ZEE जानकारी: हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म
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ZEE जानकारी: हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म

वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को वर्ष 2022 तक हज की सब्सिडी खत्म करने का आदेश दिया था.

ZEE जानकारी: हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी खत्म

भारत सरकार ने आज (मंगलवार, 16 जनवरी) एक ऐतिहासिक फैसला लिया है. आज हज यात्रा के लिए मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया गया है. भारत में इस वर्ष से हज यात्रियों को सब्सिडी नहीं मिलेगी. वैसे तो इस फैसले का असर 1 लाख 75 हज़ार मुस्लिम हज यात्रियों पर पड़ेगा.. लेकिन इसके परिणाम दूरगामी होंगे. आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि हमारे देश में सब्सिडी की राजनीति कब खत्म होगी. अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने आज (मंगलवार, 16 जनवरी) इसकी घोषणा की. मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि भारत सरकार हज सब्सिडी को ख़त्म करके... बिना तुष्टीकरण किए.. अल्पसंख्यकों का कल्याण और सामाजिक विकास करना चाहती है. 

वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को वर्ष 2022 तक हज की सब्सिडी खत्म करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बारे में भी हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे. भारत सरकार ने कहा है कि हज यात्रा की सब्सिडी खत्म करने से जो धनराशि बचेगी उसका इस्तेमाल अल्पसंख्यक लड़कियों की शिक्षा और विकास के लिए किया जाएगा. 

दिसंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हज यात्रा से जुड़ा हुआ एक और ऐतिहासिक फैसला लिया था. भारत सरकार ने बिना मेहरम यानी परिवार के पुरुष सदस्य के बिना महिलाओं की हज यात्रा को भी मंज़ूरी दे दी थी. दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो Show मन की बात में भी इसका ज़िक्र किया था. 

आज आपको ये भी समझना चाहिए की हज सब्सिडी क्या होती है ?
हज सब्सिडी... का मतलब है.. हज यात्रा पर जाने के लिए भारत के मुसलमानों को दी जाने वाली रियायत. भारत से सऊदी अरब जाने के लिए हवाई जहाज के किराये पर कुल जितना पैसा खर्च होता है उसमें सरकार Subsidy देती थी. 

Research के दौरान हमें ऐसी जानकारी मिली है... कि हज यात्रियों को आर्थिक मदद देने की शुरुआत आज़ादी से भी पहले हुई थी.. वर्ष 1932 में ब्रिटिश सरकार The Port Haj Committees Act लेकर आई थी. इस Act के तहत एक हज कमेटी बनाई गई. जिसकी मदद सरकार करती थी. जानकार ये मानते हैं कि ऐसा देश को बांटने की राजनीति के तहत किया गया. इसके बाद आज़ाद भारत में 1959 में कानून पास करके.. हज कमेटी का गठन किया गया था. हालांकि सब्सिडी 1954 से ही मिलनी शुरू हो गई थी. उस वक़्त भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे. 

8 मई 2012 को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई ने हज सब्सिडी पर भारत सरकार को एक आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था कि सरकार अगले 10 वर्षों में यानी वर्ष 2022 तक हज की सब्सिडी को खत्म करे और इससे बचने वाले पैसे को अल्पसंख्यकों के कल्याण और सामाजिक विकास के लिए खर्च किया जाए. 

इस आदेश के बाद केंद्र सरकार ने हज की सब्सिडी में कटौती शुरू कर दी थी. देश में 21 शहरों से हज यात्री.. सऊदी अरब जा सकते हैं. और सरकार हर साल हवाई यात्रा का किराया तय करती है. इसके बाद जो किराया लगता है वो सरकार सब्सिडी के रूप में देती है. ये सब्सिडी हर शहर के लिए अलग-अलग होती है. 

वर्ष 2012 में 836 करोड़ रुपए की हज सब्सिडी दी गई गई थी 
वर्ष 2013 में 683 करोड़ रुपए 
वर्ष 2014 में 577 करोड़ रुपए  
वर्ष 2015 में 529 करोड़ रुपए  
वर्ष 2016 में 405 करोड़ रुपए 
वर्ष 2017 में हज सब्सिडी को घटाकर 200 करोड़ तक दिया गया 
और अब 2018 में सब्सिडी खत्म हो गई है

वर्ष 2012 के फैसले का संज्ञान लेते हुए 31 जनवरी 2017 को केंद्र सरकार ने हज नीति की समीक्षा करने के लिए एक समिति बनाई थी. इस समिति का अध्यक्ष, रिटायर्ड IAS अफसर.. अफज़ल अमानुल्ला को बनाया गया था. इस समिति को वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक की हज नीति की रूपरेखा तैयार करनी थी. और इसी समिति के सुझावों पर ये फैसला लिया गया है.

