नई दिल्ली: वर्ष 2017 के चुनावी मैच में अखिलेश यादव को यूपी की 403 में से सिर्फ़ 47 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार के मैच में अखिलेश यादव, योगी (Yogi Adityanath) की टीम को कड़ा मुकाबला देंगे. हालांकि ये मुकाबला इतना भी कड़ा नहीं होगा कि मैच आखिरी ओवर तक पहुंच जाए. इसलिए जीतेंगे तो योगी ही. 


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हमारे ओपिनियन पोल में जो एक और बड़ी बात सामने आई है, वो ये कि इस बार मायावती की बीएसपी उत्तर प्रदेश में लगभग समाप्ति की ओर है. इस बार बीएसपी का वोट शेयर आधे से भी कम रह गया है क्योंकि उसके वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर हो गए हैं. जिन लोगों को प्रियंका गांधी वाड्रा से किसी चमत्कार की उम्मीद थी, उन्हें हमें ये बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि कांग्रेस की स्थिति में ज़रा भी सुधार नहीं हुआ है और प्रियंका गांधी वाड्रा का नारा ''लड़की हूं, लड़ सकती हैं''.. ज़रा भी नहीं लड़ पाया. 


यूपी में बरकरार रहेगा कमल का जादू!


आख़िर में हम ये कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में कमल का कमाल बरकरार रहेगा और बीएसपी का हाथी, अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की साइकिल पर सवार हो गया है. पांच राज्यों के इस चुनाव में सबसे बड़ा महत्व उत्तर प्रदेश का ही है और यही मोदी सरकार की लोकप्रियता की सबसे बड़ी कसौटी भी है. 


ये ओपिनियन पोल Zee News ने Design Boxed के साथ किया है. Design Boxed, एक Political Campaign Management Company है, जिसके पास ओपिनियन पोल और सर्वे कराने का लम्बा अनुभव है. इस ओपिनियन पोल में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के 129 ज़िलों और 690 विधान सभा सीटों पर 12 लाख से ज्यादा लोगों की राय ली गई है. ये Sample Size के मामले में अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा ओपिनियन पोल है.


- आपके मन में भी ये सवाल आता होगा कि ओपिनियन पोल फेल क्यों हो जाते हैं? इसके पीछे कारण होता है, इन ओपिनियन पोल की सीमित पहुंच और छोटा सैम्पल साइज़, जिसमें बहुत कम लोगों की राय शामिल होती है. लेकिन Zee News ने Design Boxed के साथ इन सभी पांच राज्यों में 12 लाख लोगों से पूछा है कि वो अपने राज्यों में इस बार किस पार्टी की सरकार बनाना चाहते हैं.



11 लाख लोगों ने दी अपनी राय


- इस सीरीज़ की शुरुआत हमने उत्तराखंड के ओपिनियन पोल से की थी, जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर का अनुमान है. इसके दूसरे भाग में यूपी का ओपिनियन पोल है. दिलचस्प बात ये है कि ये ओपिनियन पोल उत्तर प्रदेश की चुनावी तस्वीर पूरी तरह साफ़ कर देगा क्योंकि इस ओपिनियन पोल का सैम्पल साइज़ है 11 लाख.


उत्तर प्रदेश में कुल वोटर्स की संख्या लगभग 15 करोड़ है. यानी इस लिहाज़ से हमने उत्तर प्रदेश के हर 136 वोटर्स में से एक व्यक्ति की राय को इस ओपिनियन पोल में शामिल किया है


दूसरी बात, उत्तर प्रदेश की कुल आबादी लगभग 23 करोड़ है. यानी ये आबादी के मामले में पाकिस्तान से भी बड़ा है. इसलिए बड़ा राज्य होने की वजह से हमने इस ओपिनियन पोल में उत्तर प्रदेश को 6 Regions यानी 6 अलग अलग क्षेत्रों में बांटा है.


