नई दिल्ली: आज हम आरसेप (RCEP) यानि रीज़नल कॉप्रीहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप समझौते पर खुलासा करने जा रहे हैं. ये वो समझौता है जिस पर प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर को बैंकॉक में हुई आरसेप देशों की बैठक में भारत के शामिल होने से इंकार कर दिया. समझौते के लिए बैठक से पहले कांग्रेस के नेता भी इस समझौते को देश के खिलाफ बता रहे लेकिन हम आपको बताते हैं कि आरसेप में शामिल होने के लिये यूपीए-2 सरकार ही तैयारी कर रही थी तैयारी इतनी ज़ोर शोर पर थी कि यूपीए इसे 2016 को लागू करने का प्लान बनाया गया था. Zee Media के पास यूपीए सरकार के दौरान RCEP बातचीत की शुरुआत के एक्सक्लूसिव कागज़ात हैं इससे पता लगता है कि उस समय सरकार किस तरह आरसेप लागू करने के लिये उत्साही थी.
4 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरसेप (RCEP) में शामिल होने से मनाही कर दी. ये हम सब जानते हैं. हम ये भी जानते हैं कि कांग्रेस के कई नेता इसका विरोध कर रह रहे थे औऱ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेता रहे थे कि आरसेप से देश में सस्ते सामानों की बाढ़ आ जाएगी, लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे, अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा. आरसेप पर नरेंद्र मोदी के इंकार करने की खबर आने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने इसे विपक्षी दबाव की जीत भी बताया. लेकिन हकीकत ये है कि यूपीए सरकार आरसेप के लिये खुद ही ज़मीन तैयार कर रही थी.
आरसेप के मामले में ज़ी मीडिया के पास जो कागज़ात हैं वो बताते हैं कि कांप्रीहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप का सुगबुगाह पहली बार 2005 में तब हुई जब चाइनीज़ प्रीमियर वेन जियाबाओ भारत आए. उस समय इस विषय पर एक स्टडी की बात की गई थी. इसके बाद 2012 से आरसेप पर बहुत जोर शोर से तैयारी चालू हुई. यूपीए-2 के दौरान कागज़ातों से पता लगता है कि RCEP में समझौते में शामिल होने का फैसला मनमोहन सरकार का था.
-यूपीए सरकार ने ही आरसेप समझौते में शामिल होने की तारीख 1 जनवरी 2016 की प्लानिंग थी. जिसके लिये तीन चरणों में काम हो रहा था. 2012 तैयारी का चरण था, 2013 से 2104 में नेगोशिएशन चरण खत्म करना था, 2015 में अंतिम चरण में कानूनी काम करके 1 जनवरी 2016 में इसे लागू करना था.
-हालांकि जबकि चाइना के साथ व्यापार घाटा तब भी बढ़ रहा था,इस पर चिंता भी जताई गई थी ये भी कहा जा रहा था कि हमें अपनी चिंता का ध्यान रखना चाहिए. लेकिन साथ ही ये कहा जा रहा था कि RCEP से बाहर रहना प्रेक्टीकल ऑप्शन नहीं होगा और हमें इसमें सक्रिय रुप से इंगेज होना चाहिए. 19 अगस्त 2013 को RCEP की पहली मंत्री स्तर की बैठक ब्रूनेई दारुसलम में हुई जिसमें भारत शामिल हुआ. आनंद शर्मा भारत के तत्कालीन वाणिज्य और उद्योग मंत्री इसमें शामिल हुए थे. भारत समेत सभी मंत्रियों ने RCEP की भूमिका को उत्साहजनक बताया था.जबकि इस दौरान भारत और आरसेप देशों के व्यापार में एक्सपोर्ट के मामले में आरसेप देशों का ही पलड़ा भारी था. भारत का एक्सपोर्ट इन देशों में कम था.
