Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती?
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Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती?

आज 27 फरवरी है। पूरे देश के लिए ये सिर्फ एक तारीख है, जो हर वर्ष आती है और गुज़र जाती है लेकिन इस तारीख का हमारे देश के अतीत से एक काला रिश्ता है। इसलिए आज इस तारीख का विश्लेषण करना ज़रूरी है। ये वो तारीख है, जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ-साथ और मोटी होती चली गई। 

Zee जानकारी : गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती?

नई दिल्ली : आज 27 फरवरी है। पूरे देश के लिए ये सिर्फ एक तारीख है, जो हर वर्ष आती है और गुज़र जाती है लेकिन इस तारीख का हमारे देश के अतीत से एक काला रिश्ता है। इसलिए आज इस तारीख का विश्लेषण करना ज़रूरी है। ये वो तारीख है, जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ-साथ और मोटी होती चली गई। 

मैं गोधरा की बात कर रहा हूं जहां 27 फरवरी 2002 को यानी आज से 15 वर्ष पहले 'आधुनिक' भारत के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। इसी दिन हमारे 'स्वतंत्र' और 'धर्मनिरपेक्ष' देश में सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुषों, 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 नागरिक, साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S-6 में ज़िन्दा जलाए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी दो दिनों के बाद मर गया था।

अक्सर गुजरात दंगों की बात गोधरा काण्ड पर आकर रुक जाती है और ये दलील दी जाती है, कि गुजरात दंगे गोधरा काण्ड की क्रिया की प्रतिक्रिया थे लेकिन कभी भी इन दोनों घटनाओं को न्याय की एक ही कसौटी पर रखकर नहीं तौला जाता। हमें लगता है कि चाहे कोई भी दंगा हो और उसे किसी भी धर्म या जाति के व्यक्ति ने अंजाम दिया हो, दंगे को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। दंगे कभी किसी के सगे नहीं होते।

गुजरात दंगों में लगातार इन्साफ की बात की जाती है और इस मामले का राजनीतिक और बौद्धिक इस्तेमाल भी खूब किया जाता है लेकिन सवाल उठता है कि गोधरा कांड में 100 फीसदी इन्साफ की बात क्यों नहीं की जाती? आज गोधरा कांड को हुए 15 वर्ष बीत चुके हैं और आज भी गोधरा का इंसाफ अधूरा है। पिछले वर्ष हमने 27 फरवरी 2002 की तकलीफ समझने के लिए गोधरा से एक भावुक रिपोर्टिंग की थी। ये गोधरा की वो डरावनी हकीकत थी जिसने पीड़ितों को एक तरह का वैचारिक वनवास झेलने पर मजबूर कर दिया था। इसलिए गोधरा कांड की बरसी पर हम समाज के ठेकेदारों की भ्रष्ट सोच पर चोट करेंगे। ये रिपोर्ट दिखाने के पीछे हमारा मकसद ये है कि धर्म और जाति का चश्मा उतारकर इस मामले को देखा जाए और पीड़ितों को न्याय मिले। 

चंद्र शेखर आजाद कभी अपने कामकाज का ढिंढोरा नहीं पीटते थे

आज भारत के अमर शहीद चंद्र शेखर आज़ाद की पुण्यतिथि है, इस मौक़े पर हम उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहते हैं। क्योंकि अगर शहीदों ने कुर्बानी नहीं दी होती तो आज हम आज़ाद नहीं होते। आज हम चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान की कहानी आपको दिखाएंगे, लेकिन उससे पहले एक संवाद करना बहुत जरूरी है।

आजकल चुनावी माहौल है और आपने गौर किया होगा कि देश और जनता की भलाई की बातें राजनीति की दुनिया में ट्रेंड कर रही हैं और तमाम नेता अपने कामकाज का प्रचार करने के लिए पूरा ज़ोर लगा रहे हैं। ऐसे नेताओं का नाम अखबारों, पोस्टर्स, बैनर्स, रेडियो, टेलीविजन और सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। लेकिन क्या आपने गौर किया है कि देश की आजादी के सच्चे नायक कभी भी अपने कामकाज का प्रचार नहीं करते थे और उनके अंदर कैमरे के सामने अपनी छवि को चमकाने की भूख नहीं थी। उन्होंने अपने कामकाज के पोस्टर नहीं छपवाए थे और कभी कोई प्रेस रीलिज जारी नहीं की, चंद्र शेखऱ आजाद किसी भी काम को करने से पहले मीडिया को नहीं बताते थे या फिर आसान शब्दों में कहें तो देश की भलाई के लिए कोई भी काम करने से पहले वो उसका ढिंढोरा नहीं पीटते थे।

आपको जानकर हैरानी होगी कि चंद्रशेखर आजाद कभी फोटो नहीं खिचवाते थे। उन्हें इस बात का डर होता था कि कहीं उनकी फोटो पुलिस को न मिल जाए, और देश की आजादी के जिस मिशन में वो लगे हुए है वो अधूरा न रह जाए। अभी आप अपने टीवी स्क्रीन पर जो तस्वीर देख रहे हैं उस तस्वीर के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। दरअसल, चंद्रशेखर आजाद जब भी झांसी जाते थे तब वो अपने दोस्त मास्टर रुद्र नारायण के पास ही रुकते थे, और वहीं से वो देश की आजादी की रणनीति तैयार करते थे। एक दिन आजाद नहाने के बाद अपनी मूंछों पर हाथ फेरते हुए निकल रहे थे तब उनके मित्र रुद्र नारायण ने उनकी ये तस्वीर खींच ली। इस घटना के बाद चंद्रशेखर आजाद अपने दोस्त से काफी नाराज भी हुए। लेकिन चंद्र शेखर आजाद के दोस्त इस बात को जानते थे कि वो जो काम देश के लिए कर रहे हैं वो करते हुए उनकी जान कभी भी जा सकती है, वो देश के लिए कभी भी शहीद हो सकते हैं। रुद्र नारायण ने उनकी इस तस्वीर को अपने घर में ही छिपा दिया और जब 27 फरवरी 1931 को चंद्र शेखर आजाद शहीद हुए तब रुद्र नारायण ने उनकी इसी तस्वीर को सार्वजनिक किया।

27 फरवरी चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि है, और वो अपनी मातृभूमि से कितना प्यार करते थे, आज की पीढ़ी को शायद चंद्रशेखर आजाद के बारे में ज्यादा जानकारी न हो, इसलिए हमने चंद्रशेखर आजाद के जीवन और बलिदान पर एक रिपोर्ट तैयार की है जो हमारी तरफ से इस महान क्रांतिकारी को एक श्रद्धांजलि है। ऐसे लोग जो आजकल देशविरोधी नारे लगा रहे हैं और भारत के टुकड़े करने की आज़ादी मांग रहे हैं उन्हें चंद्रशेखर आजाद से सीख लेनी चाहिए।

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