- हम आपको पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों की 71 सीट, मध्य उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों की 67 सीट, अवध के 19 जिलों की 119 सीट, रुहेलखंड के 4 ज़िलों की 25 सीट, बुंदेलखंड के 7 ज़िलों की 19 सीट और पूर्वांचल के 17 ज़िलों की 102 सीटों के नतीजे बारी बारी से बताएंगे. इस तरह का सबसे अलग और सबसे विश्वसनीय ओपनियल पोल होगा. ऐसा ओपिनियन पोल आपने पहले देखा नहीं होगा.


योगी आदित्यनाथ को सीएम देखना चाहते हैं लोग


सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि इस बार उत्तर प्रदेश के लोग किस नेता को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहते हैं.


- सबसे ज़्यादा 47 प्रतिशत लोग योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को फिर से मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं.


- जबकि दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) हैं. मुख्यमंत्री पद के लिए वो 35 प्रतिशत लोगों की पहली पसन्द हैं.


- अखिलेश यादव, 2012 से 2017 के बीच उत्तर प्रदेश के पांच साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं. योगी आदित्यनाथ ने भी बतौर मुख्यमंत्री अपने पांच साल का कार्यकाल लगभग पूरा कर लिया है. यानी उत्तर प्रदेश के लोगों के पास दोनों मुख्यमंत्रियों की सेवाओं का बराबर अनुभव है.


- लोगों ने अखिलेश यादव का शासन भी देखा है और योगी आदित्यनाथ का शासन भी देखा है. इसके अलावा दोनों नेताओं की उम्र भी लगभग बराबर है. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) 48 वर्ष के हैं. और योगी आदित्यनाथ उनसे सिर्फ़ एक साल बड़े हैं. उनकी उम्र 49 साल है. लेकिन Zee News के ओपिनियन पोल में योगी आदित्यनाथ, लोकप्रियता के मामले में अखिलेश यादव से आगे हैं.


हिंदुत्व का बड़ा चेहरा हैं सीएम योगी


- इसके पीछे एक बड़ा कारण ये हो सकता है कि योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को हिंदुत्व का सबसे बड़ा Brand Ambassador माना जाता है. जबकि अखिलेश यादव की राजनीति, जातीय समीकरणों पर आधारित मानी जाती है. अखिलेश यादव खास जातियों और धर्म के वोट बैंक के बीच लोकप्रिय हैं, जबकि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता जातियों से नहीं है. अगर चुनाव धर्म पर लड़ा गया तो बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के लिए मुकाबला आसान हो जाएगा.


- हालांकि हमारे ओपिनियन पोल में केवल 9 प्रतिशत लोगों का ही मानना है कि इस बार मायावती को मुख्यमंत्री बनना चाहिए. मायावती, उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी है. जिनमें 2007 से 2012 के बीच उन्होंने पहली बार बतौर मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था. इसके बावजूद वो मुख्यमंत्री की रेस में काफ़ी पीछे दिख रही हैं.


- इसके पीछे बीएसपी के सीमित चुनाव प्रचार को भी बड़ी वजह माना जा रहा है. चुनाव की तारीख़ों के ऐलान से पहले जब बीजेपी और समाजवादी पार्टी बड़े पैमाने पर रैलियां कर रही थीं, तब मायावती ने किसी प्रकार की कोई बड़ी रैली नहीं की.


- मायावती के अलावा पांच प्रतिशत लोग कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसन्द मानते हैं. यानी ये बात तो स्पष्ट है कि इस बार उत्तर प्रदेश का चुनाव योगी Vs, अखिलेश के बीच होगा.


यूपी में इन मुद्दों पर वोट डालेंगे लोग


- Zee News और Design Boxed के ओपिनियन पोल के मुताबिक़ इस बार चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होगा बेरोज़गारी. 73 प्रतिशत लोगों का कहना है कि जब वो मतदान केन्द्रों पर वोट डालने जाएंगे, तब उनके प्राथमिक मुद्दों में बेरोज़गारी का मुद्दा सबसे ऊपर होगा.


