ZEE जानकारी : क्या भक्ति या इबादत का सार्वजनिक प्रदर्शन करना उचित है?
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ZEE जानकारी : क्या भक्ति या इबादत का सार्वजनिक प्रदर्शन करना उचित है?

इस्लामिक कानून शरीयत के हिसाब से किसी जगह पर नमाज़ पढ़ने के लिए उस जगह के मालिक से इजाज़त लेनी चाहिए. 

ZEE जानकारी : क्या भक्ति या इबादत का सार्वजनिक प्रदर्शन करना उचित है?

आज सबसे पहले एक ऐसा सवाल जिसे सुनकर देश के लोग असहज हो जाते हैं. क्या भक्ति या इबादत का सार्वजनिक प्रदर्शन करना उचित है? आज इस सवाल पर पूरे देश में बहस हो रही है. क्योंकि उत्तर प्रदेश के नोएडा में पुलिस ने एक नोटिस जारी किया है जिसमें लिखा है कि किसी सार्वजनिक पार्क में किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि के लिए इजाज़त नहीं है. इस नोटिस में विशेष तौर पर शुक्रवार को पार्क में पढ़ी जाने वाली नमाज़ का ज़िक्र है. इसी नोटिस के बाद विवाद हो गया है. क्योंकि इस विवाद को धार्मिक असहनशीलता का एंगल दे दिया गया और फिर जो शोर मचा उसमें मूल मुद्दा कहीं खो गया. 

हमारे देश में अल्पसंख्यकों के हितों की बात करने को ही धर्मनिरपेक्षता माना जाता है. और बहुसंख्यकों की बात करने को असहनशीलता से जोड़ दिया जाता है. लेकिन हम दोनों की बात करेंगे. हमारा विश्लेषण किसी एक धर्म या सिर्फ नमाज़ को लेकर नहीं है. बल्कि हम उस सोच पर प्रहार कर रहे हैं, जिसके तहत लोग अपनी धार्मिक भावनाओं को सड़कों पर प्रदर्शित करते हैं. इसमें वो मंदिर भी शामिल हैं जो लाउडस्पीकर वाली भक्ति करते हैं और वो मस्जिदें भी शामिल हैं जिनके लाउडस्पीकर से अज़ान सुनाई देती है.

यहां हम ये साफ कर देना चाहते हैं कि हम किसी एक धर्म पर सवाल नहीं उठा रहे हैं और किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, हमारा मकसद नहीं हैं, बल्कि हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि धार्मिक भावनाओं की जगह दिल में और घर में होनी चाहिए, सड़कों पर या पार्क में नहीं. अगर किसी भी धार्मिक कार्यक्रम से लोगों को परेशानी होती है, तो वो कार्यक्रम धार्मिक नहीं माना जा सकता. हम जानते हैं कि आज बहुत से लोगों को हमारी ये बात बहुत चुभेगी और वो हमें अपना दुश्मन मानने लगेंगे. लेकिन देश के हितों को ध्यान में रखते हुए हम ये विश्लेषण कर रहे हैं.
 
ये पूरा विवाद नोएडा के एक पार्क से शुरू हुआ. इस पार्क के आसपास बहुत सारी प्राइवेट कंपनियों के दफ्तर हैं. इन दफ्तरों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारी इसी पार्क में अक्सर नमाज़ पढ़ते हैं. ये वीडियो नोएडा पुलिस द्वारा लगाई गई पाबंदी से पहले का है. स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले नमाज़ पढ़ने वाले लोगों की संख्या कम होती थी, लेकिन धीरे धीरे ये संख्या बढ़ती गई. और 500 से 700 लोग हर शुक्रवार को इस पार्क में नमाज़ पढ़ने लगे. जिसके बाद यहां के स्थानीय लोगों ने नोएडा के प्रशासन से इस बात की शिकायत की. नमाज़ पढ़ने वाले लोगों ने भी प्रशासन से नमाज़ पढ़ने के लिए अनुमति मांगी, जो प्रशासन ने नहीं दी.
 
इसके बाद ही नोएडा पुलिस की तरफ से इस पूरे इलाके की कंपनियों को एक नोटिस जारी किया गया. जिसमें ये लिखा गया कि इस पार्क में किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन की अनुमति नहीं है. और इसमें शुक्रवार को पढ़ी जाने वाली नमाज़ भी शामिल है . इस नोटिस में कंपनियों को ये कहा गया है कि वो अपने कर्मचारियों को ये बताए कि नमाज़ पढ़ने के लिए पार्क में न जाएं. और अगर इसका उल्लंघन हुआ तो इसकी ज़िम्मेदारी कंपनियों की होगी.

इसके बाद से इस मुद्दे पर पूरे देश में चर्चा हो रही है कि खुले में नमाज़ पढ़ना जायज़ है या नहीं ? मुस्लिम समुदाय के लोग इसे अपने धार्मिक अधिकारों का हनन बता रहे हैं. इस मामले में हो सकता है कि कुछ शरारती तत्व माहौल बिगाड़ने के लिए भी विवाद कर रहे हों. लेकिन ये बात सही है कि सड़कों को जाम करके नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है. 
 
