ZEE जानकारीः वंदेमातरम का एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विश्लेषण
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ZEE जानकारीः वंदेमातरम का एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विश्लेषण

बहुत सारे लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वंदेमातरम को भी राष्ट्रीय गीत के तौर पर भारत सरकार द्वारा मान्यता मिली हुई है . 

ZEE जानकारीः वंदेमातरम का एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विश्लेषण

हमारे देश में कुछ लोग लगातार अपने बयानों से राष्ट्रीय गौरव को ठेस पहुंचाते रहते हैं . राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम को लेकर भी लंबे समय से भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है . ये देशविरोधी ताकतों का Propaganda है . और ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि संविधान निर्माता और देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर भी इस तरह के Propaganda का शिकार हो गए हैं . और उन्होंने वंदे मातरम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया है. 

ज़रा सोचिए कि अगर भीम राव अंबेडकर जैसे विद्वान व्यक्ति के परिवार में भी वंदेमातरम के महत्व को लेकर इस तरह की भ्रांतियां पैदा हो सकती हैं तो आम आदमी के दिमाग पर इस एजेंडे का कितना बुरा असर पड़ा होगा? ये राष्ट्रीय गौरव का प्रश्न है इसलिए आज हमने आपके लिए वंदेमातरम का एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व DNA टेस्ट तैयार किया है.. ये विश्लेषण वंदेमातरम से जुड़े सभी विवादों का समाधान कर देगा . सबसे पहले आप ये देखिए कि भीम राव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने वंदे मातरम को लेकर क्या बयान दिया है?

बहुत सारे लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वंदेमातरम को भी राष्ट्रीय गीत के तौर पर भारत सरकार द्वारा मान्यता मिली हुई है . और वंदेमातरम का सम्मान भी राष्ट्रगान से कम नहीं है. जन गण मन भारत का राष्ट्रगान है और वंदेमातरम भारत का राष्ट्रगीत है. ये दोनों ही गीत हमारे देश के DNA का हिस्सा हैं. इन्हें अलग नहीं किया जा सकता और ना ही इनकी तुलना की जा सकती है.

24 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में एक बयान दिया था . उन्होंने कहा था... "वंदे मातरम् गीत ने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है . इसलिए वंदेमातरम को जन गण मन के साथ समान रूप से सम्मानित किया जाएगा और वंदेमातरम की स्थिति भी जन गण मन के बराबर होगी " 

इस ऐतिहासिक बयान से स्पष्ट है कि वंदेमातरम और जन गण मन का सम्मान एक बराबर है . सच्चाई ये है कि आज़ादी के वक्त वंदेमातरम का सम्मान बहुत ज़्यादा था . लेकिन आज़ादी के बाद इसके सम्मान में गिरावट आती चली गई . वंदेमातरम एक ऐसा गीत है जिसे गाकर भारत के लोग.. अंग्रेज़ों को हराने में कामयाब हुए... लेकिन ये गीत अपने ही देश की राजनीति से हार गया . 

वंदेमातरम के आस्तित्व पर सवाल उठाना देश के हित में नहीं है . इस गीत के अस्तित्व पर वही लोग सवाल उठा सकते हैं जिन्हें भारत के इतिहास की कोई जानकारी ही नहीं है या फिर जिनके मन में भारत के प्रति प्रेम नहीं है . अगर आपको वंदेमातरम के इतिहास की जानकारी होगी, तो आपका मन खुद ब खुद वंदेमातरम के प्रति श्रद्धा भाव से भर जाएगा . 

हमारे देश में वर्ष 1857 की लड़ाई को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है लेकिन इस लड़ाई से भी 94 वर्ष पहले वर्ष 1763 में बंगाल में संन्यासी विद्रोह हुआ था . संन्यासी विद्रोह, अंग्रेज़ों के खिलाफ पहला युद्ध था . बंगाल और बिहार के कई हिस्सों में करीब 38 वर्षों तक संन्यासियों ने अंग्रेज़ों से लड़ाई की थी. विद्रोह की इसी कहानी पर बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने एक ऐतिहासिक उपन्यास लिखा... जिसका नाम था... आनंद मठ . इसी 'आनंद मठ' में वंदेमातरम गीत को शामिल किया गया था. 

वंदेमातरम, देशभक्ति का पहला गीत है . ये अंग्रेज़ों के खिलाफ उठाई गई पहली आवाज़ का प्रतीक है . इसके आस्तित्व को नकार देना, भारत से विद्रोह के समान है . Indian National Congress की स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी . लेकिन इससे भी 3 वर्ष पहले 1882 में आनंद मठ उपन्यास प्रकाशित हुआ था . जिसमें वंदे मातरम नामक गीत शामिल था . कई विद्वानों ने ये भी लिखा है कि बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदेमातरम की रचना 7 नवम्बर 1876 को बंगाल के कांतल पाडा गांव में की थी . वर्ष 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वंदेमातरम गीत गाया गया था . तब कांग्रेस के अधिवेशन में ये गीत खुद रबिंद्र नाथ टैकोर ने गाया था . आप कह सकते हैं कि वंदेमातरम ही वो गीत और नारा है जिसने भारत का पुनर-जागरण किया और आधुनिक राष्ट्रवाद की नींव रखी . 

वर्ष 1905 में जब अंग्रेज़ों ने बंगाल में आज़ादी की भावनाओं को दबाने के लिए बंगाल को दो भागों में बांटने का फैसला किया . तब पूरा बंगाल अंग्रेज़ों के खिलाफ सड़कों पर उतर गया था . उस वक्त वंदेमातरम का गीत ही क्रांतिकारियों की भावना का प्रदर्शन करता था. 16 अक्टूबर 1905 को पूर्वी बंगाल के मुख्य सचिव अंग्रेज़ अधिकारी पी सी ल्योन ने एक नोटिस जारी सार्वजनिक जगहों पर वंदेमातरम गाने पर प्रतिबंध लगा दिया था . इसके बाद वंदेमातरम की लोकप्रियता पूरे देश में फैल गई .

वंदेमातरम पर विवाद वर्ष 1923 के बाद शुरू हुआ था . जब वर्ष 1923 में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने ये कहकर वंदेमातरम का विरोध किया कि "इस्लाम में संगीत मना है ." 

इस घटना के 13 वर्ष बाद एक जुलाई 1939 को महात्मा गांधी ने साप्ताहिक पत्रिका The Harijan में वंदेमातरम के बारे में लिखा था कि 'मैं आनंद मठ के बारे में कुछ भी नहीं जानता, लेकिन वंदेमातरम मुझे आकर्षित करता है. इस गीत के साथ मैं विशुद्ध राष्ट्रीय भावनाओं से भर जाता हूं . वंदेमातरम से मुझे कभी भी ये नहीं लगा कि ये हिंदू गीत है या इसका मतलब केवल हिंदुओं के लिए है . दुर्भाग्य से हम बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं.. जहां सोने जैसी शुद्ध चीज़ को भी, साधारण बनाया जा रहा है. ' सोचने वाली बात ये है कि जिस बुरे दौर की बात महात्मा गांधी कर रहे हैं.. वो आज भी मौजूद है.

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