ZEE जानकारी: जानिए, जब मुसलमान आक्रमणकारी देश में आए तो क्या-क्या बदला
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ZEE जानकारी: जानिए, जब मुसलमान आक्रमणकारी देश में आए तो क्या-क्या बदला

क्या वाकई इन आक्रमणकारियों ने भारत की मूल संस्कृति को बचाने की कोशिश की या फिर यहां के मूल नागरिकों को अपना धर्म मानने पर मजबूर कर दिया.

ZEE जानकारी: जानिए, जब मुसलमान आक्रमणकारी देश में आए तो क्या-क्या बदला

दरबारी इतिहासकारों ने मुगलों के शासन को तो महान बताना शुरू कर दिया लेकिन मौर्य वंश की बात करना भूल गए इन लोगों को अकबर द ग्रेट तो याद रहा लेकिन अशोका द ग्रेट को भुला दिया गया. शाहजहां द्वारा बनवाईं गई कलाकृतियां तो याद रहीं लेकिन महाराणा प्रताप के शौर्य को भूला दिया गया. इन लोगों ने इस्लाम को महान धर्म की संज्ञा तो आसानी से दी लेकिन दुनिया के सबसे सहनशील धर्म बौद्ध धर्म को भारत से बाहर जाकर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी. ये दरबारी इतिहासकार और डिजाइनर पत्रकार अकबर के दीन ए- इलाही नाम के धर्म की शुरुआत की.

और उसे सबसे धर्म निरपेक्ष शासक बता दिया गया..लेकिन जब सम्राट अशोक ने अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए सबसे बड़े साम्राज्य को ठोकर मार दी. तो इतिहासकारों ने इस पर ज्यादा बात नहीं की. इसलिए आज हम इतिहास की असली Chronology के ज़रिए ये समझने की कोशिश करेंगे कि 800 वर्षों के दौरान जब मुसलमान आक्रमणकारी भारत आए तो इस दौरान क्या क्या हुआ.

क्या वाकई इन आक्रमणकारियों ने भारत की मूल संस्कृति को बचाने की कोशिश की या फिर यहां के मूल नागरिकों को अपना धर्म मानने पर मजबूर कर दिया. भारत के बहुत सारे दरबारी इतिहासकारों का तर्क है कि मुगलों ने भारत में राजधर्म का पालन किया और गंगा-जमुनी तहज़ीब को जन्म दिया..लेकिन आज हम आपको इसका सच भी बताएंगे..

सबसे पहले ये समझते हैं कि राजधर्म होता क्या है? सरल भाषा में राजा के धर्म को राज धर्म कहते हैं. राजनीती शास्त्र के अनुसार राजा का पहला कर्तव्य होता है अपनी प्रजा की सुरक्षा करना. एक राजा को बाहर से आने वाले आक्रमणकारियों से भी अपनी प्रजा की रक्षा करनी होती है और समाज में पनप रही बुराइयों से भी. लेकिन अगर मध्यकालीन भारत के इतिहास का गौर से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि वर्ष 1000 से वर्ष 1800 तक चले 800 वर्ष के मुस्लिम शासन के दौरान भारत की जनता सबसे ज्यादा असुरक्षित रही है. लेकिन हमें ये भी समझना होगा कि इन 800 वर्षों से पहले का भारत कैसा था?

भारत को 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता माना जाता है. आज से 5000 वर्ष पहले जब दुनिया भर के लोग शिकार करके भोजन का प्रबंध कर रहे थे तब भारत में कई सुनियोजित शहर बस चुके थे..इसी सभ्यता को आज सिंधु घाटी की सभ्यता के नाम से जाना जाता है. और इस सभ्यता के दो सबसे प्रसिद्ध शहरों के नाम हैं..हड़प्पा और मोहन-जोदाड़ो

आज से साढ़े 3 हजार वर्ष पहले जब दुनिया भर के लोग खेती के बुनियादी गुण सीख रहे थे. तब भारत में वेद, पुराण और दर्शन शास्त्रों की रचना हो रही थी. यानी भारत सच में उस समय विश्वगुरु था. आज से 2300 वर्ष पहले जब यूरोप में शहर गणराज्य यानी Republic का रूप ले रहे थे तब भारत में मौर्य साम्राज्य स्थापित हो चुका था जो आकार में मुगलों के ही नहीं बल्की आज के भारत से भी बहुत बड़ा था.

