ZEE जानकारी: अगर मैक्स पर कार्रवाई हो सकती है तो फिर मेदांता पर क्यों नहीं?
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ZEE जानकारी: अगर मैक्स पर कार्रवाई हो सकती है तो फिर मेदांता पर क्यों नहीं?

दिल्ली के शालीमार बाग के Max Hospital पर ये आरोप था, कि उसने एक ज़िंदा बच्चे को मृत घोषित कर दिया.

ZEE जानकारी: अगर मैक्स पर कार्रवाई हो सकती है तो फिर मेदांता पर क्यों नहीं?

पिछले कई हफ़्तों से हम भारत के लालची प्राइवेट अस्पतालों के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहे हैं. और आज Zee News की  इस मुहिम की वजह से एक ऐतिहासिक फैसला हुआ है. आज दिल्ली के एक बड़े प्राइवेट Hospital का लाइसेंस रद्द हो गया है. दिल्ली के शालीमार बाग के Max Hospital पर ये आरोप था, कि उसने एक ज़िंदा बच्चे को मृत घोषित कर दिया. इसके अलावा कई नियमों का उल्लंघन करने की वजह से इस अस्पताल के खिलाफ पहले से ही जांच चल रही थी. और इन सारी लापरवाहियों ने इस अस्पताल पर ताला लगवा दिया.

सबसे पहले आपको विस्तार से ये बताते हैं कि Max Hospital के खिलाफ ये कार्रवाई किन बातों की वजह से हुई? और कैसे धीरे धीरे इस अस्पताल की लापरवाहियों ने सारी हदें पार कर दीं. दिल्ली के शालीमार बाग का ये मैक्स अस्पताल 2011 में शुरू किया गया था, उस वक्त ये अस्पताल सिर्फ 80 Beds का था. इसके बाद ये Super Speciality Hospital अपनी क्षमता बढ़ाता गया और पिछले 6 वर्षों में ये अस्पताल 80 Beds से 250 Beds का हो चुका है. 

यानी अस्पताल का Business लगातार बढ़ रहा है. और इसीलिए उसने अपने अस्पताल में 3 गुना ज्यादा Beds लगा दिए. इस अस्पताल के खिलाफ दिल्ली सरकार को लगातार शिकायतें मिल रही थीं. इन शिकायतों की जांच के लिए सरकार ने एक कमेटी बनाई. जिसके बाद कमेटी ने 20 नवंबर को अस्पताल का निरीक्षण किया. 

ऐसे प्राइवेट अस्पतालों को गरीब लोगों के इलाज के लिए अस्पताल में ही एक अलग से OPD की व्यवस्था करनी होती है. लेकिन दिल्ली सरकार की जांच टीम ने पाया कि Max अस्पताल ने एक अस्थाई OPD बनाई हुई थी. जिसमें कुछ टूटी हुई कुर्सियां लगी हुई थीं. सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक गरीब लोगों के लिए बनाई गई ये OPD बहुत ही खराब हालत में थी. यही नहीं OPD में मरीज़ों के साथ भेदभाव भी हो रहा था. डेंगू, चिकनगुनिया और बुखार के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसी वर्ष मई में सरकार ने अस्पतालों को 10 से 20% Beds बढ़ाने का सुझाव दिया था. 

लेकिन जब नवंबर में दिल्ली के शालीमार बाग के Max अस्पताल का निरीक्षण किया गया, तो पता चला कि ये अस्पताल उन बढ़े हुए Beds पर दूसरी बीमारियों के मरीज़ों का इलाज कर रहा है. दिल्ली सरकार की तरफ से जब अस्पताल से जवाब मांगा गया तो अस्पताल ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया. 

इसी बीच इसी अस्पताल में एक और बड़ी लापरवाही का मामला हुआ. मैक्स हॉस्पिटल में 30 नवंबर को एक महिला के जुड़वां बच्चे पैदा हुए थे. ये एक Premature Delivery थी. बच्चों का जन्म होते ही.. उनमें से एक की मौत हो गई, जबकि दूसरा बच्चा ज़िंदा था, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. 

लापरवाही की हद तो ये थी कि मैक्स हॉस्पिटल ने ज़िंदा बच्चे को एक पैकेट में पैक करके परिवार वालों को दे दिया. जब परिवार वाले अंतिम संस्कार के लिए जा रहे थे, तभी उन्होंने महसूस किया कि पैकेट के अंदर बच्चा हिल रहा है. ध्यान से देखने पर पता चला कि बच्चा ज़िंदा था. ऐसे में उसे तुरंत दूसरे अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 