65 प्रतिशत लोग महंगाई को भी एक बड़ा मुद्दा मानते हैं. Reserve Bank of India के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में Food Price Inflation यानी खाने पीने की चीज़ों की महंगाई राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. खाने पीने की चीज़ों की महंगाई, सीधे तौर पर आम लोगों को प्रभावित करती है. इसलिए ये मुद्दा काफ़ी बड़ा रह सकता है.


- 54 प्रतिशत लोग विकास को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हैं


- जबकि 39 प्रतिशत लोगों ने आवारा पशुओं के मुद्दे को, सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बताया हैं. आवारा पशुओं की वजह से किसानों की फसलों को काफ़ी नुकसान पहंचता है. उत्तर प्रदेश में पिछले लगभग 10 वर्षों में आवारा पशुओं की संख्या लगभग 18 प्रतिशत बढ़ी है. इसलिए ये मुद्दा उत्तर प्रदेश के लगभग सभी चुनावों में महत्वपूर्ण रहता है.


- 23 प्रतिशत लोगों का कहना है कि इस बार के चुनाव में बिजली की कीमतें भी बड़ा मुद्दा रहेंगी. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने ऐलान किया है कि अगर चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो वो 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त कर देंगे. हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने भी किसानों के लिए बिजली की कीमतें 50 प्रतिशत तक कम कर दी हैं


- इसके अलावा 19 प्रतिशत लोगों का कहना है कि इस बार किसानों का मुद्दा, चुनाव में अहम रहेगा.


- जबकि 11 प्रतिशत लोगों का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जो कमियां हैं, वो भी इस चुनाव में बड़ा और प्रभावी मुद्दा रहेंगी.


BSP का पारंपरिक वोट कहां जाएगा?


हालांकि जब उत्तर प्रदेश के ओपिनियन पोल की बात हो रही है, तो आपको कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए. पहली बात ये कि, उत्तर प्रदेश में अभी ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां प्रत्याशियों का नाम काफ़ी मायने रखता है. इसलिए जो पार्टी, स्थानीय स्तर पर प्रत्याशियों के नाम तय करते समय सबसे अलग सोशल इंजीनियरिंग करेगी, उसे उतना ही फायदा होगा. 


एक और बात, उत्तर प्रदेश के चुनाव में मायावती की बीएसपी का पारम्परिक दलित वोट बैंक कहां जाएगा, इस पर सबकी नज़र रहेगी. ये वोट बैंक कहां जा सकता है, इसके शुरुआती संकेत आपको इस ओपिनियन पोल से मिल जाएंगे.


आप सब ये जानने के लिए बेताब होंगे कि इस बार उत्तर प्रदेश में कौन जीत रहा है. इसे जानने के लिए आपको उत्तर प्रदेश के अलग अलग 6 Regions यानी 6 क्षेत्रों के सीटों का समीकरण समझना होगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों में कुल 71 सीटें हैं.


- 2017 में बीजेपी को यहां सबसे ज़्यादा 41 प्रतिशत वोट मिले थे. समाजवादी पार्टी को 22 प्रतिशत, बीएसपी को 21 प्रतिशत, कांग्रेस को 8 प्रतिशत और इतने ही वोट लगभग अन्य के हिस्से में गए थे. लेकिन इस बार के चुनाव में ये तस्वीर बदल सकती है.


पश्चिमी यूपी में हो सकता है बीजेपी को घाटा


- Zee News और Design Boxed का ओपिनियन के मुताबिक़ इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर 5 प्रतिशत कम हो सकता है. ये 41 प्रतिशत से 36 प्रतिशत पर आ सकता है. जबकि इसी क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का वोट शेयर लगभग 15 प्रतिशत बढ़ कर 22 से 37 प्रतिशत हो सकता है. इसके अलावा बीएसपी का वोट शेयर 7 प्रतिशत कम होकर 21 से 14 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. 