लेकिन भारत कभी भुगौलिक आकार का मोहताज नहीं रहा जैसे यूरोप के देश रहे हैं. भारत में संस्कृति के फैलाव और सभ्यता के विस्तार को ही राष्ट्र माना गया है. इसलिए भारत को आज भी दुनिया हिंदू सभ्यता के नाम से पुकारती है. भारत के इस सांस्कृतिक प्रभाव का ही असर है कि आज थाईलैंड, चीन और जापान समेत दुनिया कई देशों के लोग उस बौद्ध धर्म का पालन करते हैं.

जिसका केंद्र भारत रहा है. आज भी इंडोनेशिया में गंणेश जी पूजे जाते हैं और वहां की Currency को आज भी रुपियाह कहा जाता हैं..जो भारत के रुपये से प्रभावित है. लेकिन इस विस्तार के लिए किसी का खून नहीं बहाया गया . किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की गई . यही कारण है कि दुनिया में जब भी कोई प्रताड़ित हो कर पलायन करने पर मजबूर हुआ तो वो भारत आया.. क्योंकी भारत का राजधर्म हमेशा दूसरों की रक्षा करना सीखाता है .

मजे कि बात तो ये है कि आज के अंग्रेज़ी बोलने वाले बुद्धीजीवी, दरबारी इतिहासकार और डिजाइनर पत्रकार ये कहते हैं की भारत कभी एक राष्ट्र नही था. इसे मुगलों और अंग्रेजों ने एक किया था. हम इस बात को नहीं मानते. लेकिन आज हम इतिहास के पन्नो में दब चुकी मुस्लिम काल के 800 वर्षों तक फैली भारत में असुरक्षा का संक्षिप्त विश्लेषण करेंगे. वर्ष 1933 में Hitler (हिटलर).. जर्मनी का Chancellor बना था. वर्ष 1933 से वर्ष 1945 तक जर्मनी में लाखों यहूदियों का नरसंहार किया गया. वहीं रूस में वर्ष 1929 से लेकर वर्ष 1952 तक वहां के शासक Stalin (स्टालिन) नें अपने ही देश के लाखों लोगों को मरवा दिया था.

लेकिन इन घटनाओं की अवधी महज़ 15 से 20 वर्ष के बीच थी. लेकिन भारत में मुस्लिम राज में हिंदुओं के शोषण और उनकी हत्या का सिलसिला 800 वर्षों तक चलता रहा. भारत में पहला मुस्लिम राज अरब से आए आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम ने वर्ष 711 में सिंध में स्थापित किया था. और तब से लेकर वर्ष 1707 में औरंगजेब की मृत्यु तक भारत को कभी अरब, कभी तुर्की, तो कभी मुगल शासकों की बर्बरता झेलनी पड़ी . बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्ले-आम ग्यारहवीं शताब्दी में शुरु हुआ. वर्ष 1001 से वर्ष 1026 तक महमूद गज़नी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया.

गजनी के एक दरबारी द्वारा लिखी एक किताब का नाम है Tareekh-e-Yamini (तारीख-ए- यामिनी). इस किताब में लिखा गया है कि गजनी के आक्रमणों में हिंदुओं का इतना खून बहा कि नदियों के पानी का रंग भी लाल हो गया था. और जानवर भी इन नदियों का पानी नहीं पीते थे.

मोहम्मद बिन कासिम ने जिस परंपरा की शुरुआत की उसे महमूद गज़नी, Mohammad Ghori, (मोहमम्द ग़ोरी ), Qutbuddin Aibek (कुत्बूद्दीन ऐबक), Iltutmish (इल्तुतमिश), Ghyasuddin Balban (ग्यासुद्दीन बल्बन), Alauddin Khalji (अलाउद्दीन खल्जी), Muhammad Bin Tughlak (मुहम्मद बिन तुगलक), Bahlol Lodi (बहलोल लोदी), Babur (बाबर), Humayun (हुमायूं), Akbar (अकबर), Jehangir (जहांगीर), Shah Jahan (शाह जेहान) और फिर Aurangzeb (औरंगजेब) जैसे मुगल बादशाहों ने बड़ी शिद्दत से आगे बढ़ाया.

