एक जिम्मेदार देश होने के नाते भारत युद्ध का समर्थन नहीं करता। लेकिन खतरनाक पड़ोसियों से घिरे होने की वजह से भारत को अपनी रक्षा तैयारियां हमेशा मज़बूत रखनी पड़ती है। क्योंकि जिन देशों के साथ 36 का आंकड़ा हो, उनसे सावधान रहना जरूरी होता है। भारत इसी खतरे को देखते हुए अपनी सेनाओं को मजबूत कर रहा है। भारत और फ्रांस के बीच आज 36 रफाल विमानों को खरीदने की डील पर हस्ताक्षर हो गए। युद्ध आज हो या कई वर्षों के बाद, भारत अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखना चाहता, भारत और फ्रांस के बीच 4 वर्षों तक चली बातचीत के बाद ये डील पक्की की गई है। भारत के लिए इन आधुनिक विमानों की आपूर्ति 3 वर्षों के बाद शुरू होगी और साढ़े 5 वर्षों में भारत को पूरे 36 रफाल विमान मिल जाएंगे।
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नई दिल्ली : एक जिम्मेदार देश होने के नाते भारत युद्ध का समर्थन नहीं करता। लेकिन खतरनाक पड़ोसियों से घिरे होने की वजह से भारत को अपनी रक्षा तैयारियां हमेशा मज़बूत रखनी पड़ती है। क्योंकि जिन देशों के साथ 36 का आंकड़ा हो, उनसे सावधान रहना जरूरी होता है। भारत इसी खतरे को देखते हुए अपनी सेनाओं को मजबूत कर रहा है। भारत और फ्रांस के बीच आज 36 रफाल विमानों को खरीदने की डील पर हस्ताक्षर हो गए। युद्ध आज हो या कई वर्षों के बाद, भारत अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखना चाहता, भारत और फ्रांस के बीच 4 वर्षों तक चली बातचीत के बाद ये डील पक्की की गई है। भारत के लिए इन आधुनिक विमानों की आपूर्ति 3 वर्षों के बाद शुरू होगी और साढ़े 5 वर्षों में भारत को पूरे 36 रफाल विमान मिल जाएंगे।
हमारे बहुत से दर्शकों के मन में ये सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि आखिर रफाल लड़ाकू विमान की खरीद भारत के लिए इतनी जरूरी क्यों है? और रफाल लड़ाकू विमान कैसे भारत की वायुसेना को एशिया की सबसे ताकतवर वायुसेना बना सकता है? हमारे पास आपके इन सवालों और जिज्ञासाओं के जवाब हैं।
-भारतीय वायुसेना के पास इस समय लड़ाकू विमानों की कमी है।
-भारत के पास ज़्यादातर मिग-21 विमान हैं, जो 40 वर्ष पुराने हैं।
-जगुआर विमान भी 1970 के दशक के आखिर में खरीदे गए थे।
-सबसे नया लड़ाकू विमान सुखोई है, जो 1996 में खरीदा गया था।
-सुखोई भी अब एक जेनेरेशन पीछे का लड़ाकू विमान हो चुका है।
-भारत वर्ष 2002 से लड़ाकू विमान खरीदने की कोशिश कर रहा था।
-भारतीय वायुसेना को काफी लंबे समय से मल्टी रोल लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है।
-इसके लिए 6 कंपनियों में से वर्ष 2012 में रफ़ाल को चुना गया था।
-लेकिन रफ़ाल सौदे को लेकर पिछले चार वर्ष से तकनीकी पेंच फंसा था।
-तकनीकी पेंच का मतलब है डिलीवरी, सर्विस, भारत में उत्पादन से जुड़ी शर्तें, तकनीकी हस्तांतरण और साझा निर्माण जैसी सौदे से जुड़ी तमाम अहम बातें।
-पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस गए थे, तो ये तय हुआ था कि 'क्रिटिकल ऑपरेशनल नेशेसेटी' के तहत 36 रफाल विमान जल्द ही खरीदे जाएंगे।
-और 36 रफाल विमानों को फ्लाइंग कंडीशन में खरीदने पर मुहर लग गई है।
-ये एक मल्टी रोल लड़ाकू जेट है, जिसे सबसे आधुनिक माना जाता है।
-एक रफाल लड़ाकू विमान की अनुमानित कीमत करीब 700 करोड़ रुपये है।
-जबकि हथियारों से लैस एक रफाल जेट को खरीदने पर भारत को करीब 1600 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
-पहली बार रफाल विमान वर्ष 2006 में फ्रांस एयरफोर्स में शामिल हुआ।
-इस वक्त फ्रांस की एयरफोर्स के पास 99 और फ्रांस की नेवी के पास 40 रफाल हैं।
-माली, लीबिया और अफगानिस्तान में NATO फोर्स के ऑपरेशन में रफाल विमान तैनात किए जा चुके हैं।
-इसके अलावा फ्रांस, सीरिया और इराक में ISIS के खिलाफ बमबारी करने के लिए भी रफाल विमानों का इस्तेमाल कर रहा है।
-फ्रांस भारत को जो रफाल विमान देगा उन्हें भारत की जरूरतों के हिसाब से डिजाइन किया जाएगा।
-36 रफाल विमानों में 28 सिंगल सीटर विमान होंगे, जबकि 8 विमानों में दो पायलट्स के बैठने की व्यवस्था होगी, जिन्हे ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
ये विमान Meteor और SCALP मिसाइलों से लैस होंगे, ये मिसाइलें दुश्मन पर बहुत सटीकता से वार कर सकती हैं। SCALP हवा से ज़मीन पर मार करने वाली क्रूज़ मिसाइल है और इसकी रेंज 300 किमी तक होगी। Meteor हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो दुश्मन के किसी भी एयरक्राफ्ट को बिना नज़र में आए तबाह कर सकती है। ये मिसाइलें 2 मीटर की accuracy तक निशाना लगा सकती हैं।
रफाल विमानों में Low band radar System और Infra Red Search सिस्टम भी लगे होंगे, जिससे ये विमान छिपे हुए दुश्मन पर भी निशाना लगा पाएगा। इस विमान की सबसे बड़ी खासियत है कि ये लेह जैसे सर्द इलाकों में भी तेज़ी से उड़ान भरने में सक्षम है, जिन इलाकों में तापमान बहुत कम होता है, वहां लड़ाकू विमानों के इंजन को पूरी क्षमता हासिल करने में काफी वक्त लग जाता है, लेकिन रफाल के साथ ऐसा नहीं होगा। इसका इंजन कोल्ड स्टार्ट टेक्नॉलजी की वजह से बहुत कम समय में उड़ान भरने के लिए तैयार हो सकता है।
ये डील 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज के तहत साइन हुई है, यानी जो पैसा फ्रांस को इस डील से मिलेगा उसका 50 प्रतिशत फ्रांस भारत में ही निवेश कर देगा। यानी फ्रांस करीब 30 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश भारत में कर देगा और फिर इस रकम का 75 प्रतिशत हिस्सा यानी 22 हज़ार 500 करोड़ रुपये मेक इन इंडिया कार्यक्रम में इस्तेमाल किए जाएंगे। कुल मिलाकर इस डील में भारत के लिए फायदा ही फायदा है। आप कह सकते हैं कि भारत के दोस्त फ्रांस ने भारत को बहुत बड़ा डिप्लोमेटिक डिस्काउंट दिया है।