देश के हर हिस्से में ऐसी तस्वीरें आम हैं. जहां लोग ट्रैफिक को रोकते हैं और सड़क पर ही नमाज़ पढ़ना शुरू कर देते हैं. वो इस बात का ख्याल नहीं रखते कि इससे दूसरों को परेशानी हो सकती है. मज़हब का मामला समझकर लोग भी इस पर आपत्ति नहीं करते. लेकिन इस्लाम के जानकार इसे गैर इस्लामी मानते हैं. उनके मुताबिक जिस इबादत से दूसरों को तकलीफ होती है, उस इबादत की रूह खत्म हो जाती है. 
 
इस्लामिक कानून शरीयत के हिसाब से किसी जगह पर नमाज़ पढ़ने के लिए उस जगह के मालिक से इजाज़त लेनी चाहिए. और अगर किसी जगह पर नमाज़ पढ़ने के लिए मना किया जा रहा है, तो वहां नमाज़ नहीं पढ़ी जानी चाहिए. ये बात सही है कि देश का संविधान सभी को अपने धर्मों को मानने और धर्म के मुताबिक उपासना करने की आज़ादी देता है, लेकिन इसमें एक शर्त भी है और वो शर्त ये है कि इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए. 
 
संविधान के Article 25 के तहत देश के हर व्यक्ति को अपनी मर्ज़ी से किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार है. लेकिन इस अधिकार का मतलब ये नहीं है कि आप आस्था के नाम पर दूसरों को परेशान करेंगे. सड़कों पर नमाज़ पढ़ने की ये समस्या सिर्फ भारत की नहीं है. बल्कि दुनिया के कई देशों में ऐसी तस्वीरें दिखती हैं. 
 
2011 से पहले फ्रांस में भी ऐसी ही तस्वीरें दिखती थीं. ये तस्वीर वर्ष 2010 की है. फ्रांस में सड़कों पर अपना मुसल्ला बिछाकर नमाज़ अदा करने की पुरानी परंपरा थी. लेकिन इससे लोगों को बहुत परेशानी होती थी. जिसके बाद इसका विरोध हुआ और सितंबर 2011 में फ्रांस ने सड़कों पर इस तरह नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगा दी थी. 
 
दुबई में भी पिछले साल अक्टूबर में सड़क किनारे नमाज़ पढ़ रहे लोगों पर एक व्यक्ति ने कार चढ़ा दी थी, जिसकी वजह से दो लोगों की मौत हो गई थी. इस व्यक्ति की कार का टायर फट गया था, जिसकी वजह से हादसा हुआ था. इस घटना के बाद से दुबई में सड़क के किनारे नमाज़ पढ़ने पर एक हज़ार दिरहम यानी 19 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान है. चीन के शिनजियांग प्रांत में भी सरकारी भवन, स्कूल और कॉरपोरेट Offices में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी है. 
 
लेकिन ये बात सिर्फ नमाज़ पर ही लागू नहीं होती. आपके शहर में भी हर रोज़ किसी न किसी मोहल्ले में भगवती जागरण होता होगा. जिसमें बड़े बड़े लाउडस्पीकर लगाकर शोर मचाया जाता है. ये सब कुछ बड़े ही भक्ति भाव से किया जाता है लेकिन लोग इस बात की परवाह नहीं करते कि इससे दूसरे लोगों को परेशानी हो सकती है. भारत में ध्वनि प्रदूषण से जुड़े कानूनों के मुताबिक रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक किसी भी तरह के लाउड स्पीकर या Public Address सिस्टम का इस्तेमाल करना गैरकानूनी है. लेकिन आस्था के नाम पर ऐसे आयोजन रातभर चलते हैं. और लोग इससे परेशान होने के बावजूद चुप रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये धार्मिक आयोजन है और इसका विरोध करने पर विवाद हो सकता है. लोगों के मन में ये बात भी आती है कि अपने पड़ोसी का विरोध करके उससे दुश्मनी लेना ठीक नहीं है. यानी भारत में धर्म के नाम पर सीधे-सीधे कानूनों का उल्लंघन होता है, लेकिन कोई भी इसके खिलाफ कुछ नहीं बोलता. 

आज हम पूरे देश से ये कहना चाहते हैं कि जिस तरह टेलीग्राम और अंतरदेशीय पत्रों का ज़माना खत्म हो गया. उसी तरह लाउडस्पीकर का प्रयोग भी ख़त्म कर देना चाहिए. इसका प्रयोग सिर्फ जनकल्याण से जुड़ी घोषणाओं के लिए ही करना चाहिए. हमारा मानना है कि भगवान या अल्लाह की, असली पूजा और इबादत, मन में उठने वाले विचारों से होती है, इसके लिए दूसरों को तकलीफ देने की ज़रूरत नहीं है. 

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