ZEE Jankari : जेएनयू में देशद्राेही नारे लगाने वाली गैंग की पोल खुली
पुलिस ने मुख्य आरोपियों यानी कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य की Call Detail Record यानी CDR भी निकाली हैं, जिससे ये साबित होता है ये तीनों ही लोग.. घटना वाली रात यानी 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में थे. और लगातार एक दूसरे के संपर्क में भी थे.
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दिल्ली पुलिस ने जेएनयू में देशद्रोह के नारे लगाने वाले आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल करने में 3 साल का वक्त तो लिया, लेकिन ये एक वैज्ञानिक चार्जशीट है. ये चार्जशीट करीब 1200 पन्नों की है. जिसमें आरोप साबित करने के लिए हर वैज्ञानिक तरीके की मदद ली गई है. इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं. पुलिस ने मुख्य आरोपियों यानी कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य की Call Detail Record यानी CDR भी निकाली हैं, जिससे ये साबित होता है ये तीनों ही लोग.. घटना वाली रात यानी 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में थे. और लगातार एक दूसरे के संपर्क में भी थे.
चार्जशीट के मुताबिक उस दिन शाम को 5 बजकर 12 मिनट पर आरोपी उमर खालिद ने कन्हैया कुमार को अपने मोबाइल फोन से दो मैसेज किए थे. इन Messages में उमर खालिद ने कन्हैया कुमार को साबरमती ढाबे तक आने के लिए कहा था, क्योंकि JNU के प्रशासन ने उनके कार्यक्रम की अनुमति रद्द कर दी थी. और वहां पर ABVP के कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे थे.
इसके अलावा दूसरे आरोपियों जैसे अश्वती नायर, कोमल मोहिते, रेयाज़-उल-हक, बानो-ज्योत्सना लाहिड़ी, समर ख़ान और रामा नागा के मोबाइल फोन की लोकेशन भी JNU में पाई गई. और ये सभी लोग उमर ख़ालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य या कन्हैया कुमार के संपर्क में थे. इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने अपने आरोपों को साबित करने के लिए उन 13 Videos का सहारा लिया, जिनमें ये पूरी घटना रिकॉर्ड थी और इन Videos में ज़ी न्यूज़ की वीडियो फुटेज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी.
ज़ी न्यूज़ की वीडियो फुटेज दिल्ली पुलिस के लिए सबसे अहम कड़ी साबित हुई है. दिल्ली पुलिस ने सारे Videos की सत्यता की पुष्टि बाकायदा Lab में करवाई है और CFSL यानी Central Forensic Science Laboratory की रिपोर्ट भी इस चार्जशीट में शामिल है. ज़ी न्यूज़ ने इस घटना की जांच में सहयोग देने के लिए इसके Video पुलिस को सौंप दिए थे.
अब आपको ये बताते हैं कि इस चार्जशीट में मुख्य आरोपियों के बारे में क्या लिखा है? यहां आपको ये भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले तीन वर्षों में इन्हीं आरोपियों को हमारे देश के डिज़ाइनर पत्रकारों और नेताओं ने हीरो बना दिया है. उन्हें ऐसे पेश किया जाता है, जैसे उन्होंने आज़ादी की कोई बड़ी जंग लड़ी होगी. लेकिन आज इन आरोपियों की पोल खुलेगी.
इस चार्जशीट में कन्हैया कुमार के बारे में लिखा है कि उसे देश विरोधी नारेबाज़ी में शामिल पाया गया. इस चार्जशीट में जिन गवाहों का ज़िक्र है, उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की है कि कन्हैया कुमार उस दिन घटनास्थल पर मौजूद था और पूरे प्रदर्शन की अगुवाई कर रहा था और खुद भी देशविरोधी नारे लगा रहा था.
अब ये देखिए कि उमर ख़ालिद के बारे में क्या लिखा हुआ है? चार्जशीट में लिखा है कि उमर खालिद ने ही JNU में अलग अलग स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अनुमति मांगी थी.