सूत्र ये बताते हैं कि आसियान देशों के 10 और 3 दूसरे देश ही इस समझौते में जा रहे थे लेकिन भारत सरकार की तरफ से ही आरसेप में शामिल होने की इच्छा जताई गई. बाद में भारत और 2 और देश इसमें जुड़े यानि कुल 16 हुए. आसियान के अलावा जो 6 देश आरसेप के लिये बात कर रहे थे उसमें भारत के अलावा चाइना, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, जापान, और न्यूज़ीलैंड थे.
आरसेप में शामिल होने से बड़ा खतरा ये था कि चाइना को भारत में अपना सामान फ्री टैरिफ पर खपाने का मौका मिल जाता, चाइना का भारत में एक्सपोर्ट उस समय भी ज्यादा था. 2012 में चाइना भारत में 54,140 मिलियन डॉलर का सामान भेजता था , जबकि भारत से 14,729 मिलिनय डॉलर का एक्सपोर्ट होता था यानि 39,411 मिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था. जबकि पूरे आरसेप देशों से भारत में कुल मिला कर 1,36,610 मिलियन डॉलर का इंपोर्ट होता था और भारत से 60,454 मिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट होता था. इस व्यापार असंतुलन से भारत को नुकसान हो रहा था और आगे किसी भी तरह का आरसेप जैसा समझौता किसान,व्यापारी,कारोबारी को बहुत नुकसान पहुंचा सकता था. इसके बावजूद भी तैयारियां चल रही थी.
यानि आज जो कांग्रेस नेता आरसेप का विरोध कर रहे है उनकी सरकार उस समय खुद ही आरसेप समझौते के लिये माहौल तैयार कर थी बल्कि इसके लिये उत्साही भी थी. इसके लिये उस समय बाकायदा ट्रेड एंड एकोनोमिक रिलेश्न्स कमेटी बनाई गई थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इसके चेयरमैन थे, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के कई अधिकारी इसमें शामिल थे. आरसेप के लिये रेड कारपेट बिछाने की तैयारी थी.
2018 में चाइना से भारत में इंपोर्ट 73,738 मिलियन डॉलर रहा जबकि एक्सपोर्ट 16,404 मिलियन डॉलर रहा. वहीं आरसेप देशों का भारत में कुल इंपोर्ट 1,74,611 मिलियन डॉलर रहा और एक्सपोर्ट 66,135 मिलियन डॉलर का रहा. यानि इन देशों के साथ व्यापार घाटा भारत का एक तरह से हमेशा से चिंता का विषय रहा है. आसियान देशों के साथ भारत ने व्यापार समझौता 2009 में किया था इसके तहत फ्री टैरिफ नियम के मुताबिक एक दूसरे के साथ व्यापार करना था लेकिन इन देशों ने भारत लिये अपना बाज़ार उतना नहीं खोला जितना भारत ने खोला .
आसियान के 10 देश -ब्रूनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया ,लाउोस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम समझौते में भारत के साथ शामिल थे लेकिन इंडोनेशिया के लिये भारत ने अपना बाज़ार 74% खोला और इंडोनेशिया ने बदलमें केवल 50% ही खोला. साफ दिख रहा था कि पुराने समझौतों का ही सम्मान नहीं किया जा रहा था. वहीं चाइना के साथ कोई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट नहीं था ऐसे में चाइना के लिये ये माकूल सौदा रहता कि वो आरसेप के ज़रिये भारत के बाज़ार में सेंध लगाए. जबकि मौजूदा समय में भारत के लिये अपने वस्तुओं और सेवाओं दोनों का एक्सपोर्ट बढ़ाना बहुत ज़रुरी है, भारत नहीं चाहता था कि अपने बाज़ार को केवल दूसरों के सस्ते सामानों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया जाए. ऐसे में नरेंद्र मोदी ने इस आरसेप के मौजूदा मसौदे में खामियां और भारत के उद्योग और उससे जुड़े लोगों ,अर्थव्यवस्था के लिये बुरे असर को देखते हुए इंकार कर दिया.