भारत में एक संतान वाले परिवारों की संख्या सिर्फ 5 प्रतिशत है. लेकिन देश के Metro शहरों में ऐसे परिवार 13 प्रतिशत हैं. ज़ाहिर है इन लोगों ने परिवार बढ़ाने से पहले बहुत सारे Factors पर गौर किया होगा. जैसे आर्थिक स्थिति, संसाधन, सेहत और नई संतान पर खर्च करने की क्षमता. National Family Health सर्वे के मुताबिक भारत की सिर्फ 24 प्रतिशत महिलाएं दूसरी संतान चाहती हैं.
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आज़ादी की बात करने के बाद.. अब बाद हम देश की आबादी की बात करेंगे. हमें 72 वर्ष पहले अंग्रेज़ों से आज़ादी मिल गई थी. लेकिन आज हमारा देश बढ़ती आबादी से पैदा होने वाली समस्याओं का गुलाम बन गया है. ये समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आज अपने भाषण में जनसंख्या विस्फोट का जिक्र करना पड़ा. सबसे पहले आप ये सुनिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसे लेकर क्या कहा. इसके बाद हम आपको बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या के खतरों के बारे में बताएंगे.
हमारे यहां अक्सर बच्चों को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है. लेकिन बढ़ती आबादी को नहीं रोका गया तो ये अभिशाप बन जाएगी और भारत में ऐसा ही हो रहा है. आज भारत की ज्यादातर समस्याओं के लिए जनसंख्या विस्फोट ही जिम्मेदार है. जब देश के संसाधन कम होते हैं तब परिवारों का आकार छोटा रखना भी देशभक्ति की श्रेणी में आता है. इसे आप प्रगतिशील राष्ट्रवाद यानी Progressive Nationalism भी कह सकते हैं. ये नए भारत की सोच है.
भारत में एक संतान वाले परिवारों की संख्या सिर्फ 5 प्रतिशत है. लेकिन देश के Metro शहरों में ऐसे परिवार 13 प्रतिशत हैं. ज़ाहिर है इन लोगों ने परिवार बढ़ाने से पहले बहुत सारे Factors पर गौर किया होगा. जैसे आर्थिक स्थिति, संसाधन, सेहत और नई संतान पर खर्च करने की क्षमता. National Family Health सर्वे के मुताबिक भारत की सिर्फ 24 प्रतिशत महिलाएं दूसरी संतान चाहती हैं.
यानी भारत में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे बढ़ती आबादी के खतरे साफ नज़र आने लगे हैं. लेकिन हमारे देश में ऐसे लोगों को सम्मान नहीं दिया जाता. इन पर परिवार बड़ा करने के लिए दबाव डाला जाता है. इसका शिकार ख़ासकर महिलाएं होती हैं. इसलिए लाल क़िले से अपने भाषण में.. आज प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि परिवार नियोजन की फिक्र करने वाले लोगों को समाज में सम्मान मिलना चाहिए. उनकी तुलना देशभक्तों के साथ की जानी चाहिए.
हमारे देश में जनसंख्या के विषय को बोरिंग माना जाता है. ये ऐसा विषय है, जिसमें ना तो ग्लैमर है, ना चमक दमक है, न नोट हैं और ना ही वोट हैं और इस विषय में TRP भी नहीं है. और य़े जानते हुए भी आज हम आपको इस विषय के बारे में बताने की हिम्मत कर रहे हैं. क्योंकि अगर इस पर बात नहीं की जाएगी और बढ़ती जनसंख्या के खतरों को नहीं समझा जाएगा तो इसका नुकसान हम सभी को उठाना होगा.