सूत्रों के मुताबिक इस चार्जशीट में लिखा है कि 9 फरवरी 2016 को साबरमती ढाबे में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए उमर ख़ालिद ने ही Performa भरा था और CFSL के विशेषज्ञों ने ये पाया कि ये Performa उमर खालिद की Hand Writing में भरा गया था और उस पर उसके हस्ताक्षर भी थे. जबकि दो अन्य आयोजकों अश्वती और अनिर्बान के हस्ताक्षर भी उमर ख़ालिद ने ही किए थे. इसीलिए उमर खालिद पर Forgery का आरोप लगाया गया है. गवाहों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उमर खालिद ने देशद्रोही नारे लगाए थे. इस घटना के वक्त उमर खालिद के मोबाइल फोन की Location भी JNU में पाई गई है.
इसी तरह से तीसरे आरोपी अनिर्बान भट्टाचार्य के मोबाइल फोन की लोकेशन भी जेएनयू में पाई गई है. अनिर्बान द्वारा देशद्रोही नारे लगाने की पुष्टि गवाहों ने की है. अब आप ये समझ गये होंगे कि पिछले तीन वर्षों से ये लोग किस तरह देश के सामने झूठ बोलते आ रहे हैं. सबसे ज्यादा हैरानी होती है उन डिज़ाइनर संपादकों को देखकर, जिन्होंने पिछले तीन वर्षों में इन लोगों को हीरो बना दिया है.
और अब तो हमने सुना है कि देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार को आने वाले लोकसभा चुनाव में टिकट भी मिलने वाला है. ऐसे में हमें लगता है कि जो भी पार्टी कन्हैया कुमार या उमर खालिद जैसे लोगों को चुनाव लड़ने का टिकट देगी, वो भी देशद्रोही कहलाएगी. क्योंकि वो पार्टी जानबूझकर देशद्रोही नारे लगाने वाले आरोपियों को टिकट दे रही है.
हमने आपको बताया कि कैसे उस वक्त ज़ी न्यूज़ की फुटेज को डॉक्टर्ड बताया गया था और हम पर तरह तरह के आरोप लगाए गए थे. लेकिन दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में ज़ी न्यूज़ की फुटेज 100 फीसदी सच बताया गया है और इसे सबसे बड़ा सबूत माना गया है. चार्जशीट में लिखा है कि ज़ी न्यूज़ की पूरी वीडियो फुटेज 64 GB की एक USB Flash Drive में दी गई थी. जिसकी Frame by Frame जांच की गई. इस Flash Drive में कुल 632 Video Files या Clips थीं.
चार्जशीट में साफ तौर पर लिखा है कि सभी Video Files में किसी भी तरह की Editing नहीं पाई गई है. अब सवाल ये है कि जिन लोगों ने उस दौरान, एकतरफ़ा एजेंडा चलाया और झूठ का माहौल बनाया, क्या अब वो लोग देश से और Zee News से माफ़ी मांगेंगे? वैसे इन लोगों से माफ़ी की उम्मीद करना बेकार है. क्योंकि ये इसमें भी अपने लिए कोई कुतर्क ढूंढ लेंगे, और देश के तमाम संवैधानिक संस्थानों की विश्वसनीयता और साख को गिराने की कोशिश करेंगे। ये गैंग हमेशा ऐसा ही करता है. जब फैसला इनके पक्ष में नहीं आता तो ये लोग देश के हर संस्थान को बिका हुआ बताते हैं. आज पूरे भारत के लिए.. ऐसे लोगों को पहचानने का एक अच्छा मौका है.
पूरे देश को ज़ी न्यूज़ ने ही सबसे पहले ये बताया था कि 9 फरवरी 2016 की रात को जेएनयू में कुछ कश्मीरी छात्रों ने भी देश विरोधी नारेबाज़ी की थी. सूत्रों के मुताबिक दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में ये लिखा है कि वहां पर कश्मीरी युवकों की मौजूदगी की बात, अलग अलग Videos और मोबाइल फोन की वीडियो Clips से साबित होती है. अब हम आपको वो वीडियो दिखाते हैं, जिसमें कुछ छात्र और छात्राएं भारत विरोधी नारेबाज़ी कर रहे थे. ध्यान देने वाली बात ये है, कि ऐसी नारेबाज़ी अक्सर कश्मीर में भी होती है.
जो देशद्रोही नारे इन लोगों ने लगाए थे, उनका ज़िक्र दिल्ली पुलिस की इस चार्जशीट में भी है। जब पूरे देश को ये नारे हमने सुनाए थे, तो देश का खून खौल गया था. 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में जो देशद्रोही नारे लगे थे, वो कुछ इस तरह थे.
