ZEE जानकारीः किसकी महंगाई बेहतर, UPA की या फिर NDA की?
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ZEE जानकारीः किसकी महंगाई बेहतर, UPA की या फिर NDA की?

हम जानते हैं कि पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती हुई कीमतों से आप सब परेशान हैं, चिंतित हैं.  इसलिए आज सबसे पहले हम आंकड़ों की मदद से देश के इस दर्द का एक तथ्यात्मक विश्लेषण करेंगे.

ZEE जानकारीः  किसकी महंगाई बेहतर, UPA की या फिर NDA की?

हम जानते हैं कि पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती हुई कीमतों से आप सब परेशान हैं, चिंतित हैं.  इसलिए आज सबसे पहले हम आंकड़ों की मदद से देश के इस दर्द का एक तथ्यात्मक विश्लेषण करेंगे.  और ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों का, महंगाई पर क्या असर पड़ा है? किसकी महंगाई बेहतर है, UPA वाली या फिर NDA वाली ? कांग्रेस कह रही है कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम उसके शासनकाल में कम थे, जबकि बीजेपी का कहना है कि पेट्रोल और डीज़ल के अलावा कांग्रेस बाकी वस्तुओं की बात नहीं कर रही है. 

बीजेपी का दावा है कि उसके शासन के दौरान कांग्रेस के मुकाबले कम महंगाई है. हम आंकड़ों की मदद से इन सारे दावों का चेकअप करेंगे.  लेकिन आज के विश्लेषण की शुरुआत हम एक महत्वपूर्ण सवाल से करना चाहते हैं.  क्या पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी हुई कीमतों का इलाज, भारत बंद से किया जा सकता है? आज कांग्रेस ने पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ भारत बंद का आह्वान किया था.  कांग्रेस का दावा है कि भारत बंद पूरी तरह से सफल रहा है.  लेकिन बीजेपी इसे असफल बता रही है. 

अब ये बंद सफल रहा या असफल ये बहस का विषय है.  लेकिन इस बंद के नाम पर देशभर में ज़बरदस्त गुंडागर्दी देखने को मिली. खास तौर पर बिहार, बुरी तरह प्रभावित हुआ .  यहां बंद का समर्थन करने वाली तमाम पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने कई जगह ट्रेनें रोकीं, गाड़ियों में तोड़फोड़ की और आगज़नी भी की.  जिससे आम लोगों को बहुत परेशानी हुई.  बंद, हड़ताल और सत्याग्रह, ये वो राजनीतिक हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई में किया जाता था.  महात्मा गांधी ने इन अहिंसक हथियारों का इस्तेमाल किया था, क्योंकि उस दौर में भारत पर अंग्रेज़ों का शासन था. 

लेकिन आज के नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए बंद और हड़ताल जैसे हथियारों का दुरुपयोग कर रहे हैं. आज के दौर में.. बंद और हड़तालें देश के खिलाफ होती हैं और इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान भी होता है.  ब्रिटिश राज में तो ये ठीक था, क्योंकि उस वक्त हमारे ऊपर किसी और का शासन था.  लेकिन आज हम आज़ाद हैं और देश में हमारी ही चुनी हुई सरकार है, ऐसे में बंद या हड़ताल करने से समस्याएं नहीं सुलझती, बल्कि देश का ही नुकसान होता है.  और कुछ लोगों की राजनीति चमकती है. 

आपने भारत बंद के आह्वान के बारे में तो बहुत सुना होगा, लेकिन क्या कभी आपने भ्रष्टाचार बंद और बलात्कार बंद.. जैसे आह्वान सुने हैं? हमें य़कीन है कि आपने ऐसे आह्वान नहीं सुने होंगे.. क्योंकि भारत बंद करने वाले लोग अपने निजी एजेंडे के तहत भारत को बंद करना चाहते हैं.. उनका ज़ोर सब कुछ बंद करने पर होता है.. मुद्दों पर नहीं. 

ऐसे लोग भारत को बंद करना चाहते हैं, लेकिन अपनी राजनीतिक दुकाने बंद नहीं करना चाहते. इस बंद का ऐलान कल ही कर दिया गया था. कांग्रेस का दावा था कि उनके इस बंद में 21 विपक्षी पार्टियां शामिल हैं. कांग्रेस आज बंद के नाम पर, विपक्षी एकता का शक्ति प्रदर्शन भी करना चाहती थी. 

