ट्रीय छवि खराब हो रही है. अमेरिका के साथ चीन का Trade War यानि व्यापारिक युद्ध जारी है .
जिसकी वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है . ऐसे में शी जिनपिंग भारत दौरे के माध्यम से चीन की आर्थिक सेहत को ठीक करना चाहते हैं . वर्ष 2014 में शी जिनपिंग के भारत दौरे के दौरान एक लाख बीस हजार करोड़ के निवेश को लेकर समझौते हुए थे .चीन में कई वर्षों से उइगर मुसलमानों का दमन हो रहा है .
इसके विरोध में अमेरिका ने चीन की 28 कंपनियों पर पाबंदी लगा दी है . अमेरिका ने इन कंपनियों पर उइगर मुसलमानों के दमन में चीन की सरकार का साथ देने का आरोप लगाया है .ऐसे में इस दौरे के माध्यम से शी जिनपिंग भारत को अपने विश्वास में लेना चाहता है . क्योंकि चीन ऐसी स्थिति में नहीं है कि वो भारत के साथ संबंधों में तनाव को झेल सके .
चीन भारत की बढ़ती हुई ताकत को पहचान चुका है. वर्ष 2014 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए थे, तो उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अहमदाबाद लेकर गये थे . इस दौरान साबरमती आश्रम में शी जिनपिंग ने चरखा भी चलाया था .इस यात्रा के दौरान जिनपिंग ने साबरमती रिवर फ्रंट पर नरेंद्र मोदी के साथ झूला भी झूला था .
प्रधानमंत्री नरेंद्र भारत दर्शन वाली कूटनीति का इस्तेमाल करते हैं . जिसमें वो विदेशी मेहमानों के साथ देश के अलग-अलग शहरों में शिखर वार्ता करते हैं . विदेशी मेहमानों को भारत के प्राचीन और सांस्कृतिक शहरों को देखने का मौका मिलता है . सरल शब्दों में समझे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश मेहमानों का भारत की सांस्कृतिक विरासत से परिचय भी करवाते हैं .
जिसका एक फायदा ये भी होता है कि इन शहरों को विश्व में पहचान भी मिलती है .वर्ष 2015 में जापान के प्रधानमंत्री Shinzo Abe ( शिंजो आबे ) के साथ वाराणसी का दौरा किया था . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron ( इमैनुएल मैक्रों ) के साथ वाराणसी गए थे. वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति Francois Hollande ( फ्रांस्वा ओलांद ) के साथ चंडीगढ़ में मुलाकात की थी .
वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजराइली प्रधानमंत्री ( Benjamin Netanyahu ) बेंजामिन नेतन्याहू के साथ अहमदाबाद का दौरा किया था .शुक्रवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आ रहे हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चीन पहुंच चुके हैं . कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद इमरान खान पहली बार चीन का दौरा कर रहे हैं .
आज हम इमरान खान के 28 सेकेंड के एक ऐसे वीडियो का विश्लेषण करेंगे . जिसे देखकर आप समझ जाएंगे कि इमरान खान को शिष्टाचार यानि Protocol का भी ज्ञान नहीं है . इस वीडियो को देखकर आप ये भी समझ जाएंगे कि पाकिस्तान का असली Boss कौन है . आज चीन के प्रधानमंत्री Li Keqiang ( ली केकियांग )... इमरान खान के साथ चीन पहुंचे एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर रहे थे . इस दौरान इमरान खान को चीन के प्रधानमंत्री को अपने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से मिलवाना था . लेकिन इमरान खान ये शिष्टाचार भूल गए . वो एक तरफ खड़े हो गए .
चीन के प्रधानमंत्री को अकेले ही पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से हाथ मिलाना पड़ा . इस दौरान पाक सेना प्रमुख इमरान खान को इशारा करते भी नजर आए, जिसका मतलब था कि इमरान खान को चीन के प्रधानमंत्री के साथ होना चाहिए. इस वीडियो से ये भी साफ होता है कि पाकिस्तान में सेना अपने इशारों पर प्रधानमंत्री और पूरी सरकार को बनाती और चलाती है .
