Trending Photos
-मामला हरियाणा के मेवात मॉडल स्कूल का है, जो मढ़ी गांव में है.
-इस स्कूल में पढ़ने वाले तीन हिन्दू बच्चों ने ये आरोप लगाया था, कि स्कूल के शिक्षक उन्हें ज़बरदस्ती नमाज़ पढ़ने के लिए कहते हैं.
-बच्चों ने आरोप लगाया था, कि नमाज़ पढ़ने से इनकार करने की स्थिति में उन्हें परेशान किया जाता था.
-ऐसे भी आरोप हैं, कि स्कूल के दूसरे मुस्लिम छात्र इन सभी हिन्दू छात्रों पर नमाज़ पढ़ने का दबाव बनाते थे.
-इसके अलावा स्कूल के मुस्लिम शिक्षक भी उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाते थे.
-आरोप के मुताबिक, स्कूल के मुस्लिम शिक्षक, हिन्दू बच्चों को इस्लाम के तौर-तरीकों से रहने और नमाज पढ़ने के लिए कहते थे.
-जिस स्कूल में ये घटना हुई है, वहां 207 बच्चे पढ़ते हैं.
-इस स्कूल को क़रीब 3 वर्ष पहले शुरु किया गया था.
- उस वक्त मेवात मॉडल स्कूल में कम से कम 45 हिंदू बच्चों ने दाखिला लिया था.
-लेकिन धीरे-धीरे इस स्कूल से हिन्दू बच्चों की संख्या कम होती चली गई.
-आज इस स्कूल में 45 में से सिर्फ 2 हिन्दू बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.
-इस मामले में शुरुआती जांच के बाद मेवात के डिप्टी कमिश्नर ने दो आरोपी टीचर्स को सस्पेंड कर दिया है. जबकि तीसरे शिक्षक का ट्रांसफर कर दिया गया है.
-इस मामले में स्कूल के ही एक शिक्षक ने बच्चों को लिखित रूप से शिकायत करने की सलाह दी थी.
-जिसके बाद बच्चों ने लिखित शिकायत दी और प्रशासन से कार्रवाई करने की मांग की..
-यहां भारत के संविधान की बात करना भी आवश्यक है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25..26..27..और 28 में देश के हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है.
-अनुच्छेद 25 के मुताबिक सभी नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म को मानने, उसका पालन करने और अपने धर्म के प्रचार की आज़ादी है लेकिन प्रचार के अधिकार में किसी अन्य व्यक्ति के धर्मान्तरण का अधिकार शामिल नहीं है.
-अनुच्छेद 26 सभी धार्मिक संप्रदायों और संगठनों को नैतिकता के आधार पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने और संस्थाएं बनाने का अधिकार देता है.
-अनुच्छेद 27 में कहा गया है कि किसी भी नागरिक को किसी विशेष धर्म या धार्मिक संस्था को टैक्स या दान देने के लिए मज़बूर नहीं किया जा सकता.
-अनुच्छेद 28 के मुताबिक शैक्षिक संस्थाओं में माता पिता की मंज़ूरी के बिना छात्रों को धार्मिक शिक्षा देने या किसी धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता...
लेकिन आरोपों के मुताबिक मेवात के स्कूल में इसका पालन नहीं किया गया.
-आपको बता दें कि वर्ष 1954 में संसद में इंडियन कन्वर्जन बिल पेश किया गया था.
-इसके बाद वर्ष 1960 में भी धर्म परिवर्तन से जुड़ा द बैकवर्ड कम्यूनिटिज रीलिजियस प्रोटेक्शन बिल संसद में पेश हुआ.लेकिन ये दोनों ही बिल संसद में पास नहीं हो पाए.
-वर्ष 1978 में लोकसभा में द फ्रीडम ऑफ रिलिजन बिल पेश किया गया था. लेकिन अल्पसंख्यक आयोग ने इसका विरोध किया और उसे भी हरी झंडी नहीं मिली.
-हालांकि देश के कुछ राज्यों में धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बने हुए हैं..
-वर्ष 1967 में ओडिशा..ज़बरदस्ती होने वाले धर्मांतरण को रोकने वाला पहला राज्य बना.
-मध्य प्रदेश में वर्ष 1968 में धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कानून बनाया गया था.
-अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 1978 में जबरदस्ती धर्मांतरण के खिलाफ कानून लागू हुआ.
-तमिलनाडु में वर्ष 2002 में धर्मांतरण के खिलाफ कानून बना, लेकिन 2004 में इसे वापस ले लिया गया.
-गुजरात में वर्ष 2003 में कानून बना जिसके मुताबिक धर्मांतरण से पहले डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट की इजाज़त लेना ज़रूरी था.
-इस बीच कल ही झारखंड सरकार के कैबिनेट ने एंटी-कन्वर्जन बिल को पारित कर दिया है. जिसे इसी महीने विधानसभा में पेश किया जाएगा.
-इस बिल के मुताबिक ज़बरदस्ती या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति या संस्था पर क़ानूनी कार्रवाई होगी.
-जो बिल ड्राफ्ट किया गया है, उसमें आरोपी व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल की सज़ा भुगतनी होगी और 50 हजार रुपये का जुर्माना देना होगा.
-बिल के मुताबिक अगर शेड्युल्ड कास्ट और शेड्युल्ड ट्राइब से संबंधित किसी नाबालिग लड़की को ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो सज़ा और भी कड़ी हो सकती है.
-ऐसी स्थिति में दोषी व्यक्ति को 4 साल की सज़ा के अलावा 1 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा.