लोकसभा चुनाव 2019: बाराबंकी में 2014 का जनादेश दोहराना चाहती है BJP, विपक्षी देंगे टक्कर
साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी कमल खिलाने में सफल रही थी. साल 2014 में बीजेपी की प्रियंका सिंह रावत ने कांग्रेस के दिग्गज पीएल पुनिया को हराकर इतिहास रचा था.
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की बाराबंकी को कई संतों और साधुओं के लिए ध्यान भूमि, साहित्यिक बुद्धिजीवियों के लिए 'साधना' और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए 'युद्धक्षेत्र' रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटी हुई बाराबंकी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. बाराबंकी लोकसभा सीट यूपी की 53वीं लोकसभा सीट है. बाराबंकी विविधताओं से भरा इलाका है. आजादी के आन्दोलन में इस इलाके ने अग्रणी भूमिका निभाई थी. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी कमल खिलाने में सफल रही थी. साल 2014 में बीजेपी की प्रियंका सिंह रावत ने कांग्रेस के दिग्गज पीएल पुनिया को हराकर इतिहास रचा था.
2014 में ये था जनादेश
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर प्रियंका सिंह रावत ने जीत हासिल कर संसद में पहुंचने में कामयाब रही. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार पीएल पुनिया को 2 लाख से ज्यादा मतों से हराया. साल 2014 में बीजेपी पहले, कांग्रेस दूसरे, बीएसपी तीसरे औप सपा चौथे स्थान पर रहा था. बीजेपी की प्रियंका सिंह रावत को रिकॉर्ड तोड़ 4,54,214 वोट मिले थे.
ऐसा है राजनीतिक इतिहास
बाराबंकी लोकसभा सीट पर अभी तक 17 बार चुनाव हुए हैं. इनमें 5 बार कांग्रेस को जीत मिली है. जबकि चार बार सपा, दो बार बीजेपी और एक बार बसपा को जीत मिली है. बाराबंकी सीट पर हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहनलाल सक्सेना और 1957 में स्वामी रामंद ने जीत दर्ज की थी. साल 1971 से 1984 तक अलग-अलग पार्टी ने इस सीट पर कब्जा किया. साल 1989 से 1996 तक समाजवादी पार्टी के रामसागर रावत ने लगातार तीन बार यहां जीत दर्ज की. साल 1998 में हुए लोकसभा चुनाव ने बीजेपी के बैजनाथ रावत ने रामसागर रावत को हरा दिया. लेकिन, साल 1999 में हुए चुनाव में रामसागर रावत ने बीजेपी के बैजनाथ रावत को हराकर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया. साल 2004 में बीएसपी ने इस सीट पर पहली बार कब्जा किया. साल 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी पीएल पुनिया ने बाराबंकी की सीट जीतकर 25 साल बाद इस सीट पर वापसी की. साल 2014 में बीजेपी प्रियंका सिंह रावत यहां से सांसद चुनी गईं. महागठबंधन के बाद इस सीट पर चुनावी लड़ाई तगड़ी हो गई है.