अलाउद्दीन खिल्जी के बारे में कहा जाता है कि वर्ष 1298 में उसने 30,000 उन हिंदुओं को मार डाला था जिन्होंने हाल ही में इस्लाम कुबूल किया था. खिल्जी को डर था कि ये इस्लाम कबूल करने वाले ये हिंदू उसके खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं. Timur के बारे में कहा जाता है कि उसने 10 हजार हिंदुओं का कत्ल एक घंटे में करवा दिया था. इन 800 वर्षों के इतिहास में ऐसे अनगिनत तथ्य मौजूद हैं. बख्तियार खिल्जी ने तो नालंदा विश्वविद्यालय में रखे करीब 90 लाख बेज़ुबान पुस्तकों को जला दिया था.

विड़ंबना ये है कि आज भी भारत में कुछ लोग ऐसे हैं जो इन क्रूर शासकों को अपना नायक मानते हैं. और टुकड़े टुकड़े गैंग के लिए तो ये शासक किसी मसीहा से कम नहीं हैं. इन सब शासकों की एक ही खासियत थी . इन्होंने मंदिरों को लूटा, हिंदुओं को मुसलमान बनाया, जो अपना धर्म बदलने को राजी नहीं थे उन्हें मार दिया गया और उनके बच्चों और औरतों को अपना गुलाम बनाया लिया गया.

भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों मे रखी किताबों को जला दिया गया, और फिर अपनी सेना को बनाए रखने के लिए हिंदुओं से धर्म के आधार पर Tax वसूलना शुरु कर दिया इस टैक्स को जिज़िया कहा जाता था. इन 800 वर्ष के शासन के बदले में भारत को विरासत में मिले छोटे बड़े कई मकबरे, कुछ महल, कुछ किले और कुछ मस्जिदें. लेकिन दरबारी इतिहासकार इन 800 वर्षों को भारत का स्वर्णिम काल बताते रहे. इन लोगों ने कभी देश की जनता को ये नहीं बताया कि कैसे आज से 2300 वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य की वंश की स्थापना की थी.

विदेशी आक्रमणकारियों को देश से बाहर खदेड़ दिया था मौर्य राजवंश दक्षिण में आंध्र से लेकर उत्तर में अफगानिस्तान तक फैला था. चंद्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक ने अपने राष्ट्र को और मजबूत किया लेकिन कलिंगा के युद्घ में भयानक हिंसा देखने के बाद फैसला किया कि वो दोबारा कभी किसी के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ेंगे और उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और बाकी का जीवन इसी के प्रचार में निकाल दिया.

लेकिन इतिहासकार सम्राट अशोक को वो सम्मान देना भूल गए जिसके वो हकदार थे. इसलिए आज हमने आपके सामने भारत के 5 हज़ार वर्षों के इतिहास का खाका खींचा है ताकि आप समझ पाएं कि हज़ारों वर्ष पहले भी भारत का अस्तित्व था..आज भी है और आने वाले समय में भी रहेगा.

फ्रांस के विद्वान रोम्‍या रोलां ने भारत के बारे में लिखा था- यदि पृथ्वी पर कोई ऐसा स्‍थान है जहां जीवित मानव जाति के सभी सपनों को बेहद शुरुआती समय से आश्रय मिलता है, और जहां मनुष्य ने अपने अस्तित्व का सपना देखा, वह भारत है.!".जो लोग आज देश के टुकड़े करने के सपने देख रहे हैं. उन्हें भारत के बारे में विदेशियों द्वारा कही गई ऐसी बातों के बारे में जानना चाहिए. क्योंकि दरबारी इतिहासकारों ने भारत के लिए ऐसे सुंदर शब्दों का प्रयोग कभी नहीं किया.

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