ZEE जानकारी: SC के 1 हज़ार 45 पन्नों के फैसले में जानिए कितनी बार आया मंदिर और मस्जिद
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ZEE जानकारी: SC के 1 हज़ार 45 पन्नों के फैसले में जानिए कितनी बार आया मंदिर और मस्जिद

अब हम इस ऐतिहासिक फैसले की महत्वपूर्ण बातों का सरल भाषा में विश्लेषण करेंगे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत पांच जजों की संविधान पीठ ने इस फैसले को 1 हज़ार 45 पन्नों में लिखा है . 

 ZEE जानकारी: SC के 1 हज़ार 45 पन्नों के फैसले में जानिए कितनी बार आया मंदिर और मस्जिद

अब हम इस ऐतिहासिक फैसले की महत्वपूर्ण बातों का सरल भाषा में विश्लेषण करेंगे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत पांच जजों की संविधान पीठ ने इस फैसले को 1 हज़ार 45 पन्नों में लिखा है . और इसमें 3 लाख 2 हज़ार 517 शब्द हैं. आज हमारी टीम ने इस फैसले के एक-एक पन्ने और एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से पढ़ा है और इसमें कही गई बातों को समझने की कोशिश की है. आप इसे हमारी Ayodhya Analytica भी कह सकते हैं. इस फैसले में मंदिर शब्द का इस्तेमाल करीब 696 बार हुआ. जबकि मस्जिद शब्द का जिक्र 1 हज़ार 433 बार आया.

इसी तरह भगवान राम के नाम का जिक्र 1062 बार किया गया है. जबकि IDOL यानी मूर्ति शब्द का जिक्र 514 बार हुआ है...इसी तरह Disputed यानी विवादित शब्द का प्रयोग 764 बार और प्रॉपर्टी यानी संपत्ति शब्द का प्रयोग 908 बार किया गया. हमने आपको इन शब्दों के बारे में इसलिए बताया है क्योंकि इस विवाद के पूरे इतिहास में यही 6 शब्द सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रहे हैं.

आज हम इस फैसले की सबसे अहम बातों का बहुत सरल भाषा में विश्लेषण कर रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये फैसला पांच जजों ने सर्वसम्मति से सुनाया है. यानी इस फैसले को लेकर जज आपस में बंटे हुए नहीं थे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने एक मत से ये फैसला लिखा है.

वैसे तो ये फैसला 1 हज़ार से ज्यादा पन्नों में लिखा गया है लेकिन इस फैसले के नौ सबसे महत्वपूर्ण पन्नों को पढ़कर इसे पूरा समझा जा सकता है . मेरे हाथ में इस वक्त इस फैसले के वही नौ पन्ने मौजूद हैं. जिनमें कही गई कुछ अहम बातें मैं आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूं.

इसमें मैं आपको बताऊंगा कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों द्वारा दिए गए सबूतों को लेकर क्या कहा है. इस मामले पर हाईकोर्ट के फैसले को लेकर क्या कहा गया है. मस्जिद गिराए जाने को लेकर लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की है. और राम मंदिर के निर्माण का अब आगे का रास्ता क्या होगा .

पेज नंबर 921 पर कोर्ट ने लिखा है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि 1857 के बाद भी हिंदुओं द्वारा विवादित ज़मीन के बाहरी अहाते में पूजा अर्चना की जाती थी . जबकि मुस्लिम पक्ष इस बात को साबित नहीं कर सका है कि 1857 से पहले उनका अंदरूनी ढांचे पर विशेष अधिकार था. 

आपको बता दें कि 1857 में अंग्रेज़ों ने विवादित स्थल को अंदरूनी और बाहरी हिस्सों में बांट दिया था. कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि हिंदू पक्ष इस बात को साबित करने में सफल रहा है कि बाहरी अहाते में हिंदू लगातार पूजा-पाठ करते आए हैं. 

जबकि मुस्लिम पक्ष के पास इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं है कि वर्ष 1857 से पहले विवादित ढांचे के अंदरूनी हिस्से पर उनका कोई अधिकार था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मस्जिद के ढांचे में नमाज़ पढ़े जाने के प्रमाण हैं और वहां जुमे के आखिरी नमाज़ 16 दिसंबर 1949 को पढ़ी गई थी. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का जो फैसला सुनाया था उसे कानूनी रूप से लागू करना मुश्किल था. सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम यानी 6 दिसंबर 1992 की घटना भी जिक्र किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद गिराया जाना भी सही नहीं था. और ये कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो संविधान के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करके, जो गलत हुआ उसमें सुधार की कोशिश करे. इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में कहीं और 5 एकड़ ज़मीन आवंटित करे. कोर्ट ने कहा है कि ये एक ऐसी गलती थी.

