ZEE जानकारीः हमारे देश में मौजूद कुछ लोगों को अब राष्ट्रवाद भी ज़हरीला लगने लगा है
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ZEE जानकारीः हमारे देश में मौजूद कुछ लोगों को अब राष्ट्रवाद भी ज़हरीला लगने लगा है

उड़ी हमले में भारत के 19 जवान शहीद हुए थे.. और इस शहादत का बदला लेने के लिए.. सर्जिकल स्ट्राइक की गई. आप खुद ही सोचिए कि भारतीय सैनिकों के इस पराक्रम पर आधारित फिल्म को 'अति-राष्ट्रवाद' या ज़हरीले राष्ट्रवाद की श्रेणी में डालना कितना सही है?

ZEE जानकारीः हमारे देश में मौजूद कुछ लोगों को अब राष्ट्रवाद भी ज़हरीला लगने लगा है

देश के दो बड़े न्यूज़ पोर्टल ने वर्ष 2016 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित एक फिल्म के ट्रेलर का रिव्यू किया है. और इस रिव्यू के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक को ही, 'So Called सर्जिकल स्ट्राइक बताया है'. और इस फिल्म को 'Toxic Hyper-Nationalism' की श्रेणी में डाल दिया है. इसका मतलब है ज़हरीला उग्र राष्ट्रवाद. एक दौर ऐसा भी था जब हमारे देश में बच्चों को भारतीय सेना के शौर्य और देशभक्ति से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती थी. और उन्हें बार बार ऐसी फिल्में देखने की सलाह दी जाती थी. लेकिन अब देशभक्ति से जुड़ी फिल्म को एक ख़ास एजेंडे के तहत ज़हरीला राष्ट्रवाद कहा गया है. 

उड़ी हमले में भारत के 19 जवान शहीद हुए थे.. और इस शहादत का बदला लेने के लिए.. सर्जिकल स्ट्राइक की गई. आप खुद ही सोचिए कि भारतीय सैनिकों के इस पराक्रम पर आधारित फिल्म को 'अति-राष्ट्रवाद' या ज़हरीले राष्ट्रवाद की श्रेणी में डालना कितना सही है ? एयर कंडीशंड कमरों में सोफे पर बैठकर लेख लिखने वाले ऐसे न्यूज़ पोर्टल्स के बुद्धिजीवी पत्रकार, राष्ट्रवाद को ज़हरीला साबित करने पर क्यों तुले हुए हैं ? क्या ये ज़हर, 'पाकिस्तान ज़िन्दाबाद' वाली सोच की वजह से फैला है? आगे बढ़ने से पहले आप एक छोटी सी वीडियो क्लिप देखिए. ये उड़ी हमले और उसके बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म का ट्रेलर है.

फर्ज़ और फर्ज़ी में सिर्फ एक मात्रा का फर्क़ है... इस फिल्म में भारतीय सेना के शौर्य को रेखांकित किया गया है. अब ये देखिए, कि भारतीय सेना के इसी शौर्य को हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग किन नज़रों से देखता है. फिल्म के ट्रेलर का रिव्यू करते वक्त एक न्यूज़ पोर्टल ने अपने लेख में सर्जिकल स्ट्राइक को ही So called यानी 'तथाकथित' की श्रेणी में डाल दिया. इस लेख में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया, उन पर गौर कीजिए...

A Little Over Two Years After The Indian Army's 'So Called' सर्जिकल स्ट्राइक On Militant Training Camps In Pakistan Occupied Kashmir, Bollywood Is Ready With The Movie Version. इस न्यूज़ पोर्टल पर ये लेख कल सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर Post किया गया था. लेकिन PoK में सर्जिकल स्ट्राइक को 'So Called' कहने वाली सोच अभी भी जीवित है. ये न्यूज़ पोर्टल अपने Readers से कहता है, Support Our Journalism By Subscribing.... लेकिन ये बहुत अफसोस की बात है, कि इस न्यूज़ पोर्टल ने 2 साल पहले भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक की सच्चाई को ना तो अभी तक स्वीकार किया है...और ना ही उस सच्चाई को सब्सक्राइब किया है.

अब एक और न्यूज़ पोर्टल की बात करते हैं. फिल्म के ट्रेलर का रिव्यू करते वक्त इस पोर्टल पर छपे लेख में लिखा गया....Uri Is Based On The 2016 सर्जिकल स्ट्राइकs Carried Out By The Indian Army In Retaliation To An Alleged Terror Attack In Kashmir...यानी अंग्रेज़ी के इस महान न्यूज़ पोर्टल के क्रांतिकारी पत्रकारों ने उड़ी में भारतीय सैनिकों पर हुए हमले को ही कथित की श्रेणी में डाल दिया. और ये कहा, कि भारतीय सेना ने बदला लेने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक इसलिए की, क्योंकि कश्मीर में कथित तौर पर आतंकवादी हमला हुआ था. 

