Zee जानकारी : बिहार के पूर्णिया में हुई मालदा जैसी हिंसा, भीड़ ने पुलिस थाने पर किया हमला
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Zee जानकारी : बिहार के पूर्णिया में हुई मालदा जैसी हिंसा, भीड़ ने पुलिस थाने पर किया हमला

खबर चाहे समाज की अच्छाइयों को उजागर करे या फिर समाज की बुराइयों को ज़ी न्यूज़ समाज के दोनों पहलू दिखाने की नीति पर चलता है। इसलिए जब देश के तमाम न्यूज़ चैनल 3 जनवरी को मालदा में हुई हिंसा पर चुप्पी साधे हुए थे तब ज़ी न्यूज़ ने देश को मालदा के हालात के बारे में बताया। इसके बाद भी हम लगातार मालदा की खबर का अपडेट आपको देते रहे और ये अपील करते रहे कि मालदा जैसी हिंसा दोबारा ना हो लेकिन गुरुवार को बिहार के पूर्णिया में मालदा जैसी हिंसा हो गई। मालदा की ही तरह इस बार भी हिंसा की वजह बना हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी का वो बयान जिसमें उन्होंने कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।

Zee जानकारी : बिहार के पूर्णिया में हुई मालदा जैसी हिंसा, भीड़ ने पुलिस थाने पर किया हमला

नई दिल्ली : खबर चाहे समाज की अच्छाइयों को उजागर करे या फिर समाज की बुराइयों को ज़ी न्यूज़ समाज के दोनों पहलू दिखाने की नीति पर चलता है। इसलिए जब देश के तमाम न्यूज़ चैनल 3 जनवरी को मालदा में हुई हिंसा पर चुप्पी साधे हुए थे तब ज़ी न्यूज़ ने देश को मालदा के हालात के बारे में बताया। इसके बाद भी हम लगातार मालदा की खबर का अपडेट आपको देते रहे और ये अपील करते रहे कि मालदा जैसी हिंसा दोबारा ना हो लेकिन गुरुवार को बिहार के पूर्णिया में मालदा जैसी हिंसा हो गई। मालदा की ही तरह इस बार भी हिंसा की वजह बना हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी का वो बयान जिसमें उन्होंने कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।

पूर्णिया में गुरुवार को ऑल इंडिया इस्लामिक काउंसिल की अगुवाई में मुस्लिम समुदाय के करीब 30 हजार लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में शामिल लोग कथित तौर पर विवादित बयान देने वाले कमलेश तिवारी की फांसी की मांग कर रहे थे। भीड़ ने कमलेश तिवारी का पुतला फूंका और नारेबाजी भी की और धीरे-धीरे ये भीड़ हिंसक हो गई। हजारों लोगों की भीड़ ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया। थाने के अंदर तोड़फोड़ की। कंप्यूटर और फर्नीचर तोड़ डाला। पुलिस की गाड़ियों को भी नुकसान पहुंचाया और जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो भीड़ ने थाने पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। इसके बाद इलाके में सुरक्षाबल तैनात करना पड़ा। पुलिस ने हिंसा की इस घटना में 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

पूर्णिया में हुई हिंसा मालदा की हिंसा का पार्ट-2 है। इसलिए पूर्णिया की हिंसा के बाद भी वही सवाल उठ रहे हैं जो मालदा की हिंसा के बाद उठे थे।

सवाल ये है कि धार्मिक प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाने की इजाज़त कब तक दी जाती रहेगी? वो कौन से लोग हैं जो धर्म के नाम पर हजारों-लाखों की भीड़ इकट्ठा करके हिंसा फैलाते हैं? विरोध जताने के नाम पर हजारों-लाखों की भीड़ द्वारा सड़कों पर उत्पात मचाना, तोड़फोड़ करना, आगज़नी करना और फिर अचानक गायब हो जाना। क्या ये काम बिना किसी साज़िश और प्लानिंग के बगैर संभव है? आखिर 30 हज़ार लोगों की भीड़ को इकठ्ठा करने के लिए कौन से सूचना तंत्र का इस्तेमाल किया गया होगा? क्योंकि 30 हज़ार लोगों की भीड़ आसानी से इकठ्ठी नहीं होती

यहां सवाल सिस्टम पर भी उठता है कि जब मालदा में इतनी बड़ी हिंसा हो गई तो फिर पूर्णिया में रैली निकालने की इजाज़त क्या सोचकर दी गई थी? अब हम आपको पूर्णिया में हुई हिंसा का वीडियो विश्लेषण दिखाते है, जो ये सवाल उठाता है कि आखिर कब तक हमारे देश में...नफरत की आग में जलती भीड़, कानून को अपने हाथ में लेती रहेगी?

