Zee जानकारी : ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग की रेंज में पूरा पाकिस्तान आ गया है
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Zee जानकारी : ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग की रेंज में पूरा पाकिस्तान आ गया है

आज मैं DNA की शुरुआत चाणक्य नीति में लिखी गई एक मशहूर बात से करना चाहता हूं। चाणक्य ने कहा था कि जिस शासक के पास सैन्य ताकत ना हो और खज़ाना भी खाली हो उसे किसी शक्तिशाली राजा के यहां शरण ले लेनी चाहिए। वैसे तो पाकिस्तान भारत की हर बात से नफरत करता है। लेकिन हमें लगता है कि चाणक्य का ये वाक्य पाकिस्तान की पूरी विदेश नीति के केंद्र में हैं। पाकिस्तान के पास भारत से मुकाबला करने के लिए ना तो बड़ी सेना है और ना ही पैसा। इसीलिए पाकिस्तान ने चीन की शरण ले ली है।

Zee जानकारी : ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग की रेंज में पूरा पाकिस्तान आ गया है

नई दिल्ली : आज मैं DNA की शुरुआत चाणक्य नीति में लिखी गई एक मशहूर बात से करना चाहता हूं। चाणक्य ने कहा था कि जिस शासक के पास सैन्य ताकत ना हो और खज़ाना भी खाली हो उसे किसी शक्तिशाली राजा के यहां शरण ले लेनी चाहिए। वैसे तो पाकिस्तान भारत की हर बात से नफरत करता है। लेकिन हमें लगता है कि चाणक्य का ये वाक्य पाकिस्तान की पूरी विदेश नीति के केंद्र में हैं। पाकिस्तान के पास भारत से मुकाबला करने के लिए ना तो बड़ी सेना है और ना ही पैसा। इसीलिए पाकिस्तान ने चीन की शरण ले ली है।

पाकिस्तान को लगता है कि भारत से युद्ध की स्थिति में चीन उसकी मदद करेगा। क्योंकि चीन पाकिस्तान से ज्यादा ताकतवर है। लेकिन आज हमनें पाकिस्तान की इसी गलतफहमी को दूर करने का फैसला किया है। भारत के नए सेनाध्य़क्ष जनरल बिपिन रावत ने ये साफ कर दिया है कि भारत की सेना चीन और पाकिस्तान से एक साथ लड़ने में सक्षम है। जनरल बिपिन रावत ने ये भी कहा है कि भारत की सेना बहुत कम समय में बॉर्डर पर पहुंचने की क्षमता रखती है। इतना ही नहीं भारतीय सेना दुश्मन के इलाके में जाकर भी कार्रवाई कर सकती है।

भारत के नए सेनाध्यक्ष ने ये सारी बातें ज़ी न्यूज़ के संवाददाता कृष्ण मोहन मिश्रा को दिए एक इंटरव्यू में कही हैं। भारत हर वर्ष 26 जनवरी के दिन अपनी सैन्य ताकत पूरी दुनिया को दिखाता है। आम भाषा में इसे 26 जनवरी की परेड कहते हैं। लेकिन आज हमने पाकिस्तानी मीडिया की विशेष मांग पर 26 जनवरी से 23 दिन पहले ही भारत की सैन्य ताकत की झांकी दिखाने का फैसला किया है। पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी ही नहीं बल्कि वहां का मीडिया भी ज़ी न्यूज़ के साथ साथ को धमकियां दे रहा है। हमनें आपको बताया था कि कैसे भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आतंकवादी हाफिज़ सईद ने ज़ी न्यूज़ को धमकियां दी थी। इसके बाद हमनें भारत और पाकिस्तान की सैन्य ताकत का एक तुलनात्मक विश्लेषण किया था। ताकि भारत को धमकी देने से पहले पाकिस्तान की सेना, सरकार और आतंकवादियों को 100 बार सोचना पड़े। 

