ZEE Jankari: फेक न्‍यूज को भारत में रोकने की जरूरत
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ZEE Jankari: फेक न्‍यूज को भारत में रोकने की जरूरत

श्रीलंका में सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें और नफरत फैलाने वालों को सख़्त सज़ा देने की तैयारी हो रही है. श्रीलंका की सरकार ने एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है जिसमें फर्जी खबरें फैलाने वालों को पांच साल की सज़ा मिलेगी.

ZEE Jankari: फेक न्‍यूज को भारत में रोकने की जरूरत

अगर आप Fake यानी नक़ली सामान ख़रीदना नहीं चाहेंगे...तो Fake News को क्यों सुनना, देखना और शेयर करना चाहेंगे. लेकिन भारत में Fake News का संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है. भारत में 35 करोड़ से ज़्यादा लोग Social Media का इस्तेमाल करते हैं. उन पर 24 घंटे, हफ़्तों के सातों दिन...Fake News वाला ख़तरा मंडरा रहा है. देश में आये दिन Fake News की वजह से हिंसक घटनाएं हो रही हैं...और हमारा 135 करोड़ की आबादी वाला देश...इस पर कोई ठोस क़दम नहीं उठा रहा है. जबकि श्रीलंका जैसा बहुत छोटा सा देश इस ख़तरे को पहचान चुका है...उसने सोशल मीडिया पर ज़हरीली पोस्ट को क़ाबू में करने के लिये अब एक नया क़ानून भी बना लिया है. झूठ के फैलने की रफ़्तार बहुत तेज़ होती है. इसलिए आज हमें अपने पड़ोसी देश श्रीलंका से सबक़ लेने की ज़रूरत है.

श्रीलंका में सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें और नफरत फैलाने वालों को सख़्त सज़ा देने की तैयारी हो रही है. श्रीलंका की सरकार ने एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है जिसमें फर्जी खबरें फैलाने वालों को पांच साल की सज़ा मिलेगी. उन पर क़रीब 4 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा.श्रीलंका में 21 अप्रैल को ईस्टर पर कई आत्मघाती धमाके हुए थे...इनमें 258 लोगों की जान गई थी. इन आतंकी हमलों के बाद सोशल मीडिया पर झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं. इसे देखते हुए श्रीलंका की सरकार ने ये क़दम उठाया है. ताकि श्रीलंका में सामाजिक सद्भाव ना ख़राब हो. धमाकों के बाद श्रीलंका सरकार ने Facebook, Twitter, YouTube, Whatsapp और Instagram जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर 9 दिन तक पाबंदी लगाई थी.

सिंगापुर की सरकार भी Fake News को फैलाने वालों के ख़िलाफ़ एक कठोर कानून पारित कर चुकी है. इसका नाम है The Protection from Online Falsehoods and Manipulation Bill. इसे आसान भाषा में Anti-Fake news बिल भी कहा जा सकता है. अब सिंगापुर में सोशल मीडिया के ज़रिये झूठे Messages को Forward करने से पहले लोगों को हज़ार बार सोचना पड़ेगा, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें 10 साल की जेल की सज़ा या 5 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना भरना होगा. भारत को इससे सबक़ लेने की ज़रूरत है, क्योंकि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में Fake News राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये बड़ा ख़तरा बन सकती है. यहां Fake News के ज़रिये हज़ारों लोगों को पलायन करने पर मजबूर किया जा सकता है.

वर्ष 2018 में गुजरात में काम करने वाले बिहार के हज़ारों मज़दूर अपने गांव लौटने लगे थे. गुजरात के साबरकांठा में सितंबर 2018 में एक बच्ची का रेप हुआ था...जिसमें बिहार के रहने वाले एक व्यक्ति को आरोपी बताया गया था. तब सोशल मीडिया पर बिहारी मज़दूरों के ख़िलाफ़ पोस्ट डाली जाने लगीं. झूठी ख़बरें फैलाई जाने लगीं. इसके बाद गुजरात के कई ज़िलों में बिहार के मज़ूदरों के ख़िलाफ़ हिंसा की ख़बरें आने लगी थीं. बैंगलुरु में भी पूर्वोत्तर के लोगों के ख़िलाफ़ इसी तरह Fake News का इस्तेमाल किया गया. वर्ष 2012 में कर्नाटक में रह रहे पूर्वोत्तर के लोगों के ख़िलाफ़ भी दहशत फैलाई गई थी...इस वजह से पूर्वोत्तर के हज़ारों छात्र बैंगलुरु छोड़कर अपने-अपने राज्य के लिये रवाना हो गये थे.

