ZEE जानकारी : कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार ने बढ़ाए पेट्रोल-डीजल के दाम
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ZEE जानकारी : कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार ने बढ़ाए पेट्रोल-डीजल के दाम

पेट्रोल और डीज़ल को केंद्र की मोदी सरकार और देश की हर राज्य सरकार ने कमाई का ज़रिया बनाया हुआ है.

ZEE जानकारी : कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार ने बढ़ाए पेट्रोल-डीजल के दाम

अंग्रेज़ी का एक शब्द है Hypocrisy, हिंदी में इसका अर्थ होता है ढोंग, पाखंड या कपट. ये शब्द कर्नाटक में चल रही कांग्रेस की गठबंधन सरकार के साथ जुड़ गया है. कर्नाटक में पिछले 43 दिनों से कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार है और गुरुवार को इस सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया है. वैसे तो इस बजट में बहुत से ऐलान किए गए हैं, लेकिन एक घोषणा ऐसी है, जिसकी वजह से हमने इसे कांग्रेस की Hypocrisy कहा है. और वो घोषणा है पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ाने की. 

कर्नाटक सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स बढ़ा दिया है. कर्नाटक में पेट्रोल पर अभी 30 फीसदी टैक्स था, जो बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया गया है. और इस तरह से अब कर्नाटक में पेट्रोल के दाम 1.14 रुपये प्रति लीटर बढ़कर 78.11 रुपये हो गए हैं. 

इसके अलावा कर्नाटक सरकार अब तक डीज़ल पर 19 फीसदी का टैक्स लगाती थी, जो अब 21 फीसदी कर दिया गया है. इस तरह कर्नाटक में डीज़ल के दाम 1.12 रुपये बढ़कर 69.63 रुपये प्रति लीटर हो गए हैं. पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने की कोई सामान्य ख़बर नहीं है. क्योंकि जब मई के महीने में पेट्रोल के दाम बढ़े थे, तो कांग्रेस ने इसका बहुत विरोध किया था. 

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी तो लगातार सोशल मीडिया पर पेट्रोल के बढ़े हुए दामों के खिलाफ अभियान चला रहे थे. पेट्रोल के दामों को राहुल गांधी चुनावी मुद्दा भी बनाते रहे हैं. चुनावी सभाओं में पेट्रोल और डीज़ल के दामों पर डायलॉग मारकर उन्होंने खूब तालियां बटोरीं. अपने चुनावी भाषणों में राहुल गांधी पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी के अंदर लाने की वकालत भी कर चुके हैं. लेकिन कर्नाटक में जेडीएस के साथ सरकार बनाने के बाद, वे अपनी पुरानी बातें भूल गए हैं और एकदम शांत हो गये हैं. 

पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने से लोगों को परेशानी होती है, क्योंकि महंगाई बढ़ जाती है और लोगों के घरों का बजट बिगड़ जाता है. नेता अकसर लोगों के इस दर्द का चुनावी भाषणों में इस्तेमाल करके वोट तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है, तो पीछे हट जाते हैं. कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार ने भी ऐसा ही किया है. 

वैसे पेट्रोल और डीज़ल को केंद्र की मोदी सरकार और देश की हर राज्य सरकार ने कमाई का ज़रिया बनाया हुआ है. हमारे देश की सरकारें पेट्रोलियम सेक्टर को पैसे के फलदार पेड़ की तरह इस्तेमाल करती हैं. असली समस्या भारत की पेट्रोलियम पॉलिसी में है. ये ऐसी पॉलिसी है जिससे आम आदमी को कोई फायदा नहीं होता, जबकि सरकार का खज़ाना बढ़ता चला जाता है. इसमें राज्य और केंद्र, दोनों सरकारें शामिल हैं. 

1 लीटर पेट्रोल पर केन्द्र सरकार 52% और कर्नाटक सरकार 32% की कमाई कर रही है. केंद्र सरकार का तर्क ये होता है कि वह पेट्रोलियम कंपनियों का घाटा कम कर रही है. और पेट्रोलियम पदार्थों की कमाई से वो देश में बहुत सारी जन कल्याण की योजनाएं चलाती है. इसी तरह जब कोई राजनीतिक पार्टी विपक्ष में होती है तो वो जनता का दिल जीतने के लिए पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ाने का विरोध करती है. लेकिन जैसे ही वो सत्ता में आती है, विरोध की ये चिंगारियां ठंडी पड़ जाती हैं. ये बात बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर लागू होती है.

कर्नाटक की सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिए दाम बढ़ाए हैं. लेकिन अगर राहुल गांधी चाहते तो इस फैसले को रुकवा सकते थे. और 2019 के राजनीतिक गेम में अपना स्कोर सुधार सकते थे. लेकिन वो ये मौका चूक गए.

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