जिसे सुधारा जाना चाहिए..क्योंकि संविधान से चलने वाले लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में सबको बराबरी का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है. इसलिए विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए. 

हालांकि इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा. और सरकार 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाएगी. और इस फैसले के आखिरी पन्ने पर उन पांच जजों के नाम हैं..जिन्होंने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया है और इस पर आज की ऐतिहासिक तारीख 9 नवंबर 2019 में भी लिखी हुई है.

यानी ये फैसला भले ही राम लला विराजमान के पक्ष में आया हो. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि मुस्लिमों की आस्था और हितों का नुकसान ना हो और जो उनके धार्मिक स्थल के साथ हुआ..उसकी भरपाई की जाए.इस फैसले का एक और महत्वपर्ण पन्ना इस वक्त मेरे हाथ में है. इसमें फैसला सुनाने वाले एक जज ने एक नोट लिखा है.

जिसमें कहा गया है कि ऊपर बताए गए घटनाक्रम बताते हैं कि हिंदुओं की इस बात में आस्था है कि तीन गुंबद वाली मस्जिद जिस जगह थी वही भगवान राम का जन्मभूमि है. इसमें ये भी लिखा है कि दिए गए सबूत इस हिंदुओं की इस आस्था को स्थापित करते हैं कि तीन गुंबद वाली मस्जिद की जगह पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था .

सुप्रीम कोर्ट ने Archaeological Survey of India यानी ASI की रिपोर्ट के आधार पर ये भी कहा है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी... इसका मतलब ये है कि वहां पहले से कोई ढांचा मौजूद था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि. वर्ष 1862 से 1865 के दौरान ASI के डायरेक्टर Alexander Cunningham(एलेक्जेंडर कनिंघम) ने 4 Reports तैयार की थी. जिसके मुताबिक जन्मस्थान मंदिर. अयोध्या शहर के बीच में मौजूद था. और मुसलमानों ने वहां के कई प्राचीन मंदिरों को नष्ट कर दिया था.

वर्ष 1889 में ASI की रिपोर्ट के मुताबिक- राम जन्मभूमि पर रामचंद्र का पुराना मंदिर. बहुत उत्तम तरीके से बनाया गया था. क्योंकि मंदिर के कई स्तंभों का इस्तेमाल मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद के निर्माण में भी किया था. यानी ASI ने साफ कहा कि बाबरी मस्जिद अयोध्या में उसी जगह पर बनाई गई थी.

जहां पर राम जन्मभूमि का पुराना मंदिर स्थापित था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ASI की रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि मुगल राजा बाबर के शासनकाल के दौरान अयोध्या में मौजूद मंदिर पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था. वर्ष 1891 में ASI की एक और रिपोर्ट में... ये भी लिखा गया है कि जन्मस्थान पर मौजूद मंदिर की जगह पर वर्ष 1524 में मस्जिद का निर्माण किया गया था.

ZEE NEWS लगातार अयोध्या मामले से जुड़ी खबरों को आपतक पहुंचाता रहा है. वर्ष 2003 में ASI ने अयोध्या में विवादित स्थल पर की गई खुदाई की रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौंपी थी. ASI के द्वारा की गई खुदाई का मकसद था- ये पता लगाना कि क्या विवादित भूमि के नीचे किसी तरह की इमारत का ढांचा मौजूद है ? हमने आपको वर्ष 2018 में DNA में इसकी रिपोर्ट दिखाई थी. आपको फिर से इन तस्वीरों को देखना चाहिए. ताकि आप समझ पाएं कि ASI की रिपोर्ट ने इस फैसले में कितनी अहम भूमिका निभाई थी.

ASI की उस रिपोर्ट के मुताबिक. विवादित स्थल के नीचे करीब 50 स्तंभों के आधार पर बनाया गया. 10वीं शताब्दी का एक मंदिर जैसा ढांचा मिला था. ASI की रिपोर्ट के साथ. प्रमाणों और सबूतों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पेज नंबर 281 पर ये लिखा था कि मंदिर के अवशेषों के ऊपर मस्जिद का निर्माण किया गया था.