ओपिनियन पोल में कांग्रेस को भी 2 प्रतिशत वोट शेयर के नुकसान का अनुमान है. यानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होता दिख रहा है. ओपिनियन पोल के मुताबिक़ समाजवादी पार्टी, बीएसपी के वोट बैंक को इस क्षेत्र में काफ़ी नुकसान पहुंचा सकती है. इसके अलावा बीजेपी और कांग्रेस का भी वोट शेयर कम होना ये बताता है कि इस क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिल रहा है.


किसान आन्दोलन में उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा भागीदारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों की थी. इसलिए हो सकता है कि बीजेपी को इसका नुकसान हो रहा हो. दूसरी बात, समाजवादी पार्टी ने इस Region में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबन्धन किया, जिसका 29 विधान सभा सीटों पर काफ़ी प्रभाव माना जाता है. इन सीटों पर जाट वोटर्स 50 हज़ार से एक लाख के बीच हैं. यानी गठबन्धन और किसान आन्दोलन का फायदा अखिलेश यादव को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिल सकता है. 


2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 71 सीटों में से बीजेपी को सबसे ज्यादा 52 सीटें मिली थीं. समाजवादी पार्टी को 15, कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं. बीएसपी और अन्य को एक-एक सीट मिली थी.


- लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार बीजेपी की यहां 15 से 19 सीटें कम हो सकती हैं. बीजेपी को 33 से 37 सीटें मिलने का अनुमान है. समाजवादी पार्टी को भी 33 से 37 सीटें मिल सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो उसे सीधे तौर पर 18 से 22 सीटों का फायदा होगा. इसके अलावा ओपिनियन पोल में बीएसपी को भी 2 से 4 सीटें मिलती दिख रही हैं. हो सकता है कि कांग्रेस इस बार यहां खाता भी ना खोल पाए.


मध्य यूपी में बराबर रह सकता है मुकाबला


अब आपको मध्य उत्तर प्रदेश की 67 सीटों का ओपिनियन पोल बताते हैं.


2017 में बीजेपी का यहां सबसे ज्यादा 45 प्रतिशत वोट शेयर था. दूसरे नम्बर पर समाजवादी पार्टी थी, जिसे 23 प्रतिशत वोट मिले थे. बीएसपी को 21 प्रतिशत, कांग्रेस को 4 प्रतिशत और अन्य को 7 प्रतिशत वोट मिले थे. ओपिनियन पोल के आंकड़े बताते हैं कि इस बार यहां बीजेपी को तो कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन बीएसपी के काफ़ी Votes, समाजवादी पार्टी के अकाउंट में ट्रांसफर हो सकते हैं.


- ओपिनियन पोल में बीजेपी को इस क्षेत्र में 2017 की तरह 45 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. लेकिन समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 9 प्रतिशत बढ़ कर, 23 से 32 प्रतिशत हो सकता है. जबकि बीएसपी का वोट शेयर 13 प्रतिशत कम हो कर 21 से 8 प्रतिशत पर पहुंच सकता है. यानी बीएसपी के कमज़ोर होने से समाजवादी पार्टी को फायदा होता दिख रहा है. और इसका कुछ फायदा कांग्रेस को भी मिल सकता है. मध्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट शेयर 2 प्रतिशत बढ़ कर 4 से 6 प्रतिशत हो सकता है. हालांकि बढ़त सीटों में दिखेगी या नहीं. 