- छीन के लेंगे आज़ादी
- इंडियन आर्मी मुर्दाबाद
- इंडिया गो बैक
- भारत तेरे टुकड़े होंगे- इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह
- भारत के टुकड़े होंगे, कौन से टुकड़े में रहना पसंद करोगे
- भारत की बरबादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी
- कश्मीर की आज़ादी लेकर रहेंगे,
- कश्मीर के लोगों तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं
- कितने अफज़ल मारोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा
- अफज़ल गुरू मकबूल बट्ट ज़िंदाबाद
- अफज़ल की हत्या नहीं सहेंगे, नहीं सहेंगे
- बंदूक के दम पर लेंगे आज़ादी
इन नारों को सुनकर आपका खून खौल गया होगा. लेकिन हमें शर्म आती है कि ऐसे नारे को लगाने वालों के साथ हमारे देश का मीडिया और बहुत से नेता आज भी खड़े हुए.
हमारी वीडियो फुटेज भले ही अब सबसे बड़ा सबूत बन चुकी हो, लेकिन जब ये पूरा विवाद शुरू हुआ था, तब हमारी इसी फुटेज पर बहुत से सवाल उठाए गए थे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो जेएनयू के इस विवाद में Extra दिलचस्पी ली थी. केजरीवाल का इस मामले से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन वो अपने गुप्त एजेंडे के तहत इसमें कूद पड़े थे. अरविंद केजरीवाल को इतनी बेचैनी थी कि वो जेएनयू के तमाम Videos की जांच एक प्राइवेट लैब से कराने में जुट गए.
13 फरवरी 2016 को दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने जेएनयू में लगे देशद्रोही नारों के मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे. इसके तहत जेएनयू से जुड़े 7 Videos को You Tube और इंटरनेट से उठाकर उनकी सत्यता की जांच के लिए हैदराबाद की Truth Labs में भेजा गया था.
अरविंद केजरीवाल ने इस पूरे मामले में थोड़ी नहीं बल्कि बहुत ज्यादा जल्दबाज़ी दिखाई. लेकिन उनका ये दांव उस वक्त उल्टा पड़ गया, जब केजरीवाल की मनपसंद लैब ने भी ज़ी न्यूज़ की फुटेज को 100 फीसदी सही पाया.
हम आपको ये बता चुके हैं कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले के मुख्य आरोपी कन्हैया कुमार के बारे में क्या लिखा है. लेकिन उस दौर में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कन्हैया कुमार को पूरी तरह से निर्दोष बता रहे थे. अरविंद केजरीवाल आज बहुत ज्यादा दुखी होंगे, क्योंकि जिस कन्हैया कुमार को, वो पवित्र बता रहे थे, उसके खिलाफ आज चार्जशीट फाइल हो गई है. आपको अरविंद केजरीवाल का वो पुराना बयान सुनना चाहिए, जिसमें वो कन्हैया कुमार की तारीफ कर रहे थे.
JNU की इस घटना से देश के कई नेताओं ने भी फायदा उठाया और डिज़ाइनर पत्रकारों ने भी। उस दौरान JNU के देशद्रोही छात्रों के पक्ष में कई नेता खड़े हो गए थे. इन नेताओं ने JNU में जाकर बाकायदा सभाएं की थीं, और ये दिखाने की कोशिश की थी कि वो JNU के देशद्रोही छात्रों के साथ खड़े हैं.
देश के कई बड़े पत्रकारों ने इन देशद्रोही छात्रों के पक्ष में ऐसी हवा बनाने की कोशिश की थी, जिससे उनकी TRP बढ़ जाए. जिन छात्रों पर देश के खिलाफ नारेबाज़ी करने का आरोप था, उनके बड़े-बड़े Interviews किए गए थे और उनके भाषणों का Live Telecast किया गया था.
