Zee जानकारी : कांग्रेस के लिए बुरे दिनों की आहट है नेशनल हेराल्ड केस?
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Zee जानकारी : कांग्रेस के लिए बुरे दिनों की आहट है नेशनल हेराल्ड केस?

कांग्रेस ये जानती है कि नेशनल हेराल्ड केस उसके लिए बुरे दिनों की आहट है इसलिए इस मामले को राजनीतिक शहादत बनाने की प्लानिंग हो रही है। सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि शऩिवार को कांग्रेस पार्टी की रणनीति क्या रहेगी? हमारे सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अदालत में पेशी को कांग्रेस ने एक राजनीतिक उत्सव की तरह मनाने की तैयारी की थी। लेकिन अब कांग्रेस की रणनीति में बड़ा बदलाव आया है और अब सोनिया गांधी ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से शांति बनाए रखने की अपील की है।

Zee जानकारी : कांग्रेस के लिए बुरे दिनों की आहट है नेशनल हेराल्ड केस?

नई दिल्ली : कांग्रेस ये जानती है कि नेशनल हेराल्ड केस उसके लिए बुरे दिनों की आहट है इसलिए इस मामले को राजनीतिक शहादत बनाने की प्लानिंग हो रही है। सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि शऩिवार को कांग्रेस पार्टी की रणनीति क्या रहेगी? हमारे सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अदालत में पेशी को कांग्रेस ने एक राजनीतिक उत्सव की तरह मनाने की तैयारी की थी। लेकिन अब कांग्रेस की रणनीति में बड़ा बदलाव आया है और अब सोनिया गांधी ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से शांति बनाए रखने की अपील की है।

दरअसल अगर राहुल और सोनिया की पेशी के बाद कांग्रेस का प्रदर्शन होता तो इसे सीधे न्यायपालिका से टकराव के तौर पर देखा जाता और ऐसे में कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ जातीं। हालांकि कांग्रेस ने अपने सांसदों को दिल्ली में ही रहने को कहा है।

सूत्रों के मुताबिक इस केस के आरोपी यानी विशेष तौर पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ज़मानत नहीं लेंगे और अपनी राजनीतिक शहादत दिखाने के लिए जेल जाने के लिए भी तैयार रहेंगे। साफ है कि कांग्रेस इस मामले को कानूनी लड़ाई के बजाय केवल राजनीतिक लड़ाई के रूप में लड़ना चाहती है और इसलिए वो लगातार अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है।

कुल मिलाकर ये सब गांधी परिवार के लिए शॉक थेरेपी यानी बिजली के झटकों के एक लंबे सिलसिले की तरह है। सोनिया गांधी के घर दस जनपथ से पटियाला हाउस कोर्ट की दूरी करीब 4 किलोमीटर है जिसे कार से 4-5 मिनट में तय किया जा सकता है। पैदल भी चलें तो आधे घंटे में पहुंच जाएंगे लेकिन ये ऐसी दूरी है जिसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी तय नहीं करना चाहते। यानी नेशनल हेराल्ड केस की पूर्व संध्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर बहुत भारी है।

8 मई, 2015 को राहुल गांधी महाराष्ट्र के भिवंडी में एक मानहानि के मुकदमे में अदालत में पेश हो चुके हैं। राहुल ने आरएसएस पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था। इससे पहले 18 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी अदालत में पेश होने वाली पहली भारतीय प्रधानमंत्री थीं। इंदिरा गांधी इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की अदालत में पेश हुई थीं और उनसे वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने 4 घंटे 20 मिनट तक पूछताछ की थी। इंदिरा गांधी पर जनप्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का आरोप था।

यही नहीं संजय गांधी भी पॉलिमिक्स केस में 24 अगस्त 1977 को दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट में पेश हुए थे। हालांकि जज ने उन्हें ज़मानत दे दी थी। अगले ही दिन यानी 25 अगस्त को संजय गांधी और वीसी शुक्ला इमरजेंसी पर बनी फिल्म के केस में अदालत में पेश हुए थे। इस फिल्म का नाम था किस्सा कुर्सी का, संजय गांधी पर इस फिल्म के ओरिजिनल प्रिंट को नष्ट करने का आरोप था। इसी केस में संजय गांधी बाद में जेल भी गए थे।   

सोनिया-राहुल का कोर्ट में पेश होने का मतलब क्या है?

