रांची लोकसभा सीट: आमने सामने होंगे बीजेपी-कांग्रेस, रामटहल चौधरी-सुबोधकांत सहाय का रहा है खास इतिहास
रांची लोकसभा सीट: आमने सामने होंगे बीजेपी-कांग्रेस, रामटहल चौधरी-सुबोधकांत सहाय का रहा है खास इतिहास
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रांची: 2000 में बिहार से अलग होने के बाद रांची, झारखंड की राजधानी बनी. देशभर में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर केंद्र और विपक्ष दोनों ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. एक ओर जहां सत्ता पर काबिज बीजेपी 2014 की शानदार जीत को दोहराना चाहती है तो वहीं, दूसरी ओर विपक्ष भी बीजेपी को केंद्र से हटाने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहता है. जिसके चलते केंद्र से लेकर राज्यों तक की राजनीति गरमाई हुई है.
वहीं, अगर झारखंड में लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2014 में सभी सीटें जीतने के बाद बीजेपी इसे दोहराने के लिए तैयारियों में जुट गई है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर रांची का राजनीतिक इतिहास भी काफी दिलचस्प रहा है. 2000 में अलग होने के बाद यहां लगातार रामटहल चौधरी और सुबोधकांत सहाय अपनी जीत दर्ज कराते रहे हैं.
2009 लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को 310494 वोट मिले तो वहीं, बीजेपी के रामटहल चौधरी को 297144 वोट मिले. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से रामटहल चौधरी को रिकॉर्ड 448617 वोट मिले. उनके बाद सुबोधकांत सहाय को 249399 वोट मिले. आजसू के सुदेश महतो भी 2014 लोकसभा चुनाव में खड़े हुए थे.
रांची लोकसभा सीट के अंतर्गत सरायकेला और खरसावां भी आते हैं. रांची लोकसभा सीट के छह विधानसभा क्षेत्र रांची, हटिया, कांके, सिल्ली, ईचागढ़ व कांके विधानसभा में कुरमी जाति के मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. यहां के मतदाता रांची लोकसभा चुनाव परिणाम को भी प्रभावित करते रहे हैं.
हालांकि यह कहना मुश्किल है कि कौन जीत दर्ज करेगा लेकिन रामटहल चौधरी और सुदेश महतो दोनों की पैठ कुरमी मतदाताओं के बीच है. रांची लोकसभा सीट पर रामटहल चौधरी और सुबोधकांत सहाय दोनों ही एक दूसरे को कांटे की टक्कर देते रहे हैं. तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों में शानदार परफॉर्मेंस के बाद अब देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव 2019 में रांची लोकसभा क्षेत्र के मतदाता क्या फैसला लेते हैं.