2017 के मुकाबले बीजेपी का वोट शेयर तो कम नहीं होगा. समाजवादी पार्टी का वोट शेयर बढ़ने से उसकी 7 से 9 सीटें कम हो सकती हैं. बीजेपी को इस क्षेत्र में 56 सीटों की जगह इस बार, 47 से 49 सीटें मिलने का अनुमान है. हालांकि बड़ी बात ये है कि, पांच साल सरकार चलाने के बाद भी बीजेपी इस क्षेत्र की 70 प्रतिशत सीटों पर जीत सकती है. समाजवादी को 2017 की तुलना में 8 से 12 सीटें ज़्यादा मिल सकती हैं. उसकी सीटों की संख्या मध्य उत्तर प्रदेश में 16 से 20 रहने का अनुमान है. 


जबकि हो सकता है कि बीएसपी को इस बार यहां कोई सीट ना मिले. पिछली बार उसे दो सीटें मिली थीं. वहीं कांग्रेस इस बार इस क्षेत्र में अच्छी बैटिंग करके कुछ रन बना सकती है. उसे एक से दो सीटें मिलने का अनुमान है. इस क्षेत्र में महिला वोटर्स की संख्या काफ़ी ज्यादा है और कांग्रेस इस बार पूरा चुनाव महिलाओं के नाम पर ही लड़ रही है. इसलिए उसे ओपिनियन पोल में कुछ फायदा होता दिख रहा है.


रुहेलखंड में हो सकती है बीजेपी की प्रचंड जीत


Zee News और Design Boxed के ओपिनियन पोल में रुहेलखंड की 25 सीटों पर बीजेपी की प्रचंड जीत का अनुमान है. यहां बीजेपी का Success Rate 2017 जैसा ही रह सकता है. 2017 में उसे यहां की 25 में से 23 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि इस बार ओपिनियन पोल में 19 से 21 सीटें मिलने की उम्मीद है. यानी कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है. जबकि समाजवादी पार्टी 2017 के मुकाबले 1 से 5 सीटें ज्यादा जीत सकती है. अखिलेश यादव की पार्टी को यहां 3 से 7 सीटें मिलने का अनुमान है. ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में भी बीएसपी का जितना वोट शेयर कम हो रहा है, समाजवादी पार्टी का वोट शेयर उतना ही बढ़ रहा है.


2017 में बीएसपी को यहां कोई सीट तो नहीं मिली थी, लेकिन उसका वोट शेयर 19 प्रतिशत था. ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार ये वोट शेयर 12 प्रतिशत तक कम होकर 19 से 7 प्रतिशत रह जाएगा. जबकि समाजवादी पार्टी का वोट शेयर 12 प्रतिशत बढ़ कर 24 से 36 प्रतिशत हो सकता है. यानी जितने वोटों का नुकसान मायावती को होगा, उतना ही फायदा अखिलेश यादव का हो सकता है. 


हालांकि बीजेपी का वोट शेयर भी इस क्षेत्र में 2017 की तुलना में 8 प्रतिशत बढ़ कर 43 से 51 प्रतिशत हो सकता है. जबकि कांग्रेस के वोट 3 प्रतिशत तक कम हो सकते हैं. और अन्य के वोट शेयर में भी पिछली बार के मुकाबले 5 प्रतिशत की कमी आ सकती है. ये 7 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो सकता है. अन्य को ओपिनियन पोल में सीटें मिलने का अनुमान नहीं है.


अवध में भी बीजेपी को हो सकता है फायदा


उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटें, जिस Region में है, उसे अवध कहते हैं. आप इसे सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश का सबसे शक्तिशाली क्षेत्र भी कह सकते हैं, जिसमें अयोध्या, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, अमेठी और रायबरेली जैसे ज़िले आते हैं. इस क्षेत्र में कुल 119 सीटें हैं.


2017 में बीजेपी को यहां 38 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन इस बार ये आंकड़ा 38 से सीधे 43 प्रतिशत पर पहुंच सकता है. इसके पीछे एक बड़ा कारण, अयोध्या में बन रहा, राम मन्दिर भी हो सकता है. क्योंकि राम मन्दिर का मुद्दा अवध की अस्मिता और उसकी पहचान से जुड़ा है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी का भी वोट शेयर 2017 के मुकाबले 10 प्रतिशत बढ़ कर 22 से 32 प्रतिशत हो सकता है. 


