चालू खाते का घाटा सबसे बड़ी चुनौती : रिजर्व बैंक
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चालू खाते का घाटा सबसे बड़ी चुनौती : रिजर्व बैंक

चालू खाते के घाटे को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए रिजर्व बैंक ने आज कहा कि चालू खाते के घाटे की स्थिति और खराब होने से मौद्रिक नीति उपायों को फिर से सख्ती की तरफ मोड़ना पड़ सकता है।

मुंबई : चालू खाते के घाटे को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए रिजर्व बैंक ने आज कहा कि चालू खाते के घाटे की स्थिति और खराब होने से मौद्रिक नीति उपायों को फिर से सख्ती की तरफ मोड़ना पड़ सकता है।
रिजर्व बैंक की आज जारी वार्षिक मौद्रिक नीति में कहा गया है, ‘अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा खतरा चालू खाते के घाटे से है जो कि पिछले साल ऐतिहासिक ऊंचाई तक पहुंच चुका था। चालू खाते के घाटे के जोखिम और इसके वित्तपोषण को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति में सावधानी बरतनी होगी, इससे नीति के उपायों में भी बदलाव लाना पड़ सकता है।’
चालू खाते का घाटा यानी सीएडी देश में आने वाले सकल विदेशी मुद्रा प्रवाह और देश से बाहर जाने वाले बाह्य प्रवाह का अंतर होता है। पिछले साल दिसंबर में समाप्त तिमाही मं यह 6.7 प्रतिशत की ऐतिहासिक ऊंचाई तक पहुंच गया था। वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इसके जीडीपी के 5 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है।
रिजर्व बैंक ने आगे कहा है, ‘दुनिया के विकसित देशों के मामले में दृष्टिकोण अभी भी अनिश्चित बना हुआ है, ऐसे में कोई बड़ा घटनाक्रम नहीं होने के बावजूद भी कुछ प्रक्रियागत झटके लग सकते हैं और उभरती विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी का बाह्य प्रवाह बन सकता है।’ मौद्रिक नीति में कहा गया है कि ऊंचा सीएडी अपने आप में बड़ा जोखिम है, वैश्विक स्तर पर तरलता में यदि उत्तरोतर सख्ती होती है तो सीएडी के वित्तपोषण में अर्थव्यवस्था के समक्ष पूंजी प्रवाह के अचानक रकने अथवा प्रवाह का रख बदलने का खतरा हो सकता है।
शीर्ष बैंक ने यह भी कहा है कि साल दर साल सामान्य स्तर से उंचा सीएडी रहने पर विदेशी कर्ज की किस्तों के भुगतान पर भी दबाव बढ़ सकता है। केन्द्रीय बैंक ने वर्ष 2012.13 की वृहद आर्थिक मौद्रिक एवं विकास रिपोर्ट में कहा कि वर्ष 2014 में वैश्विक उपभोक्ता वस्तुओं के दाम में नरमी से सीएडी में भी कुछ राहत होगी।
केन्द्रीय बेंक ने चालू खाते के घाटे को पूरा करने के लिये बढ़ते विदेशी कर्ज और अल्पकालिक उधार पर भी चिंता व्यक्त की है। नीति में कहा गया है, ‘शेष ऋण की परिपक्वता के आधार पर अल्पकालिक रिण बढ़कर कुल कर्ज का 44 प्रतिशत तथा दिसंबर 2012 के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार का 56 प्रतिशत तक पहुंच गया।’ (एजेंसी)

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