लेकिन इस बच्चे को बचाया नहीं जा सका. और 6 दिसंबर को बच्चे की मौत हो गई. इसके बाद आज दिल्ली सरकार ने Max अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया. लाइसेंस रद्द होने के मतलब ये है कि ये अस्पताल अब किसी भी नये मरीज़ को भर्ती नहीं कर सकता. जिन मरीज़ों का Hospital में इलाज चल रहा है, वो अपना इलाज करवाते रहेंगे. लेकिन अगर ये मरीज़ भी अस्पताल छोड़कर जाना चाहें, तो अस्पताल उन्हें रोक नहीं सकता. इस बीच मैक्स अस्पताल की तरफ से सफाई भी दी गई है. अस्पताल का कहना है कि उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया. और किसी एक व्यक्ति की गलती के लिए पूरे अस्पताल को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

कुल मिलाकर ये कार्रवाई ऐतिहासिक है. इस कार्रवाई से देश में ये संदेश गया है कि अगर ठान लिया जाए.. तो लापरवाही करने वाले किसी भी अस्पताल पर ताला लगवाया जा सकता है. इसीलिए इस कार्रवाई की तारीफ होनी चाहिए और ऐसी लापरवाही करने वाले दूसरे अस्पतालों पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.

Max Hospital पर भले ही कार्रवाई हो गई हो, लेकिन हमारे देश में अभी भी बहुत से अस्पताल ऐसे हैं, जो हर रोज़ ऐसी लापरवाहियां करते हैं जिनकी वजह से मरीज़ों की मौत हो जाती है. लेकिन ऐसे अस्पतालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती. सवाल ये है कि जब ऐसी लापरवाही होने पर दिल्ली के Max अस्पताल पर कार्रवाई हो सकती है. तो फिर दूसरे अस्पतालों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती? हमने कल आपको बताया था कि कैसे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल ने डेंगू के शिकार एक बच्चे के इलाज के लिए.. 15 लाख 88 हज़ार रुपये का बिल बना दिया. इस बिल को चुकाने के लिए इस बच्चे के पिता को अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा. लेकिन इसके बाद भी इस बच्चे की जान नहीं बचाई जा सकी. 

सवाल ये है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई इतनी Selective क्यों होती है. अगर मैक्स पर कार्रवाई हो सकती है तो फिर मेदांता पर क्यों नहीं?  मेदांता जैसा ही मामला गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल का भी था. और फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ हरियाणा सरकार के आदेश के बाद FIR हो चुकी है. लेकिन मेदांता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. दिल्ली में लापरवाही पर Max Hospital का लाइसेंस रद्द कर दिया गया, लेकिन हरियाणा में लापरवाही होने पर सरकार ने एक अस्पताल के खिलाफ FIR करवाई और दूसरे अस्पताल पर कोई कार्रवाई की ही नहीं. 

हमें लगता है कि ऐसे मामलों में अस्पतालों के मालिकों के खिलाफ वैसी ही कार्रवाई होनी चाहिए, जैसे सरकार किसी बिल्डर के खिलाफ करती है. वैसे ये मामला ये भी दिखाता है कि किसी मुहिम में जब लोग एक साथ खड़े हो जाते हैं और मीडिया सकारात्मक भूमिका निभाता है, तो फिर किसी के भी खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. और आज भी ऐसा ही हुआ है. 

यहां आपके लिए ये जानना भी ज़रूरी है कि अगर कोई अस्पताल आपके साथ किसी भी तरह की धोखेबाजी करता है, या इलाज में लापरवाही करता है तो आप क्या कर सकते हैं? ऐसा होने पर आप Medical Council of India को शिकायत कर सकते हैं, ये शिकायत कहां करनी है.. और कैसे करनी है.. इसकी जानकारी आप अपनी टेलिविजन स्क्रीन से नोट कर सकते हैं.

इसके अलावा आप अस्पतालों और स्वास्थ्य मंत्री के Twitter Handles और Social Media Accounts को Tag करके अपनी आवाज़ उठा सकते हैं. डॉक्टर भगवान होता है...डॉक्टर का कहा..पत्थर पर खिंची लकीर की तरह होता है..जिसे कोई मिटा नहीं सकता..मरीज़ को डॉक्टर से कुछ छिपाना नहीं चाहिए...ये एक आम भारतीय धारणाएं हैं..जिन्हें ज्यादातर लोग मानते हैं. लेकिन ऐसे मामले एक आम इंसान की इन धारणाओं को चकनाचूर कर देते हैं. 

Private Hospitals का भी किसी बड़ी कंपनी की ही तरह पैसा कमाने का Target होता है. और इसीलिए अस्पतालों का Business Model अब मनमाना हो चुका है. इसी Max Hospital को देख लीजिए, सिर्फ 6 वर्षों में ही वो 80 से 250 Beds का हो गया. यानी अस्पताल को Profit हो रहा था. और इतना मुनाफा तब तक नहीं कमाया जा सकता है, जब तक लालच की वजह से मरीज़ों की जेब खोखली न हो जाए. इसीलिए भारत में बीमार होना बड़ा महंगा सौदा माना जाता है. क्योंकि इलाज़ का खर्च किसी को भी गरीब बना सकता है. 

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