हालांकि यहां भी कहानी घूम फिरकर वही है कि बीएसपी के वोट कम हो रहे हैं, इसलिए समाजवादी पार्टी का वोट शेयर बढ़ रहा है. बीएसपी को पिछली बार यहां 23 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन इस बार उसका वोट शेयर 15 प्रतिशत तक घट कर 8 प्रतिशत पर पहुंच सकता है. जबकि कांग्रेस को एक प्रतिशत वोटों का फायदा होने का अनुमान है. ये 7 से 8 प्रतिशत हो सकता है. और अन्य का वोट शेयर भी पांच साल बाद 10 प्रतिशत से घटकर 9 प्रतिशत तक हो सकता है.


हालांकि वोट शेयर बढ़ने के बावजूद, बीजेपी को इस क्षेत्र में कुछ सीटों का नुकसान उठाना पड़ेगा. 2017 में बीजेपी को यहां 119 में से 93 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन इस बार सीटों की ये संख्या 76 से 82 तक हो सकती है. पिछली बार समाजवादी पार्टी को अवध में 9 सीटें मिली थीं. लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक़ इस बार समाजवादी पार्टी को 20 से ज्यादा सीटों का फायदा होगा. और उसे 34 से 38 सीटें इस क्षेत्र में मिलेंगी. जबकि बीएसपी को 8 सीटों का नुकसान होगा और वो इस बार यहां एक भी सीट नहीं जीत पाएगी. 


बीएसपी के कमजोर होने से एसपी को फायदा


समाजवादी पार्टी को दो तरह से फायदा हो रहा. एक बीएसपी के कमज़ोर होने से और दूसरा, उसने पूर्वांचल और अवध में जिन 6 छोटे छोटे दलों से गठबन्धन किया है, वो भी जातीय समीकरणों के आधार पर उसकी सीटें बढ़ाने में मदद कर सकते हैं. इसके अलावा कांग्रेस को पिछली बार 3 सीटें मिली थी. और ओपिनियन पोल में भी कांग्रेस पार्टी को एक से तीन सीटें मिलती हुई दिख रही हैं. इसके अलावा अन्य को भी एक से तीन सीटें मिल सकती हैं. 2017 में अन्य को 6 सीटें मिलीं थी.


ओपिनियन पोल के मुताबिक़, बुंदेलखंड में बीजेपी के वोट शेयर में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हो सकती है. 2017 में बीजेपी को यहां 46 प्रतिशत वोट मिले थे. लेकिन इस बार लगभग 59 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. एक जमाने में बुंदेलखंड को मायावती का गढ़ माना जाता था. लेकिन ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार बीएसपी अपने गढ़ में और भी कमज़ोर हो जाएगी. बुंदेलखंड में बीएसपी का वोट शेयर 22 से सीधे 10 प्रतिशत पर पहुंच सकता है और बीएसपी के वोट बीजेपी और समाजवादी पार्टी में बंट सकते हैं. 


समाजवादी पार्टी को 2017 के मुकाबले 5 प्रतिशत ज्यादा वोट मिलेंगे. यानी पार्टी का वोट शेयर 16 से 21 प्रतिशत हो सकता है. हालांकि कांग्रेस  वोट इस बार बुंदेलखंड में कट सकते हैं, जिसका सीटों पर सीधा असर पड़ेगा.


बुंदेलखंड में परचम लहरा सकती है बीजेपी


2017 की तरह बीजेपी इस बार भी बुंदेलखंड की सभी 19 सीटें जीत सकती है. ओपिनियन पोल में उसकी सीटों की संख्या 17 से 19 के बीच है. जबकि समाजवादी पार्टी को यहां शून्य से एक सीट मिलने का अनुमान है. बीएसपी और कांग्रेस का यहां खाता भी नहीं खुलेगा. जैसा कि 2017 में हुआ था.


