ज़ी जानकारी: भारत जैसे देश के लोग कूड़े के ढेर के नीचे दबकर मर गए?
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ज़ी जानकारी: भारत जैसे देश के लोग कूड़े के ढेर के नीचे दबकर मर गए?

ज़ी जानकारी: भारत जैसे देश के लोग कूड़े के ढेर के नीचे दबकर मर गए?

DNA में सबसे पहले हम आज की सबसे शर्मनाक खबर का विश्लेषण करेंगे. क्या आपने कभी सुना है कि भारत जैसे किसी देश के लोग कूड़े के ढेर के नीचे दबकर मर गए? हमारे देश में लोग रेल दुर्घटनाओं में मरते हैं, किसी कमज़ोर इमारत के नीचे दबने से मरते हैं, और अब तो लोग.. कूड़े के ढेर के नीचे दबने से भी मारे जा रहे हैं. आज भारत की राजधानी दिल्ली में ऐसा ही एक शर्मनाक हादसा हुआ. यहां गाज़ीपुर Dumping Ground में जमा कूड़े का पहाड़ सड़क पर चल रहे लोगों पर गिर गया. और इस हादसे में 2 लोगों की मौत हो गई. मौतों का ये आंकड़ा भले ही कम हो, लेकिन इस घटना में शर्म बहुत ज्यादा है. ये बहुत शर्म की बात है कि देश की राजधानी में आम आदमी कूड़े के ढेर के नीचे दबकर मर रहा है.

उससे भी ज़्यादा शर्म की बात ये है कि हमारा सिस्टम कानों में रुई डालकर सोया रहता है और किसी हादसे का इंतज़ार करता रहता है. ऐसा नहीं है कि इस खतरे के बार में सरकार को पता न हो. आज से करीब 4 महीने पहले 20 अप्रैल को DNA में हमने सबसे पहले इस खतरे के बारे में.. पूरे सिस्टम को आगाह किया था. उस दिन हमने पूरे देश को ये बताया था कि कैसे दिल्ली कूड़े के ढेर पर बैठी हुई है. और सरकार सोई हुई है.

इस कूड़े के पहाड़ से होने वाले प्रदूषण की वजह से लाखों लोग बीमार पड़ते होंगे. लेकिन आज इस कूड़े ने सीधे...लोगों की जान ले ली. ये कोई हादसा नहीं है.. ये एक हत्या है. भारत की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई से जब ऐसी खबरें आती हैं, तो देश का सिर शर्म से झुक जाता है. 3 दिन पहले मुंबई में आई बारिश के बाद Manhole में गिरने की वजह से देश के एक मशहूर डॉक्टर की मौत हो गई थी.

डॉक्टर दीपक अमरापुरकर एक Senior Doctor थे . डॉक्टर अमरापुरकर पेट से जुड़ी बीमारियों के विशेषज्ञ थे . देश ही नहीं दुनिया के बड़े Doctors में उनका नाम लिया जाता था . लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं सोचा होगा कि सिस्टम की लापरवाही से एक दिन उनकी जान चली जाएगी.डॉक्टर दीपक.. मुंबई में हुए जलभराव के दौरान एक खुले हुए Manhole में गिर गए... और बाद में उनकी लाश Manhole से बहकर समुद्र तक पहुंच गई.दूसरी तरफ दिल्ली में कूड़े का ढेर आम लोगों की जान ले रहा है.

यहां ये भी समझना होगा कि दिल्ली में कूड़े की ये समस्या.. एक महीने.. या एक साल पुरानी नहीं है. बल्कि गाज़ीपुर के इस Dumping Ground की क्षमता 15 साल पहले ही खत्म हो चुकी थी. गाज़ीपुर का ये Dumping Ground वैसे तो 1984 में बना था, लेकिन 2002 में ही इसकी क्षमता खत्म हो चुकी थी. लेकिन इसके बावजूद भी यहां लगातार दिल्ली का कूड़ा डाला जाता रहा. दिल्ली में फिलहाल 4 Dumping Grounds हैं. जो गाजीपुर, भलस्वा, नरेला और ओखला इलाके में है. इनमें से तीन अब बिलकुल भर चुके हैं. कूड़े के पहाड़ की अधिकतम ऊंचाई 15 मीटर होनी चाहिए, लेकिन गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में कूड़े के ये पहाड़ बहुमंजिला इमारतों जितने ऊंचे हैं.

दिल्ली के इन कूड़ाघरों की ऊंचाई हर रोज़ बढ़ रही है और अब यहां इन Dumping Grounds की ऊंचाई 50 मीटर तक पहुंच चुकी है. ये ऊंचाई कुतुब मीनार से सिर्फ 23 मीटर कम है.. कुतुब मीनार की ऊंचाई 73 मीटर है.Centre for Science and Environment के मुताबिक वर्ष 2047 तक दिल्ली अपने ही कूड़े के नीचे दबने लगेगी.

