Zee जानकारी : (जल दिवस) भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में पानी की भयंकर कमी
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Zee जानकारी : (जल दिवस) भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में पानी की भयंकर कमी

22 मार्च को दुनिया भर में वर्ल्ड वाटर डे यानी विश्व जल दिवस मनाया जाएगा। इस बार विश्व जल दिवस का थीम है वाटर एंड जॉब्स यानी जल और नौकरियां। रिसर्च ये कहता है कि जहां प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध होता है वहां नौकरियों की कमी नहीं होती। यानी अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की कमी नहीं है और स्वच्छ पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो आपका सीवी आपको अच्छी नौकरी दिला सकता है। लेकिन अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की भयंकर कमी है तो आपको नौकरी तलाशने के लिए दूसरे इलाकों में जाना होगा।

Zee जानकारी : (जल दिवस) भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में पानी की भयंकर कमी

नई दिल्ली : 22 मार्च को दुनिया भर में वर्ल्ड वाटर डे यानी विश्व जल दिवस मनाया जाएगा। इस बार विश्व जल दिवस का थीम है वाटर एंड जॉब्स यानी जल और नौकरियां। रिसर्च ये कहता है कि जहां प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध होता है वहां नौकरियों की कमी नहीं होती। यानी अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की कमी नहीं है और स्वच्छ पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो आपका सीवी आपको अच्छी नौकरी दिला सकता है। लेकिन अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां पानी की भयंकर कमी है तो आपको नौकरी तलाशने के लिए दूसरे इलाकों में जाना होगा।

भारत का एक बड़ा हिस्सा प्यास की मार झेल रहा है। और देश का एक इलाका ऐसा भी है जहां पानी की कमी की वजह से दंगे-फसाद होने की आशंका है। इस इलाक़े में अगर आप पानी के लिए लड़ते हैं तो आप पर धारा 144 लग सकती है। पानी की वजह से आपके ऊपर शहर के हालात बिगाड़ने के आरोप भी लग सकते हैं। इतना ही नहीं आपके ऊपर ज़िला मजिस्ट्रेट के नोटिफिकेशन के उल्लंघन का आरोप लग सकता है और आपको एक साल तक की कैद भी हो सकती है। 

महाराष्ट्र के लातूर के 6 इलाकों में पानी की कमी को लेकर धारा 144 लगा दी गई है ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पानी को लेकर हिंसा की आशंका है। धारा 144 लगने का मतलब है कि शहर में पानी की टंकियों के पास 5 से ज्यादा लोगों के इकठ्ठा होने पर पाबंदी रहेगी। लातूर में हालात इतने खराब हैं कि पिछले दिनों वहां पानी से भरे कई टैंकर लूट लिए गए जिसके बाद प्रशासन को धारा 144 लगाने का फैसला लेना पड़ा। लातूर ज़िले की आबादी 5 लाख है और यहां हर रोज़ 2 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि शहर को महीने में सिर्फ 1 बार पानी की सप्लाई मिलती है। जिस बांध से शहर को पानी की सप्लाई की जाती है वो पूरी तरह से सूख चुका है। अब प्रशासन ने 150 से ज्यादा कुओं और ट्यूबवेल्स को अपने कब्जे में ले लिया है ताकि लातूर के नागरिकों को पानी मिल सके। फिलहाल रोज़ाना 200 टैंकर लातूर में पानी की सप्लाई करते हैं।
 
पानी की इस कमी की वजह है सूखे की हैट्रिक। महाराष्ट्र के विदर्भ औऱ मराठवाड़ा इलाके पिछले 3 वर्षों से सूखे की मार झेल रहे हैं और अब पीने के पानी की कमी ने हालात बिगाड़ दिए हैं। मराठवाड़ा इलाके में आने वाले लातूर में 2015 में सामान्य से आधी बारिश ही हुई थी आपको जानकर हैरानी होगी कि लातूर में स्टेट वाटर बोर्ड की स्थापना 2005 में की गई थी लेकिन 2013 तक स्टेट वाटर बोर्ड की कोई मीटिंग नहीं हुई जबकि इस बीच ज़िले में पानी की कमी बढ़ती चली गई।

इसके लिए वहां का पूरा सिस्टम ज़िम्मेदार है। पानी की जबरदस्त कमी के बावजूद लातूर में गन्ने की खेती पर रोक नहीं लगाई गई, लातूर में उगाए गए गन्ने का इस्तेमाल गुड़, चीनी और शराब बनाने मे किया जाता है लेकिन गन्ने की खेती करने में पानी खर्च बहुत ज़्यादा होता है। 2015 के अंत तक हालात ये हो गए थे कि गन्ने की खड़ी फसलों को काटने के समय तक, किसानों के पास पानी ही नहीं बचा था।