दोनों को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश होना है। आज DNA में हम आपको बताएंगे कि सोनिया और राहुल गांधी की अदालत में पेशी का मतलब क्या है? वैसे शनिवार को सोनिया गांधी और राहुल गांधी को शायद ये भी समझ में आ जाएगा कि देश के कानून से ऊपर कोई नहीं है। शायद इन दोनों ने खुद को कानून से ऊपर समझ लिया था। क्योंकि पहले तो वो लगातार कोर्ट में हाज़िर होने से ही कतराते रहे। पेशी से बचने के लिए इन दोनों ने तमाम कानूनी दांवपेंच अपनाए लेकिन सारी कानूनी चालें बेकार हो गईं।

हम आपको एक बार फिर याद दिला दें कि ये ख़बर आपको सबसे पहले ज़ी न्यूज़ ने ही दिखाई थी। हमने तमाम दस्तावेज़ों और अपनी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के ज़रिए इस मामले को देश के सामने उजागर किया था और आज ये नेशनल हेराल्ड केस राजनीति की दुनिया में सबसे चर्चित मां-बेटे की जोड़ी के लिए कोर्ट में पेश होने की वजह बन गया है। ऐसे में आज हमने देशहित में नेशनल हेराल्ड केस का सबसे गहरा DNA टेस्ट करने का फैसला लिया है। आज भी हम इस केस में कुछ नये खुलासे करेंगे लेकिन इससे पहले कांग्रेस की मनोदशा को समझना ज़रूरी है।

वैसे गांधी परिवार में ऐसे मौके बहुत कम आए हैं जब कोई अदालत के सामने पेश हुआ हो। कांग्रेस ने इस देश में 54 वर्षों तक राज किया और आज़ादी के 68 वर्षों के इतिहास में सिर्फ 4 बार गांधी परिवार के किसी व्यक्ति को अदालत में पेश होना पड़ा है। इस तरह से ये कल 68 वर्षों में पांचवां मौका होगा। जब गांधी परिवार को अदालत की चौखट पर जाना होगा। हालांकि सोनिया गांधी के लिए अदालत में पेश होने का ये पहला अनुभव होगा।

एजेएल केस में नया खुलासा

हम आपको बताएंगे कि यंग इंडियन कंपनी द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड यानी एजेएल को हड़पने की साज़िश रचने में तत्कालीन यूपीए सरकार की क्या भूमिका थी? कांग्रेस के वकीलों की दलील है कि एजेएल कंपनीज़ एक्ट, 1956 के सेक्शन 25 के तहत रजिस्टर्ड एक चैरिटी कंपनी थी। इसका मतलब ये था कि इस कंपनी से गांधी परिवार को कोई निजी फायदा नहीं मिल सकता था।  

इसी तरह से एजेएल का अधिग्रहण करने वाली कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड भी एक चैरिटी कंपनी थी लेकिन ये अलग बात है कि इस कंपनी ने कभी भी चैरिटी से जुड़े हुए कोई काम नहीं किए। यही नहीं यंग इंडियन कंपनी ने अपनी बैलेंस शीट में कई बातें छिपाई हैं। यंग इंडियन ने एजेएल के 99 फीसदी शेयर्स को एसेट के तौर पर नहीं बल्कि खर्च के तौर पर दिखाया है।

यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करके इस अधिग्रहण को अंजाम देने में अपनी भूमिका निभाई। 1956 में पास हुए कंपनी लॉ के तहत 2014 तक सेक्शन 25 की कंपनी को कमर्शियल कंपनी में तब्दील करने की इजाजत नहीं थी। इसमें ये भी प्रावधान था कि अगर सेक्शन 25 वाली किसी भी कंपनी में कोई गड़बड़ी है तो उसकी संपत्तियों को उसी के उद्देश्यों जैसी दूसरी कंपनी में ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

