ZEE Jankari: चुनाव के वक्त आयकर की कार्रवाही और करोड़ों रुपए बरामद
लोकसभा चुनाव में वोटिंग से पहले आयकर विभाग ने देश में बड़े पैमाने पर छापे मारे हैं. इस दौरान 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा की रक़म बरामद हुई है. ख़ासतौर पर मध्य प्रदेश में आयकर विभाग को बड़ी कामयाबी मिली है.
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राजनीति की दुनिया में घोषणाओं, संकल्पों और वादों में इतनी शक्ति नहीं होती, जितनी नोटों में होती है. अब हम भारत की राजनीति, वोट और नोट...इन तीनों के अटूट रिश्ते का DNA टेस्ट करेंगे. लोकसभा चुनाव में वोटिंग से पहले आयकर विभाग ने देश में बड़े पैमाने पर छापे मारे हैं. इस दौरान 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा की रक़म बरामद हुई है. ख़ासतौर पर मध्य प्रदेश में आयकर विभाग को बड़ी कामयाबी मिली है.
मध्य प्रदेश में आयकर विभाग की कार्रवाई ने पूरे देश को हैरान कर दिया है, क्योंकि जिन लोगों के पास से करोड़ों रुपये बरामद हुए हैं...वो मुख्यमंत्री के क़रीबी हैं. आयकर विभाग ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के OSD प्रवीण कक्कड़ और उनके एक और क़रीबी अश्विनी शर्मा के ठिकानों पर छापे मारे हैं. income tax विभाग का ये ऑपरेशन इतना गुप्त रखा गया कि इसके बारे में मध्य प्रदेश सरकार को भी ख़बर नहीं थी.
छापे के दौरान इतने नोट मिले कि उन्हें गिनने के लिये मशीन लाई गई. मध्य प्रदेश में हुई इस कार्रवाई में 14 करोड़ रुपये बरामद हुए हैं. इन छापों के बाद बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. लेकिन सच यही है कि चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल हो रहा है. ये काली रक़म सिर्फ़ मध्य प्रदेश में मिल रही है ऐसा नहीं है. चुनाव आयोग ने 10 मार्च को लोकसभा चुनाव की तारीख़ का ऐलान किया था. इसके बाद चुनाव को प्रभावित करने वाली गतिविधियां बढ़ने लगीं. देश भर में चुनाव के दौरान नकद पैसा बांटने और अवैध रुप से शराब सप्लाई करने का इंतज़ाम होने लगा.
10 मार्च से एक अप्रैल के बीच पूरे देश में 399 करोड़ रुपये कैश, 162 करोड़ की शराब और 708 करोड़ रुपये की ड्रग्स बरामद हुईं हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान 299 करोड़ रुपये कैश बरामद किया गया था. लेकिन इस बार इससे ज़्यादा रक़म चुनाव शुरू होने से पहले ही बरामद की गई है. सिर्फ़ गुजरात में इस दौरान कम से कम 3 करोड़ रुपये कैश और 500 करोड़ रुपये के drugs बरामद हुए हैं. तमिलनाडु में 127 करोड़ रुपये का सामान बरामद हुआ है. आंध्र प्रदेश में 158 करोड़, उत्तर प्रदेश में 135 करोड़ रुपये और पंजाब में 114 करोड़ रुपये कैश और अवैध शराब बरामद की गई है.
देशभर में इस वक़्त आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और Directorate of Revenue Intelligence यानी राजस्व आ-सूचना निदेशालय की नज़र चुनाव प्रचार पर है. ये तीनों एजेंसियां इस वक़्त नेताओं और उनकी रैलियों का हिसाब किताब देख रही हैं। चुनाव में पैसे का बड़ा खेल होता है. पैसे के दम पर रैलियों में भीड़ जुटाई जाती है. पैसे के दम पर पार्टियों का प्रचार होता है. चुनाव में ये नेता नोटों वाले बाहुबल से, यानी नोट बांटकर वोट ख़रीदने वाली तरकीब लगाते हैं.
CMS यानी Centre for Media Studies के मुताबिक़ 16वीं लोकसभा यानी 2014 में जब आम चुनाव हुए थे, तब गैर आधिकारिक रुप से 35 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किये गये थे. जबकि आधिकारिक तौर पर तब सिर्फ़ 7 से 8 हज़ार करोड़ रुपये ही ख़र्च हुए थे. अब सवाल ये है कि बाक़ी के 27 हज़ार करोड़...कहां से आए? ज़ाहिर है ये काला धन था जो उम्मीदवारों और पार्टियों ने चुनाव लड़ने पर ख़र्च किया था. CMS की ही study बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 50 से 60 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च होने की संभावना है.
