यह चुनाव भले ही स्थानीय कलेवर में लड़ा गया लेकिन इसकी राष्ट्रीय अपील से कोई इनकार नहीं कर सकता.
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कर्नाटक चुनाव के नतीजे जिस भी करवट बैठेंगे, उसका सीधा असर राष्ट्रीय फलक पर देखने को मिलेगा. हाल के वर्षों में यह पहला बड़ा चुनाव है जहां राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ क्षेत्रीय क्षत्रपों का जलवा भी देखने को मिला है. एक तरफ राष्ट्रीय नेतृत्व के लिहाज से बीजेपी की तरफ से पीएम मोदी ने कर्नाटक चुनाव में जबर्दस्त प्रचार किया और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 40 दिन बिताए, वहीं राहुल गांधी ने भी सभी जिलों का दौरा किया.
इसके साथ-साथ दोनों दलों की तरफ से क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में सीएम सिद्धारमैया और बीजेपी के सीएम चेहरे के रूप में येदियुरप्पा के दांव देखने को मिले. कर्नाटक में किसी भी दल की जीत और हार का असर 2019 के आम चुनाव के साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले चुनावों पर पड़ेगा. कर्नाटक में यदि त्रिशंकु विधानसभा बनती है तो एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस हाशिए से निकलकर सत्ता की दहलीज तक पहुंच सकती है.
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यह चुनाव भले ही स्थानीय कलेवर में लड़ा गया लेकिन इसकी राष्ट्रीय अपील से कोई इनकार नहीं कर सकता. सीएम सिद्धारमैया ने इसको 'सेक्युलर बनाम सांप्रदायिकता' की लड़ाई कहा. कांग्रेस के पास पंजाब के अलावा कर्नाटक अंतिम बड़ा किला है. यदि यह हार गई तो उसके पास केवल पंजाब और मणिपुर बचेगा. उसके बाद केवल इन राज्यों में सत्ता के दम पर राहुल गांधी किस तरह 2019 में पीएम मोदी का सामना कर पाएंगे? विपक्ष के केंद्रीय नेता के रूप में उनकी भूमिका को कौन स्वीकार करेगा? इन सब सवालों का जवाब कर्नाटक चुनाव नतीजों में छिपा हुआ है.
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यदि सिद्धारमैया चुनाव जीत जाते हैं तो कांग्रेस में 1950-60 के दशक के बाद क्षेत्रीय क्षत्रपों के युग की एक बार फिर से शुरुआत हो सकती है. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट को कांग्रेस आने वाले चुनावों के लिहाज से मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती है. राहुल गांधी का कद बढ़ जाएगा और वह विपक्ष के वैकल्पिक नेता के रूप में स्वाभाविक रूप से उभरेंगे.
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दूसरी तरफ यदि बीजेपी जीत जाती है तो स्पष्ट रूप से पीएम मोदी के अभियान, बीजेपी के चार साल के कामकाज की मुहर मानी जाएगी और बीजेपी के लिए दक्षिण में प्रवेश का रास्ता खुल जाएगा. 2019 के लिहाज से बीजेपी अब उन राज्यों पर फोकस कर रही है जहां इस बार अधिकाधिक लोकसभा सीटें जीती जा सकती हैं. हालांकि पिछली बार यहां की 26 में से 17 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव जीता था लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने की स्थिति में वह 2019 में इस राज्य में नए लक्ष्य का निर्धारण करेगी.