लेकिन जैसे ही यंग इंडियन ने एजेएल के 99 फीसदी शेयर हासिल किए। जून 2011 में कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया जिसमें प्रस्ताव था कि सेक्शन 25 वाली कंपनियों को सामान्य कंपनी में तब्दील किया जाए। यानी गांधी परिवार को फायदा पहुंचाने के लिए यंग इंडियन लिमिटेड को कमर्शियल कंपनी बनाने के लिए काम किया गया।  और फिर जुलाई 2011 का प्रस्ताव नए कंपनी लॉ के रूप में अप्रैल 2014 में कानून बन गया।  

कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर राजनीतिक बदला लेने का आरोप लगाया है लेकिन यहां कुछ तथ्य देखने भी महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहला तथ्य ये है कि नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर सुब्रह्मण्यन स्वामी ने जनवरी 2013 में अदालत में याचिका दायर की थी, यानी बीजेपी के सत्ता में आने से 16 महीने पहले। तब सुब्रमण्यन स्वामी बीजेपी में नहीं थे, वो जनता पार्टी के अध्यक्ष थे और केंद्र में यूपीए की सरकार थी।

सुब्रह्मण्यन स्वामी ने अगस्त 2013 में भारतीय जनता पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर लिया था और वो उससे पहले ही नेशनल हेराल्ड मामले में धोखाधड़ी का केस अदालत में फाइल कर चुके थे। जबकि नरेन्द्र मोदी 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद 26 जून 2014 को निचली अदालत ने इस मामले के आरोपियों को समन किया था। ऐसे में राजनीतिक बदला लेने का तर्क गले नहीं उतरता।

इसी तरह कांग्रेस ने ये भी आरोप लगाया था कि मोदी सरकार ने ईडी के प्रमुख को हटा दिया था क्योंकि ऐसी ख़बरें सामने आई थीं कि ईडी नेशनल हेराल्ड केस की फाइल बंद कर सकता है। इसके बाद ईडी के नए प्रमुख ने नेशनल हेराल्ड केस की फाइलें राजनीतिक बदले के तहत खोलीं। हालांकि सच ये है कि ईडी के तत्कालीन हेड राजन कटोच अपने तीसरे एक्सटेंशन पर थे और वो प्रमोशन के बाद भारी उद्योग विभाग में सचिव बनकर गए। इसलिए इसे सीधे राजनीतिक बदले की भावना से नहीं जोड़ा जा सकता।  

नेशनल हेराल्ड केस में 7 दिसंबर को आए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की कुछ महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-जस्टिस सुनील गौड़ ने इस फैसले के पेज नंबर 22 पर लिखा है कि अख़बार छापने की व्यावसायिक गतिविधियों वाली एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी को ब्याज़ मुक्त कर्ज़ देने की ज़रूरत कहां से पैदा हुई? अदालत ने अपने फैसले में ये भी लिखा है कि अगर एजेएल के पास 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति थी, तो फिर 90 करोड़ रुपये के कर्ज़ को संपत्तियों को बेचकर क्यों नहीं चुकाया गया? साथ ही कांग्रेस पार्टी द्वारा इतनी बड़ी कर्ज़ की रकम को छोड़ देने पर धोखाधड़ी के आरोप भी लग सकते हैं। अदालत ने ये भी कहा है कि एजेएल को यंग इंडियन कंपनी द्वारा हड़पने की साज़िश भी रची गई। ये भी समझ के बाहर है कि एजेएल की नेट वर्थ निगेटिव में कैसे हो सकती है, जबकि इस कंपनी की संपत्तियां करोड़ों रुपये की हैं। पेज नंबर 26 पर क्रिमिनल इंटेंट शब्द का प्रयोग किया गया है। इस पर भी आपको गौर करना चाहिए।

ज़ी न्यूज़ ने नेशनल हेराल्ड केस को लेकर लगातार रिपोर्टिंग की है। यहां आपको नेशनल हेराल्ड केस का एक छोटा सा रिवीजन करवाना भी ज़रूरी है।