हालांकि, बाद में जब इस न्यूज़ पोर्टल को अपनी ग़लती का अहसास हुआ, तो उसने इसके लिए माफी भी मांगी. और कहा, कि लेख के पुराने वर्जन में उड़ी में हुए आतंकवादी हमले को ग़लती से 'कथित' की श्रेणी में डाल दिया गया. लेकिन इस माफ़ी से जुड़ा एक विरोधाभास भी है. इस न्यूज़ पोर्टल ने सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म के ट्रेलर को ज़हरीला बताया...और इसे अति राष्ट्रवाद की श्रेणी में डाल दिया.

उदाहरण के तौर पर लेख का शीर्षक दिया गया....Brace Yourselves, More Toxic Hyper-Nationalism is Coming...यानी तैयार हो जाइए, इस फिल्म के ज़रिए बहुत जल्द.. ज़हरीला अति-राष्ट्रवाद... आपके पास आने वाला है. लेख में आगे लिखा गया, ट्रेलर Attempts To Perpetuate A Hyper-Nationalist Culture With Fiery Slogans....यानी फिल्म के ट्रेलर में ज्वलनशील नारों के साथ अति-राष्ट्रवादी विचारधारा को बनाए रखने की कोशिश की गई है. एक प्रकार से इस न्यूज़ पोर्टल ने भारतीय सैनिकों के शौर्य को भी अति-राष्ट्रवादी की श्रेणी में डाल दिया. लेकिन इससे पहले उसने ये नहीं सोचा, कि एक सैनिक की विचारधारा सिर्फ देश के हित और देश की सुरक्षा से जुड़ी होती है. 

इस पोर्टल ने सर्जिकल स्ट्राइक की शौर्यगाथा को भी बड़ी ही चालाकी से राजनीति से जोड़ दिया. और उसके लिए लिखा.....Film’s Timing Will Help The BJP, To Market The सर्जिकल स्ट्राइक In The 2019 Elections...यानी एक राजनीतिक पार्टी इस फिल्म की मदद से 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में फायदा उठाएगी. लेकिन प्रश्न ये है, कि सेना पर आधारित किसी फिल्म का राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जा सकता है. क्योंकि, सेना का शौर्य तो पूरे देश का है. उसपर किसी एक पार्टी का हक तो है नहीं.

इस फिल्म के ट्रेलर का रिव्यू करते वक्त इस न्यूज़ पोर्टल को अचानक असहनशीलता महसूस होने लगी. और इसने अपने लेख में लिखा....As Consumers, We Are Just Getting Carried Away By Such Messages Without Really Thinking About The Kinds Of Intolerance We’re Encouraging And Internalising. .... यानी ऐसी फिल्मों की मदद से भारत में अहसनशीलता के माहौल को बढ़ावा दिया जा रहा है. लेकिन सवाल ये है, कि सेना का शौर्य असहनशील कैसे हो सकता है ? सैनिक तो बहुत सहनशील होते हैं. हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग इन्हीं सैनिकों के खिलाफ टिप्पणी करता है. कांग्रेस पार्टी के एक नेता तो देश के सेना प्रमुख को गुंडा तक बता चुके हैं. मीडिया का एक बड़ा वर्ग पत्थरबाज़ों के मानव अधिकारों की बात करता है. लेकिन सैनिकों के मानव अधिकार की बात कोई नहीं करता. इसके बावजूद हमारे देश के सैनिक अब भी सहनशील हैं.

सच तो ये है, कि देश में राष्ट्रवाद से जुड़ी बहस इन दिनों चरम पर है. राष्ट्रवाद की स्वीकार्यता बढ़ी है. उसके प्रति लोगों की समझ बढ़ी है. राष्ट्रवाद के प्रति बनाई गई नकारात्मक धारणा टूट रही है. लेकिन, भारत में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग ऐसा है, जो हर विषय को पश्चिम के चश्मे से देखता है. और वहीं की कसौटियों पर राष्ट्रवाद का विश्लेषण करता है. राष्ट्रवाद को भी उन्होंने पश्चिम के दृष्टिकोण से देखने की कोशिश की है. जबकि भारत का राष्ट्रवाद, पश्चिम के राष्ट्रवाद से हमेशा अलग रहा है.

पश्चिम का राष्ट्रवाद एक राजनीतिक विचार है. क्योंकि, वहां राजनीति ने राष्ट्रों का निर्माण किया है. उसका दायरा बहुत बड़ा नहीं है. उसमें कट्टरवाद है. हिंसा है. जबकि, भारत का राष्ट्रवाद संस्कृति पर केंद्रित रहा है. पत्रकारिता में भी ‘राष्ट्र सबसे पहले’ की भावना को पहला स्थान देना चाहिए. लेकिन दिक्कत ये है, कि भारतीयता का विरोध करने वाले लोग, अब राष्ट्रवाद को बदनाम करने का षड्यंत्र रच रहे हैं. ये लोग ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं, जिससे राष्ट्रवाद भी किसी अपशब्द जैसा लगने लगे. लेकिन भारत के लोग, अपने देश से बहुत प्यार करते हैं... वो ऐसा होने नहीं देंगे.

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