कुछ लोगों ने ये भी कहा था कि JNU की घटना एक मामूली घटना थी. लेकिन हमें लगता है कि JNU की घटना को मामूली कहकर नहीं टाला जा सकता, क्योंकि ये एक ऐसा खतरनाक वायरस है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा हो सकता है. इसलिए उस वक्त भी Zee News ने देश विरोधी तत्वों के खिलाफ एक Stand लिया था, और आज भी हमारा Stand वही है। हम आपको इस घटना की याद इसलिए दिला रहे हैं क्योंकि आज भी अफज़ल प्रेमी गैंग Active है। आज भी देश में नफरत फैलाने वाले लोग.. विचारों का विष फैला रहे हैं. और देश की सत्ता पर काबिज़ होने का सपना देख रहे हैं.
2016 में मीडिया का एक हिस्सा कन्हैया कुमार को लाल सलाम कर रहा था. बड़े बड़े पत्रकारों और संपादकों में कन्हैया कुमार के साथ सेल्फी खिंचवाने और कन्हैया का इंटरव्यू लेने की होड़ मच गई थी. मीडिया के संपादकों और कन्हैया कुमार की इस दोस्ती ने JNU को एक शिक्षण संस्थान से.. देशद्रोह के रंगमंच और बगावत के थियेटर में तब्दील कर दिया था. JNU में कन्हैया की टीवी वाली लीला चल रही थी. और टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करने में देश के बड़े बड़े अख़बार भी पीछे नहीं थे. इसलिए उस दौर की संपादकीय नीतियों का DNA टेस्ट करना भी ज़रूरी है.
क्योंकि मीडिया का ये हिस्सा जेएनयू कांड के खलनायकों को नायक बना रहा था और ज़ी न्यूज़ के वीडियो को Doctored बता रहा था
दिल्ली के एक बड़े अंग्रेज़ी अख़बार ने ज़ी न्यूज़ की फुटेज के बारे में लिखा था -
Zee News is under fire for allegedly showing doctored clips, which reportedly formed the basis for Delhi Police to slap sedition charges on some students, including JNU Students’ Union (JNUSU) president Kanhaiya Kumar.
आज हम इस अखबार के संपादकों और पत्रकारों से ये पूछना चाहते हैं कि क्या अब वो ज़ी न्यूज़ को बदनाम करने के लिए माफी मांगेंगे?
इस अखबार के संपादकों से हम ये पूछना चाहते हैं कि किस लैब, किस अदालत और किस एजेंसी ने ये कहा है कि Zee news की फुटेज Doctored है ? हम इस अखबार को चुनौती देते हैं.. कि वो इस बात को साबित करे.
इसी तरह से अंग्रेज़ी के एक और बड़े न्यूज़ पोर्टल ने भी ज़ी न्यूज़ के वीडियो को Doctored बताया था. इस पोर्टल ने लिखा था कि तीन न्यूज़ चैनलों ने JNU के प्रदर्शन के Doctored वीडियो प्रसारित किए. इन तीन चैनलों में ज़ी न्यूज़ का नाम भी था. आज हम इस न्यूज़ पोर्टल से भी कहना चाहते हैं कि क्या अब वो माफी मांगेगा? क्योंकि दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में ज़ी न्यूज़ का वीडियो सही पाया गया है.
दिल्ली से निकलने वाले एक बड़े अंग्रेज़ी अखबार ने 22 फरवरी 2016 को ज़ी न्यूज़ के खिलाफ दुष्प्रचार किया था. पहले पन्ने पर छपी इस ख़बर का शीर्षक था...Zee Producer quits: Video we shot had no pak slogan...स्पष्ट तौर पर दिख रहा था कि जिस तरह से इस ख़बर को पेश किया गया..उसका मकसद ज़ी न्यूज़ की वीडियो फुटेज को झूठा बताना था.
जबकि अगले ही महीने 16 मार्च को इसी अखबार ने अपने दिल्ली संस्करण में पहले पन्ने पर JNU की रिपोर्ट को जगह दी, लेकिन ख़बर का शीर्षक भी इस अख़बार ने अपने गुप्त एजेंडे के तहत ही लगाया...और पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे का ज़िक्र शीर्षक में नहीं किया...जबकि ख़बर में लिखा था कि चश्मदीदों के आधार पर JNU मामले की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां लगने वाले नारों में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा भी शामिल था. अगर अख़बार चाहता तो इसे अपनी ख़बर का शीर्षक बनाता...लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इस तरह और सच को छुपा लेना, दबा देना या कमज़ोर कर देना...क्या यही पत्रकारिता है?
