ZEE Jankari: बीजेपी को महाराष्ट्र-हरियाणा में क्यों नहीं मिला अभूतपूर्व बहुमत?
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ZEE Jankari: बीजेपी को महाराष्ट्र-हरियाणा में क्यों नहीं मिला अभूतपूर्व बहुमत?

दोनों ही राज्यों में विपक्ष ने अपनी स्थिति में सुधार किया है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और NCP ने एक बार फिर खुद को प्रासंगिक बना दिया है. वहीं हरियाणा में भी कांग्रेस मज़बूत स्थिति में आ गई है .

ZEE Jankari: बीजेपी को महाराष्ट्र-हरियाणा में क्यों नहीं मिला अभूतपूर्व बहुमत?

आज लोग ये भी सवाल पूछ रहे हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव में दो तिहाई सीटें जीतने के बावजूद बीजेपी को दोनों राज्यों में अभूतपूर्व बहुमत क्यों नहीं मिला? वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के हिसाब से देखें तो बीजेपी को इस बार महाराष्ट्र में 138 सीटें जीतनी चाहिए थीं लेकिन बीजेपी 104 सीटें जीतने में ही कामयाब रही है. लेकिन दोनों चुनाव में अंतर ये है कि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद के लिए वोट मांगा था. लेकिन इस बार मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के काम के आधार पर जनता ने वोट दिया है. इसी तरह 2019 लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी और वोट शेयर के हिसाब से बीजेपी को करीब 79 सीटें जीतनी चाहिए थी लेकिन बीजेपी बहुमत से भी 6 सीटें पीछे रह गई है.

अब आपको बताते हैं कि इन दो राज्यों के चुनाव में बीजेपी के लिए क्या सकारात्मक संदेश हैं. पहला संदेश ये है कि महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में दोबारा सरकार बना रही है. सत्ता विरोधी लहर को भी पार्टी ने कंट्रोल कर लिया. बीजेपी ने साबित किया कि वो कारगर चुनावी मशीन है. देवेंद्र फड़णवीस महाराष्ट्र के इतिहास दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जो 5 साल पद पर रहने के बाद दोबारा मुख्यमंत्री चुने गए हैं. इससे पहले वर्ष 1972 में ही ऐसा रिकॉर्ड बना था जब वसंत राव नाइक दोबारा मुख्यमंत्री बने थे.

वहीं बीजेपी के लिए नकारात्मक संदेशों की बात करें तो 5 महीने पहले देश में दो तिहाई बहुमत के बाद भी बीजेपी साधारण बहुमत से दूर है. लोगों ने बीजेपी से उम्मीदें बहुत ज्यादा बांध रखी थीं. किसी को भी टिकट देकर जिता देने की गलतफहमी दूर हो गई. जातिवाद और परिवारवाद की फिर से वापसी हो गई. राष्ट्रीय मुद्दे हमेशा क्षेत्रीय मुद्दों के मुकाबले चुनाव नहीं जिता सकते. 

शहूर अमेरिकी लेखक Walter Lippmann (वॉल्टर लिपमेन) कहते थे कि विपक्ष किसी लोकतंत्र की सिर्फ संवैधानिक ज़रूरत नहीं है बल्कि इसे इसलिए भी कायम रहना चाहिए क्योंकि इसके बगैर लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती. भारत में विपक्ष लगातार कमज़ोर हुआ है और इसके लिए विपक्षी पार्टियों के नेताओं की राजनीति ही जिम्मेदार है. लेकिन आज आए नतीजे बीजेपी की विरोधी पार्टियों के लिए किसी संजीवनी की तरह हैं. जिसने विपक्ष को एक बार फिर से जिंदा कर दिया है.

महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी को कुल मिलाकर फिलहाल 97 सीटें मिली हैं. जबकि पिछली बार ये संख्या 83 थी. हालांकि तब दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इसी तरह 2014 में हरियाणा में कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटें हासिल हुई थी, जबकि इस बार कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की है. यानी हरियाणा में कांग्रेस ने अपनी सीटें डबल कर ली हैं. हालांकि नतीजों का आधिकारिक ऐलान होना अभी बाकी है.

