ZEE जानकारी: भारत में Encounter पर क्यों बजाई जाती हैं तालियां?
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ZEE जानकारी: भारत में Encounter पर क्यों बजाई जाती हैं तालियां?

अब हम इस बात का विश्लेषण करेंगे कि भारत में Encounter लोक प्रिय क्यों हो रहे हैं. हमारे देश में एनकाउंटर पर तालिया क्यों बजती है?

ZEE जानकारी: भारत में Encounter पर क्यों बजाई जाती हैं तालियां?

अब हम इस बात का विश्लेषण करेंगे कि भारत में Encounter लोक प्रिय क्यों हो रहे हैं. हमारे देश में एनकाउंटर पर तालिया क्यों बजती है? क्योंकि लोग जानतें हैं कि अगर ये अपराधी encounter में बच गया तो फिर उसे सज़ा मिलने में महीनों या वर्षों का नहीं बल्कि दशकों का समय लग जाएगा. ऐसा क्यों है ये समझने के लिए आपको एक आंक़ड़े पर गौर करना होगा. इस आंकड़े के मुताबिक अगर आप प्रतिदिन 32 किलोमीटर चलेंगे तो 2608 दिनों में आप 83 हज़ार 456 किलोमीटर का सफर तय कर चुके होंगे. ये दूरी पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाने के बराबर है. एक स्वस्थ व्यक्ति एक दिन में कम से 32 किलोमीटर आराम से चल सकता है.

इस गति से पैदल चलते हुए आप 7 वर्षों में दिल्ली और London के बीच 11 चक्कर लगा सकते हैं. हम आपको ये आंकड़े इसलिए दे रहे हैं क्योंकि 2608 दिनों तक पैदल चलते हुए एक व्यक्ति पृथ्वी के दो चक्कर तो लगा सकता है औऱ अपनी मंजिल तक भी पहुंच सकता है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति इतने दिनों तक भारत की अदालतों के चक्कर लगा ले तो भी उसे न्याय मिलने की कोई गारंटी नहीं है. निर्भया का परिवार पिछले 2608 दिनों से देश की अदालतों के चक्कर लगा रहा है. लेकिन अभी तक निर्भया को इंसाफ नहीं मिल पाया है.

अब कल एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होगी और सुप्रीम कोर्ट ये तय करेगा कि निर्भया के दोषियों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है या नहीं? निर्भया के तीन दोषियों के सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके हैं. लेकिन एक दोषी पवन गुप्ता के पास अब भी कई विकल्प बाकी है. केंद्र सरकार चाहती है कि एक मामले के दोषियों को अलग-अलग फांसी देने का प्रावधान किया जाए. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट इससे इनकार कर चुका है. और अब कल सुप्रीम कोर्ट ये तय करेगा कि दोषियों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है या नहीं.

यानी इंसाफ के इस रास्ते पर चलते हुए कल निर्भया के परिवार को 26 सौ 9 दिन हो जाएंगे. लेकिन इस बात की फिर भी कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें न्याय मिल ही जाएगा. यानी क्या हम ये मान लें कि अगर निर्भया के दोषियों का भी Encounter हो जाता तो अच्छा रहता है?

Twenty-Twenty के भारत में न्याय का पहिया इतनी धीमी गति से घूमता है कि जब तक पीड़ित को न्याय मिलता है. तब तक या तो उसकी खुद की मौत हो चुकी होती है या फिर उसका परिवार पूरी तरह से टूट चुका होता है या फिर दोषी सज़ा का इंतज़ार करते-करते खुद ही अपनी स्वाभाविक मौत मर जाता है.

अपनी टीवी स्क्रीन पर जो न्याय का पहिया आप देख रहे हैं. उसके घूमने की गति अलग-अलग देशों में अलग अलग है. लेकिन जैसे ही भारत का नंबर आता है. इस पहिए को पूरी तरह से ब्रेक लग जाते हैं. कई बार तो ये टस से मस भी नहीं होता. और अगर ये आगे बढ़ता भी है. तो इसकी गति इतनी धीमी होती है कि देर से मिला न्याय न्याय ना मिलने के बराबर हो जाता है.

एक आंकड़े के मुताबिक भारत की ज़िला अदालतों में एक केस पर फैसला आने में औसतन 5 साल लग जाते हैं. इसी तरह हाईकोर्ट में न्याय पाने के लिए लोगों को औसतन 4 साल और तीन महीने का इंतज़ार करना पड़ता है. जबकि सुप्रीम कोर्ट में ये इंतज़ार बढ़कर 2 से 3 साल का हो जाता है. यानी जिस Twenty Twenty के भारत में लोगों को Instant Noodles और Instant Coffee मिल जाती है.

