ZEE जानकारीः 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा
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ZEE जानकारीः 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा

बढ़ती जनसंख्या की वजह से देश में वाहनों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है लेकिन सड़कों के निर्माण की रफ़्तार उतनी तेज़ नहीं है. भारत का रोड नेटवर्क दुनिया में दूसरे नंबर पर है..लेकिन ये भी भारत की आबादी के लिए कम पड़ रहा है..

ZEE जानकारीः 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा

अब हम देश के सबसे बड़े खतरे का विश्लेषण करेंगे. देश में इन दिनों इस बात पर बहस चल रही है कि लोकतंत्र खतरे में है या नहीं.  इससे पहले इस बात पर बहस चल रही थी कि अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है या नहीं ? हर रोज़ News Channels पर हिंदू- मुसलमान और भारत-पाकिस्तान के नाम पर ज़बरदस्त Debate होते हैं.  अब अगले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय रह गया है, इसलिए राजनीतिक आंकड़ेबाज़ी और नेताओं की तुलना भी शुरू हो गई है. लेकिन इस सारे शोर के बीच असली सवाल गायब है. आज पूरे देश को ये समझना होगा कि लोकतंत्र तब बचेगा जब देश बचेगा. इसलिए आप सबको देश के असली सवालों पर बात करनी होंगी.

क्या आपने कभी इस बात की कल्पना की है कि बहुत जल्द आपको, अपने शहर में गाड़ी चलाने के लिए सड़क नहीं मिलेगी. पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलेगा. गर्मी इतनी ज़्यादा होगी कि आप घर से बाहर निकलने से पहले हज़ार बार सोचेंगे. हवा इतनी प्रदूषित होगी कि आपको हर वक़्त मास्क पहनना पड़ेगा. और हाइवे और एक्सप्रेस-वे पर भी अवैध कब्ज़ा करके दुकाने खोल दी जाएंगी.ये सब कुछ इसलिए होगा क्योंकि हमारे शहरों में आबादी का विस्फोट हो चुका है.

संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा. अभी जापान की राजधानी टोक्यो सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है, वहां की जनसंख्या 3 करोड़ 70 लाख है, जबकि एक अनुमान के मुताबिक इस वक़्त दिल्ली की जनसंख्या करीब 2 करोड़ 90 लाख है. लेकिन सिर्फ 10 वर्षों के बाद दिल्ली की आबादी टोक्यो को पीछे छोड़ देगी. 2028 में दिल्ली की जनसंख्या 3 करोड़ 72 लाख हो जाएगी और टोक्यो की आबादी 3 करोड़ 68 लाख हो जाएगी. 

यानी टोक्यो की आबादी कम होगी, लेकिन दिल्ली की आबादी लगातार बढ़ती चली जाएगी. ये समस्या सिर्फ दिल्ली की नहीं है. बल्कि पूरे देश की है. वैसे तो पूरी दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है. लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ रहा है. भारत में लोग गांवों को छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं. और इसके लिए भी पिछले 70 वर्षों की सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं. क्योंकि हमारी सरकारों ने ग्रामीण इलाकों में कभी ऐसी सुविधाएं ही नहीं दीं, जो शहरों में हैं. ग्रामीण इलाकों में ना तो अच्छी शिक्षा की सुविधा है और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं. इसीलिए लोगों को गांव छोड़कर शहरों की तरफ जाना पड़ता है. इसकी वजह से शहरों में भीड़ बढ़ गई है. और अब भीड़ की वजह से शहरों की क्षमताएं भी जवाब देने लगी है. भारत में 302, चीन में 666. 1950 तक दुनिया के शहरों में सिर्फ 75 करोड़ लोग रहते थे, लेकिन अब यानी 2018 में ये जनसंख्या बढ़कर 420 करोड़ हो चुकी है. 

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक दुनिया की 68% जनसंख्या शहरों में रहने लगेगी. अभी दुनिया की 55% जनसंख्या शहरों में रहती है.  2050 तक दुनिया के शहरों में आज के मुकाबले 250 करोड़ लोग ज़्यादा रहने लगेंगे, और इनमें भी 90% की वृद्धि एशिया और अफ्रीका के देशों में होगी. इसका सीधा सा मतलब ये है कि भारत के शहरों का बुरा हाल होने वाला है.

भारत में जब आबादी का बम फटेगा तो सबसे पहले जिस शहर की मृत्यु होगी.. वो है दिल्ली. दिल्ली में Delhi Develpment Authority, शहर की Planning करती है. अभी दिल्ली में 2001 का Master Plan लागू है, जबकि 2021 का Master Plan लागू होना चाहिए था. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि 2021 का Master Plan भी, दिल्ली की आज की जनसंख्या का बोझ नहीं सह सकता. इस Master Plan के मुताबिक 2021 में दिल्ली की जनसंख्या 2 करोड़ 30 लाख होगी. लेकिन इससे तीन वर्ष पहले यानी 2018 में ही दिल्ली की जनसंख्या इससे कहीं ज्यादा है. दिल्ली में इस वक्त 2 करोड़ 90 लाख लोग रहते हैं. 