पिछले महीने 11 जुलाई को पूरी दुनिया में विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया था. जिस तरह लोग सुबह अलार्म को बंद करके दोबारा सो जाते हैं, ठीक उसी तरह भारत भी हर बार विश्व जनसंख्या दिवस वाले अलार्म को बंद करके फिर से सो जाता है. हमें लगता है कि बढ़ती जनसंख्या के ख़तरे का अलार्म आपको हर रोज़ सुनना चाहिए. जनसंख्या जैसे विषय पर चर्चा करने के लिए हम और आप किसी एक दिन के मोहताज नहीं हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अभी दुनिया की जनसंख्या 760 करोड़ है, जो 2030 में बढ़कर 860 करोड़, 2050 में 980 करोड़ और वर्ष 2100 में 1 हज़ार 120 करोड़ हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की जनसंख्या में हर वर्ष 8 करोड़ 30 लाख नये लोग जुड़ जाते हैं.
चीन और भारत अभी दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं. चीन की जनसंख्या 141 करोड़ और भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से ज्यादा है. दुनिया की जनसंख्या में चीन की भागीदारी 19% की और भारत की करीब 18% की है. United Nations के मुताबिक अगले 6 वर्षों में भारत की जनसंख्या चीन से आगे निकल जाएगी और अगले 10 वर्षों में चीन की जनसंख्या कम होनी शुरू होगी, जबकि भारत की जनसंख्या वर्ष 2061 तक लगातार बढ़ेगी और तब तक भारत की जनसंख्या 168 करोड़ हो जाएगी, इसके बाद जनसंख्या घटना शुरू होगी.
1950 में भारत की जनसंख्या 37 करोड़ थी, और अगले 50 वर्षों यानी सन 2000 में जनसंख्या 100 करोड़ के पार हो गई और इसके बाद सिर्फ 19 वर्षों में भारत की जनसंख्या में 35 करोड़ से ज्यादा की वृद्धि हुई है.
क्या आपने कभी इस बात की कल्पना की है कि बहुत जल्द आपको, अपने शहर में गाड़ी चलाने के लिए सड़क नहीं मिलेगी. पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलेगा. हवा इतनी प्रदूषित होगी कि आप सांस नहीं ले पाएंगे और हर दूसरे कदम पर अवैध कब्ज़े होंगे. ये सब कुछ इसलिए होगा क्योंकि हमारे शहरों में आबादी का विस्फोट हो चुका है. आबादी के RDX में आग लग चुकी है. अभी दुनिया की 55% आबादी शहरी इलाकों में रहती है, जो 2050 तक 68% हो जाएगी.
दुनिया के शहरों पर वर्ष 2050 तक 250 करोड़ लोगों का बोझ बढ़ जाएगा, जिसमें से 90% एशिया और अफ्रीका के शहर होंगे. ज़ाहिर है इस बोझ में भारत का शेयर बहुत ज़्यादा है. अगले 31 वर्षों में भारत के शहरों में 41 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़ जाएंगे. और इसमें भी भारत की राजधानी दिल्ली सबसे आगे है. 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला सिटी बन जाएगी.
अभी जापान की राजधानी टोक्यो सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है, वहां की जनसंख्या 3 करोड़ 70 लाख है, जबकि एक अनुमान के मुताबिक इस वक़्त दिल्ली की जनसंख्या करीब 2 करोड़ 90 लाख है. लेकिन सिर्फ 9 वर्षों के बाद.. दिल्ली की आबादी टोक्यो को पीछे छोड़ देगी.
वर्ष 2028 में दिल्ली की जनसंख्या 3 करोड़ 72 लाख हो जाएगी जबकि टोक्यो की आबादी 3 करोड़ 68 लाख होगी. ये समस्या सिर्फ दिल्ली की नहीं है. बल्कि पूरे देश की है. वैसे तो पूरी दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है. लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ रहा है. भारत में लोग गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं और इसके लिए भी पिछले 70 वर्षों की सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं. क्योंकि देश में हर राजनीतिक पार्टी की सरकारों ने ग्रामीण इलाकों में कभी ऐसी सुविधाएं ही नहीं दीं, जो शहरों में हैं. ग्रामीण इलाकों में ना तो अच्छी शिक्षा की सुविधा है और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं. इसीलिए लोगों को गांव छोड़कर शहरों की तरफ जाना पड़ता है. इसकी वजह से शहरों में भीड़ बढ़ गई है और अब इसकी वजह से शहरों की क्षमताएं भी जवाब देने लगी हैं.