उस भारत में न्याय बहुत Slow Motion में हासिल होता है. तेज़ी से बढ़ते भारत की Life Style का ये सबसे बड़ा विरोधाभास है. क्योंकि यहां कुछ सुविधाएं एक चुटकियों में हासिल हो जाती है लेकिन न्याय जैसा बुनियादी अधिकार हासिल करने में वर्षों और पीढ़ियों का समय लग जाता है. कल Zee News के एक कार्यक्रम में मैंने इस विषय पर देश के कानून मंत्री से भी बात की थी. उन्होंने भी माना था कि अपराधी न्याय व्यवस्था का गलत फायदा उठा रहा हैं और सुप्रीम कोर्ट को इस पर ध्यान देना चाहिए.

World Justice Project की एक रिपोर्ट के मुताबिक न्याय व्यवस्था के मामले में 126 देशों में भारत 68वें नंबर पर है. ये भारत की Over All Ranking है. जबकि Criminal Justice यानी आपराधिक मामलों में न्याय की बात की जाए तो भारत 126 देशों में 77वें नंबर पर है. इसी तरह Civil Justice के मामले में भी भारत के लोगों को जल्द न्याय नहीं मिल पाता और इसमें भारत 126 देशों में 97वें नंबर पर है.

ये आंकड़े हम आपको इसलिए दिखा रहे हैं. ताकि आप ये बात समझ पाएं कि Twenty Twenty के भारत में एक Click पर खाना तो मंगाया जा सकता है, पैसे ट्रांसफर किए जा सकते हैं, फिल्में Download की जा सकती है. Train या हवाई यात्रा की टिकट बुक की जा सकती है. और Apps की मदद से अपनी शिकायत सरकार तक पहुंचाई जा सकती है. लेकिन न्याय पाने के लिए वर्षों का इंतज़ार करना पड़ता है. यानी इसके लिए कोई Instant व्यवस्था नहीं है.

16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ था. पुलिस ने 17 दिनों में अपनी जांच पूरी कर ली थी. लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट होने के बावजूद साकेत कोर्ट से न्याय मिलने में 253 दिन लग गए. इसके बाद 180 दिनों तक ये मामला हाईकोर्ट में अटका रहा और पिछले करीब 2 हज़ार 140 दिनों से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. यानी न्याय की सबसे बड़ी अदालत में पहुंचकर निर्भया के परिवार का इंतज़ार और लंबा हो गया. पिछले करीब साढ़े पांच वर्षों से ये मामला बार-बार सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहा है. लेकिन निर्भया को अंतिम न्याय अब तक नहीं मिल पाया है.

महान वैज्ञानिक Charles Darwin ने अपनी सबसे मशहूर किताब Voyage of the Beagle में लिखा था कि अगर किसी गरीब और निर्बल की पीड़ा के पीछे प्रकृति का न्याय नहीं बल्कि संस्थानों द्वारा मिलने वाला न्याय होता है.तो ये सबसे बड़े पाप की श्रेणी में आता है. लेकिन हमारे देश में ये पाप हर रोज़ होता है. और कोई इस पर बात नहीं करना चाहता. ये विडंबना है कि Charles Darwin ने ही दुनिया को Theory of evolution यानी क्रम विकास का सिद्धांत दिया था.

इस सिद्धांत के मुताबिक मनुष्य पहले बंदर था और धीरे धीरे विकास क्रम की वजह से बंदर आधुनिक इंसानों में बदल गए. यानी जैसे जैसे रीढ़ की हड्डी सीधी होती गई...वैसे वैसे आधुनिक मनुष्य अस्तित्व में आने लगे. इसके बाद आधुनिक मनुष्य ने बहुत सारी खोज की, आविष्कार किए लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण खोज थी. न्याय की खोज क्योंकि इसी ने इंसानों को सही और गलत के बीच अंतर करना सिखाया. लेकिन अब स्थिति ये है कि भारत में न्याय व्यवस्था का विकास क्रम उलटी दिशा में जा रहा है, यानी भारत में न्याय व्यवस्था की कमर टूट रही है. इसी का नतीजा है कि अब जब हमारे देश में कोई Encounter होता है तो लोग खुशियां मनाने लगते हैं.

पहले लोग सिर्फ तब खुश होते थे जब सेना किसी आतंकवादी का Encounter करती थी. या पुलिस किसी डाकू या कुख्यात अपराधी को Encounter में मार डालती थी. लेकिन अब बलात्कारियों के Encounter पर भी देश खुश होता है. क्योंकि अब पारंपरिक न्याय को लेकर लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है और वो Instant न्याय को पसंद करने लगे हैं. पिछले वर्ष दिसंबर के पहले हफ्ते में जब तेलंगाना पुलिस ने दिशा के साथ गैंगरोप के चार आरोपियों को एक एनकाउंटर में मार दिया.