अब आपको आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण पूर्वांचल की 102 सीटों का समीकरण बताते हैं. पूर्वांचल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी आता है. इसके अलावा गोरखपुर भी इसी क्षेत्र में है, जहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ने वाले हैं.


Zee News और Design Boxed के ओपिनियन पोल के मुताबिक़, पूर्वांचल में बीजेपी को ज़बरदस्त वोटों का नुकसान होगा. 2017 में बीजेपी को यहां 69, समाजवादी पार्टी को 13, बीएसपी को 8 और कांग्रेस को 1 सीट मिली थी लेकिन ओपिनियन पोल में बीजेपी को इस बार 53 से 59 सीटें मिलती दिख रही हैं. यानी सीधे तौर पर 10 से 16 सीटों का नुकसान हो सकता है. समाजवादी पार्टी को इसी क्षेत्र में 26 से 32 सीटों का फायदा हो सकता है. अखिलेश यादव की पार्टी पूर्वांचल में 39 से 45 सीटें जीत सकती हैं. बीएसपी को 2 से 5 सीट मिल सकती हैं. कांग्रेस को एक से 2 सीटें मिल सकती हैं.


एसपी ने कई छोटी पार्टियों से किया है गठबंधन


समाजवादी पार्टी ने कई छोटे दलों के साथ गठबन्धन किया है. इनमें ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी है.  इस पार्टी का पूर्वांचल की काफी सीटों पर प्रभाव माना जाता है. 2017 में ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के साथ थे और उन्हें चार सीटों पर जीत मिली थी. उनके अलावा कुछ और छोटे दल भी पूर्वांचल में अखिलेश यादव को जिता सकते हैं. इसके अलावा बीजेपी छोड़ने वाले कुछ विधायक भी पूर्वांचल से आते हैं. इसलिए हो सकता है कि इसका अखिलेश यादव को फायदा हो, और बीजेपी को इसका नुकसान हो सकता है.


उत्तर प्रदेश में बीजेपी को कुल मिलाकर 1 प्रतिशत वोट का ही फ़ायदा होता दिख रहा है. 2017 में उसे 40 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि इस बार ओपिनियन पोल में उसे 41 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं.


समाजवादी पार्टी को 12 प्रतिशत वोटों का बड़ा फ़ायदा हो सकता है. 2017 में उसे 22 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि ओपिनियन पोल में उसे 34 प्रतिशत तक वोट मिल सकते हैं.


बीएसपी को करीब 12 प्रतिशत वोटों का भारी नुकसान हो रहा है. 2017 में उसे 22 प्रतिशत वोट मिले थे. इस ओपिनियन पोल में ये आंकड़ा गिरकर 10 प्रतिशत हो सकता है.


कांग्रेस का हाल जस का तस रह सकता है. 2017 में भी उसे 6 प्रतिशत वोट मिले थे. ओपिनियन पोल में भी ये आंकड़ा 6 प्रतिशत तक ही रहेगा.


2017 में बीजेपी को 312 सीट, समाजवादी पार्टी को 47 सीट, बीएसपी को 19 सीट, कांग्रेस को सात सीट और अन्य को 18 सीट मिली थीं.


बीजेपी को मिल सकती है 245 से 267 सीटें


ओपिनियन पोल के मुताबिक़, इस बार बीजेपी को 245 से 267 सीटें मिल सकती हैं. यहां हम आपको बता दें कि सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 202 सीटें चाहिए. यानी ओपिनियन पोल में बीजेपी इस मैजिक नम्बर को आसानी से पार करती हुई दिख रही है. समाजवादी पार्टी को 125 से 148 सीटें मिल सकती हैं. बीएसपी को 5 से 9 सीटें मिल सकती हैं.  कांग्रेस को 3 से 7  सीट मिल सकती हैं. और अन्य को 2 से 6 सीटें मिलने का अनुमान है.


