महंगाई की रफ्तार में भारतीय रेल
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महंगाई की रफ्तार में भारतीय रेल

पांच राज्यों में चुनावी बिसात बिछ गई है। प्रचार और प्रलोभन के साथ-साथ घोषणापत्र में लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। चुनाव परिणामों को बाद आम और रेल बजट पेश होना है। हर बजट की तरह इस बजट में भी लोगों को महंगाई से निजात दिलाने की कोशिश की जाएगी। मगर इन सभी से पहले योजना आयोग और कमेटियां अपनी सिफारिश भी आगे करती हैं। इसी क्रम में रेलवे को चमकाने की कवायद में एकाएक 25 फीसदी किराया बढ़ाने का प्रस्ताव है।


इन्द्रमोहन कुमार

 

 

पांच राज्यों में चुनावी बिसात बिछ गई है। प्रचार और प्रलोभन के साथ-साथ घोषणापत्र में लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। चुनाव परिणामों को बाद आम और रेल बजट पेश होना है। हर बजट की तरह इस बजट में भी लोगों को महंगाई से निजात दिलाने की कोशिश की जाएगी। मगर इन सभी से पहले योजना आयोग और कमेटियां अपनी सिफारिश भी आगे करती हैं। इसी क्रम में रेलवे को चमकाने की कवायद में एकाएक 25 फीसदी किराया बढ़ाने का प्रस्ताव है।

 

इन चुनावों में भ्रष्टाचार और आरक्षण का मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि महंगाई का शोर बौना हो गया। हम सबको पता है कि महंगाई की मार से किसे दर्द होता है, इसमें अगर रेल का सफर जुड़ गया तो मार कौन झेलेगा। हवाई सफर के आसमान छूने पर उतना हंगामा नहीं होता जितना सड़क पर दौड़ने वाली गाड़ी के पेट्रोल से होता है। विमानन कंपनियों में विदेशी निवेश का इंतजार है क्योंकि उन्हें घाटे से उबारना है। तो क्या भारतीय रेल में भी निवेश को हरी झंड़ी दिखाकर घाटे से नहीं निकाला जा सकता ?  सरकार फिलहाल ऐसा नहीं करना चाहेगी क्योंकि रीटेल एफडीआई पर वह पहले आलोचना झेल चुकी है।

 

 

अब घाटे का यह बोझ भारतीय रेल की ओर से आम जनता पर डाले जाने की तैयारी है। बताया गया है कि भारतीय रेल के आधुनिकीकरण के लिए बनी एक समिति ने रेल किराये में एकमुश्त 25 फीसदी बढ़ोतरी की सिफारिश की है। खुद रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने पिछले साल सितंबर में पित्रोदा समिति बनाई थी। सैम पित्रोदा के नेतृत्व में बनी समिति ने ट्रेन किराये को महंगाई दर से जोड़ने की भी वकालत की है। उन्होंने कहा कि उनकी इन सिफारिशों पर अमल करने से अगले वित्त वर्ष में रेलवे 60 हजार करोड़ रुपये जुटा सकता है।

 

दरअसल भारतीय रेल की कांगाली की वजह भी रेल बजट ही है। पिछले आठ साल में रेलवे के किराए में कोई इजाफा नहीं किया गया है। सभी सरकार और राजनैतिक दल के मंत्री सत्ता में रहकर इसका भरपूर राजनैतिक फायदा उठाया। अपने नाफे नुकसान को देखते हुए हजारों करोड़ की योजना बना बैठे और सैकड़ों नई रेलगाड़िया चला दी। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष भी नई परियोजनाओं और गाड़ियों का बोझ डालने के पक्ष में नहीं थए, पर रेलमंत्री के आगे किसकी चलती है। उसी का नतीजा है कि करोड़ों की कमाइ करने वाली राष्ट्रीय समपदा आज घाटे में चल रही है।

 

किराया बढ़ोत्तरी के पक्ष में समिति ने योजना आयोग से कहा है कि पांच साल में रेल के आधुनिकीकरण के लिए 9,13,000 करोड़ रुपये चाहिए। किराये में बढ़ोतरी करके इसका एक हिस्सा जुटाया जा सकता है। 25 फीसदी बढ़ोतरी से 37,500 करोड़ रुपये जुटाए जा हो सकते हैं। इसके सदस्यों में एचडीएफसी के दीपक पारेख, आईडीएफसी के राजीव लाल, और फीडबैक वेंचर्स के विनायक चटर्जी हैं। प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा की अध्‍यक्षता वाली इस समिति ने रेल किराया को महंगाई दर से जोड़ कर अगले साल में 60 हजार करोड़ रुपये उगाहे जाने का रास्‍ता बताया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि जिस हिसाब से महंगाई बढ़ रही है उसी हिसाब से रेल का किराया भी बढ़ना चाहिए।

 

अब पांच राज्यों के चुनाव और आने वाले आम चुनाव को देखते हुए कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी रेल किराए में इजाफे पर आम राय बनना मुश्किल है। खुद रेल मंत्रालय रखने वाली ममता बनर्जी भी अपने मंत्री दिनेश त्रिवेदी से इसका विरोध कर चुकी हैं। पेट्रोल में बार-बार किए गए इजाफे से भी सहयोगी दलों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है। यूपीए सरकार भी तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे अहम साझीदारों से मनमुटाव नहीं चाहती। एक बात यह भी है कि आम तौर पर ट्रेनों की जनरल बॉगी में सफर करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोग होते हैं जो मेहनत कर घर से बाहर रोजगार को जाते हैं।

 

पिछले साल के रेल बजट में रेलवे के वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक योजना 57,630 करोड़ रूपए की थी। वहीं रेल बजट के इस वित्तीय वर्ष में एक लाख करोड़ से ज़्यादा की कमाई की उम्मीद की गई है, जो दूर की कौड़ी नजर आ रही है। वहीं छठे वेतन आयोग के बेतनमान की वजह से कुल 76,000 करोड़ रूपए का अतिरिक्त खर्च आया है। नई रेलगाड़ियों और परियोजनाओं का बोझ अलग से पड़ेगा।

 

यानी कुल मिलाकर अभी तक भारतीय रेल के पास घाटे से उबरने का कोई ठोस उपाय मौजूद नहीं है। सब योजनाओं और समितियों तक सीमित रहने की बात भर है। अभी तो बस लोगों को यही आस है कि अगर रेल किराए में वृद्धि की जाती है तो सुविधाएं और सुरक्षा भी उसी रफ्तार से बढ़ाई जाए। आभी रोजाना 7,000 यात्री गाड़ी चलती है और कम से कम एक हजार लोग हर ट्रेन में सवार। बोझ भी उतना ही बड़ा है जितनी बड़ी जिम्मेदारी।

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