अक्षय तृतीया के शुभ होने के मायने

भारतीय काल गणना के मुताबिक चार स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त माने गए है - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा), आखातीज यानी अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि।

संजीव कुमार दुबे

 

अंग्रेजी में एक बड़ी मशहूर कहावत है- वेल बिगन इज हाफ डन यानी किसी भी काम की शुरुआत सही ढंग से की जाए तो यह मान लेना चाहिए कि आधा काम पूरा हो गया है। ऐसी ही एक कहावत हिंदी की है- नाधा तो साधा यानी अगर किसी काम को आपने शुरू कर दिया तो उसे हर हाल में पूरा तो होना ही है। उर्दू जबान में कहते हैं- आगाज अच्छा तो अंजाम अच्छे यानी किसी काम की शुरुआत बेहतर होगी तो उसका अंजाम भी बेहतर ही होगा। यानी उस शुरू किए गए काम को अंजाम यानी मंजिल मिलना तय है।

 

हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक वर्ष की कुछ तिथियां बड़ी ही शुभ मानी गई है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि वह शुभ फलों को प्रदान करती है। वैसे तो कहा यह जाता है कि किसी भी काम को शुरू करने के लिए हर मुहूर्त शुभ है लेकिन कुछ मुहूर्त काल गणना चक्र के मुताबिक हमारे मनीषियों द्वारा निर्धारित किए गए है जिनमें किसी भी काम की शुरुआत करना सफलता की पक्की गारंटी होती है।

 

कहते है इसमें आप कुछ भी करें तो वह सर्वफलदायी होता है, सर्वाथसिद्धिदायक होता है। इस मुहूर्त या फिर तिथि में किया गया काम शुभ फलों को देता है। शुभातिशुभ फलों के इन्हीं आगमन के लिए हिंदू कैलेंडर में कुछ तिथियां हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा काल गणना के आधार पर निर्धारित की गई है।

 

शायद आपने एक शब्द सुना हो। अभिजीत मुहूर्त यानी एक ऐसा मुहूर्त जिसमें अगर काम शुरु किया गया तो विजय होनी तय है, सफलता की गारंटी पक्की होती है। इस बार 24 अप्रैल को अक्षय तृतीया का शुभ दिन है।

 

वैशाख महीने की गणना सबसे सर्वोत्तम महीनों में की जाती है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें पड़ने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। भारतीय काल गणना के मुताबिक चार स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त माने गए है - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा), आखातीज यानी अक्षय तृतीया,  दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार यह दिन सभी के जीवन में अच्छी किस्मत,खुशियां और सफलता लाता है।

 

अक्षय का अर्थ है  जिसका कभी क्षय नहीं हो यानी वह आपके पास हमेशा बना रहे। जिसका नाश ना हो यानी वह आपके पास स्थायी रहे।

 

भारतीय संस्कृति में इस दिन का महत्व व्यापक है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। कहते हैं चारों युगों अर्थात सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन ही हुई थी इसलिए इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि यानी युर्गाद तिथि भी कहते हैं। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में मानी गई है।

 

इसी तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाए जाने वाले इस व्रत की बड़ी मान्यता है । इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव के साथ ही अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, आभूषण आदि बनवायें, खरीदें और धारण किए जाते हैं। नई भूमि को खरीदना, भवन, संस्था आदि का प्रवेश इस तिथि को शुभ फलदायी माना जाता है।

 

ज्योतिषी के जानकारों के मुताबिक अक्षय तृतीया बड़ी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजीत शुभ मुहूर्त के कारण विवाह और मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य के रूप में संचित होता है। इसलिए इस दिन अपने सामर्थ्य के मुताबिक दान-पुण्य करना चाहिए। यानी इस दिन आप जो कुछ भी करते हैं उसका क्षय नहीं होता है। चाहे वह कोई शुभ कार्य हो या फिर आपके द्वारा किया गया दान-पुण्य।

 

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन पड़ने वाली अक्षय तृतीया चार सर्वाधिक शुभ दिनों में से एक मानी गई है। अक्षय तृतीया को स्वर्ण युग की आरंभ तिथि भी मानी गई है। अक्षय का अर्थ है कि कभी समाप्त न होने वाला। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन खरीदा और धारण किए गए सोने और चांदी के गहने अखंड सौभाग्य का प्रतीक माने गए हैं। मान्यताओं के मुताबिक सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से घर में बरकत ही बरकत आती है।

 

किसी भी कार्य के लिए आभूषण बरकत देने वाला होता है। अक्षय तृतीया के मौके पर सोना खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है यही वजह है कि इस दिन अपने सामर्थ्य के मुताबिक सोना खरीदने के लिए ज्वेलर्स की दुकानों में भारी भीड़ होती है। दरअसल सोने में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने के शुभ फल का भी क्षय नहीं होता अर्थात मां लक्ष्मी उस सोने के रूप में उस घर में स्थिरा हो जाती है। जिससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।

 

ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी को स्थिर होना चाहिए ताकी घर में बरकत और खुशहाली की सदैव बारिश होती रहे। सोने के प्रति ज्योतिषियों का मानना है कि सोना के होने से घर में शुभ कारकों का उदय होता है जो परिवार में खुशहाली का माध्यम बनते हैं। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने और पहनने की भी परंपरा है।

 

ज्योतिषियों के मुताबिक कि वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को (24 अप्रैल) सूर्य और चंद्रमा दोनों अपने अपने राशि में स्थित होंगे और इस अनोखे और दुर्लभ संयोग से अत्यंत शुभ मुहूर्त बनता है।  अक्षय तृतीया के अति पावन अवसर पर इस बार दिव्य संयोग बन रहा है। इससे पहले यह दुर्लभ संयोग 6 मई 2000 को बना था। 2012 के बाद 2024 में यह योग बनेगा।

 

 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक बात और भी है कि शुभ तिथियां हर हाल में शुभ फलों को प्रदान करती है। अक्षय तृतीया जीवन में अखंड सौभाग्य और अकूट संपन्नता का जरिया होता है। शुभ फलों की या संपन्नता की जब हम बात करते हैं तो वह सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं होता बल्कि उसके और भी कई मायने होते है। मसलन एक व्यक्ति का सेहत अगर अच्छा है तो वह सेहत के मामले में यकीनन संपन्न है। अगर एक व्यक्ति के जीवन में धन का पर्याप्त आगमन ना होते हुए भी वह खुशहाल जीवन जी रहा है तो यह भी संपन्नता का ही एक प्रारूप है। जीवन की खुशी और बाधाओं का तो चोली दामन का साथ है लेकिन इन शुभातिशुभ तिथियों पर शुभ फलों की खातिर सभी अपने-अपने स्तर से कोशिशें करते है ताकी उनके जीवन में अक्षय और अखंड सुखों का आवागमन होता रहे। आध्यात्म का उदय आस्था से होता है और ये तिथियां आपकी आस्था को और दृढ करती है ताकि आपका जीवन में खुशहाली के रंगबिरंगे फूल हमेशा मुस्कुराते रहें।

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