कर्नाटक चुनाव के बीच पाकिस्तान ने टीपू सुल्तान को बताया 'टाइगर ऑफ मैसूर', मचा घमासान
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कर्नाटक चुनाव के बीच पाकिस्तान ने टीपू सुल्तान को बताया 'टाइगर ऑफ मैसूर', मचा घमासान

पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी इस वीडियो में मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की वीरता का बखान किया गया है और उनकी तुलना शेर से की गई है. बीजेपी इस वीडियो को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है.

मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान को 219वीं पुण्यतिथि पर पाकिस्तान सरकार ने किया याद (फाइल फोटो/ट्विटर-@pid_gov)

नई दिल्लीः कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक बार फिर टीपू सुल्तान का नाम चर्चा का विषय बना हुआ है. लेकिन इस बार यह चर्चा केवल कर्नाटक राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान ने भी टीपू सुल्तान में दिलचस्पी दिखाई है. पाकिस्तान सरकार के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो शेयर किया गया है. इस वीडियो में मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की वीरता का बखान किया गया है और उनकी तुलना शेर से की गई है. इस वीडियो को लेकर सियासी घमासान मच गया है. आपको बता दें कि आज 4 मई) टीपू सुल्तान की पुण्यतिथि है.   

  1. 4 मई 1799 को हुई थी टीपू सुल्तान की मृत्यु
  2. अंग्रेजों के साथ तीसरी लड़ाई में हुए थे शहीद
  3. 'मैसूर के शेर' के नाम से जाना जाता है टीपू सुल्तान को

पाकिस्तान सरकार की तरफ से ट्विटर पर लिखा गया है, 'टीपू सुल्तान मैसूर रियासत के शासक थे, अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ हुए संघर्ष में वीरता दिखाने के लिए उन्हें पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है. टीपू सुल्तान की 219वीं पुण्यतिथि के मौके पर उनके जीवन के कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं.'

 

इसके अलावा एक अन्य ट्वीट में पाकिस्तान सरकार ने लिखा, 'इतिहास की प्रेरक और महान शख्सियत टाइगर ऑफ मैसूर-टीपू सल्तान की पुण्यतिथि पर हम उनको याद करते है. बचपन से ही टीपू सुल्तान युद्ध कौशल में पारंगत हो गए थे और उनमें सीखने की अद्भुत क्षमता थी.  '

आपको बता दें कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने साल 2015 से राज्य में टीपू सुल्तान जयंती मनाने के निर्णय लिया है. साल 2017 में टीपू सुल्तान जयंती मानने को लेकर विवाद हुआ था. बीजेपी लगातार टीपू सल्तान जयंती मानने का विरोध करती रही है. टीपू सुल्तान को लेकर बीजेपी और कांग्रेस की सोच हमेशा से विपरीत रही है. कांग्रेस जहां टीपू सुल्तान को हमेशा से राज्य के लिए धरोहर मान के चलती रही है. वहीं बीजेपी का मानना है कि टीपू सुल्तान एक क्रूर शासक था, उसने हिंदुओं पर जुल्म किए थे और उनका जबरन धर्म परिवर्तन करवाया था. बीजेपी का यह भी मानना रहा है कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं को जबरन गौमांस खिलवाया था.

टीपू जयंती के विरोध में बीजेपी-संघ 

नवंबर 2015
बीजेपी नेता प्रह्लाद जोशी ने टीपू सुल्तान को 'कट्टरपंथी' और 'कन्नड़ विरोधी' कहा

नवंबर 2015
संघ समर्थिक पत्रिका 'पांचजन्य' ने टीपू सुल्तान को दक्षिण भारत का औरंगजेब बताया

नवंबर 2016
संघ का आरोप टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं और ईसाइयों को धर्मांतरण कराया था

नवंबर 2017
केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने टीपू सुल्तान को बर्बर हत्यारा बताया

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया का 'टीपू प्रेम'!
कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया के मुताबिक टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी थे.  मैसूर राज्य ने ब्रिटिश शासकों के खिलाफ चार युद्ध लड़े
ब्रिटिश शासकों के खिलाफ़ लड़ाई में टीपू ने हिस्सा लिया था

इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान

बचपन से ही बहादुर थे टीपू
टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली मैसूर के शासक थे. उन्हें विरासत में ही वीरता मिली थी. इतिहासकार लिखते हैं कि बहुत कम उम्र में ही टीपू ने निशाना साधना, तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख ली थी. यही वजह थी कि वे अपने पिता के साथ भी जंग के मैदान में शरीक हुए. टीपू ने 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ पहली जंग लड़ी और इसमें जीत दर्ज की. टीपू की वीरता ही थी कि अंग्रेजों को संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा.

अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुए थे टीपू
मैसूर को हथियाने के लिए अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के साथ कई लड़ाइयां लड़ी थीं. दो लड़ाइयों में तो अंग्रेज टीपू सुल्तान को मात नहीं दे सके थे. लेकिन तीसरी लड़ाई 'मैसूर के शेर' टीपू सुल्तान के लिए आखिरी लड़ाई साबित हुई थी. इतिहासकार लिखते हैं कि यह लड़ाई न सिर्फ टीपू के लिए, बल्कि भारत के लिए भी महत्वपूर्ण थी. क्योंकि इस लड़ाई को लड़ने से पहले टीपू ने संभवतः पहली बार अंग्रेजों को देश से भगाने की रणनीति बनाई थी. उन्होंने इसके लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी शत्रुओं को मिलाने की योजना बनाई. उन्होंने फ्रांस, अफगानिस्तान हर किसी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ संधि करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए. इसके अलावा निजाम और मराठा की अंग्रेजों से मित्रता ने उन्हें शत्रु के मुकाबले कमजोर कर दिया. तीनों शत्रु सेनाओं ने मिलकर टीपू पर संयुक्त रूप से हमला किया. आखिरकार 4 मई 1799 को श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए मैसूर का यह शेर शहीद हो गया.

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