Zee जानकारी : 3 इडियट्स के असल नायक सोनम वांगचुक को मिला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
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Zee जानकारी : 3 इडियट्स के असल नायक सोनम वांगचुक को मिला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

लद्दाख में शिक्षा के स्तर को ज़मीन से आसमान तक पहुंचाने के लिए, 'सोनम वांगचुक' ने बड़ी भूमिका अदा की है. 

Zee जानकारी : 3 इडियट्स के असल नायक सोनम वांगचुक को मिला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

अमेरिका की Cultural Anthro-pologist, Margaret Mead का कहना था, कि आपको कभी भी इस बात पर शक नहीं करना चाहिए कि विचारों का एक छोटा समूह या लोगों का एक छोटा सा समूह इस दुनिया को बदल सकता है या नहीं? क्योंकि यही एक चीज़ है, जिसकी बदौलत आसानी से बदलाव लाया जा सकता है. आपको इस कथन के बारे में जानकारी देनी इसलिए ज़रूरी थी, क्योंकि हमारा अगला विश्लेषण, सामाजिक बदलाव की दिशा में एक व्यक्ति की सकारात्मक कोशिशों पर आधारित है.

हिंदी सिनेमा में असल ज़िंदगी के किरदारों पर बहुत सी फिल्में बनती हैं, लेकिन सबसे बड़ा विरोधाभास ये है कि लोगों को फिल्मी किरदार तो याद रह जाते हैं लेकिन वो असल ज़िंदगी के हीरो से ना तो मिल पाते हैं और ना ही उनके संघर्ष को समझ पाते हैं. 

आपको, हिंदी फिल्म 3 Idiots का वो क़िरदार याद होगा जो लद्दाख में एक अनोखा स्कूल चलाता है. लेकिन अगर हम आपसे पूछें, कि क्या आप 'सोनम वांगचुक' को जानते हैं, तो आपमें से ज़्यादातर लोग सोच में पड़ जाएंगे. 51 साल के 'सोनम वांगचुक' को एशिया के नोबेल प्राइज़ कहे जाने वाले Mag-Say-Say award से सम्मानित किया गया है. लद्दाख में शिक्षा के स्तर को ज़मीन से आसमान तक पहुंचाने के लिए, 'सोनम वांगचुक' ने बड़ी भूमिका अदा की है. 

सोनम वांगचुक के पिता एक नेता थे, वो चाहते तो राजनीति का रास्ता चुनकर, सुख और चैन की ज़िन्दगी व्यतीत कर सकते थे. जैसा कि हमारे देश में अक्सर होता है, लेकिन उन्होंने समाज की मदद करने की ठानी. जब उन्होंने, लद्दाख में शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया, तो उन्हें अहसास हुआ, कि बच्चों को सवालों के जवाब पता तो होते हैं, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा परेशानी भाषा की वजह से होती है.

इसके बाद उन्होंने स्थानीय भाषा में ही बच्चों की शिक्षा के लिए एक मुहिम की शुरूआत की. 1988 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद, 'सोनम वांगचुक' ने कुछ स्थानीय निवासियों और अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर एक संस्था शुरू की. यानी सर्वशिक्षा अभियान से 12 साल पहले ही 'सोनम वांगचुक' का अभियान शुरू हो चुका था. 

'सोनम वांगचुक' ने जम्मू-कश्मीर की सरकार के साथ मिलकर, लद्दाख के स्कूलों में पाठ्यक्रम को, वहां की स्थानीय भाषा में Convert करने का काम किया. वर्ष 1994 में उन्होंने कुछ छात्रों को इकट्ठा करके एक हज़ार युवाओं का संगठन बनाया. और फिर उनकी मदद से उन्होंने एक ऐसा स्कूल बनाया, जो छात्रों द्वारा ही चलाया जाता है और पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित होता है. 

किसी ज़माने में लद्दाख में जब 10वीं की परीक्षा के नतीजे आते थे, तो सिर्फ 5 फीसदी बच्चे ही Pass हो पाते थे. लेकिन, सरकार, ग्रामीण लोगों और Civil Society की मदद से 'सोनम वांगचुक' ने जो मुहिम चलाई थी, उसका असर ये हुआ, कि 10वीं की परीक्षा में Pass होने वाले छात्रों की संख्या 5 फीसदी से बढ़कर 75 फीसदी हो गई.

यानी अगर समाज में बदलाव लाना है, तो एक छोटी सी कोशिश भी क़ामयाब हो सकती है. आज 'सोनम वांगचुक' को बहुत कम लोग जानते हैं. लेकिन सोनम वांगचुक, फिल्मी नायकों से भी बड़े नायक हैं. 

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