मालदा और पूर्णिया की हिंसा के बारे में जानकर मन में एक सवाल उठता है कि आखिर वो कौन सी वजह हैं जिनसे भीड़ हिंसक हो जाती है और वो कौन लोग हैं जो भीड़ का इस्तेमाल अपने अनैतिक हित साधने के लिए करते हैं? हिंसक भीड़ के मनोविज्ञान पर आधारित अलग-अलग रिसर्च में ये साबित हुआ है कि

-भीड़ का अपना कोई दिमाग नहीं होता। कुछ लोग मिलकर पूरी भीड़ की मानसिकता तय करते हैं।
-भीड़ को उकसाने के लिए सिर्फ एक अफवाह उड़ाना ही काफी होता है। यानी भीड़ बिना सोचे समझे किसी भी अफवाह को सच मान सकती है।
-हर भीड़ में कुछ असामाजिक तत्व होते हैं जो भीड़ को गैरकानूनी रूख अपनाने और हिंसा फैलाने के लिए उकसाते हैं।
-भीड़ में ज़्यादातर वो युवा होते हैं जो सिस्टम को चुनौती देने के लिए हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।
-जिन लोगों ने अपनी ज़िंदगी में कभी चींटी भी नहीं मारी होती वो लोग भीड़ में शामिल होकर हिंसक हो जाते हैं और भीड़ में शामिल होकर तोड़फोड़, आगजनी और हत्या तक करने में नहीं हिचकते।
-दरअसल भीड़ में हर इंसान वहीं करना चाहता है जो दूसरे लोग कर रहे होते हैं।
-भीड़ में शामिल लोगों को लगता है कि जो अपराध वो अकेले नहीं कर सकते। वो भीड़ में शामिल होकर कर सकते हैं क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता।

तो ऐसे में क्या ये मान लिया जाए कि हिंसक प्रदर्शन अपनी जायज़ या नाजायज़ मांगों को मनवाने का सबसे बेहतर तरीका है? इस सवाल का जवाब है नहीं। अमेरिका की मशहूर स्ट्रेटेजिक प्लानर मारिया जे. स्टैफन ने एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक है 'ह्वाई सिविल रेजिस्टेंस वर्क्स' इस किताब में दावा किया गया है कि-

-अहिंसक प्रदर्शनों द्वारा अपनी मांगें मनवाने की संभावना 53 फीसदी होती है।
-इससे उलट हिंसक प्रदर्शनों के ज़रिए अपनी मांगें मनवाने की संभावना सिर्फ 23 फीसदी रह जाती है।
-इस किताब में ये भी लिखा है कि हिंसक और अहिंसक प्रदर्शन में से किसके असफल होने की संभावना ज़्यादा होती है।
-जो प्रदर्शन शांतिपूर्वक किए जाते हैं उनके असफल होने की संभावना 20 फीसदी होती है।

लेकिन हिंसक प्रदर्शन के असफल होने की संभावना इससे कहीं ज़्यादा यानी 60 फीसदी होती है यानी बाते बनवाने के लिए शांतिपूर्वक तरीका ही सबसे अच्छा है। लेकिन भीड़ को तर्कों से कोई फर्क नहीं पड़ता और भीड़ का ये दूषित मनोविज्ञान सिर्फ राजनेता और धर्मगुरु ही नहीं पहचानते बल्कि अपराधी और असमाजिक तत्व भी जानते हैं और जब ज़रूरत पड़ती है भीड़ का इस्तेमाल अपने हित साधने के लिए कर लेते हैं। और फिर वो होता है जो मालदा और पूर्णिया में हुआ। ये पहलू अब तक अनछुआ था, आपको इसके बारे में किसी ने नहीं बताया होगा। लेकिन हमें लगा कि इस पहलू पर बात किए बिना इस मुद्दे का विश्लेषण पूरा नहीं हो सकता।

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