आप कह सकते हैं कि दोनों ही राज्यों में विपक्ष ने अपनी स्थिति में सुधार किया है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और NCP ने एक बार फिर खुद को प्रासंगिक बना दिया है. वहीं हरियाणा में भी कांग्रेस मज़बूत स्थिति में आ गई है . इसलिए आज हमने विपक्ष की सफलता और बीजेपी को हुए नुकसान का एक छोटा सा विश्लेषण तैयार किया है जिसे आपको पांच बिदुओं के तहत समझना चाहिए . इन्हें आप चुनाव के नतीजों से निकले 5 ज़रूरी संदेश भी कह सकते हैं.

पहला संदेश ये है कि इन चुनावों में राजनीति के पुराने खिलाड़ियों ने शानदार वापसी की है . हरियाणा में 72 साल के भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस में प्राण फूंकने का काम किया है . तो महाराष्ट्र में 79 साल के शरद पवार ने बता दिया है कि वो महाराष्ट्र चुनाव के असली Man Of The Match हैं . क्रिकेट में भी कई बार हारने वाली टीम के खिलाड़ी को Man Of The macth या फिर Man Of The Series दिया जाता है, क्योंकि उसका प्रदर्शन.. जीतने वाली टीम के खिलाड़ियों से भी बेहतर होता है . भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शरद पवार ने अपने राजनीतिक करियर के Slog Overs में शानदार प्रदर्शन किया है और अपनी जीत के Strike Rate को भी बेहतर किया है . Slog Overs क्रिकेट के खेल में वो आखिरी OVERS माने जाते हैं..जो गेंदबाज़ों के लिए बहुत मुश्किल होते हैं .

अब आपको भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शरद पवार की सफलता की अहम वजहों के बारे में जानना चाहिए. पहले बात हरियाणा की जहां Hooda Factor की वापसी हुई है . हरियाणा में कांग्रेस बंटी हुई थी . राहुल गांधी का समर्थन अशोक तंवर को था ..तो कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया था लेकिन हुड्डा ने हार नहीं मानी और अपने राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे . यहां तक कि एक मौका ऐसा भी आया था..जब हुड्डा कांग्रेस से अलग होने पर विचार कर रहे थे लेकिन माना जा रहा है कि सोनिया गांधी के समझाने के बाद..उन्होंने अपना फैसला बदल दिया . अब हुड्डा... हरियाणा की सभी विपक्षी पार्टियों से साथ आने की अपील कर रहे हैं ताकि बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जा सके. हमारे सहयोगी रवि त्रिपाठी ने..नतीजे आने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बात की उन्होंने क्या कहा ये आपको भी सुनना चाहिए

भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं वो एक लोकप्रिय जाट नेता हैं और चुनाव प्रचार के दौरान वो और उनके बेटे लगातार ऐसे बयान देत रहे..जो कांग्रेस की विचारधारा से मेल नहीं खाते . दोनों ने आज से 2 महीने पहले रोहतक की एक रैली में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का भी समर्थन किया था. हुड्डा एक जाट नेता हैं और ऐसा लग रहा है कि हरियाणा में उन्हें जाटों का अच्छा खासा समर्थन मिला है . हरियाणा के कुल वोटरों में जाट, मुस्लिम और दलित वोटरों की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है और विधानसभा की कुल 40 सीटों पर इनका प्रभाव है.

उत्तर प्रदेश और हरियाणा में एक मशहूर कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. यानी कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिनका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता है. हमें लगता है कि हरियाणा में बीजेपी ने, राष्ट्रवाद, अनुच्छेद 370, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दो की हांडी को बार बार चुनावी आग पर चढ़ाने की कोशिश की और बीजेपी की ये कोशिश ज्यादा सफल नहीं हो पाई. अब राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि बीजेपी को हरियाणा में अपनी स्पष्ट जीत को लेकर अहम यानी अहंकार था और विपक्ष की स्थिति को लेकर वहम यानी शक था लेकिन हरियाणा में बीजेपी का ना अहम काम आया और ना ही वहम.

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