ओपिनियन पोल के दौरान हमने उत्तर प्रदेश के लोगों से ये भी पूछा कि अगर आज लोक सभा के चुनाव हुए तो वो किसे प्रधानमंत्री चुनेंगे. प्रधानमंत्री पद के लिए 72 प्रतिशत लोगों की पसन्द नरेन्द्र मोदी हैं. यानी दूर दूर तक कोई मुकाबले में नहीं है. 28 प्रतिशत लोग राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसन्द मानते हैं.


अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की VIP सीटों के बारे में.


चुनाव में जीत सकते हैं ये बड़े चेहरे


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में गोरखपुर शहर सीट इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है. इस सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ेंगे. हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर सीट से चुनाव जीत सकते हैं.


उत्तर प्रदेश की सिराथू सीट से उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. हमारे ओपिनियन पोल में उनकी जीत का अनुमान है.


उत्तर प्रदेश की पडरौना सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य 2017 में चुनाव जीते थे. 2017 में स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में थे, लेकिन अब बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. ओपिनयन पोल के मुताबिक़ इस सीट से समाजवादी पार्टी जीत सकती है. यानी पार्टी बदलना, स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए फायदेमंद रहेगा.


जसवंतनगर सीट से अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव चुनाव जीत सकते हैं. 2017 में भी इस सीट से वो चुने गए थे. यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह प्रयागराज पश्चिम सीट से चुनाव जीत सकते हैं. यूपी सरकार में ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा मथुरा सीट से चुनाव जीत सकते हैं.


लखनऊ से जीत सकती हैं अपर्णा यादव


मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव अगर लखनऊ कैंट से चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें जीत मिल सकती है. अपर्णा यादव बुधवार को ही समाजवादी पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई हैं और ये सीट बीजेपी को मिलती हुई दिख रही हैं


रायबरेली सीट से बीजेपी जीत सकती है. ये पहले 2017 में अदिति सिंह ने जीती थी, जो अब कांग्रेस से बीजेपी में आ चुकी हैं. उन्हें भी दल बदल का फायदा मिल रहा है. ओपिनियन पोल में उत्तर प्रदेश की कुण्डा सीट से रघुराज प्रताप सिंह चुनाव जीत सकते हैं.


कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से कांग्रेस के अजय कुमार लल्लू चुनाव जीत सकते हैं. अजय कुमार लल्लू उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. नोएडा विधानसभा सीट से बीजेपी के पंकज सिंह चुनाव जीत सकते हैं. पंकज सिंह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे हैं. हमारे ओपिनियन पोल के मुताबिक मेरठ जिले की सरधना सीट से बीजेपी के संगीत सिंह सोम चुनाव जीत सकते हैं.


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ओपिनियन पोल में दिखा ये नजारा:


पहला.. योगी अखिलेश के बीच सीधी टक्कर.


दूसरा.. बीएसपी समाप्ति की ओर.


तीसरा.. बीएसपी का वोट शेयर अखिलेश यादव की पार्टी में ट्रांसफर हो रहा है.


चौथा.. अखिलेश यादव को सोशल इंजीनियरिंग का फायदा मिल रहा है.


पांचवां.. योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ कोई लहर नहीं है.


छठा.. वोटर जब पोलिंग बूथ तक पहुंचेगा तो वो चुनाव से पहले जितने भी मुद्दों की बात करे, लेकिन पोलिंग बूथ पर जाति और धर्म के समीकरण हावी रहेंगे.


और आखिरी Point.. हम ये बात एक बार फिर से कह रहे हैं कि अगर वोट जाति के आधार पर पड़े तो अखिलेश यादव को और फायदा होगा और धर्म के नाम पर पड़े तो योगी आदित्यनाथ को फायदा होगा.