लेकिन कांग्रेस के मंच पर 5 पार्टियां नहीं आईं.  समाजवादी पार्टी और BSP कांग्रेस के बंद में साथ नहीं आई. इसी तरह से कांग्रेस का दावा था कि उनके साथ CPI, CPM और TDP भी है, लेकिन ये तीनों पार्टियां भी कांग्रेस के मंच पर नहीं थीं.  CPI और CPM ने अलग से प्रदर्शन किया. हालांकि कांग्रेस का कहना है कि इन दलों ने कांग्रेस के बंद को समर्थन दिया.

राजनीति को अगर एक तरफ रख दिया जाए तो बात ये है कि जनता की परेशानी का मुद्दा उठाकर, जनता को ही परेशान किया गया.  ये हमारे देश की बहुत बड़ी विडंबना है कि हम किसी भी नेता के कद का अंदाज़ा इस बात से लगाते हैं, कि वो देश के कितने बड़े हिस्से को पूरी तरह से ठप करवा सकता है. 

कौन सा नेता हमारे देश की व्यवस्थाओं को रोकने की ताकत रखता है? इससे उसके कद का अंदाज़ा लगाया जाता है.  जबकि ये गलत परंपरा है... किसी नेता के कद का अंदाज़ा इस बाद से लगाया जाना चाहिए कि वो देश के निर्माण में क्या योगदान दे रहा है? वैसे तो बंद के दौरान बहुत सी जगहों पर तोड़फोड़ और आगज़नी की गई.  लेकिन कई जगहें ऐसी भी थीं जहां लोगों ने अपनी दुकानें बंद करने से इनकार कर दिया और वो भारत बंद में शामिल नहीं हुए. 

मई 2004 में देश में कांग्रेस की सरकार थी. तब दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल के दाम 33 रुपये 71 पैसे थे, इसके बाद मई 2009 में भी कांग्रेस सत्ता में थी, और तब पेट्रोल के दाम 40 रुपये 62 पैसे थे. यानी 2004 से लेकर 2009 तक पेट्रोल के दामों में साढ़े 20% की वृद्धि हुई. लेकिन जब मई 2014 में UPA की सरकार गई, तो दिल्ली में पेट्रोल के दाम 71 रुपये 41 पैसे तक पहुंच चुके थे. 

यानी 2009 से 2014 तक इन दामों में करीब 76% की वृद्धि हुई. अब दिल्ली में आज पेट्रोल की कीमत 80 रुपये 73 पैसे प्रति लीटर है.  यानी 2014 से लेकर अब तक NDA के शासन काल में पेट्रोल के दामों में 13% की बढ़ोतरी हुई है.  यानी 2009 से 2014 तक.. पेट्रोल के दाम में 76 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, जबकि 2014 से 2018 तक इन दामों में 13% वृद्धि हुई. इसी तरह से मई 2004 में एक लीटर डीज़ल के दाम 21 रुपये 74 पैसे थे.  पांच साल बाद मई 2009 तक इन दामों में 42% की बढ़ोतरी हो चुकी थी. 

और इसके 5 वर्षों बाद यानी मई 2014 में एक लीटर डीज़ल के दाम में करीब 84% की बढ़ोतरी हो चुकी थी. जो दाम मई 2004 में 21 रुपये 74 पैसे थे, वो मई 2009 में 30 रुपये 86 पैसे हुए और फिर मई 2014 में 56 रुपये 71 पैसे पहुंच गए.  और अब एक लीटर डीज़ल के दाम 72 रुपये 83 पैसे हैं, यानी पिछले 4 वर्षों में डीज़ल के दामों में 28% की वृद्धि हुई है. 

ये आंकड़े बताते हैं कि यूपीए की सरकार के दौरान 10 वर्षों में पेट्रोल में 112% और डीज़ल में 160% की वृद्धि हुई, जबकि मई 2014 के बाद NDA के शासन काल में पेट्रोल के दाम में 13% और डीज़ल के दाम में 28% की वृद्धि हुई. आज केन्द्र सरकार की तरफ से ये भी तर्क दिया गया कि पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े हुए दाम रोकना उनके बस में नहीं है. 

ये संवेदनहीनता है.  क्योंकि सरकार ये नहीं कह सकती कि दाम हमारे नियंत्रण में नहीं हैं.  अगर जनता किसी वजह से परेशान है तो जनता की उस समस्या का समाधान भी सरकार को ही करना होगा.  ये भी सच है कि जब बीजेपी सत्ता में थी तो वो इन्हीं मुद्दों को हथियार बनाकर यूपीए सरकार पर हमला करती थी.  प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से संसद में आकर जवाब देने की बात कहती थी.  इसलिए अब अगर कांग्रेस भी वही सब कर रही है.  तो बीजेपी को इसका बुरा नहीं मानना चाहिए. 

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