लिंगायत मुद्दे से गृह मंत्रालय ने झाड़ा पल्ला, कहा- अल्पसंख्यक मंत्रालय करेगा इस पर निर्णय
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लिंगायत मुद्दे से गृह मंत्रालय ने झाड़ा पल्ला, कहा- अल्पसंख्यक मंत्रालय करेगा इस पर निर्णय

गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर जल्द कोई निर्णय होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि कर्नाटक में चुनाव आचार संहिता लागू है जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.

कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया ने लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की सिफारिश की है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: गृह मंत्रालय ने कर्नाटक में लिंगायत और वीर शैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मुद्दे से गुरुवार (5 अप्रैल) को वस्तुत: अपना पल्ला झाड़ लिया और कहा कि यह मुद्दा इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है. मंत्रालय ने कहा कि इस पर अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय गौर करेगा. गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर जल्द कोई निर्णय होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि कर्नाटक में चुनाव आचार संहिता लागू है जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.

  1. लिंगायत और वीर शैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का मुद्दा.
  2. कर्नाटक में करीब 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है.
  3. कर्नाटक की 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव माना जाता है.

मंत्रालय को कर्नाटक सरकार से पत्र मिला है जिसमें संख्या बल के आधार पर मजबूत इन दोनों समुदायों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की अनुशंसा की गई है. प्रवक्ता ने यहां बताया, ‘‘बहरहाल, यह विषय गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इसलिए इसे अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के पास भेजा जा रहा है जो इस पर निर्णय करने के लिए सक्षम है.’’ लिंगायत और वीर शैव की राज्य में लगभग 17 फीसदी आबादी है और उन्हें भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है.

कर्नाटक चुनाव: वोटरों को साधने के लिए 'मठ' की शरण में भाजपा-कांग्रेस, सिद्धरमैया ने लिंगायत पर खेला दांव

कर्नाटक के 30 जिलों में 600 से अधिक ‘मठों’ ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा के प्रमुखों को अपनी शरण में आने पर मजबूर कर दिया है. कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति हावी रही और लोगों पर मठों का खासा प्रभाव रहा है. लिहाजा राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठों के दर्शन कर वहां के मठाधीशों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश करती रही हैं. ऐसे में मतदाताओं पर मठों के प्रभाव को देखते हुए भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

लिंगायत समुदाय से जुड़े करीब 400 मठ
संत समागम से जुड़े स्वामी आनंद स्वरूप ने ‘बताया कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय से जुड़े करीब 400 छोटे बड़े मठ हैं, जबकि वोकालिगा समुदाय से जुड़े करीब 150 मठ है. कुरबा समुदाय से 80 से अधिक मठ जुड़े हैं. इन समुदायों का कर्नाटक की राजनीति में खासा प्रभाव है, ऐसे में राजनीतिक दलों में इन मठों का आर्शीवाद प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है.

कर्नाटक में हावी रही है मठों की राजनीति
उन्होंने बताया कि कर्नाटक में मठ सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र ही नहीं हैं बल्कि प्रदेश के सामाजिक जीवन में भी इनका काफी प्रभाव माना जाता है. शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में नि:स्वार्थ सेवा के साथ कमजोर वर्ग के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान के कारण लोग इन मठों को श्रद्धा के भाव से देखते हैं.

भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस कर्नाटक में इतनी कमजोर नहीं है जितनी विगत में कुछ राज्यों में थी. इसलिए यहां पर भाजपा के लिए चुनौती बड़ी है. कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव अग्निपरीक्षा हैं क्योंकि यहां पर जीत के साथ उसके हार के सिलसिले पर विराम लग सकता है.

(इनपुट एजेंसी से भी)

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