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नई दिल्ली : नेशनल हेराल्ड केस में मंगलवार को सोनिया गांधी और राहुल गांधी को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश होना था लेकिन तारीख पर तारीख वाले फॉर्मूले के तहत सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत सभी आरोपियों ने 19 दिसंबर को दोपहर 3 बजे तक पेश होने की मोहलत हासिल कर ली और इसी के साथ कांग्रेस और सरकार के बीच टकराव वाली चिंगारियां आग में बदलनी शुरू हो गईं।
नेशनल हेराल्ड केस कल तक गांधी परिवार की निजी लड़ाई का मुद्दा था लेकिन आज इसे कांग्रेस ने एक राजनीतिक लड़ाई बना दिया। कांग्रेस ने आज संसद के दोनों सदनों में खूब हंगामा किया। जमकर नारेबाज़ी की और कोई भी संसदीय काम नहीं होने दिया। सड़कों पर भी कांग्रेस के कार्यकर्ता नारेबाज़ी करते हुए उतरे और बीजेपी पर राजनीतिक बदला लेने का आरोप लगा दिया। ऐसा करके कांग्रेस और उसके नेता और कार्यकर्ता देश के सामने ये जताने की कोशिश कर रहे थे कि वो राष्ट्रहित से जुड़ी किसी बड़ी समस्या को लेकर सड़कों पर उतरे हैं।
लेकिन यहां सवाल ये है कि अगर नेशनल हेराल्ड केस सामने न आया होता और सबकुछ चुपचाप शांतिपूर्वक निपट गया होता तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी को 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति बिना किसी कठिनाई के मिल गई होती। यहां इस बात को समझना ज़रूरी है कि ये 2 हज़ार करोड़ रुपये देश के काम नहीं आने वाले थे और ना ही ये संपत्ति सोनिया और राहुल गांधी को मिलने से देश की जनता का कोई कल्याण होने वाला था, इससे सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बैंक बैलेंस का कल्याण होने वाला था। यानी मां बेटे की ये नंबर वन राजनीतिक जोड़ी ये सब अपने लिए कर रही थी। ऐसे में ये राष्ट्रहित से जुड़ा मुद्दा कैसे हो सकता है। इसके अलावा ये मामला कोर्ट में देश के कानून के दायरे में रहकर चल रहा है। ऐसे में इस मामले में होने वाली कानूनी कार्यवाही राजनीतिक बदला कैसे हो गई?
नेशनल हेराल्ड केस के सभी आरोपियों को आज दोपहर तक कोर्ट में पेश होना था लेकिन इस मामले के मुख्य आरोपी राहुल गांधी मंगलवार सुबह ही तमिलनाडु और पुडुचेरी के बाढ़ प्रभावित इलाकों के दौरे पर निकल गए। वो बात और है कि अदालत ने आज उन्हें 19 दिसंबर तक की मोहलत दे दी लेकिन अगर ये मोहलत न मिलती तो राहुल गांधी कोर्ट में कैसे पेश होते? इसका मतलब ये है कि राहुल गांधी ने ये पहले ही तय कर लिया था कि वो अदालत में पेश नहीं होंगे। सवाल ये भी है कि क्या राहुल गांधी खुद को अदालत और देश के कानून से ऊपर समझ रहे हैं? और कानून को हलके में ले रहे हैं।
वैसे यहां पर आज आपको राहुल गांधी का 19 नवंबर का वो बयान भी देखना चाहिए जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती दी थी कि अगर उन्होंने कुछ गलत किया है तो उन्हें जेल में डाल कर दिखाएं। लेकिन जैसे ही नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी की पेशी की नौबत आई वो और उनकी कांग्रेस पार्टी हंगामे पर उतर आई। अब सवाल ये है कि अगर राहुल गांधी किसी जांच से डरते नहीं हैं तो फिर नेशनल हेराल्ड केस की जांच में परेशानी क्या है? वैसे राहुल गांधी के तेवरों में कोई कमी नहीं आई है। पुडुचेरी में राहुल गांधी ने एक बार फिर यही कहा कि वो किसी से डरते नहीं हैं।
नेशनल हेराल्ड केस में इंदिरा गांधी के नाम का भी खूब दोहन हो रहा है। उनका नाम लिया उनकी बहू, कांग्रेस अध्यक्ष और इस मामले की आरोपी सोनिया गांधी ने। सोनिया गांधी ने कहा कि वो इंदिरा गांधी की बहू हैं और वो किसी से नहीं डरतीं। ऐसा कहके सोनिया गांधी शायद ये कहना चाहती थीं कि तुम जानते नहीं हो मैं कौन हूं? इंदिरा गांधी का नाम लेकर उन्होंने एकसाथ अपने दो तरह के तेवर सामने रखे। एक तरफ सोनिया गांधी ने अपनी पहचान और अपने रसूख का प्रदर्शन किया है और दूसरी तरफ उन्होंने इंदिरा गांधी के नाम का इमोशनल कार्ड खेला है। कुल मिलाकर संसद से लेकर सड़क तक सोनिया गांधी ने नेशनल हेराल्ड केस के इस निजी मामले को नेशनल मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संसद हो या सड़क हंगामे का रिमोट कंट्रोल सोनिया गांधी के पास था।
कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर राजनीतिक बदला लेने का आरोप लगाया है लेकिन यहां कुछ तथ्य देखने भी महत्वपूर्ण हैं।
-सबसे पहला तथ्य ये है कि नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर सुब्रह्मण्यन स्वामी ने जनवरी 2013 में अदालत में याचिका दायर की थी।
-तब सुब्रमण्यन स्वामी बीजेपी में नहीं थे वो जनता पार्टी के अध्यक्ष थे।
-सुब्रह्मण्यन स्वामी ने अगस्त 2013 में भारतीय जनता पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर लिया था।
-और वो उससे पहले ही नेशनल हेराल्ड मामले में धोखाधड़ी का केस अदालत में फाइल कर चुके थे।
-उस समय सरकार भी यूपीए की ही थी, नरेन्द्र मोदी 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री बने थे।
-इसके बाद 26 जून 2014 को निचली अदालत ने इस मामले के आरोपियों को समन किया था।