इसलिये चुनाव आयोग के लिये अब ये सबसे बड़ी चुनौती है कि वो इतने बड़े पैमाने पर पैसा ख़र्च करने वाले नेताओं और पार्टियों पर कड़ी कार्रवाई करे. एक मज़बूत लोकतंत्र के लिये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बहुत ज़रूरी हैं, और ये तभी मुमकिन हैं जब उम्मीदवार और उनकी पार्टियां नोटों के दम पर नहीं...बल्कि अपनी काबिलियत और काम के दम पर चुनाव लड़ेंगे. चुनाव आयोग के नियम के अनुसार लोकसभा चुनाव में एक उम्मीदवार, अपने प्रचार के लिये 70 लाख से ज़्यादा की रक़म ख़र्च नहीं कर सकता. लेकिन कड़वा सच ये है कि इस नियम का कोई पालन नहीं करता और तय सीमा से दस गुना ज़्यादा पैसा ख़र्च किया जाता है.
इस बार के लोकसभा चुनाव में 50 से 60 हज़ार करोड़ रुपये खर्च होंगे और इसमें से ज़्यादातर पैसे का कोई हिसाब किताब नहीं होगा. ये रकम, एक बहुत बड़ी रकम है और हमें लगता है कि इस रकम को चुनाव की व्यवस्था और प्रचार के बजाए लोकतंत्र को मज़बूत करने और जनहित की योजनाएं बनाने के लिए खर्च होना चाहिए इस रकम से किसानों और गरीबों का उत्थान करने वाली योजनाएं बनाई जा सकती हैं. भारत में चुनाव पर होने वाले खर्च की सबसे बड़ी वजह है रैलियां.
भारत में चुनाव प्रचार का मतलब होता है बड़ी बड़ी रैलियां करना. ये रैलियां और इनमें जुटने वाली भीड़ के हिसाब से ही तमाम उम्मीदवारों और पार्टियों की जीत और हार का अंदाज़ा लगाया जाता है. रैली की भीड़ को जीत और हार का मानक माना जाता है. जितनी बड़ी रैली होती है, उतना ही ज़्यादा ख़र्च होता है. नेताओं के लिये भव्य मंच तैयार किये जाते हैं. कहीं लोगों को धूप से बचाने के लिये पंडाल लगते हैं...तो कहीं भीड़ को बुलाने के लिये बसों का इंतज़ाम किया जाता है.
रैली की विशालता से ही, नेता के क़द का अंदाज़ा लगाया जाता है...और इसके लिये बजट लाखों में नहीं करोड़ों में होता है. नेताओं के लिये ये रैलियां किसी टॉनिक के कम नहीं हैं. रैली में मजमा लगाकर ही वो देश के सामने अपना Bio Data पेश करते हैं. यानी हमारे नेता रैलियों से ही अपने पक्ष में हवा बनाते हैं. लेकिन भीड़ धोखा भी देती है. रैली में आए लोग वोट में तब्दील होंगे या नहीं इसे लेकर आज भी नेता सहमे हुए रहते हैं. कोई भी पूरे भरोसे से कुछ नहीं कह सकता. अब भारत में चुनाव को लेकर एक ऐसा सच जिसे जानकर आप हैरान ही नहीं होंगे बल्कि अफ़सोस भी करेंगे.
भारत में होने वाला इस बार लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव होगा. ख़र्च के मोर्चे पर हम अमेरिका को भी पीछे छोड़ने वाले हैं. 2016 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में 45 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे और इस बार भारत में नई सरकार चुनने की प्रक्रिया पर 50 से 60 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च होने वाले हैं...ये Centre for Media studies का अनुमान है.
इस बार का चुनाव पिछले चुनावों से बहुत अलग है क्योंकि इस बार नेता सिर्फ़ रैलियों पर निर्भर नहीं हैं. सोशल मीडिया के ज़माने में चुनाव प्रचार.. Twitter, Facebook और Whatsapp पर भी हो रहा है. लेकिन अब भी रैलियों का महत्व कम नहीं हुआ है. हर नेता रैलियों को ही जनसंपर्क का सबसे बड़ा माध्यम मानता है. हर बार लोकसभा चुनाव में हज़ारों रैलियां होती हैं और इस बार भी यही होगा. भारत के नेताओं का रैलियों से जो प्रेम है वो कम नहीं हुआ है. हालांकि विदेशों में चुनाव प्रचार के लिए रैलियों का आयोजन बहुत सीमित हो चुका है.
इस बीच फेसबुक पर चुनावी प्रचार से जुड़े नये आंकड़े भी आ चुके हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ इस बार क़रीब साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये विज्ञापन पर ख़र्च किये जाएंगे. फेसबुक ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि इस साल फरवरी और मार्च के महीने में उसे क़रीब 52 हज़ार राजनीतिक विज्ञापन मिले हैं. इसके लिये पार्टियों ने 10 करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की रक़म खर्च की है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा बीजेपी की तरफ़ से आया है. फेसबुक के मुताबिक़ बीजेपी ने 1100 विज्ञापन दिये हैं. जबकि कांग्रेस पार्टी ने 410 विज्ञापन दिये हैं.
फरवरी और मार्च के महीने में इन विज्ञापनों पर बीजेपी ने 36 लाख रुपये ख़र्च किये हैं जबकि कांग्रेस ने क़रीब 6 लाख रुपये ख़र्च किये हैं.