इस विश्लेषण को देखने के बाद पाकिस्तान का मीडिया तिलमिला गया है। वहां का मीडिया ज़ी न्यूज़ और DNA पर दिखाई गई खबरों की Clips का इस्तेमाल करके भारत के खिलाफ ज़हर उगल रहा है। हमें लगता है कि ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग की रेंज में पूरा पाकिस्तान आ गया है। शायद इसीलिए वहां का मीडिया और वहां के आतंकवादी अब बकायादा ज़ी न्यूज़ का नाम लेकर धमकियां दे रहे हैं। सबसे पहले मैं आपको एक पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल पर दिखाई गई एक वीडियो क्लिप दिखाना चाहता हूं। इस वीडियो क्लिप में DNA की एक रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत के खिलाफ ज़हर उगलने की कोशिश की गई है। 

पाकिस्तान मीडिया ज़ी न्यूज़ पर दिखाई गई रिपोर्ट को गलत साबित करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो बार-बार गलतफहमियों का शिकार हो जाता है। लेकिन हम पाकिस्तान के मीडिया और वहां के आतंकवादियों की हर गलतफहमी को दूर कर देंगे। आज हमनें भारत के नए सेनाध्यक्ष से ज़ी न्यूज़ की बातचीत और तथ्यों के आधार पर भारत और पाकिस्तान की सेना का तुलनात्मक अध्ययन किया है। हमें लगता है कि पाकिस्तान का मीडिया चाहे तो एक बार फिर हमारे विश्लेषण का इस्तेमाल रिसर्च मैटेरियल की तरह कर सकता है। औऱ इसकी एक CD अपने दोस्त चीन को भी दिखा सकता है। इससे पाकिस्तान की सरकार, सेना और वहां के मीडिया को काफी फायदा होगा।

पाकिस्तान में ज़ी न्यूज़ प्रतिबंधित है लेकिन इसके बावजूद वहां की सरकार, वहां के आतंकवादी और पाकिस्तानी मीडिया के पत्रकार छुप-छुपकर ज़ी न्यूज़ देखते हैं। पाकिस्तान का मीडिया ज़ी न्यूज़ की खबरों को स्कैन कर रहा है और अपनी हैसियत का आईना देख रहा है। वैसे पाकिस्तान के साथ-साथ चीन के मीडिया की नज़रें भी भारत पर लगी हुई हैं क्योंकि नए साल में भारत चीन को सबसे बड़ा कूटनीतिक झटका देने वाला है।

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान के साथ साथ चीन की चिंता बढ़ाने के लिए भी हमारे पास आज एक  ख़बर है। ये ख़बर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी की सदस्यता से जुड़ी हुई है। ख़बर ये है कि एनएसजी ने एक नया ड्राफ्ट प्रपोजल तैयार किया है, जिससे भारत को एनएसजी की सदस्यता मिलने में आसानी होगी और पाकिस्तान इस रेस से बाहर हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में ये एक बड़ी ख़बर है, इसलिए आज इस ख़बर का एक विश्लेषण करना ज़रूरी है। 

NSG के पूर्व अध्यक्ष राफेल मारिआनो ग्रोसी ने उन देशों के लिए एक ड्राफ्ट फार्मूला तैयार किया है, जो NSG की सदस्यता लेना चाहते हैं और जिन्होंने  परमाणु अप्रसार संधि यानी NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ऐसे देशों में भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं। अमेरिका के एक थिंक टैंक आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के मुताबिक दो पेज के इस ड्राफ्ट फार्मूला में 9 ऐसी शर्तें हैं, जो भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को पूरी करनी होंगी। इस थिंक टैंक के मुताबिक ये फॉर्मूला भारत की NSG सदस्यता के लिए आसान रास्ता बना सकता है, क्योंकि भारत इस फॉर्मूले की सभी 9 शर्तें पूरी करता है। 

इस ड्राफ्ट फॉर्मूले में ये कहा गया है कि एक गैर NPT सदस्य देश को इस बात पर सहमत होना चाहिए कि वो ऐसे किसी दूसरे गैर NPT सदस्य देश के रास्‍ते में रुकावट नहीं बनेगा। यानी NSG की सदस्यता के लिए Apply करने वाला देश किसी दूसरे देश की सदस्यता पर सवाल नहीं उठा सकता है। पाकिस्तान भारत की सदस्यता पर सवाल उठाता रहा है, जबकि भारत ऐसा नहीं करता है। प्रस्ताव के मुताबिक NON NPT देश इस बात कि घोषणा करें कि वो सख्ती से NSG के नियमों का वर्तमान और भविष्य में पूरी तरह से पालन करेंगे। इसमें ये भी लिखा है कि नए सदस्य अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी  के सामने ये घोषणा करें कि सिविल न्यूक्लियर टेक्नालजी से मिलिट्री सेक्टर को कोई भी फायदा नहीं होगा। और इस शर्त को भी भारत पूरा करता है।

