क्या निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की साइकिल का पीछा कर पाएंगे? जानें पूरा गणित
राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए, इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है. कुछ यूं ही दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के साथ हुआ है. निरहुआ कभी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने का जुगाड़ लगाया करते थे. अब भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव आज़मगढ़ लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
नई दिल्ली: राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए, इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है. कुछ यूं ही दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के साथ हुआ है. भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव को बीजेपी ने पूर्वी यूपी की आज़मगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया है. इसी सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव एक ज़माने में समाजवादी पार्टी के नेताओं के बेहद करीबी माने जाते थे. निरहुआ सपा के लिए चुनाव प्रचार भी कर चुके हैं. निरहुआ सपा नेता सुभाष पाषी के बेहद अजीज़ दोस्त माने जाते हैं. यूपी की सियासत से जुड़े कई महत्वपूर्ण लोगों ने बताया कि यही निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने का जुगाड़ लगाया करते थे. बीजेपी में शामिल होने से कुछ महीनों पहले भी निरहुआ सपा नेता सुभाष पासी के माध्यम से अखिलेश से मिलने का समय मांग रहे थे. यही नहीं एक वक्त ऐसा भी था जब निरहुआ सपा का स्टाक प्रचारक भी बनना चाह रहे थे.
लेकिन अब वक्त का पहिया कुछ यूं घूमा कि दिनेश लाल यादव उसी नेता के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जिनसे मिलने का समय मांगा करते थे. हालांकि निरहुआ के लिए आज़मगढ़ सीट से चुनाव लड़ना बेहद चुनौती भरा होगा. क्योंकि ये सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. फिलहाल आज़मगढ़ लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं. पूर्वांचल में आज़मगढ़ को समाजवादियों का गढ़ भी कहा जाता है.
निरहुआ के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के स्थानीय नेता होंगे. पिछली बार रमाकांत यादव आज़मगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़े थे और हार गए थे. रमाकांत का आज़मगढ़ में अच्छा दबदबा है. इस बार भी रमाकांत आज़मगढ़ से चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन बीजेपी ने रमाकांत को टिकट नहीं दिया. रमाकांत की नाराज़गी निरहुआ पर भारी पड़ सकती है. कांग्रेस अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी, इससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा नहीं होगा. 2017 के विधानसभा चुनाव में आज़मगढ़ की 10 विधानसभा सीट में से सपा- 5, बीएसपी- 4 और बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीती थी. आज़मगढ़ लोकसभा सीट का जातीय समीकरण देखें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है.
आज़मगढ़ का जातीय समीकरण:
यादव- 3.5 लाख
मुस्लिम- 3 लाख
दलित- 2.5 लाख
ठाकुर- 1.5 लाख
ब्राह्मण- 1 लाख
राजभर- 1 लाख
विश्वकर्मा- 70 हज़ार
भूमिहार- 50 हज़ार
निषाद- 50 हज़ार
चौहान- 75 हज़ार
वैश्य- 1 लाख
प्रजापति- 60 हज़ार
पटेल- 60 हज़ार
अगर आज़मगढ़ के इस जातीय समीकरण का विश्लेषण करें तो यादव, मुस्लिम, दलित, विश्वकर्मा, चौहान और प्रजापति सपा का वोट माना जाता है और ठाकुर, ब्राह्मण, भूमिहार, निषाद, वैश्य, पटेल बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. अब देखना ये होगा कि क्या निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की साइकिल की पीछा कर पाएंगे?