नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha election 2019) में जारी वोटों की गिनती में अब तक के रुझानों में साफ हो चुका है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आ रही है. यूं तो पूरे उत्तर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी शानदार प्रदर्शन कर रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल के नतीजे सबका ध्यान खींचने वाला है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल ही एक ऐसा राज्य था, जहां पीएम मोदी का जादू नहीं चल पाया था, लेकिन इस बार के नतीजे बता रहे हैं कि हवा का रुख बदल चुका है.
अब तक के रुझानों में पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 19 और तृणमूल कांग्रेस 22 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. बीजेपी के इस शानदार प्रदर्शन पर पश्चिम बंगाल के बाहर के लोगों के जेहन में एक सवाल आना स्वभाविक है कि आखिर इस सफलता का राज क्या है. इसका तीन शब्दों में है- 'लेफ्ट' हुए 'राइट'. आइए इन शब्दों के मायने समझते हैं.
सत्ता से बाहर जाते ही जमीन से गायब हो गई लेफ्ट
वामदलों ने बंगाल में 34 साल तक राज किया. इसके बाद ममता बनर्जी ने 2011 के विधानसभा चुनाव में इसे करारी शिकस्त दी. पार्टी चारों खाने चित हो गयी. सत्ता से बाहर जाते ही लेफ्ट संगठन को जमीन पर बनाए रखने में नाकाम साबित हुई. यहां तक कि 2014 के आम चुनाव में वामदलों ने केवल दो सीटें जीती. पार्टी का वोट शेयर घट कर 17 प्रतिशत हो गया. 2016 आते-आते वामदलों की हालत पश्चिम बंगाल में बेहद खराब हो गई.
वामदलों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी, लेकिन ममता बनर्जी के सामने यह गठबंधन पूरी तरह नकार दिया गया. इस वजह से इस राज्य में विपक्ष की जगह लगभग खत्म हो गई. बीजेपी के केंद्रीय संगठन ने इस स्थिति परिस्थिति को भांपते हुए राज्य में अपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश करने लगे. जनता के मुद्दों को मुखरता से उठाकर बीजेपी देखते ही देखते मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ गई. इस तरह लेफ्ट को वोट देने वाले वोटर राइट यानी बीजेपी की ओर झुक गए, जिसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम में दिख रहा है.
बीजेपी का लगातार बढ़ता गया वोट प्रतिशत
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को महज़ छह फीसदी वोट मिले थे जो वर्ष 2014 के चुनावों में तीन गुने बढ़ कर लगभग 17 फीसदी तक पहुंच गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी को सिर्फ दो सीट जीतने में सफलता मिली हो, लेकिन वोट शेयर में लगभग 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ. यह परिवर्तन 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली.
लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ. इस चुनाव में बीजेपी को 10.16 प्रतिशत वोट मिले. 2011 में यह महज 4 प्रतिशत के करीब था. वहीं, वाम दल के वोट शेयर पर गौर करें तो उन्हें इस चुनाव में काफी नुकसान हुआ. 26.36 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे स्थान पर तो जरूर रही, लेकिन लगभग 11 प्रतिशत वोट की कमी दर्ज की गई.
उपचुनावों में भी BJP का प्रदर्शन सुधार
2014 के आम चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में लोकसभा और विधानसभा की एक-एक सीट पर उपचुनाव हुए. बीजेपी को इन दोनों सीटों पर भले ही जीत नसीब नहीं हुई, लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार दूसरा स्थान पाने में सफल रहे. उलुबेरिया लोकसभा और नोआपाड़ा विधानसभा सीट पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली थी.
उलुबेरिया लोकसभा सीट के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को महज 11.5 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन उपचुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 23.29 हो गया है. नोआपाड़ा विधानसभा सीट पर भी बीजेपी ने कुछ ऐसा ही प्रदर्शन किया. 2016 की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत वोट का इजाफा दर्ज किया गया. इन दोनों सीटों पर टीएमसी ने भी अपने वोट शेयर में वृद्धि ही हासिल की है लेकिन, लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में काफी गिरावट आई है.
पंचायत चुनाव में नंबर दो बन गई बीजेपी
पश्चिम बंगाल में बीते वर्ष हिंसक वारदातों के बीच ग्राम पंचायत का चुनाव संपन्न हुआ. कुल 31,457 सीटों के लिए वोट डाले गए थे. इनमें से टीएमसी ने 21,110 और बीजेपी ने 5,747 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, वाम मोर्चा 1,708 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी. इस चुनाव में वाम दल से बेहतर स्थिति में निर्दलीय प्रत्याशी रहे. इस चुनाव में 1,830 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे.
गुंडागर्दी की राजनीति से ऊब गई है जनता
महज 15 साल की उम्र से ही राजनीति में आईं तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी हमेशा वामदलों के खिलाफ झंडा बुलंद करती रहीं. वामदलों की गुंडागर्दी के खिलाफ ममता कई दफा सड़क पर उतरीं, लाठियां खाईं. इसके ईनाम स्वरूप पश्चिम बंगाल की जनता ने साल 2011 में उन्हें राज्य की सत्ता सौंप कर दी. पश्चिम बंगाल के लोग बताते हैं कि वामदल लाठी-डंडे और गुंडागर्दी की राजनीति करते थे. ममता के सत्ता में आने के बाद बूथ लेवल पर गुंडई करने वाले नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) के साथ हो लिए. यहां आपको बता दें कि समाजशास्त्र में कहा गया है कि समाज के गुंडे-बदमाशों का सत्ता से सटे रहना एक स्वभाविक बात है.
2011 के चुनाव परिणाम में पश्चिम बंगाल की जनता ने संदेश दिया था कि उन्हें गुंडों वाली राजनीति पसंद नहीं है. लेकिन साल-दो साल बाद ही टीएमसी के कार्यकर्ताओं की इसी हरकत से जनता के बड़े तबके में क्षोभ होना स्वभाविक है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के ताबड़तोड़ दौरे किए और इसी क्षोभ को अपने पाले में भुनाने में सफल होते दिख रहे हैं.