तब पूरे देश में इसे लेकर जश्न मनाया गया. पुलिस वालों पर पुष्प वर्षा की गई. उन्हें कंधों पर बिठा लिया गया. कहीं लोगों ने तालियां बजाकर तो कहीं मिठाइयां बांट कर इस Encounter का स्वागत किया. रेप और हत्या के आरोपियों के Encounter के बाद देश के कुछ लोगों ने इसे मानव-अधिकारों का उल्लंघन भी कहा. पुलिस ने इस मामले का On The Spot फैसला करके सही किया या गलत इस पर बहस की जा सकती है.

लेकिन कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि जब कोई जानवर नरभक्षी हो जाता है तो उसे गोली मारनी पड़ती है. और तब हम उस जानवर के अधिकारों और न्याय प्रक्रिया की बातें नहीं करते हैं. इसी तरह जब कोई इंसान दरिंदा बन जाता है. तो क्या उसके मानव-अधिकारों की बातें होनी चाहिए? और अगर नहीं होनी चाहिए तो क्या इस तरह का Instant Justice ही सारी समस्याओं का समाधान है?

आपको जानकर दुख भी होगा और हैरानी भी कि पिछले दो दशकों में भारत में सिर्फ 4 अपराधियों को फांसी की सज़ा हुई है. इनमें से तीन आतंकवादी थे और सिर्फ एक बलात्कार का आरोपी था. वर्ष 2004 में 14 साल की नाबालिग के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी धनंजय चटर्जी को फांसी हुई थी. लेकिन इस मामले में भी पीड़ित को न्याय मिलने में 14 वर्ष लग गए थे. इसके अलावा 2012 में आतंकवादी अजमल कसाब, 2013 में आतंकवादी अफज़ल गुरु और 2015 में याकूब मेमन को फांसी दी गई.

कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में हमारे सिस्टम को 4 साल लग गए, अफज़ल गुरु को उसके किए की सज़ा देने में 11 साल और याकूब मेमन को सज़ा देने में 22 साल का लंबा समय लग गया. जबकि पिछले दो वर्षों में अकेले उत्तर प्रदेश पुलिस ही 5 हज़ार से ज्यादा Encounter कर चुकी हैं और इन Encounters में 103 अपराधी मारे गए हैं. यानी यूपी पुलिस ने पिछले 2 वर्षों के दौरान हर औसतन 6 से ज्यादा Encounter किए.

ज़ाहिर है Instant न्याय का ये तरीका लोगों में तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है. ये सही है या नहीं इस पर बहस की जा सकती है. लेकिन एक बात तो साफ है कि अपराधियों को न्याय व्यवस्था के Loop Holes का फायदा उठाते हुए अब देश की जनता नहीं देखना चाहती. एक समय था जब मुंबई पुलिस Under World के अपराधियों को मारती थी तो लोग खुश होते थे.

पुलिस वालों को अपना हीरो मानने लगते थे. और अब लोग इस खुशी का इज़हार बलात्कारियों के Encounter पर भी करने लगे हैं. यानी SLow Motion वाली न्याय व्यवस्था की वजह से देश के लोगों का भरोसा अब ऐसे Instant Justice पर बढ़ रहा है और ये एक लोकतांत्रिक देश के लिए आत्म विश्लेषण का समय है.

हैदराबाद में गैंग रेप के आरोपियों का Encounter पिछले वर्ष 6 दिसंबर को हुआ था. तब पीड़ित के परिवार ने भी इस पर खुशी जताई थी. आज हमने एक बार फिर दिशा के परिवार से इस विषय पर बात की और ये समझने की कोशिश की कि आखिर न्याय की बड़ी बड़ी बातें करने वाले भारत में इस तरह का Instant न्याय इतना लोकप्रिय क्यों हो रहा है. आप दिशा के परिवार का बयान सुनिए फिर हम आपको बताएंगे कि जिस देश में 76 हज़ार लोगों पर सिर्फ एक जज उपलब्ध हो वहां अदालतों से Instant न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

आम तौर पर रेप और हत्या के आरोपियों को..कानूनी प्रक्रिया से गुज़रना होता है. पुलिस उनके खिलाफ केस बनाती है और फिर अदालत फैसला लेती है कि दोषी पाए गए अपराधी को क्या सज़ा दी जाए. लेकिन हैदराबाद में जब चार आरोपियों के साथ On The Spot इंसाफ किया गया. तब पुलिस द्वारा किए गए इस Instant न्याय को लेकर पूरे देश में बहस शुरु हो गई. हालांकि ज्यादातर लोग पुलिस के इस कदम से खुश थे. लेकिन प्रश्न खड़ा होता है क्या पीड़ितों को न्याय दिलाने का ये दीर्घकालिक तरीका हो सकता है?