हमारे देश के कुछ संपादक और पत्रकार अक्सर अंग्रेज़ी के भारी भरकम शब्दों का सहारा लेकर झूठी और तथ्यहीन पत्रकारिता को आपके जीवन का हिस्सा बनाने की कोशिश करते हैं. ताकि ये अर्धसत्य ही आपको पूरा सच लगने लगे..लेकिन हमारा आपसे वादा है कि हम इस झूठ को आपके जीवन का हिस्सा नहीं बनने देंगे.
पिछले 35 महीनों से देश के बुद्धिजीवियों ने, क्रांतिकारी नेताओं ने और डिज़ाइनर पत्रकारों ने अपने कान बंद किए हुए थे. उन्हें JNU में लगाए गये देश विरोधी नारे सुनाई नहीं देते. उसकी एक बड़ी वजह ये थी, कि इन्हीं लोगों ने JNU के आरोपी छात्रों का खुलकर समर्थन किया था.
जब ये नारे लगे थे तब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी तो सीधे दिल्ली में JNU के कैम्पस में पहुंच गए थे. और वहां लम्बा-चौड़ा भाषण भी दिया था. तब राहुल गांधी ने क्या कहा था ये आप भी सुनिए
इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के एक और नेता शशि थरूर ने कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगत सिंह से कर दी थी. जब हमारे ही देश के नेता ऐसी देश-विरोधी सोच को बढ़ावा देंगे, तो उसका नकारात्मक असर पड़ना तय है. इसके एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं. पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी की घटना याद कीजिए. फरवरी 2016 में JNU कांड के कुछ दिनों के बाद ही वहां पर राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए थे. वैसे ही नारे लगे थे, जैसे 9 फरवरी 2016 की रात को JNU के अंदर लगाए गए थे. अब आप ये समझ सकते हैं कि यानी देश के विश्वविद्यालयों में अलगाववाद का ज़हर कहां से फैल रहा है। वो कौन सी सोच है, जो देश के विश्वविद्यालयों पर हमला कर रही है.
यहां आपको इसकी मूल वजह भी समझनी होगी। और वो वजह है, जानबूझकर किसी चीज़ को अनदेखा कर देना. जैसा कांग्रेस पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने किया था. जब उनकी रैली में 'पाकिस्तान ज़िन्दाबाद' के नारे लगे थे. और वो खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे. इसमें चिंताजनक बात ये है, कि 'पाकिस्तान जिंदाबाद' की नारेबाज़ी का जो सिलसिला 2016 में शुरू हुआ था, वो अब तक रुका नहीं है। लगातार जारी है. आप ये भी कह सकते हैं, कि इस तरह की नारेबाज़ी अब आम बात हो चुकी है. कांग्रेस पार्टी की चुनावी रैली में ऐसे नारे लगते लगते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कहता. बल्कि उल्टे एक बार फिर वही गैंग ज़ी न्यूज़ की फुटेज को झूठा साबित करने में जुट जाता है. झूठ का एजेंडा चलाने वालों को शर्म नहीं आती. सच तो ये है, कि ये दुष्प्रचार का ज़माना है.
वही कांग्रेस पार्टी, वही डिज़ाइनर पत्रकार और वही बुद्धिजीवी, JNU के मुद्दे पर लगभग तीन साल से Zee News के Video को Doctored कह रहे हैं. और जब हमने नवजोत सिंह सिद्धू की चुनावी रैली में 'पाकिस्तान ज़िन्दाबाद' का सच देश को दिखाया, तब भी उन्होंने झूठ का ही सहारा लिया. और हमारे ही Video पर सवाल खड़े कर दिए. आज आपको कांग्रेस पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू का वो बयान एक बार फिर सुनना चाहिए.
वैसे जेएनयू के देशद्रोही छात्रों के समर्थन में लेफ्ट के नेता सीताराम येचुरी और डी राजा, कांग्रेस के नेता अजय माकन और आनंद शर्मा जैसे नेता भी जेएनयू के कैंपस में गए थे और वहां इन छात्रों से मिले थे. इन नेताओं ने उस वक्त जेएनयू में हुई नारेबाज़ी को राजनीतिक साज़िश बताया था.