CSE के मुताबिक दिल्ली के भलस्वा डंपिंग ग्राउंड की क्षमता 11 वर्ष पहले यानी 2006 में ही खत्म हो चुकी है.और क्षमता के पैमानों पर ओखला डंपिंग ग्राउंड भी 10 वर्ष पहले ही Expire हो चुका है .यही नहीं गाज़ीपुर Dumping Ground से मानसून के दौरान 10 लाख 40 हज़ार मिलियन लीटर ज़हरीले पदार्थ बह जाते हैं, जो Ground Water को विषैला बनाते हैं.

ये बातें हम पहले भी बता चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद सिस्टम की आंखें नहीं खुलीं. इसलिए आज हम एक बार फिर सिस्टम को गहरी नींद से जगा रहे हैं.ये बात सही है कि भारत में Waste Management की भारी कमी है..लेकिन ये भारत की निजी समस्या है...और हमें अपनी समस्याओं का निदान खुद करना होगा. लेकिन, गुस्सा तब आता है...जब हमारे सिस्टम के बेफिक्र रवैये की वजह से आम जनता को चलते-फिरते सज़ा-ए-मौत मिल जाती है.

Zee News पर हमने कई बार ऐसे विषयों पर System को सावधान करने की कोशिशें की. हमने पहले भी आपको जानकारी दी थी...कि कैसे देश की राजधानी कभी भी कूड़े के पहाड़ के नीचे दब सकती है. लेकिन, System तब भी सोया हुआ था...और System आज भी उतनी ही गहरी नींद में सोया हुआ है...इसका नतीजा आपके सामने है...हमें लगता है, कि ये स्थिति जल्द बदलने वाली नहीं है.

ऐसा क्यों है.. ये भी समझिए पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक भारत में हर साल 620 लाख टन कचरा पैदा होता है. इसमें E -Waste और Hazardous waste शामिल नहीं है.आपको जानकर हैरानी होगी कि 620 लाख टन कचरे में से सिर्फ 70 प्रतिशत कूड़ा ही इकठ्ठा किया जाता है. यानी करीब 190 लाख टन कचरा, अलग अलग जगहों पर बिखरा रहता है और प्रदूषण फैलाता है. 

620 लाख टन कचरे में से सिर्फ 70 प्रतिशत कूड़ा ही इकठ्ठा किया जाता है. यानी 430 लाख टन कचरा ही इकठ्ठा होता है. इस 430 लाख टन कचरे में से भी सिर्फ 129 लाख टन कचरे से ही खाद बनाई जाती है, उसे Recycle किया जाता है, या फिर बिजली बनाई जाती है.बाकी का कचरा Dumping Grounds में भेज दिया जाता है. और अब वो Dumping Grounds भी पूरी तरह भर चुके हैं.. जिसकी वजह से देशभर के Dumping Grounds, कूड़े के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों में तब्दील होते जा रहे हैं.

नगर निगम और Municipal Corporations राजनीति करने में व्यस्त रहते हैं..इसलिए इनका ध्यान कूड़े की समस्या की तरफ नहीं जाता. कूड़े को ठिकाने लगाना भारत के महानगरों की बहुत बड़ी समस्या है..और इस समस्या से निपटने के लिए सिस्टम और समाज..दोनों को अपनी सोच को स्वच्छ करने की ज़रूरत है.

आजकल सरकारें हाइटेक हो गई हैं.. और नेताओं और मंत्रियों को सोशल  मीडिया पर अपनी छवि को चमकाने का शौक है.. सबको अपने Followers बढ़ाने का शौक है इस चक्कर में ये नेता सोशल मीडिया पर बड़े बड़े दावे करते हैं. ऐसे नेता अक्सर आपसे ये कहते होंगे कि आप सोशल मीडिया पर ही अपनी शिकायत दर्ज कर दीजिए.. इसके साथ ही वो तुरंत कार्रवाई की बात करते हैं.. लेकिन जब ऐसी घटनाएं होती हैं.. तो हमारे देश के सिस्टम और यहां की सरकारों की पोल खुल जाती है.

अगर ऐसे ही चलता रहा भारत विश्व गुरु बनने के बजाए विश्व का सबसे दुखी देश बन जाएगा हमें डर है कि हमारा देश किसी दिन आबादी और कूड़े के बम के नीचे दबकर ना मर जाए. इसलिए अब कुछ करना होगा.. अब स्थिति बर्दाश्त से बाहर हो गई है.

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