Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं?
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Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं?

आज (शनिवार) 27 फरवरी है। पूरे देश के लिए ये सिर्फ एक तारीख है जो हर वर्ष आती है और गुज़र जाती है लेकिन इस तारीख का हमारे देश के अतीत से एक काला रिश्ता है। इसलिए इस तारीख का विश्लेषण करना ज़रूरी है। ये वो तारीख है जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ-साथ और मोटी होती चली गई। हमारे देश के मीडिया का एक तबका आज खुद को बहुत 'जागरूक', 'निष्पक्ष' और 'ज़िम्मेदार' मानता है लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस तारीख में छिपी तकलीफ और तड़प को, दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का समय शायद किसी भी चैनल या अखबार को पिछले 14 वर्षों में नहीं मिला।

Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं?

नई दिल्ली : आज (शनिवार) 27 फरवरी है। पूरे देश के लिए ये सिर्फ एक तारीख है जो हर वर्ष आती है और गुज़र जाती है लेकिन इस तारीख का हमारे देश के अतीत से एक काला रिश्ता है। इसलिए इस तारीख का विश्लेषण करना ज़रूरी है। ये वो तारीख है जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ-साथ और मोटी होती चली गई। हमारे देश के मीडिया का एक तबका आज खुद को बहुत 'जागरूक', 'निष्पक्ष' और 'ज़िम्मेदार' मानता है लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस तारीख में छिपी तकलीफ और तड़प को, दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का समय शायद किसी भी चैनल या अखबार को पिछले 14 वर्षों में नहीं मिला।

हम गोधरा की बात कर रहे हैं जहां 27 फरवरी 2002 को यानी आज से 14 साल पहले 'आधुनिक' भारत के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। इसी दिन हमारे 'स्वतंत्र' और 'धर्मनिरपेक्ष' देश में सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुषों, 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 नागरिक, साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S-6 में ज़िन्दा जलाए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी दो दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था। 

अक्सर गुजरात दंगों की बात गोधरा काण्ड पर आकर रुक जाती है और ये दलील दी जाती है, कि गुजरात दंगे गोधरा काण्ड की क्रिया की प्रतिक्रिया थे। लेकिन कभी भी इन दोनों घटनाओं को न्याय की एक ही कसौटी पर रखकर नहीं तौला जाता। हमें लगता है कि चाहे कोई भी दंगा हो और उसे किसी भी धर्म या जाति के व्यक्ति ने अंजाम दिया हो। दंगे को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। दंगे कभी किसी के सगे नहीं होते।

गुजरात दंगों में लगातार इन्साफ की बात की जाती है और इस मामले का राजनीतिक और बौद्धिक इस्तेमाल भी खूब किया जाता है। लेकिन सवाल उठता है कि गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती? इंसाफ किसी का धर्म देखकर या किसी की जाति देखकर नहीं किया जाता। इंसाफ का मतलब है, जिसने गुनाह किया उसे सज़ा मिले। बात चाहे गोधरा काण्ड की हो, गुजरात दंगे की हो, या फिर भारत या दुनिया की किसी भी ऐसी घटना की हो इंसाफ का पैमाना सबके लिए बराबर होना चाहिए। लेकिन गोधरा कांड का इंसाफ आज भी अधूरा है। 

यही वजह है कि ज़ी न्यूज़ के संवाददाता राहुल सिन्हा ने गोधरा का दर्द और 27 फरवरी 2002 की तकलीफ को समझने के लिए ग्राउंड जीरो से एक भावुक रिपोर्टिंग की है। इस रिपोर्ट के एक-एक फ्रेम में 59 लोगों की चीखें छिपी हुई हैं। जिनकी गूंज ना तो आज तक देश के किसी नेता के कान तक पहुंची और ना ही मानवता की दुहाई देने वाले मीडिया को ये चीखें सुनाई दीं।

ये गोधरा की वो डरावनी हकीकत है जिसने पीड़ितों को 14 साल से, कथित बुद्धिजीवियों का वैचारिक वनवास झेलने पर मजबूर कर दिया है। इसलिए गोधरा कांड की बरसी की पूर्व संध्या पर समाज के ठेकेदारों की भ्रष्ट हो चुकी सोच पर चोट करनी ज़रूरी है। ये रिपोर्ट दिखाने के पीछे हमारा मकसद ये है कि धर्म और जाति का चश्मा उतारकर इस मामले को देखा जाए और पीड़ितों को न्याय मिले। 

आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा कि गोधरा का इंसाफ 14 वर्षों के बाद भी अधूरा क्यों है? इसे साधारण भाषा में समझने के लिए 27 फरवरी 2002 की उस काली तारीख से जुड़ी बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर S-6 में हुए नरसंहार के बाद शुरुआत में 1500 लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई थी।

-मार्च 2002 में ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ़्तार किए गए लोगों पर प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट यानी पोटा लगाया गया।
-गुजरात की तत्कालीन सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।
-जिसके बाद पुलिस ने सभी आरोपियों के ख़िलाफ IPC की धारा 120-B यानी आपराधिक षडयंत्र का मामला दर्ज किया।
-सितम्बर 2004 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटार्यड जज यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था।
-इसी महीने यूपीए सरकार ने पोटा क़ानून ख़त्म कर दिया और आरोपियों के ख़िलाफ पोटा के तहत लगे आरोपों की समीक्षा करने का फैसला किया।
-जनवरी 2005 में यूसी बनर्जी कमेटी ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में बताया कि साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर S-6 में लगी आग एक दुर्घटना थी। रिपोर्ट में इस बात की आशंका को खारिज किया गया कि ट्रेन में आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
-मई 2005 में पोटा रिव्यू कमेटी ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप ना लगाए जाएं।
-लेकिन अक्टूबर 2006 में गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि यूसी बनर्जी कमेटी का गठन अवैध और असंवैधानिक है क्योंकि नानावटी कमेटी पहले से ही दंगे से जुड़े सभी मामलों की जांच कर रही है।
-वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों से जुड़े मामलों की जांच के लिए विशेष जांच कमेटी बनाई।
-इसी वर्ष नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि ये पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और S-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल छिड़ककर जलाया था।
-हालांकि इंसाफ की लड़ाई लंबी खिंचती चली गई।
-फरवरी 2011 में विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया जबकि 63 अन्य लोगों को रिहा कर दिया।
-उन सभी 31 आरोपियों को IPC की धारा 120 B यानी आपराधिक षड्यंत्र और धारा 302 यानी हत्या का दोषी पाया गया।
-विशेष अदालत ने गोधरा कांड में शामिल 11 दोषियों को फांसी और 20 को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई।
-इन सभी दोषियों ने ट्राएल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
-वैसे पिछले साल 13 वर्षों के बाद एक दोषी को पकड़ा गया था। हालांकि हैरानी की बात है गोधरा कांड के कुछ दोषी ऐसे भी हैं जो अभी तक क़ानून की गिरफ़्त से फरार हैं।

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