लोकसभा चुनाव 2019: अलीगढ़ में इस बार किसके भाग्य में लगेगा ताला, जनता करेगी फैसला
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख सीट होने के साथ-साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कारण ये शहर सुर्खियों में रहता है.
Trending Photos
)
नई दिल्ली: दुनियाभर में अलीगढ़ को तालों की नगरी से जाना जाता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख सीट होने के साथ-साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कारण ये शहर सुर्खियों में रहता है. अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र अठारहवीं शताब्दी से पहले 'कोल' कहलाता था. यह क्षेत्र की दृष्टि से भारत में 55वें स्थान पर आता है. मुगल इतिहास में भी लिखा है कि अकबर और जहांगीर अक्सर 'कोल' में शिकार खेलने के लिए आया करते थे. मौजूदा समय में ये सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में है. अलीगढ़ जिले में करीब 20 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या और करीब 80 फीसदी हिंदू मतदाता हैं.
2014 का समीकरण
उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ लोकसभा पर इस वक्त बीजेपी का कब्जा है. साल 2014 में यहां पर बीजेपी के सतीश कुमार गौतम ने बसपा के डॉक्टर अरविंद को हराकर यह सीट अपने नाम की थी. साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर बीएसपी दूसरे, एसपी तीसरे, कांग्रेस चौथे और आप पांचवें नंबर पर रही थी. साल 2014 के चुनाव में 17,93,126 वोटरों ने हिस्सा लिया था.
ये है राजनीतिक इतिहास
साल 1952 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस ने बाजी मारी थी. इसके बाद भारतीय क्रांति दल ने अलीगढ़ में अपना खाता खोला और लगातार दो बार अलीगढ़ में वो जीती. इसके बाद यहां पर जनता पार्टी ने विजय हासिल की. साल 1984 में यहां कांग्रेस ने वापसी की लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अलीगढ़ में कदम रखा और 2004 तक उसी का वर्चस्व इस सीट पर रहा, इस दौरान भाजपा की नेता शीला गौतम अलीगढ़ की सांसद रही और 13 सालों तक यह पद संभाला, 2009 में इस सीट पर BSP ने कब्जा किया लेकिन साल 2014 में एक बार फिर से ये सीट बीजेपी की झोली में चली गई.
जिन्ना की तस्वीर पर मचा था संग्राम
स्थानीय सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तस्वीर हटाने का आदेश दिया था. तब कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे पर राजनीतिक तौर पर काफी शोर हुआ था.