देश ने उस Encounter को लेकर खुशियां इसलिए मनाई क्योंकि न्याय को लेकर देश के लोगों की उम्मीद टूट चुकी है. हमारे देश में ना तो पर्याप्त संख्या में पुलिस है. ना ही अदालतें हैं और ना ही अपराधियों के मन में कानून का कोई खौफ है. Bureau of Police Research and Development के मुताबिक भारत में प्रति 520 लोगों पर एक पुलिसकर्मी उपलब्ध है. यानी हमारे देश में आम लोगों की रक्षा करने वालों की भारी कमी है और इसका खामियाज़ा देश के लोग अपराधियों का शिकार होकर उठाते हैं.

अगर आपके साथ कोई अपराध हो जाए और आप न्याय मांगने के लिए अदालत की शरण में जाएंगे. तो वहां भी इंसाफ मिलने की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि हमारे देश में हर 76 हज़ार लोगों पर मात्र एक जज है. देश भर की अदालतों में करीब 3 करोड़ 62 लाख मामले Pending हैं. Supreme Court में 59 हजार High Courts में 44 लाख 89 हज़ार और निचली अदालतों में 3 करोड़ 16 लाख से ज्यादा Cases Pending हैं .

देश की अलग अलग अदालतों में रेप के करीब 1 लाख 46 हज़ार मामले चल रहे हैं. आज स्थिति ये है कि ऐसे मामलों में दस में से एक आरोपी को ही सज़ा हो पाती है. स्वभाविक है कि ऐसे माहौल में देश के लोग खुद को सुरक्षित कैसे महसूस कर सकते हैं. ये सही है कि किसी को उचित न्याय देना. एक गंभीर प्रकिया है और इसमें जल्दबाज़ी नहीं की जा सकती. लेकिन जिस न्याय व्यवस्था की गति इतनी धीमी हो. वहां देर से मिला न्याय न्याय ना मिलने के बराबर हो जाता है.

लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि Instant Justice के बदले 100 प्रतिशत सही और सच्चा न्याय किया जाना जरूरी है. और देरी की वजह सिर्फ देश की अदालतें नहीं हैं बल्कि भारत की पूरी न्याय प्रणाली ही इसके लिए जिम्मेदार है. स्थिति ये है कि हमारे देश के 70 प्रतिशत लोग अदालतों तक जाना ही नहीं चाहते. क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें बहुत देर से न्याय मिलेगा और अदालतों तक जाना लोगों को बहुत महंगा भी पड़ता है.

Daksh नाम के एक NGO द्वारा की गई Study के मुताबिक कोई कानूनी विवाद होने की स्थिति में भारत के 74 प्रतिशत लोग सबसे पहले अपने परिवार या दोस्तों से मदद मांगते हैं. 49 प्रतिशत लोग स्थानीय नेताओं या बड़े बुजुर्गों से मदद की अपील करते हैं. इस Study में शामिल 40 प्रतिशत लोगों ने माना कि वो ऐसी स्थिति में पुलिस के पास नहीं जाएंगे.

एक बार फिर से सुन लीजिए 40 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो विवाद होने की स्थिति में पुलिस के पास नहीं जाएंगे. यानी पुलिस की कार्यप्रणाली पर आज भी हमारे देश के लोगों को कुछ खास भरोसा नहीं है. 32 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो वकीलों के पास भी नहीं जाना चाहते. पुलिस और वकीलों को न्याय व्यवस्था का अहम अंग माना जाता है. लेकिन भारत के ज्यादातर लोग ना तो पुलिस के पास जाना चाहते हैं और ना ही वकीलों के पास.

इस Study के दौरान 45 हज़ार 551 लोगों से बात की गई इनमें से 50 प्रतिशत ने माना कि वो अदालत से बाहर समझौता करना पसंद करेंगे जबकि 27 प्रतिशत के मुताबिक कानूनी लड़ाई लड़ना..बहुत महंगा सौदा है. 22 प्रतिशत लोगों का कहना था कि भारत की न्याय व्यवस्था बहुत Complex है. यानी इसके दांव पेंच लोगों को आसानी से समझ नहीं आते.

ज़ाहिर है कि जिस देश में बाकी सारे काम 4G और 5G की स्पीड में हो रहे हैं..उस देश में न्याय व्यवस्था आज भी अंग्रेज़ों के ज़माने वाली गति से काम कर रही है. अपराधियों और बलात्कारियों के Encounters पर देश के लोगों का खुशी मनाना लोगों की टूटती उम्मीदों का नतीजा है... क्योंकि अब लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है और Twenty-Twenty का भारत न्याय पाने के लिए बीस-बीस वर्षों का इंतज़ार नहीं कर सकता है.

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