इस वीडियो से आप समझ सकते हैं कि पाकिस्तान से चीन गए प्रतिनिमंडल का नेतृत्व इमरान खान नहीं...बल्कि पाक सेना प्रमुख कमर जावेद वाजवा कर रहे हैं .चीन के दौरे के पहले दिन ही इमरान खान एक बार फिर से पूरे पाकिस्तान के लिए शर्मिंदा होने की वजह बन गए . और ऐसा पहली भी बार नहीं हुआ है. इसी वर्ष जून में किर्ग़िस्तान में Shanghai Sooperation Organisation ( शंघाई कोऑर्पोरेशन ऑर्गनाइज़ेशन ) की बैठक थी .
बैठक में आए मेहमानों को किर्ग़िस्तान के राष्ट्रपति ने Dinner का निमंत्रण दिया था . इमरान खान आते ही बैठ गये जबकि दुनिया के बड़े नेताओं ने सभी मेहमानों के आने का इंतजार किया . ये सामान्य शिष्टाचार था . जिसे इमरान खान नहीं निभा पाए थे .चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे से पहले इमरान खान का ये दौरा पाकिस्तान की कश्मीर पॉलिसी का हिस्सा है .
पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे पर पूरी दुनिया में अकेला पड़ चुका है . वो चाहता है कि शी जिनपिंग अपने भारत के दौरे के दौरान अनुच्छेद 370 को हटाने पर कुछ बोलें . क्योंकि अगर शी जिनपिंग इस पर मौन रहते है, तो ये पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी कूटनीतिक हार होगी .इसक पहले इमरान खान ऐसी एक और कोशिश कर चुके हैं .
पिछले दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत दौरे पर आने वाली थी . जिसके पहले इमरान खान ने उन्हें फोन किया था . लेकिन इसका पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं पहुंचा था . अब वक्त है प्राचीन शहर महाबलीपुरम के चीन के साथ पौराणिक संबंधों के विश्लेषण का . चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर से चीन का गहरा रिश्ता है .
महाबलीपुरम की स्थापना 7वीं सदी में पल्लव वंश के राजा नरसिंह देव बर्मन ने की थी .भारतीय पुरातत्व विभाग के एक रिसर्च के अनुसार महाबलीपुरम में चीन, फारस और रोम के प्राचीन सिक्के काफी संख्या में मिले हैं . इन सिक्कों से इस बात का अंदाजा लगाया गया है कि महाबलीपुरम प्राचीन समय में एक व्यापारिक बंदरगाह रहा होगा .
इस रिसर्च से ये भी पता चला कि भारत इसी बंदरगाह के जरिए चीन के साथ व्यापार करता था .ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में महाबलीपुरम का चीन के साथ रक्षा के क्षेत्र में भी गहरा रिश्ता था . आठवीं शताब्दी में चीन के राजा और पल्लव वंश के शासक राजा नरसिम्हन द्वितीय के बीच पहली बार रक्षा से जुड़ी हुई एक संधि हुई थी .
महाबलीपुरम और चीन के बीच लगभग 2000 हजार साल पुराने संबंध हैं . 7वीं सदी में पल्लव शासन के दौरान चीनी यात्री ह्वेन सांग कांचीपुरम आए थे और राजा महेंद्र पल्लव ने उनका स्वागत किया था . और अब 1300 वर्ष बाद नरेंद्र मोदी...चीन के राष्ट्रपति का इस ऐतिहासिक शहर में स्वागत करने वाले हैं.
चीन भारत का सबसे बड़ा पड़ोसी है और सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में से एक है . वहीं दूसरी तरफ अमेरिका है जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है . भारत इन दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है . और भारत की कूटनीति की महत्वपूर्ण बात ये है कि दो विरोधी देशों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं. जिसका फायदा भारत को मिलना तय है .