1950 तक दुनिया के शहरों में सिर्फ 75 करोड़ लोग रहते थे, लेकिन अब यानी 2019 में ये जनसंख्या बढ़कर 420 करोड़ हो चुकी है. 1990 में भारत के शहरों में 22 करोड़ लोग रहते थे, जो सिर्फ 29 वर्षों में बढ़कर 45 करोड़ हो चुके हैं और अगले 31 वर्षों यानी 2050 तक 81 करोड़ हो जाएंगे.
1947 में बंटवारे के बाद देश की आबादी करीब 33 करोड़ थी. यानी करीब करीब आज के अमेरिका के बराबर. लेकिन अगर भारत की आबादी आज भी अमेरिका के बराबर होती तो हमारा देश कैसा दिखता? आज हमने इस पर रिसर्च की तो हमें कुछ दिलचस्प आंकड़े हासिल हुए.
अगर ऐसा होता तो आज भारत की साक्षरता दर करीब-करीब 100 प्रतिशत होती. भारत का जनसंख्या घनत्व करीब 117 व्यक्ति-प्रति वर्ग किलोमीटर होता. अभी ये 416 है. हालांकि अमेरिका में जनसंख्या घनत्व 36 व्यक्ति-प्रति वर्ग किलोमीटर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका का आकार भारत से 4 गुना ज्यादा है.
भारत की आर्थिक विकास दर.. 10 प्रतिशत से भी ज्यादा होती. फिलहाल ये 6.8 प्रतिशत है. भारत की प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 26 हज़ार 406 रुपये की जगह करीब 5 लाख रुपये होती. भारत दुनिया की Top Five अर्थव्यवस्थाओं में से एक होता. फिलहाल भारत की अर्थव्यवस्था 2.77 ट्रिलियन डॉलर्स है. अगर भारत की आबादी 30 से 35 करोड़ के बीच होती तो हम अब तक 5 ट्रिलियन डॉलर्स की अर्थव्यवस्था बन गए होते.
भारत में इस वक्त करीब 10 लाख 41 हज़ार से ज्यादा डॉक्टर्स हैं. जबकि अमेरिका में भी लगभग इतने ही डॉक्टर्स हैं. अगर भारत की आबादी 33 करोड़ होती तो भारत में एक हज़ार की आबादी पर 3 डॉक्टर्स होते. फिलहाल भारत में प्रति हज़ार लोगों पर 1.3 डॉक्टर्स हैं.
National Health Profile 2018 के मुताबिक भारत में इस वक्त 23 हज़ार 582 सरकारी अस्पताल हैं. जिनमें Beds की संख्या 7 लाख 10 हज़ार 761 है. अमेरिका में भारत के मुकाबले सरकारी अस्पतालों की संख्या सिर्फ 2 हज़ार 904 है. लेकिन वहां.. इन अस्पतालों में 8 लाख से भी ज्यादा Beds उपलब्ध हैं.
अमेरिका में प्रति 16 छात्रों पर एक शिक्षक है, जबकि भारत में Teacher-student Ratio 24 :1 है. भारत में 1 लाख सरकारी स्कूल तो ऐसे हैं जहां सिर्फ 1 ही शिक्षक हैं. अमेरिका में हर व्यक्ति प्रति दिन 300 से साढ़े तीन सौ लीटर पानी का इस्तेमाल करता है जबकि भारत में लोग प्रति दिन 100 से 150 लीटर पानी भी इस्तेमाल नहीं कर पाते.
भारत में अक्सर सड़कों पर जाम की स्थिति बनी रहती है. भारत में प्रति हज़ार लोगों पर सिर्फ 22 Cars हैं, जबकि अमेरिका में एक हज़ार में से 980 लोग.. Cars के मालिक हैं. फिर भी कम आबादी की वजह से अमेरिका की सड़कें भारत की तरह जाम नहीं होती. जबकि भारत में सड़क पर ट्रैफिक का ना मिलना किसी चमत्कार जैसा महसूस होता है.