जून 2018 में असम में सैकड़ों लोगों की भीड़ ने दो लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, क्योंकि ऐसी अफवाह फैली थी, कि ये दोनों लोग बच्चों का अपहरण करते थे. ये अफवाह WhatsApp के ज़रिए फैलाई गई थी. Fake News के फैलने की रफ्तार इतनी तेज़ होती है, कि कई बार दंगे-फसाद हो जाते हैं. लोगों की हत्या हो जाती है। अफवाह के चक्कर में भीड़ हिंसक हो जाती है और लोगों को पीट पीटकर मार डालती है और कोई ये नहीं समझ पाता कि इतना सब कुछ सिर्फ एक Message को Forward करने...या किसी झूठे वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करने से हुआ है.

अब Fake News और सोशल मीडिया की इस ख़तरनाक मिलावट को रोकने की भारत में ज़रूरत बढ़ती जा रही है. श्रीलंका और सिंगापुर से पहले Russia, France, और Germany ऐसे देश हैं जो Fake News के ख़िलाफ...कानून लागू कर चुके हैं. Russia में Fake News फैलाने पर 4 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है. France में Fake News फैलाने पर एक साल की सज़ा और 40 लाख रुपये का जुर्माना है. Germany में Fake News को लेकर सज़ा बहुत सख़्त है. यहां सोशल मीडिया websites पर 400 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके अलावा 24 घंटे के अंदर सोशल मीडिया से Fake News को हटाना होगा.

मलेशिया की सरकार ने भी मार्च, 2018 में Anti-Fake news कानून पास किया था, लेकिन इसका वहां की जनता ने काफ़ी विरोध किया था. इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया गया था.
लेकिन 'Fake News' के लिये सोशल मीडिया बड़ा हथियार है. Twitter पर सच्ची ख़बरों की तुलना में झूठी और फ़र्ज़ी ख़बरों के फैलने की ताक़त 70 प्रतिशत ज़्यादा होती है. और इसकी वजह से सच्ची ख़बरों और सूचनाओं को खोज पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. लेकिन भारत में इसके ख़िलाफ़ कोई क़ानून नहीं है.

भारत, दुनिया भर में Whatsapp का सबसे बड़ा बाज़ार है. यहां 20 करोड़ से ज़्यादा लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। और ऐसा अनुमान है, कि वर्ष 2020 तक भारत में Whatsapp के 60 करोड़ Users होंगे. भारत में Whatsapp से रोज़ाना 13 सौ करोड़ से ज़्यादा Message भेजे जाते हैं. इनमें फर्ज़ी खबरें, फर्ज़ी Photos और Videos भी शामिल होते हैं.

21 अगस्त 2018 को Whatsapp के CEO, Chris Danials तत्कालीन सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद से मिले थे. तब Whatsapp का भारत में भी कॉर्पोरेट ऑफिस बनाने और शिकायत दूर करने वाले अफ़सर नियुक्त करने की भी बात हुई थी. तब रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि अगर Whatsapp को भारत में कारोबार करना है तो कंपनी को भारत का क़ानून मानना होगा. सबसे बड़ी समस्या ये है कि अगर किसी Social Media Platform से किसी भारतीय को शिकायत है तो वो किसके पास जाए.
 
WhatsApp भारत के बाज़ार में फायदे के लिए कई तरह की योजनाएं बना रहा है. लेकिन उसका भारत में कोई दफ्तर नहीं है. यानी फायदा पूरा चाहिए, लेकिन ये कंपनियां ज़रा सी भी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हैं. Facebook और Google ने भारत में शिकायत की जांच के लिए अधिकारी तो नियुक्त किए हैं, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि भारत के लिए Facebook के जिस अधिकारी को नियुक्त किया गया है, वो Ireland में बैठता है.
जबकि Google के भारत वाले जांच अधिकारी का दफ्तर अमेरिका के California में है.

25 अक्टूबर 2018 को मोदी सरकार ने सोशल मीडिया पर अफ़वाहों, नफ़रत भरी पोस्ट और साइबर क्राइम पर रोक लगाने के लिये कंपनियों को निर्देश जारी किये थे. तब गृह मंत्रालय ने गूगल, फेसबुक, Whatsapp और Twitter जैसी कंपनियों को कहा था कि वो सिस्टम बनाकर सोशल मीडिया पर ऐसी गतिविधियां रोकें जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरनाक साबित हो सकती हैं. लेकिन आज भी Fake News वाला सिस्टम ख़ूब फल फूल रहा है. क्योंकि जिस देश में 100 करोड़ से ज़्यादा लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हों, जिनमें 50 करोड़ से ज़्यादा स्मार्टफोन हैं, और जब Mobile Data सस्ता हो, तो किसी फर्ज़ी ख़बर को फैलाना मुश्किल नहीं है. अब नये सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि वो Fake News के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाएंगे.

