ZEE JANKARI : चुनावों की भाषा और राजनीति में घटती हुई मर्यादा
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ZEE JANKARI : चुनावों की भाषा और राजनीति में घटती हुई मर्यादा

देश की राजनीति में अभद्र भाषा और अपशब्दों का इतिहास काफी समृद्ध है. नेताओं की भाषा इस इतिहास में नये-नये अध्याय जोड़ती रही है. आज हमने राजनीति की इन अभद्र बातों का संकलन किया है.

ZEE JANKARI : चुनावों की भाषा और राजनीति में घटती हुई मर्यादा

किसी भी देश और समाज के चरित्र का पता इस बात से चलता है कि वहां पर होने वाले चुनावों की भाषा कैसी है और वहां के मुद्दों का स्तर क्या हैं? देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. और इस दौरान मुद्दों वाली लड़ाई के बजाए निचले स्तर की बयानबाज़ी हो रही है. इसलिए आज हम राजनीति में घटती हुई मर्यादा का DNA टेस्ट करेंगे.

2007 में जब गुजरात के विधानसभा चुनाव होने वाले थे, तब कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था. उस वक्त नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और इस Negative बयानबाज़ी के बाद कांग्रेस ये चुनाव बहुत बुरी तरह से हार गई थी. इसके बाद पिछले वर्ष दिसंबर में गुजरात में फिर विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए फिर अपशब्दों का प्रयोग किया और कांग्रेस वो चुनाव भी हार गई, लेकिन कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इससे कोई सबक नहीं सीखा, क्योंकि अगर सबक सीखा होता, तो वो भाषा की मर्यादा का ख्याल ज़रूर रखते. आज कांग्रेस के 3 नेताओं ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया है. किसी ने प्रधानमंत्री मोदी की जाति पूछी है, तो कोई प्रधानमंत्री की मां का मज़ाक उड़ा रहा है. सवाल ये है कि चुनाव मुद्दों से जीते जाएंगे या एक दूसरे के खिलाफ अमर्यादित भाषा का प्रयोग करके जीते जाएंगे.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी बुधवार को राजस्थान के नाथद्वारा में दिए बयान में वो बीजेपी के कुछ नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जाति और धर्म पूछ रहे हैं. सीपी जोशी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. वो इस बार कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान की नाथद्वारा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं. सीपी जोशी राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार में मंत्री रह चुके हैं और केन्द्र में UPA की सरकार के दौरान भी कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं.

हम आपको ये सब इसलिए बता रहे हैं ताकि आप सीपी जोशी के राजनीतिक कद का अंदाज़ा लगा सकें। सीपी जोशी खुद एक ब्राह्मण हैं और उन्हें ये लगता है कि हिंदू धर्म पर सिर्फ ब्राह्मण ही बात कर सकते हैं. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या ब्राह्मणों के अलावा हिंदू धर्म पर बात करने या विचार करने का अधिकार किसी और के पास नहीं है? वो उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जाति पर भी सवाल उठा रहे हैं.

सीपी जोशी के इस बयान पर जब विवाद हुआ तो, कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने Tweet किया, और लिखा कि सीपी जोशी जी का बयान कांग्रेस पार्टी के आदर्शों के विपरीत है. पार्टी के नेता ऐसा कोई बयान न दें जिससे समाज के किसी भी वर्ग को दुःख पहुँचे. कांग्रेस के सिद्धांतों, कार्यकर्ताओं की भावना का आदर करते हुए जोशीजी को ज़रूर गलती का अहसास होगा. उन्हें अपने बयान पर खेद प्रकट करना चाहिए. राहुल गांधी के इस Tweet के बाद सीपी जोशी ने भी Twitter पर ही खेद प्रकट कर लिया.

वैसे राहुल गांधी के Tweet से पहले सीपी जोशी अपने बयान को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगा रहे थे. दूसरी तरफ बीजेपी ने सीपी जोशी के इस बयान पर तुरंत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी और सीपी जोशी को पार्टी से बर्खास्त करने की मांग की.

इस लिस्ट में सीपी जोशी अकेले नहीं हैं. कांग्रेस के एक और नेता राज बब्बर उनसे भी एक कदम आगे निकल गए. इंदौर में एक चुनावी सभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां का मज़ाक उड़ाया, और प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया. राज बब्बर के अलावा कांग्रेस के नेता और पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोस रहे हैं. 2014 में बीजेपी की रैलियों में नरेंद्र मोदी के नाम के कसीदे पढ़ते थे, लेकिन अब वो मोदी लहर को ज़हर बता रहे हैं.

देश की राजनीति में अभद्र भाषा और अपशब्दों का इतिहास काफी समृद्ध है. नेताओं की भाषा इस इतिहास में नये-नये अध्याय जोड़ती रही है. आज हमने राजनीति की इन अभद्र बातों का संकलन किया है. ताकि देश के नेताओं को ये एहसास हो सके कि राजनीति के चक्कर में उनकी भाषा कितनी ख़राब होती जा रही है. इस संकलन में वो बयान भी शामिल हैं, जो पिछले 11 वर्षों से भारत की राजनीति के स्तर को लगातार नीचे गिरा रहे हैं. राजनीति में भाषा की मर्यादा का ख्याल कोई पार्टी नहीं रखती है. सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में ये सभी नेता एक दूसरे से मिलते हैं. हाथ मिलाते हैं, कभी कभी तो गले भी मिलते हैं. लेकिन जैसे ही देश में चुनावों का ऐलान होता है, नेताओं की राजनीतिक भाषा को लकवा मार जाता है.

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