जलपाईगुड़ी लोकसभा सीट: CPM को 2014 में TMC ने दी थी मात, क्या कहता है 2019 का समीकरण?
वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन कर रहे हैं. इंदिरा गांधी के शासनकाल में इमरजेंसी लागू होने के बाद जब स्थितियां सामान्य हुई, तब से यहां पर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) का कब्जा रहा है
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नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले का नाम बेहद रोचक है. यह दो शब्द जैतून और स्थान को जोड़कर बना है. दरअसल, जैतून को बांग्ला भाषा में जलपाई कहते हैं और गुड़ी का अर्थ होता है स्थान. तो नाम से ही स्पष्ट है कि जैतून का स्थान. यह जिला ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज है. यह जगह जितना स्थानीय लोगों को लुभाती है, उससे कहीं ज्यादा पर्यटकों की पसंद है.
तृणमूल ने पहली बार माकपा से छीनी सीट
वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन कर रहे हैं. इंदिरा गांधी के शासनकाल में इमरजेंसी लागू होने के बाद जब स्थितियां सामान्य हुई, तब से यहां पर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) का कब्जा रहा है. हालांकि 2014 में पारी को पलटे हुए तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट पर दबदबा दिखाया और विजय चंद्र बर्मन यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रहे.
यहां पर लहराता है लाल झंडा
जलपाईगुड़ी संसदीय सीट तीसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव के समय अस्तित्व में आई थी. उस दौरान देश के जनमानस और राजनीति में कांग्रेस के साथ ही जवाहरलाल नेहरू की आभा छाई हुई थी. इसका असर वाम रुझान वाले पश्चिम बंगाल में दिखता रहा है, और जलपाईगुड़ी संसदीय सीट पर 1992, 1967 और 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस अपना झंडा फहराती रही. लेकिन आपातकाल के बाद देश के साथ ही जलपाईगुड़ी सीट की भी तस्वीर बदली और 1977 के चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार खगेंद्र नाथ दासगुप्ता ने यहां से जीत हासिल की. इसके बाद 1980 में इस सीट पर माकपा के सुबोध सेन जीत कर संसद पहुंचे. 1984, 1989 में माकपा के माणिक सान्याल लगातार दो बार संसदीय चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे. उनके बाद माकपा के ही टिकट पर 1991 और 1996 के चुनावों में जितेंद्रनाथ दास जीतते रहे. 1998, 1999 और 2004 के चुनावों में माकपा की मिनाती सेन लगातार चुनी जाती रहीं. 2009 के आम चुनाव में माकपा ने अपना उम्मीदवार बदला और महेंद्र कुमार रॉय चुनाव जीते. जबकि 2014 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के विजय चंद्र बर्मन यहां से चुनकर संसद पहुंचे.