-वर्ष 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के पैसे से लखनऊ में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड कंपनी बनाई।
-ये कंपनी अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन, और ऊर्दू में कौमी आवाज़ नाम के अख़बार निकालती थी।
-आज़ादी के बाद एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को देश भर में काफी ज़मीनें मिलीं, सस्ते दर पर लोन मिला और उसकी संपत्ति लगातार बढ़ती गई।
-कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र बन जाने की वजह से बाद में नेशनल हेराल्ड का प्रसार बढ़ा नहीं और उस पर गंभीर आर्थिक संकट आ गया।
-हालत इतनी बुरी हो गई कि आखिर में वर्ष 2008 में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया। उस वक्त एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड पर करीब 90 करोड़ रुपये का कर्ज़ था।
-एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेडपर कर्ज़ तो था लेकिन देश भर में उसकी संपत्ति करीब 2000 करोड़ रुपये की थी जिस पर मालिकाना हक के लिए धोखाधड़ी की चालें चली गईं और यही नेशनल हेराल्ड केस का मुद्दा है। इसके लिए राहुल और सोनिया गांधी सहित कांग्रेस नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। ये सब कैसे हुआ ये जानना भी दिलचस्प है।
 
ये कहानी 23 नवंबर 2010 से शुरू हुई... जब गांधी परिवार के करीबियों ने यंग इंडियन नाम की एक कंपनी बनाई जिसमें सोनिया गांधी के 38% और राहुल गाँधी के 38% शेयर थे। यानी कुल 76 फीसदी हिस्सा सोनिया और राहुल गांधी का था। जबकि बचे हुए 24 फीसदी शेयर सैम पित्रोदा, गांधी परिवार के करीबी सुमन दुबे, कांग्रेस के महासचिव ऑस्कर फर्नांडिज़ और एआईसीसी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के हैं।

यानी यंग इंडियन कंपनी असलियत में कांग्रेस पार्टी प्राइवेट लिमिटिड थी। इस कंपनी की पेड अप कैपिटल सिर्फ 5 लाख रुपये थी। अस्तित्व में आने के अगले ही महीने में यंग इंडियन कंपनी एजेएल का अधिग्रहण करने का फैसला कर लिया। यंग इंडियन के बोर्ड ने एसोसिएटेड जर्नल्स के अधिग्रहण के लिए एक प्रस्ताव पारित किया और बोर्ड ने एसोसिएटेड जर्नल्स के चेयरमैन से बातचीत के लिए मोतीलाल वोरा को ज़िम्मेदारी दी।

यहां दिलचस्प तथ्य ये है कि उस वक्त एसोसिएटेड जर्नल्स के चेयरमैन ख़ुद मोतीलाल वोरा थे। यानी मोतीलाल वोरा को ये ज़िम्मेदारी दी गई कि वो अपने आप से ही बातचीत करें। आपको ये सुनकर भी हैरानी होगी कि कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स को 90 करोड़ रुपये का बिना ब्याज का कर्ज़ भी दे दिया। उस वक्त कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी मोतीलाल वोरा ही थे।

यंग इंडियन ने अपनी बैलेंस शीट में 50 लाख रुपये का लोन दिखाया जिसका भुगतान उसने एसोसिएटेड जर्नल्स का कर्ज़ उतारने के लिए कांग्रेस पार्टी से हुए समझौते के लिए किया था। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड ने यंग इंडियन कंपनी को कांग्रेस पार्टी से लिए गए कर्ज़ के बदले 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 9 करोड़ 2 लाख 16 हज़ार 898 शेयर अलॉट किए। ये बात यंग इंडियन कंपनी की 31 मार्च 2012 की बैलेंस शीट से साबित होती है।

यानी यंग इंडियन कंपनी ने कांग्रेस पार्टी के 90 करोड़ रुपये से नेशनल हेराल्ड ग्रुप की 2000 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की संपत्ति हासिल कर ली और उसे सिर्फ़ 50 लाख रुपये का ख़र्च दिखाना पड़ा। यानी एक कंपनी जिसकी पेड अप कैपिटल सिर्फ 5 लाख रुपये थी, उसे 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स का मालिकाना हक मिल गया वो भी सिर्फ़ 50 लाख रुपये ख़र्च करके।

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