इस विषय को पूरी तरह समझने के लिए आपको कुछ मूलभूत जानकारियां होनी चाहिएं. हर वर्ष दुनिया भर के 20 से 30 लाख लोग, हज के लिए सऊदी अरब के मक्का में इकट्ठा होते हैं. हज को दुनिया भर में इस्लामिक आस्था का केंद्र बिंदु माना जाता है. यहां इस्लाम धर्म के बारे में भी कुछ संक्षिप्त जानकारियां आपको दे देते हैं क्योंकि बहुत से दर्शकों को शायद इसके बारे में पता नहीं होगा

इस्लाम के 5 बुनियादी आधार हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज शामिल हैं. 

इनमें कलमा पढ़ना यानी ख़ुदा की बादशाहत और मुहम्मद को उनका पैंगबर मानना है. 
नमाज़ का अर्थ है कि रोज़ पांच बार ख़ुदा की इबादत करना.
रोज़ा का अर्थ है कि रमज़ान के पवित्र महीने में उपवास रखना
ज़कात करने का अर्थ है कि अपनी कमाई का एक हिस्सा गरीबों को दान करना
और हज करना यानी मक्का-मदीना की धार्मिक यात्रा करना 

इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में हज की धार्मिक यात्रा होती है. इस्लाम में कहा गया है कि हर मुसलमान जो हज का ख़र्चा उठा सकता है और विवश नहीं है, उसे जीवन में एक बार हज के लिए ज़रूर जाना चाहिए. हालांकि हज करना ज़रूरी नहीं हैं.. Mandatory नहीं है. 

अब हज के बारे में भी हम आपको विस्तार से जानकारी दे देते हैं...

हज पांच दिनों की धार्मिक यात्रा होती है, जिसमें मक्का और उसके आसपास इस्लामिक आस्था की कई जगहों पर 40 किलोमीटर से ज़्यादा का सफर तय करना होता है. इस्लामिक आस्था है कि ये वही रास्ता है जिस पर कभी पैगंबर मुहम्मद साहब चले थे. हज की पहली धार्मिक विधि Ihram (इहरम) होती है, जिसमें मक्का की सीमा में आने से पहले तीर्थयात्री को कुछ निश्चित नियमों के साथ सादे कपड़े पहनने होते हैं. इसके बाद तीर्थयात्री दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद अल-हरम में पहुंचते हैं, जहां वो मस्जिद के अंदर काबा की 7 बार परिक्रमा करते हैं. इस्लाम में काबा को सबसे उच्च स्थान प्राप्त है और इसे पृथ्वी पर ख़ुदा का घर माना जाता है.

आपने नोट किया होगा कि हमारे देश में.. सब्सिडी को एक बहुत बड़े राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है.. और देश के लोगों की मूल ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. विडंबना ये है कि अगर कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति अस्पताल में अपना इलाज करवाना चाहे.. तो शायद वहां उसे सब्सिडी नहीं मिलेगी.. लेकिन अगर वही व्यक्ति धार्मिक यात्रा पर जाना चाहे.. तो उसे तुरंत सब्सिडी मिल जाती है. ये एक चुभने वाला विरोधाभास है. सब्सिडी के नाम पर भारत में तुष्टीकरण की राजनीति का एक बहुत लंबा दौर चला है. इस राजनीति के तहत लोगों को वोटबैंक बना दिया गया.. और उन्हें खुश करने के लिए सब्सिडी बांटी गई. लेकिन धीरे धीरे ये राजनीति पुरानी हो गई.. अब भारत के लोगों को नये युग में जाने के लिए सब्सिडी की राजनीति को नज़रअंदाज़ करना होगा .. हर साल सरकारें बड़े फक्र से ये बताती हैं कि हमने इतने लोगों को सब्सिडी दी,, जबकि कसौटी ये होनी चाहिए.. कि सरकारों ने कितने लोगों को सक्षम बनाया... सरकारों को ये बताना चाहिए कि उन्होंने कितने लोगों को इतना सक्षम बना दिया कि.. अब उन्हें सब्सिडी देने की ज़रूरत ही नहीं है.

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