भारत ने NSG की सदस्यता के लिए अमेरिका की मौजूदा ओबामा सरकार का पूरा समर्थन भी हासिल कर लिया था, लेकिन चीन के विरोध की वजह से भारत को सदस्यता नहीं मिल पाई। हालांकि अब अमेरिका में 20 जनवरी के बाद सरकार बदल जाएगी और डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के नये राष्ट्रपति बन जाएंगे। इसलिए अब डॉनल्ड ट्रंप की सरकार पर भारत को NSG की सदस्यता दिलाने की ज़िम्मेदारी होगी। 12 मई 2016 को भारत ने औपचारिक तौर पर एक बार फिर NSG में अपनी सदस्यता को लेकर आवेदन किया था। NSG के 48 सदस्य देशों में से 47 ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया था, लेकिन सिर्फ एक देश ने भारत की सदस्यता का विरोध किया था और वो देश था चीन। 

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के नियमों के मुताबिक, अगर NSG के सदस्य देशों में से एक भी देश, किसी की सदस्यता का विरोध करता है, तो NSG की सदस्यता नहीं मिलती है। भारत के केस में भी ऐसा ही हुआ था, क्योंकि चीन ने भारत का विरोध किया। इसकी सबसे बड़ी वजह है, Nuclear Non-proliferation Treaty यानी परमाणु अप्रसार संधि पर भारत का हस्ताक्षर ना करना। नियमों के मुताबिक NSG का सदस्य बनने के लिए परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है, और ये नियम पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बनाए हुए हैं, जो इस Group में शामिल हैं। Nuclear Suppliers Group में भारत जैसे गैर NPT देशों को शामिल करने के लिए सर्वसम्मति नहीं है, इसी आधार पर चीन ने भारत की सदस्यता का विरोध हुआ।

यहां सवाल ये भी है, कि भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करना चाहता?

परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए, परमाणु अप्रसार संधि का प्रस्ताव लाया गया था। इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों को उन 5 देशों तक सीमित रखना था, जो ये स्वीकार करते थे, कि उनके पास परमाणु हथियार हैं। ये 5 देश थे, अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस इनमें से सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस ने उसकी जगह ले ली। ये एक तरह की मोनोपोली यानी एकाधिकार है और भारत लंबे समय से इस परमाणु एकाधिकार की आलोचना करता रहा है, और यही वजह थी, कि वर्ष 1974 में भारत ने शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया था।

जिसके बाद, भारत जैसे किसी और देश को परमाणु परीक्षण करने से रोकने के लिए, न्यूक्लिय सप्लायर्स ग्रुप का गठन किया गया था। अगर भारत ने NPT पर नॉन-न्यूक्लिय वेपन स्टेट के तौर पर हस्ताक्षर कर दिए होते, तो वो कभी परमाणु परीक्षण नहीं कर पाता। NPT के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को दर्शाती है। इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है, जिसने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो।

इसी आधार पर भारत को ये दर्जा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हासिल नहीं हुआ है। क्योंकि भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया था। भारत ये चाहता है, कि उसे एक परमाणु हथियार संपन्न देश माना जाए। यही वजह है, कि भारत ने NPT पर दस्तख़त नहीं किए हैं, और इस वजह से भारत ग़ैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों की श्रेणी में आता है। ध्यान देने वाली बात ये भी है, कि अगर भारत को NPT पर दस्तख़त करना हो, तो उसे एक ग़ैर-परमाणु हथियार संपन्न देश के रूप में हस्ताक्षर करना होगा, जो भारत कभी नहीं चाहेगा। ये देश के हित में नहीं है

