Zee जानकारी: जानें, क्या है जलवायु परिवर्तन?
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Zee जानकारी: जानें, क्या है जलवायु परिवर्तन?

हमारे देश में पर्यावरण के बारे में कोई नहीं सोचता और इसे लगातार नजरअंदाज़ करने की परंपरा पिछले कई दशकों से चल रही है। चिंताजनक बात ये है कि तमाम न्यूज़ चैनल्स और मीडिया के दूसरे हिस्सों में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी खबरें दिखाना फैशन में नहीं है। हालांकि ज़ी न्यूज़ ने इस फैशन का विरोध करते हुए जनकल्याण के विषयों पर रिपोर्टिंग की है और आपको लगातार पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी रिपोर्ट्स पूरी जानकारी के साथ दिखाई हैं। हमारी ये कोशिश लगातार जारी है।

Zee जानकारी: जानें, क्या है जलवायु परिवर्तन?

नई दिल्ली: हमारे देश में पर्यावरण के बारे में कोई नहीं सोचता और इसे लगातार नजरअंदाज़ करने की परंपरा पिछले कई दशकों से चल रही है। चिंताजनक बात ये है कि तमाम न्यूज़ चैनल्स और मीडिया के दूसरे हिस्सों में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी खबरें दिखाना फैशन में नहीं है। हालांकि ज़ी न्यूज़ ने इस फैशन का विरोध करते हुए जनकल्याण के विषयों पर रिपोर्टिंग की है और आपको लगातार पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी रिपोर्ट्स पूरी जानकारी के साथ दिखाई हैं। हमारी ये कोशिश लगातार जारी है।

इस समय पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं और चर्चाओं का केंद्र बिंदु है फ्रांस की राजधानी पेरिस:- जहां दुनिया के 195 देशों के राजनेता धरती को बचाने की शपथ लेने के इरादे से पहुंचे हैं। आपको बता दें कि पिछले 100 वर्षों में धरती का तापमान करीब 0.85 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। सरल शब्दों में 1870 की औद्योगिक क्रांति के बाद से अब तक धरती के तापमान में करीब 1 डिग्री की बढ़त दर्ज की जा चुकी है।

अब तक के 14 सबसे गर्म वर्षों में 13, 21वीं सदी के दौरान यानी सन 2000 के बाद सामने आए हैं। और मौजूदा वर्ष यानी 2015 तापमान रिकॉर्ड किए जाने की प्रणाली विकसित होने के बाद से अब तक का सबसे गर्म साल रहा है। धरती के इसी बढ़ते बुखार को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार माना जाता है। इनमें Carbon di oxide सबसे अहम है। ये गैसें प्राकृतिक ग्रीन हाउस इफेक्ट को मजबूत करती हैं।

यहां आपको बता दें कि ग्रीन हाऊस इफेक्ट वो प्रक्रिया है जिसके तहत धरती का पर्यावरण सूर्य से हासिल होने वाली ऊर्जा के एक हिस्से को ग्रहण कर लेता है और इससे तापमान में इज़ाफा होता है। ग्रीन हाउस गैसों के emission के लिए मुख्य तौर पर कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैसों के इस्तेमाल को जिम्मेदार माना जाता है। ये सभी वातावरण में Carbon di oxide की मात्रा बढ़ा देते हैं। Carbon di oxide को सोखने वाले जंगलों की कटाई से भी ये समस्या बढ़ी है।

धरती के पर्यावरण में Carbon di oxide की मात्रा इस वक्त इतनी है जितनी पिछले 8 लाख वर्षों के दौरान कभी नहीं रही। गर्म मौसम, प्राकृतिक आपदाओं और समुद्रों के बढ़ते जलस्तर को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जाता है, और दुनिया का कोई भी इलाका इससे अछूता नहीं है।

भारत vs विश्व पर कैपिटा कार्बन का उत्सर्जन

एक भारतीय साल में 1.6 टन carbon dioxide पैदा करता है।
एक अमेरिकी साल में 16.4 टन carbon dioxide पैदा करता है।
एक जापानी साल में 10.4 टन carbon dioxide पैदा करता है।
और यूरोप का एक नागरिक साल में 7.4 टन carbon dioxide पैदा करता है।
यानी भारत के लोग कार्बन Emission के मामले में सबसे ज़्यादा साफ सुथरे हैं।
फिर भी भारत 2030 तक कार्बन Emission में 41.5% तक की कटौती करेगा।
जबकि अमेरिका 2025 तक कार्बन Emission में 25 से 28 % की कटौती करेगा।

भारत को क्यों जरूरत है कोयला की

भारत की ऊर्जा संबंधी जरूरत का 60% हिस्सा कोयला से पूरा होता है। कोयला उत्पादन में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश, पहले नंबर पर चीन और दूसरे नंबर पर अमेरिका है। यहां आपको ये भी समझना होगा कि विकसित देश कोयला जलाकर ही विकसित हुए हैं। विकसित देशों ने 150 वर्षों तक कोयले का इस्तेमाल किया या कहें कि दोहन किया। वर्ष 1850 में ब्रिटेन दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन Emission वाला देश था। जबकि अमेरिका उस दौरान धरती के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों में दूसरे नंबर पर था और आज 165 वर्षों के बाद भी वो चीन के बाद सबसे ज्यादा कार्बन Emission करने वाला देश है यानी अमेरिका की कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का फर्क है।

फिलहाल स्थिति ये है कि भारत को कोयले का इस्तेमाल कम करने के लिए 2.5 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 166 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत है और
विकसित देश सिर्फ 100 बिलियन डॉलर्स यानी 6 लाख 65 हज़ार करोड़ रुपये के फंड पर खामोश हैं अब आप समझ गए होंगे कि पर्यावरण की राजनीति क्या है

कौन है नूरजहां, जिसकी चर्चा पीएम मोदी ने 'मन की बात' में की

ज़मीन से जुड़ी एक ऐसी ही ख़बर हमने कुछ दिन पहले दिखाई थी। हमने उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के एक छोटे से गांव की नूरजहां की कहानी आपके सामने रखी थी। नूरजहां देश का सौर उर्जा वाला सपना साकार कर रही हैं और अपनी कोशिशों से वो अपने गांव के कई घरों में रोशनी फैला रही हैं।

कानपुर देहात के बैरी दरियांव गांव की नूरजहां ने गांव में सोलर एनर्जी प्लांट लगाया हुआ है। नूरजहां गांव के लोगों को 100 रु. महीने किराए पर सोलर लालटेन देती हैं, जिससे गांव की ऊर्ज़ा की ज़रूरत पूरी हो सके। नूरजहां को 3 साल पहले एक समिति ने सोलर प्लांट लगाकर दिया था। आज ये समिति 10 गांवों में सोलर चार्जिंग सेंटर लगा चुकी है। और नूरजहां की वजह से उनके गांव के करीब 50 घर रोशन हो रहे हैं।

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