सूखा और पानी की कमी की वजह से, मराठवाड़ा और विदर्भ सहित पश्चिम महाराष्ट्र के कई इलाक़ों से, लोगों के पलायन की वजह बन गई हैं। कुछ रिपोर्ट्स ये दावा भी कर रही हैं कि महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में लोग पानी की कमी की वजह से, एक से ज़्यादा शादियां कर रहे हैं। जब एक पत्नी, बच्चे और घर संभालती है तो दूसरी पत्नी सिर्फ पानी लाने का काम करती है, क्योंकि महिलाओं को अपने घरों से कई किलोमीटर तक पैदल जाकर पानी लाना पड़ता है। रिसर्च रिपोर्ट्स में इन्हें वाटर वाइफ भी कहा गया है। 

महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों से पिछले 4 वर्षों में 25 लाख से ज्यादा लोग मुंबई और आस पास के शहरों की तरफ पलायन कर चुके हैं। 2015 में सूखाग्रस्त मराठवाड़ा से ही करीब 50 हज़ार लोग पुणे के पास पिंपरी चिंचवाड़ की तरफ पलायन कर गए थे। महाराष्ट्र के 16 जिले लगातार तीसरे साल भी सूखे की चपेट में हैं। सूखे से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से फौरी तौर पर 4 हज़ार करोड़ रुपये का राहत पैकेज मांगा है।

सरकार को 3 हज़ार 578 करोड़ रुपये सूखे से बर्बाद किसानों को राहत देने के लिए चाहिएं। जबकि 314 करोड़ रुपये, लोगों को पीने का पानी मुहैया कराने के लिए चाहिएं। मराठवाड़ा इलाके में पानी की सप्लाई करने वाले 11 छोटे बांध पूरी तरह से सूख चुके हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में पानी की सप्लाई करने वाले डैम में सिर्फ 26 फीसदी पानी बचा है, जबकि पिछले साल डैम में 47 फीसदी पानी था। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक महाराष्ट्र में  2015 में 725 किसानों ने आत्महत्या की थी  जबकि 16 फरवरी 2016 तक 57 किसान अपनी जान दे चुके थे, इनमें से ज्यादातर किसान सूखे से फसलों की बर्बादी औऱ कर्ज़ से परेशान थे।  

2 मार्च को पूरी दुनिया विश्व जल दिवस मनाएगी, पानी बचाने की कई कसमें खाई जाएंगी और दुनिया भर में कई सेमिनार भी होंगे लेकिन क्या इन उपायों से दुनिया भर में पानी की कमी पूरी हो जाएगी? इस वक्त दुनिया के 150 करोड़ लोग पानी से जुड़े क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, ये दुनिया की कुल वर्क फोर्स का आधा है।  

यूनाइटेड नेशंस की 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक कि अगर दुनिया भर के देशों ने पानी बचाने के उपायों पर काम नहीं किया तो अगले 15 वर्षों में पूरी दुनिया को 40 फीसदी पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। जबकि ऐसे ही हालात रहने पर 20 वर्ष बाद आज के मुकाबले सिर्फ आधा पानी उपलब्ध होगा। पीने के साफ पानी के अभाव में होने वाली डायरिया जैसी बीमारियों से हर रोज़ दुनिया भर में 2300 लोग मारे जाते हैं।

दुनिया भर के शहरों में रहने वाली 18 फीसदी आबादी के पास साफ पानी नहीं है जबकि दुनिया भर के गांवों में रहने वाली 82 फीसदी आबादी को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिलता। पिछले पचास साल में दुनिया की आबादी तीन गुनी हो चुकी है। पानी की खपत 800 फीसदी बढ़ी है। यही वजह है कि पानी का संकट, आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है और भारत इस समस्या का बहुत बड़ा शेयरहोल्डर है। आप कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए। 

भारत की आबादी दुनिया की 18 फीसदी है। लेकिन दुनिया में मौजूद कुल पानी का महज़ चार फीसदी हिस्सा ही भारत में है। इसमें से करीब 80 फीसदी पानी खेती के लिए इस्तेमाल होता है। 10 फीसदी इंडस्ट्री के काम आता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच दस वर्षों में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति करीब 15 फीसदी घट गई। यानी हर व्यक्ति के हिस्से से 15 फीसदी पानी कम हो गया आगे। बीस साल बाद आपके हिस्से का 50 फीसदी पानी कम हो सकता है

ऐसे में सवाल ये है कि जल संकट को हराने के लिए सरकार और सिस्टम के अंदर कितनी इच्छाशक्ति है?

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