NSG में भारत की सदस्यता को लेकर चीन की असली परेशानी NPT पर हस्ताक्षर करना नहीं बल्कि कुछ और ही है ये एक ऐसा छिपा हुआ सच है, जिसके बारे में आज आपको पता होना चाहिए। चीन नहीं चाहता, कि भारत NSG का सदस्य बनने के बाद, आसानी से दूसरे देशों से यूरेनियम और नई परमाणु तकनीक ले सके। चीन ये भी नहीं चाहता, कि भारत को न्यूक्लियर ट्रेड ग्रुप में जगह मिले, साथ ही वो भारत को Nuclear Components का Export करने से भी रोकना चाहता है।

चीन जानता है, कि अगर भारत NSG का सदस्य बन जाता है, तो NSG का सदस्य होने के नाते, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए उसकी दावेदारी और मज़बूत हो जाएगी, इसलिए भी वो भारत का विरोध कर रहा है। NSG में भारत की सदस्यता का विरोध करके चीन, अमेरिका सहित भारत का समर्थन करने वाले सभी देशों को दिखाना चाहता है, कि वो कितना ताकतवर है और किसी भी फैसले में उसकी मर्ज़ी का कितना महत्व है। आपको बता दें, कि चीन ने MTCR यानी Missile Technology Control Regime में भी भारत की एंट्री का विरोध किया था।

हालांकि, खुद चीन मिसाइल और न्यूक्लियर तकनीक को गलत हाथों में सौंपने का दोषी है। पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया और ईरान में मिसाइल्स और न्यूक्लियर तकनीक को Leak करने का काम भी चीन ने ही किया है। 1986 में चीन के वैज्ञानिकों ने पाकिस्तान की मदद करना शुरू किया था। चीन ने उस दौर में पाकिस्तान को 10 परमाणु हथियार बनाने के लिए Nuclear Technology का Transfer भी किया था। China Nuclear Energy Industry Corporation ने पाकिस्तान को ख़ासतौर पर डिज़ाइन किए गये 5,000 ring magnets दिए थे। इन Magnets का इस्तेमाल परमाणु हथियारों से जुड़ी तकनीक विकसित करने में होता है। इन घटनाओं का ज़िक्र कई किताबों में भी है।

पाकिस्तान किसी भी देश की सेहत के लिए हानिकारक है। ये बात चीन को जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना अच्छा है। वैसे अब चीन को भी पाकिस्तान के चरित्र पर शक़ होने लगा है। मार्च 2016 में चीन के XUAR (ज़ुआर) इलाके में एक आतंकवादी हमला हुआ था। चीन की जांच एजेंसियों ने पता लगाया कि इस हमले में कुछ पाकिस्तानी छात्रों का भी हाथ था। ये छात्र चीन की शिनजियांग Medical University में पढ़ाई कर रहे थे। चीन के मीडिया ने इस खबर को दबाने की कोशिश की। लेकिन चीन इस ब्लास्ट से जुड़े तथ्यों को चाहकर भी छिपा नहीं पा रहा है। और इस खबर से जुड़ा सबसे बड़ा तथ्य ये है कि इस घटना के बाद चीन ने अपनी Immigration Authorities को आदेश दिया कि वो यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 100 पाकिस्तानी छात्रों को Deport कर दें यानी देश से निकाल दें। 

इतना ही नहीं चीन के सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया है कि वो पाकिस्तान से आने वाले छात्रों को एडमिशन देने में एहतियात बरतें। इसका नतीजा ये हुआ है कि चीन के 60 प्रतिशत विश्वविद्यालय एडमिशन देने से पहले ख़ासतौर पर पाकिस्तान के छात्रों का पर्सनल इंटरव्यू ले रहे हैं। इतना ही नहीं चीन में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार संगठन East Turkistan Islamic Movement यानी ETIM के कई सदस्य पाकिस्तान में ही छिपे हुए हैं।

ETIM के सदस्यों को पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन हमला करने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। चीन अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान दोस्तों की पीठ में छुरा मारने के लिए बदनाम है। लेकिन भारत के साथ शक्ति संतुलन बनाए रखने की ज़िद उसे पाकिस्तान से दूर नहीं होने देती। वैसे आज नहीं तो कल चीन को ये बात समझ आ जाएगी कि पाकिस्तान चीन से मिले पैसों का इस्तेमाल चीन के ही खिलाफ कर रहा है। ठीक वैसे ही जैसे उसने अमेरिका के साथ किया था।

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