Fake News के ज़रिये दुनिया में कई नेताओं और फिल्मी हस्तियों के मरने की झूठी ख़बरें भी प्रसारित की जाती रही हैं. इनमें Hollywood Actor Sylvester Stallone भी शामिल हैं...वर्ष 2018 में उनके निधन की झूठी ख़बर सोशल मीडिया में फैलाई गई...इसी तरह वर्ष 2001 में मशहूर Pop Star Justin Timberlake और Britney Spears की कार हादसे में मौत की झूठी ख़बर भी फैलाई गई थी. भारत में अरुण जेटली जैसे बड़े नेता और दिलीप कुमार जैसे मशहूर अभिनेता को भी नहीं बख़्शा गया. उनके निधन की भी झूठी ख़बरें फैलाई जा चुकी हैं.

सन 1835 में New York के एक अख़बार The Sun ने चांद पर ज़िंदगी होने को लेकर कई लेख प्रकाशित किये थे. इसमें एक मशहूर खगोल वैज्ञानिक सर जॉन हर्शेल की बातों का झूठा हवाला दिया गया था. ये इसलिये किया गया ताकि अख़बार ज़्यादा बिके. लेकिन Fake News का इतिहास हज़ारों साल पुराना है. महाभारत में भी Fake News का इस्तेमाल किया गया था.

महाभारत युद्ध के समय गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों का साथ दिया था. उनके बेटे अश्वत्थामा भी अपने पिता की तरह युद्ध कला में माहिर थे और उन्होंने उस युद्ध में कौरवों की तरफ से हिस्सा लिया था. पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत युद्ध के समय पाण्डवों की सेना को काफी नुकसान पहुंचाया था. पांडवों की हार तय देख कर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा. इस योजना के तहत ये बात फैला दी गई कि "अश्वत्थामा मारा गया"...जब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मौत का सच जानना चाहा, तो उन्होंने जवाब दिया-"अश्वत्थामा मारा गया, परन्तु हाथी". ध्यान देने वाली बात ये थी कि उन्होंने ''परन्तु हाथी'' बहुत धीरे से कहा था.

श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया, जिसके शोर की वजह से द्रोणाचार्य आखिरी दो शब्द नहीं सुन पाए. अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिये और युद्ध भूमि में आखें बन्द करके शोक अवस्था में बैठ गए. और इसी के बाद उनकी हत्या कर दी गई. 5 हज़ार साल पुरानी इस घटना में झूठ का सहारा नहीं लिया गया था. बल्कि कुटिल रणनीति के तहत युद्ध जीतने के लिए अश्वत्थामा नाम के 'हाथी' के मारे जाने की बात फैलाई गई थी.

अब सवाल ये है, कि सोशल मीडिया पर फैलाई गई किसी Fake News का सच कैसे पता करें? क्योंकि करीबी लोगों की तरफ़ से आये Message या पोस्ट पर लोग शक नहीं करते हैं. लोग सोचते हैं, कि ये Message शायद ठीक ही होगा और यहीं पर आपको सावधान हो जाने की ज़रुरत है, क्योंकि फर्ज़ी ख़बरों के मायाजाल में कोई भी फंस सकता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, कि कौन, कितने भरोसे के काबिल है. इसके लिए आपको सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखना है.

सोशल मीडिया पर फर्जी पोस्ट के तीन पक्ष होते हैं. एक पोस्ट करने वाला, दूसरा सर्विस प्रोवाइडर यानी ये ख़बर सोशल मीडिया के किस platform पर पोस्ट की गई है और तीसरा पोस्ट को Like या Share करने वाले. 'फ़ेक न्यूज़' की पहचान के लिए आपको ये देखना चाहिए कि ख़बर आई कहां से हैं. इसकी शुरुआत कहां से हुई. इसके बाद आपको इंटरनेट सर्च इंजन की मदद से खबर की जांच करनी चाहिए. किसी खबर को तब तक शेयर न करें, जब तक आप उसकी सच्चाई को लेकर पूरी तरह भरोसा ना कर लें. आंख बंद करके किसी Attachment को Download या Open ना करें.

भारत में 20 करोड़ घरों में 84 करोड़ लोग टीवी देखते हैं. इसलिये ये Fake News टीवी के ज़रिये भी फैलती हैं. भारत में भी कुछ पत्रकार.. बेहिचक होकर फर्ज़ी ख़बरें फैलाते हैं. लेकिन उन पर कभी कड़ी कार्रवाई नहीं होती. फर्ज़ी ख़बरें किसी की मौत का कारण भी बन सकती हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते. इसीलिये हमारे न्यूज़रूम में मौजूद हर पत्रकार को तथ्यों की जांच करने की आदत है. लेकिन हमें लगता है कि सिर्फ़ पत्रकारों को ही नहीं, अब आपको भी इसकी आदत डालनी चाहिए क्योंकि Fake News एक संक्रामक रोग की तरह फैल रही है.

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