लोकसभा चुनाव 2019: सिंधिया परिवार के गढ़ 'ग्वालियर' में बदलाव लाती रही है जनता
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लोकसभा चुनाव 2019: सिंधिया परिवार के गढ़ 'ग्वालियर' में बदलाव लाती रही है जनता

 ग्वालियर से भले ही नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी यहां काफी प्रभाव है.

लोकसभा चुनाव 2019: सिंधिया परिवार के गढ़ 'ग्वालियर' में बदलाव लाती रही है जनता

ग्वालियरः मध्य प्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट्स में से एक है. वैसे तो ग्वालियर लोकसभा सीट सिंधिया राजघराने का गढ़ कही जाती है, लेकिन यहां की जनता राजघराने से अलग भी अपना प्रतिनिधि चुनती रही है. बता दें 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर को जीत मिली थी और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी. वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी है तो कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि कांग्रेस इस सीट को अपने कब्जे में कर ले. ग्वालियर से भले ही नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी यहां काफी प्रभाव है.

2014 का राजनीतिक समीकरण
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को करीब 29,699 वोटों के अंतर से मात दी थी और नतीजे अपने नाम किए थे. इस चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर को 4,42,796 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी 4,13,097 वोट मिले. लेकिन अगर इस बार कांग्रेस ग्वालियर में अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही तो यह भाजपा के लिए मुश्किल का सबब हो सकती है.

राजनीतिक इतिहास
ग्वालियर में 1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में अखिल भारतीय हिंदु महासभा के विष्णु घनश्याम देशपांडे ने जीत हासिल की थी. जिसके बाद 1957 में यह सीट कांग्रेस के कब्जे में आ गई और सूरज प्रसाद राधाचरण शर्मा यहां से सांसद बने. 1962 में कांग्रेस ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर लोकसभा सीट से मैदान में उतरने को राजी किया, जिसके बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज कराई. 1967 में भारतीय जनसंघ के रामअवतार शर्मा इस सीट से विजयी रहे.

1971 में इस सीट से भारतीय जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेयी ने जीत दर्ज कराई और 1977 में भारतीय लोकदल के नारायण कृष्ण राव शेजवालकर जीते. 1980 में फिर शेजवालकर जीते, लेकिन 1984 में महाराजा माधवराव सिंधिया इस सीट से प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए और फिर उन्होंने लगातार 1998 तक पांच बार जीत हासिल की. 1999 में इस सीट से राजघराने के विरोधी रहे BJP के जयभान सिंह पवैया ने जीत दर्ज कराई. हालांकि 2004 में यह सीट फिर कांग्रेस के झोली में आ गई और रामसेवक सिंह विजयी रहे, लेकिन फिर 2009 में बीजेपी की यशोधरा राजे सिंधिया और 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर विजयी रहे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड
56 साल के नरेंद्र सिंह तोमर को उनके निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए 17.50 करोड़ का फंड आवंटित किया गया, जिसका उन्होंने 75.45 फीसदी फंड खर्च कर दिया. वहीं 24.65 प्रतिशत फंड बिना खर्च किए रह गया.

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