मंदिर के ये अवशेष मस्जिद के निर्माण शुरू होने से बहुत पहले के थे और इन अवशेषों के कुछ हिस्से मस्जिद के निर्माण में भी इस्तेमाल हुए. यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी Findings में ये भी कहा था कि मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ा नहीं गया था. ASI ने ये भी बताया था कि विवादित स्थल पर तीन अलग-अलग समय के मंदिरों के अवशेष मिले थे.

ASI ने इन्हें अलग अलग नाम दिये. Temple-1, Temple-2 और Temple-3. नक्शे में बताया गया है कि Temple-1 के अवशेष 8वीं शताब्दी के हैं यानी करीब 1200 वर्ष पहले के हैं . Temple-2 के अवशेष 9वीं शताब्दी के हैं यानी करीब 1100 वर्ष पहले के हैं और Temple-3 के अवशेष 12वीं शताब्दी के हैं यानी ये करीब 800 वर्ष पहले के हैं. ASI की रिपोर्ट से ये पता चला कि अयोध्या में विवादित स्थल पर एक 1200 वर्ष पुराना मंदिर जैसा ढांचा था .

और इस स्थान पर कई शताब्दियों के अंतराल पर भी मंदिर जैसे ढांचों का निर्माण होता रहा. ये ढांचे एक हज़ार वर्ष से भी ज़्यादा पुराने हैं और इससे एक बड़ा निष्कर्ष निकाला जाता है. और वो ये है कि मुगल बादशाह बाबर भारत में आज से करीब 500 वर्ष पहले आया था और मंदिर के अवशेष इससे करीब 300 वर्ष पुराने हैं. इससे अनुमान लगाया जाता है कि मुगलों के आने से पहले ही. यानी विवादित ढांचे के निर्माण होने के पहले ही यहां मंदिर के अवशेष मौजूद रहे होंगे.

वर्ष 1989 में शिलान्यास पूजा के दौरान अयोध्या के विवादित स्थल के कुछ हिस्सों में खुदाई हुई थी और उसी दौरान ये मूर्तियां प्राप्त हुई थीं . उनमें से कुछ अवशेषों को अयोध्या के संग्रहालय में रखा गया है. वर्ष 2018 में Zee News की टीम ने इस संग्रहालय का दौरा करके, अयोध्या के प्राचीन सत्य पर एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की थी... जिसे आपको जरूर देखना चाहिए.

आज आपको ASI के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद का बयान सुनना चाहिए. वर्ष 1976 में राम जन्मभूमि की खुदाई करनेवाली टीम में केके मोहम्मद भी शामिल थे. उन्होंने हमेशा ये दावा किया कि वहां ऐसे सबूत मिले थे. जो इस्लाम से जुड़ी किसी इमारत का हिस्सा नहीं हो सकते हैं. आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केके मोहम्मद ने बताया कि... कैसे उन्हें सच बोलने की सजा दी गई थी. लेकिन वो हमेशा अपने बयान पर कायम रहे.

हमारे देश में सैकड़ों वर्षों से सभी धर्मों को मानने वाले लोग मिल जुलकर रहते आए हैं. इसलिए अयोध्या मामले में कुछ तथ्य. सिख धर्म से जुड़े धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों से भी दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि. सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक...

गुरु नानक देव जी वर्ष 1510...1511 में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर गए थे. गुरु नानक देव जी की यात्रा और उससे जुड़ी बातों का विवरण धार्मिक पुस्तक ''जन्म साखियां'' में लिखा गया है. इसके मुताबिक... तब तक बाबर ने भारत पर आक्रमण नहीं किया था. ये गुरु नानक देव जी की दूसरी धार्मिक यात्रा थी...

जिसे पंजाबी में 'उदासियां' कहा जाता है. इसमें वो दिल्ली, हरिद्वार और सुल्तानपुर होते हुए अयोध्या गए थे. सिखों के धार्मिक ग्रंथों में सिखों के नौवें और दसवें गुरु... गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह के भी राम जन्मभूमि मंदिर जाने का जिक्र है. सिख गुरुओं की अयोध्या यात्रा का एक मतलब ये भी है कि उस वक्त लोग अयोध्या में राम जन्मभूमि का दर्शन करने के लिए जाते थे. और यही बात वाल्मिकि रामायण और स्कंद पुराण में भी मौजूद है.

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