अमेरिका एक विकसित देश है, इसलिए वहां मिलने वाली सुविधाओं की तुलना भारत से नहीं की जा सकती, लेकिन यहां ये समझना भी ज़रूरी है कि अमेरिका में जनसंख्या नियंत्रण जैसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जाता. फिर भी वहां जनसंख्या वृद्धि की दर सिर्फ 0.7 प्रतिशत है. जबकि दुनिया में पहली बार Family Planing की शुरुआत करने वाले भारत में.. ये 1.2 प्रतिशत है.
अमेरिका में पिछले 80 वर्षों के मुकाबले जनसंख्या वृद्धि की दर आज सबसे कम है. वहां लोग इस बात का ख्याल रखते हैं कि वो नई संतान को ज़रूरी सुख सुविधाएं दे सकते हैं या नहीं? अमेरिका में अगर मंदी का दौर आता है तो जनसंख्या वृद्धि की दर और कम हो जाती है, जबकि भारत में ऐसा नहीं होता, आर्थिक हालात कैसे भी हो, सुख सुविधाओं की कमी चाहे जितनी भी हो, संसाधन भले ही खत्म हो जाए, लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा जनसंख्या के बारे में नहीं सोचता.
जनसंख्या विस्फोट में सबसे बड़ा हाथ उत्तर भारत के राज्यों का है. बिहार और उत्तर प्रदेश की आबादी भारत की कुल आबादी का 25 प्रतिशत है. उत्तर प्रदेश में प्रति हज़ार महिलाओं पर 2.74 बच्चे जन्म लेते हैं, जबकि बिहार में ये आंकड़ा 3.41 है. ये पूरे देश में सबसे ज्यादा है. इसके उलट.. दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्यों में जन्मदर सिर्फ 1.5 है. इन राज्यों का Replacement Rate भी बहुत कम है. यानी इन राज्यों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या मरने वाले लोगों की संख्या के मुकाबले कम है.
जनसंख्या नियंत्रण का सीधा संबंध शिक्षा के स्तर से भी है और जब तक लोगों को शिक्षित नहीं किया जाएगा. इस पर काबू पाना बहुत मुश्किल होगा. बचपन में आपने भी स्कूल में भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या पर निबंध ज़रूर लिखा होगा. लेकिन असल में ये समस्या स्कूली किताबों से आगे बढ़ ही नहीं पाई. हमारे बच्चे जनसंख्या पर निबंध लिखते रहे और नेता गोष्ठियां और सेमीनार में हिस्सा लेते रहे, लेकिन फिर भी जनसंख्या बढ़ती रही.
बड़ी बड़ी योजनाएं बनती रहीं, हम दो हमारे दो के नारे भी चले, परिवार नियोजन यानी Family Planning भी हुई, बड़े बड़े अभिनेता और अभिनेत्रियां सरकारी विज्ञापनों से पैसे कमाकर भी चले गए, लेकिन जनसंख्या का बढ़ना रुका नहीं. आप अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि भारत की हर समस्या के पीछे जो मूल समस्या है, वो है बढ़ती हुई आबादी. गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, कमज़ोर शिक्षा व्यवस्था, कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाएं, बढ़ते हुए अपराध, प्रदूषण, पीने के लिए साफ पानी की कमी और गंदगी....इन सारी समस्याओं की जड़ में एक मूल समस्या है, जिसका नाम है जनसंख्या. यहां तक कि आरक्षण की समस्या भी जनसंख्या की वजह से पैदा हुई है.
हमें ये लगता है कि आने वाले वक्त में ऐसा दौर आएगा, जब भारत, दुनिया में आबादी का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर बन जाएगा. भविष्य में कम आबादी वाले देश भारत से पूछेंगे कि कितने आदमी हैं, तो भारत का जवाब होगा कि जितने चाहे ले लो, हमारे पास लोगों की कोई कमी नहीं है? य़े सुनकर फिलहाल मन हल्का कर लीजिए, लेकिन जनसंख्या की समस्या को कभी हल्के में मत लीजिए.