इस Master Plan के मुताबिक 2021 में दिल्ली में हर आदमी को रहने के लिए 40 Square Meter की जगह की ज़रूरत होगी. इस Master Plan के हिसाब से 2 करोड़ 30 लाख की जनसंख्या को 920 Square KiloMeter की जगह चाहिए. लेकिन दिल्ली की मौजूदा आबादी के हिसाब से अभी रहने के लिए 1160 वर्ग किलोमीटर की जगह चाहिए . यानी ये मास्टरप्लान इस कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता. दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1484 वर्ग किलोमीटर है और इसमें से भी 50 से 55% इलाका ही रिहाइशी है. इस हिसाब से दिल्ली में 816 वर्ग किलोमीटर का रिहाइशी इलाका है. और इस सीमा को दिल्ली पहले ही पार कर चुकी है.  अब आप ये सोचिए कि जब मौजूदा आबादी के साथ ही दिल्ली का ये हाल है तो 10 साल बाद 2028 में जब दिल्ली की आबादी 3 करोड़ 72 लाख होगी, तब क्या होगा? 2028 में दिल्ली में रहने के लिए 1488 वर्ग किलोमीटर जगह की ज़रूरत होगी. जो दिल्ली के कुल क्षेत्रफल से भी ज्यादा है. 

एक अनुमान के मुताबिक भारत की जनसंख्या करीब 133 करोड़ है. भारत आबादी के मामले हर वर्ष ऑस्ट्रेलिया जितना बड़ा देश पैदा करता है. भारत के हर राज्य की जनसंख्या, दुनिया के किसी न किसी देश की जनसंख्या के बराबर है या फिर उससे ज़्यादा है. यानी हम कह सकते हैं कि दुनिया के ज़्यादातर देश हिंदुस्तान के आंगन में खेलते हैं. (( अब एक तस्वीर देखिए ये एक भारतीय ट्रेन की तस्वीरें हैं... जिस पर बड़ी संख्या में लोग लटके हुए हैं.. जनसंख्या के बोझ के मामले में भारत की हालत बिलकुल इस ट्रेन जैसी है. ))

पहले IMF ने ये अनुमान लगाया था कि 2022 तक भारत की आबादी चीन से ज़्यादा हो जाएगी. लेकिन इसके बाद जून 2017 में UN की एक रिपोर्ट आई.. जिसके मुताबिक भारत 2024 तक दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत के पास इतनी बड़ी आबादी को अच्छा जीवन और रोज़गार देने की शक्ति है? भारत में 10 से 35 साल के युवाओं की आबादी करीब 56 करोड़ है. इस युवा शक्ति के ज़रिए भारत.... defense, मेडिकल और technology के क्षेत्र में दुनिया की ताकत बन सकता है . लेकिन सच्चाई ये है कि 2025 तक भारत को 8 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी.

इसके अलावा 2022 तक देश को करीब 10 करोड़ skilled युवाओं की ज़रूरत होगी. इतनी जल्दी ये ज़रूरत पूरी होना बहुत मुश्किल है. परेशानी की बात ये भी है कि देश में अनपढ़ युवाओं की संख्या करीब 27 करोड़ है .हमारे देश में युवाओं की भीड़ है.. लेकिन काबिलियत की कमी है.. Skill की कमी है. भारत में रोज़गार बढ़ने की रफ्तार काफी कम है. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है, देश की 60 प्रतिशत ज़मीन पर फसल पैदा की जाती हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में 20 करोड़ से ज़्यादा लोग रोज़ाना भूखे सोते हैं.

बढ़ती जनसंख्या की वजह से देश में वाहनों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है लेकिन सड़कों के निर्माण की रफ़्तार उतनी तेज़ नहीं है. भारत का रोड नेटवर्क दुनिया में दूसरे नंबर पर है..लेकिन ये भी भारत की आबादी के लिए कम पड़ रहा है..भारत में प्रति एक हज़ार लोगों पर सिर्फ 3 किलोमीटर सड़क उपलब्ध है..जबकि अमेरिका में 1 हज़ार लोगों पर करीब 21 किलोमीटर सड़क उपलब्ध है. देश में बढ़ती आबादी का बोझ देश की  सड़कों पर साफ देखा जा सकता है, देश सभी महानगरों में बढ़ती भीड़भाड़ और वाहनों की बड़ी संख्या की वजह से सड़कों पर जाम लगना एक आम बात है...वाहनों की बढ़ती संख्या की वजह से अक्सर बड़े बड़े शहरों की सड़कों पर ट्रैफिक अब चलता नहीं बल्कि रेंगता है. ये हालात देखते हुए भारत के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं..पहला या तो भारत अपनी जनसंख्या वृद्धि में कमी लाने के लिए मजबूत उपाय ढूंढे..या फिर भारत शिक्षा..बुनियादी ढांचे...रोज़गार और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश करे..

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